रैना उवाच: कविता

रैना उवाच: कविता
गजानन रैना

जिसके पास कोई रोजगार नहीं, वो प्रापर्टी डीलर का काम कर ले और जो कुछ नहीं लिख सकता, कविता लिख ले। 

बुरी दशा है कविता की, आइ सी यू में है,यही समझिये। कविता के नाम पर ऐसी ऐसी ह्रदयविदारक चीजें सामने आती हैं कि मामला कुछ कुछ ” केसव कहि न जाये क्या कहिये ” जैसा रमणीक हो चला है।

कविता की सबसे नई और सहल प्रविधि है , एन्टरमार कविता । एक सुन्दर गद्यांश लीजिये, एंटर की पुनि पुनि दबा कर उसको तीन,चार शब्दों की पंक्तियों में बाँट दीजिये । बन गई कविता ।

बुरी दशा हुई पड़ी है कविता की, यह खिलवाड़ आपराधिक है।

मध्य युग की कविता का आधार था ,श्रवण। अधुनातन कविता का आधार हैं चाक्षुष बिम्ब। 

बीसवीं सदी के आगमन के साथ साथ सारी दुनिया में कविता से छंद बहरियाये जाने लगा। पुरानी कविता में एम्फैसिस था ध्वनि पर, आधुनिक कविता में वो विजुअल्स पर है। छंद को धकिया कर दृश्यात्मक बोध आगे आ गया, लेकिन भगवन, जब वो भी न हो तो ?

कोई कविता को रूखी रिपोर्ट बना दे रहा है तो कोई नारा बना दे रहा है ।

कविता नारा नहीं, नारी की तरह होती है, एक संवेदनशील नारी की तरह। 

दोनों की ही असंवेदनशील और शुष्क लोगों से नहीं बनती।

नारी का अंतर्मन और कविता के निहितार्थ हड़बड़िया लोगों के सामने नहीं खुलते।

नारी हो या कविता,अपने मन के अवगुंठन उसी के सामने खोलती है, जो संवेदनशील हो, जो उसे समय दे,समझदारी दे।

जो उसके साथ same page पर हो, एक ही तल पर हो। 

ऐसी स्थिति न होने पर, सारा जीवन साथ बीत जाये लेकिन दोनों में से कोई न खुलने वाला है,  न समझ आने वाला है।

कृष्ण कल्पित कभी अद्भुत लिखते थे, अब वे कविता में कम महंतई में ज्यादा रूचि रखते दिखते हैं ।

गीत चतुर्वेदी किसी सुदूर, किसी विगत समय में रचते थे तो दैवीय रचते थे। फिर वे अपनी ही महानता के बोझ तले दब गये। अब वे पाइथागोरस के थेरम सा कुछ कहते हैं और खुद ही समझते हैं,  मने जिसको कहते हैं सच्चा स्वान्त: सुखाय लेखन।

प्रज्ञा रावत अनूठे तेवर की कविताएं लेकर आती हैं । वे हर समय नारी विमर्श का झंडा नहीं लहरातीं। पढें, “जो नदी होती।”

ऐंद्रिकता हिन्दी कविता में,  विशेषकर नारी लेखन में अनुपस्थित सी रही आई है।

भदेसपन की अलग बात है। 

लेकिन सविता भार्गव  ने सुन्दर ऐंद्रिक कवितायें रची हैं । देह के विवरणों को, सरोकारों को सविता एक खूबसूरत पेंटिंग की तरह रचती हैं । पढ़िए,

 “किसका है आसमान।”

खुशी की बात है कि है कि कविता के नये चितेरे उसे “असाध्य वीणा” नहीं, अनुभूतियों का एक इंद्रधनुष बना कर ला रहे हैं ।

गजानन रैना


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About गजानन रैना

गजानन रैना का जन्म फिरोजपुर, पंजाब में  हुआ था। वह वाराणसी में पले, बढ़े हैं। काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से स्नातकोत्तर हैं। वह पढ़ने, लिखने, फिल्मों  व संगीत के शौकीन हैं और इन पर यदा कदा अपनी खास शैली में लिखते भी रहते हैं।  फ्रीलांस अनुवाद व संपादन आय का जरिया । हॉबी ज्योतिष।

View all posts by गजानन रैना →

2 Comments on “रैना उवाच: कविता”

  1. गजानन जी ने जो उदाहरण दिए हैं, उनके विषय में तो बिना उन्हें पढ़े कुछ कहना संभव नहीं लेकिन व्यंग्यात्मक शैली में जो सामान्य विचार उन्होंने कविता तथा आजकल की अधकचरी कविताओं के विषय में व्यक्त किए हैं, उनसे मैं पूर्ण रूप से सहमत हूँ।

    1. जी कुछ बातों से मैं भी सहमत हूँ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *