गोन विद द विंड 3: युद्ध की पृष्ठभूमि में रची प्रेम कथा है गोन विद द विंड

 गोन विद द विंड अंग्रेजी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक माना जाता है। 1936 में प्रकाशित हुए इस उपन्यास ने अपने प्रकाशन के तुरन्त बाद ही लोगों के दिल में अपनी जगह बना ली थी और आज भी यह जगह उसी तरह कायम है। 1937 में मारग्रेट मिशेल को अपने इस उपन्यास के पुलित्जर पुरस्कार दिया गया था और उसी साल अमेरिकन बुकसेलर्स एसोसिएशन द्वारा उसे नैशनल बुक अवॉर्ड मिला था। 2008 में हुए एक सर्वे के मुताबिक गोन विद द विंड अमेरिकियों द्वारा बाइबल के बाद सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुस्तक है। 2014 में हुए एक पोल में भी गोन विद द विंड दूसरी सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली पुस्तक के रूप में उभर कर आई। 2010 तक इस उपन्यास की 30 करोड़ से भी ज्यादा प्रतियाँ अमेरिका और अमेरिका से बाहर बिक चुकी थीं। 2003 में बी बी सी के द्वारा यू के में पसंद किए जाने वाले उपन्यासों की सूची के लिए हुए द बिग रीड पोल में यह  21वें स्थान पर रही थी। वहीं 1923 से 2005 तक आलोचक लेव ग्रॉसमैन और रिचर्ड लकायो ने इसे अंग्रेजी में प्रकाशित 100 सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों की सूची में शामिल किया था। कहने का तात्पर्य यह है कि 1000 पृष्ठों से भी ऊपर के कलेवर की यह पुस्तक अपने पाठकों के बीच में अपना नाम बना चुकी है।

आज एक बुक जर्नल पर हम गोन विद द विंड पर पाठिका पूजा बरनवाल द्वारा लिखी टिप्पणी का तीसरा भाग प्रस्तुत कर रहे हैं। टिप्पणी के इस तीसरे भाग में वो उपन्यास में दर्शाये प्रेम और उसके विभिन्न पक्षों पर लिख रही हैं। 

मूलतः तीन भागों में उनके फेसबुक वाल पर प्रकाशित यह टिप्पणी पढ़ने योग्य है और जिसने उपन्यास नहीं पढ़ा है उसके मन में उपन्यास पढ़ने की इच्छा जागृत करती है।आशा है यह टिप्पणी आपको पसंद आएगी और पुस्तक के प्रति आपकी उत्सुकता जगाएगी। 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

इस शृंखला की पहली दो टिप्पणियाँ:

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जब आपको किसी चीज के बारे में खूब ढेर सारी बातें कहना हो, पर फिर जब कहना शुरू करें तो सारी बातें गड्ड-मड्ड होने लग जाती हैं। आखिर इतनी सारी घटनाओं, इतने सारे उतार चढ़ाव को कोई एक लेख में समेटे तो कैसे!

‘गॉन विद द विंड’ न तो असल में कोई युद्ध कथा है, न ही काले-गोरों के भेदभाव की कथा। यह तो एक खास परिस्थिति में एक खास शहर के छोटे से समाज की कहानी है। वस्तुतः यह तो स्कार्लेट की ही कथा है। उसके ख्वाहिशों की, उसके संघर्ष की, उसके प्रेम की, प्रेम पात्रों की। 

‘गॉन विद द विंड’ के न सिर्फ नायक नायिका बल्कि इसकी पूरी प्रेमकथा ही स्टीरियोटाइप को तोड़ती है। 

1860 के साउथ अमेरिका का समाज एक ऐसा समाज है जहाँ के लोगों को अपने जीवन-मूल्य अपने जीवन से भी अधिक प्यारे हैं, जहाँ वे भूख से मरना चुन सकते हैं,  पर अपने आदर्शों से डिगना नहीं…

जहाँ हर चीज के निश्चित नियम हैं। बात व्यवहार के बंधे बंधाये कायदे हैं। सबको पता है एक ‘जेंटलमैन’ के लिए क्या करना उचित है, क्या नहीं, कौन सी बातें एक ‘लेडी’ को ‘ग्रेट लेडी’ बनातीं हैं और कौन सी नहीं। न सिर्फ़ सभी लोग इन कायदों का पालन करते हैं बल्कि दूसरों से भी इसकी अपेक्षा रखते हैं। 

पर क्या होता है जब इनमें से कोई अपनी राह अलग चुन लेता है? सामाजिक नियमों को ‘टू हूट्स’ कह देता है? 

तब उसका कर दिया जाता है सामाजिक बहिष्कार। 

‘रेट बटलर’ समाज से बहिष्कृत है। व्यावसायिक बाध्यता न हो तो, कोई भी भला मानुष उससे सम्पर्क/संबंध नहीं रखना चाहता। 

क्योंकि वह ‘जेंटलमैन’ नहीं है। 

नायक नायिका का पहला परिचय ही इस तरह होता है जब स्कार्लेट खीझकर रेट से कहती है, 

‘सर, यू आर नो जेंटलमैन’ 

और मजे लेता हुआ रेट बटलर जवाब में कहता है, 

‘ऐंड यू मिस, आर नो लेडी।’

और इस तरह शुरू होती है स्कार्लेट ओ’हारा और रेट बटलर की नितांत ही अपारंपरिक प्रेम कहानी।

रेट बटलर, जो दुनिया को ठेंगे पर रखता है और हमेशा वही करता है जो वह करना चाहता है। 

ठीक ऐसे ही स्कार्लेट भी जो दिल में आता है वही करती है। पर रेट की तरह वह दुनिया की परवाह करना छोड़ नहीं पाती है। 

बचपन से वह ख्वाब देखती है अपनी माँ एलेन की तरह बनने का। एलेन जो त्याग और दया, प्रेम और करुणा का साकार रूप है। पर एलेन के जैसी बनने में एक ही मुश्किल है। वह यह कि इतनी अच्छी और इतनी सच्ची बनने के बाद आनन्द की सभी वस्तुओं से दूर हो जाना पड़ता है। खासकर लड़कों से। 

सोलह साल की स्कार्लेट की बस यही एक चाहत है, कि दुनिया के सारे लड़के बस उसी के इर्द-गिर्द घूमें। हर पार्टी की शान वही बने। हर कोई बस उसी के साथ डांस करना चाहे। 

स्कार्लेट किसी भी ऐसी बात में रुचि नहीं लेती जिसका केंद्र वह स्वयं न हो। 

ऐसी स्वकेंद्रित षोडशी का जीवन पूरी तरह बदल जाता है जब वह सुनती है कि उसका एक दोस्त ऐश्ले अपनी कज़न मेलानी से सगाई करने वाला है। 

स्कार्लेट को अचानक एहसास होता है कि वह ऐश्ले को कितना चाहती है। उसके पिता उसे समझाते हैं कि वही शादी सफल होती है, जहाँ दो व्यक्तियों के विचारों में, स्वभाव में तालमेल हो। स्कार्लेट नहीं समझती। वह ऐश्ले से भी साथ भाग चलने की जिद करती है। वह भी उसे वही कहता है जो उसके पिता ने समझाने की कोशिश की थी। 

हठ और अपमान से भरी स्कार्लेट क्रोध में आकर मेलानी के भाई से विवाह कर लेती है। 

ठीक उसी समय युद्ध की घोषणा हो जाती है और सारे लड़के गर्वोन्मत्त होकर लड़ाई के मैदान में चल पड़ते हैं। तीन महीने के भीतर युद्धभूमि में स्कार्लेट के पति यानी मेलानी के भाई चार्ल्स की मृत्यु हो जाती है। 

मेलानी जो हर किसी से सहज ही जुड़ जाती है, जो कभी किसी के दोष देख ही नहीं पाती, जो शादी के पहले दिन से ही स्कार्लेट को अपनी बहन की तरह प्यार करने लगती है; वह स्कार्लेट को अपने साथ अपने घर पर आकर रहने का अनुरोध करती है कि स्कार्लेट के रहते उनलोगों को घर में किसी पुरुष की अनुपस्थिति महसूस नहीं होगी। स्कार्लेट इतनी बहादुर जो है। 

और इस तरह शुरू होता है स्कार्लेट और मेलानी के साथ का सफर। 

स्कार्लेट दुनिया में सबसे अधिक किसी से नफरत करती है तो वह है, मेलानी। और क्यों न हो!आखिर उसी ने तो छीना है ऐश्ले को स्कार्लेट से। 

और मेलानी यूँ तो सारी दुनिया से ही प्रेम करती है, पर स्कार्लेट उसे सारी दुनिया में सबसे अधिक प्यारी है। वह इतनी जहीन, इतनी साहसी जो है। और फिर अब तो रिश्ते में भी वह मेलानी की ‘सिस्टर’ (इन लॉ) भी है। 

धीरे-धीरे परिस्थितियां ऐसी बनती जाती हैं कि मेलानी का प्रेम स्कार्लेट के प्रति बढ़ता ही जाता है। इतना कि जब पूरा समाज स्कार्लेट के विरुद्ध खड़ा होता है, वह अकेली उसकी ढाल बनकर उसके साथ खड़ी रहती है। 

इसके विपरीत स्कार्लेट आखिर तक मेलानी से खीझती, उससे नफरत करती, उसके गुणों, उसके प्रेम के प्रति आँखे मूँदे रहती है। पर फिर मृत्यु शैय्या पर उसे देखकर स्कार्लेट को महसूस होता है कि मेलानी ही तो उसके जीवन-भर की एकमात्र सहेली थी। उसकी शक्ति का स्रोत। मेलानी के बिना जीवन कितना अधूरा होगा!

इस प्रकार यह कहानी है मेलानी और स्कार्लेट के अनपेक्षित प्रेम की। उपन्यास में उनकी बॉन्डिंग देखने योग्य है। 

यह कहानी स्कार्लेट के ‘सोलह वर्षीय प्रेम’ की भी है। समय के स्कार्लेट की उम्र तो बढ़ती जाती है पर उसके प्रेम की उम्र सोलह बरस ही रह जाती है। विवाह, वैधव्य, पुनर्विवाह, गर्भावस्था, बच्चे, मतलब कोई भी चीज ऐश्ले के प्रति उसके मनोभावों को बदल नहीं पाती है। 

उसका प्रेम और समर्पण इतना गहरा है कि ऐश्ले को दिया वचन निभाने के लिए वह अपना जीवन दांव पर लगा देती है। 

और फिर यह कहानी है स्कार्लेट और रेट बटलर के असाधारण प्रेम की। 

रेट जिसने स्कार्लेट को ऐश्ले से प्रेम निवेदन करते और पाँव पटकते वापस जाते देखा था, 

जो पहली ही नजर में स्कार्लेट के प्रति आकर्षित था, क्योंकि वह स्टीरियोटाइप नहीं थी,

जो स्कार्लेट का मजाक उड़ाता है, उसे छेड़ता है,  पर हमेशा (और बिना उसे जताए) उसकी छोटी बड़ी खुशियों का ध्यान रखता है, 

उसने स्कार्लेट के शोकपूर्ण दिनों को उत्सव में बदल दिया,

जब जब स्कार्लेट पर आर्थिक संकट आया, रेट बिना बताए बिना जताए हमेशा उसके साथ था,

उसने स्कार्लेट से तब भी प्यार किया जब वह विधवा थी, तब भी जब उसने अर्थिक संकट से निपटने के लिए दूसरी शादी कर ली, 

तब भी जब वह फ़्रैंक के बच्चे की माँ बनने वाली थी, 

और तब भी जबकि वह जानता था कि स्कार्लेट ऐश्ले को चाहती है। 

वह देश विदेश घूमता है। पर पुनः पुनः लौटकर अटलांटा आता है। बस इसलिए कि वह स्कार्लेट को देख सके। और इत्मीनान कर सके। 

पर वह अपना प्रेम कभी प्रदर्शित नहीं कर पाता। क्योंकि उसे पता है कि स्कार्लेट हर उस इंसान की भावनाओं को इस्तेमाल करती है जो उससे प्रेम करता है। 

रेट के शब्दों में ‘You’re so brutal to those who love you, Scarlett, you take their love and hold it over their heads like a whip.’

यह असीम प्रेम और अभिव्यक्ति का अभाव ही रेट के कष्टों का कारण बन जाता है। स्कार्लेट अंत तक नहीं समझ पाती। न रेट की भावनाओं को, न उसके प्रति अपने ही मनोभावों को। रेट से विवाह के बाद भी उसके दिलो दिमाग में ऐश्ले ही ऐश्ले है। 

और अंत में जब उसे एहसास होता है कि उसे ऐश्ले से नहीं बल्कि रेट से ही प्यार है, वही सदा से उसका हमसफ़र, हमकदम रहा है, बस उसके साथ ही वह अपने सहज रूप में बिना किसी बनावट के रह पाती है, वही संसार का एकमात्र इंसान है, जो उसकी रग रग जानता है, और फिर भी वह जैसी है उसे वैसी ही स्वीकार करता है, उससे प्यार करता है। 

हाँ, रेट ही तो है जो उसे दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करता है। 

पर जब तक वह यह सारी बातें समझ और रेट को कह पाती है तब तक रेट के जीवन में बहुत कुछ बदल चुका है। स्कार्लेट की स्वीकारोक्ति सुनने के बाद भी वह यह कहकर चल देता है कि उसकी भावनाएँ मर चुकी हैं। वह अब और हार्टब्रेक नहीं झेल सकता। 

 और इस तरह कहानी का अंत सारे स्टीरियोटाइप को तोड़ता है। यह अंत इस आदर्श को भी तोड़ता है कि ‘प्रेम कभी मरता नहीं, जो मर जाये वह प्रेम नहीं’। 

 लेकिन स्कार्लेट जिसने जीवन में कभी हार नहीं मानी, इस बार भी हार नहीं मानती और यह निश्चय करती है कि वह रेट को अपने प्रेम से वापस अवश्य जीत लेगी। 

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इस शृंखला की पहली दो टिप्पणियाँ:

पुस्तक विवरण:

पुस्तक: गोन विद द विंड | लेखिका: मारग्रेट मिशेल | पुस्तक लिंक: अमेज़न

टिप्पणीकार परिचय:

पूजा बरनवाल आसानसोल पश्चिम बंगाल से आती हैं। वह बैंकिंग प्रोफेशनल हैं। साहित्य से उन्हें गहरा लगाव है और पढ़े गए साहित्य के प्रति अपनी बेबाक टिप्पणी वह अपने फेसबुक अकाउंट से यदा कदा साझा करती रहती हैं। अपने बेबाक टिप्पणियों के लिए वह पाठकों के बीच खासी चर्चित हैं। 

साहित्य के इतर घूमना-फिरना, संगीत सुनना और अपने पसंदीदा गीत गुनगुनाना भी उनका शौक है।

संपर्क:  फेसबुक 


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