ब्रजेश कुमार शर्मा पाठकों के बीच अपने लेखकीय नाम अजिंक्य शर्मा के नाम से मशहूर हैं। अपने लेखकीय नाम से उन्होंने अब तक 8 से ऊपर उपन्यास लिखें जो कि पाठकों के बीच अच्छे खासे प्रसिद्ध हुए हैं। इसी अजिंक्य शर्मा नाम से प्रकाशित उनके उपन्यास ‘ब्रेकिंग न्यूज: वहशी कातिल’ को वर्ष 2021 के के डी पी पेन टू पब्लिश का द्वितीय पुरस्कार मिला था।
अब ब्रजेश शर्मा का उपन्यास नवीन उपन्यास ‘निमिष’ किंडल पर प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास की दो खास बातें हैं। पहली यह है कि अभी तक हॉरर और अपराध साहित्य लिखने वाले अजिंक्य शर्मा ने अब विज्ञान गल्प के क्षेत्र में अपनी कलम चलाई है। दूसरी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि उन्होंने अपना नवीन उपन्यास अपने लेखकीय नाम से न प्रकाशित करके अपने खुद के नाम से प्रकाशित किया है।
उनके इस नवीन उपन्यास पर एक बुक जर्नल ने उनसे बातचीत की है। इस बातचीत उनके लेखन, उनके नामों और उनके नवीन उपन्यास पर बात की है। आशा है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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नमस्कार ब्रजेश। पहले तो आपके नवीन उपन्यास के लिए आपको बधाई।
नमस्कार विकास। हार्दिक आभार।
इस प्रश्न का जवाब देने के लिए मुझे पहले ये बताना पड़ेगा कि मैंने उपन्यास लिखना शुरू क्यों किया? करीब 5-6 साल पहले मैं सोशल मीडिया के माध्यम से किताबों के फैन्स की दुनिया से जुड़ा और मुझे पता चला कि कॉमिक्सों, उपन्यासों का संसार पूरी तरह खत्म नहीं हो गया है। गाँव-गाँव, शहर-शहर में होने वाली लाइब्रेरियाँ भले ही बंद हो गईं हैं लेकिन उपन्यासों, कॉमिक्सों के फैन्स में पुस्तक प्रेम अब भी बरकरार है। वे भी मेरी तरह ही उन दिनों को याद करते हैं, जब उपन्यासों, कॉमिक्सों की लोकप्रियता चरम पर थी। अपने नए पुस्तकप्रेमी मित्रों के प्रति विशेष स्नेह अनुभव करते हुए मैंने पहला उपन्यास ‘मौत अब दूर नहीं’ लिखा था। मुझे विश्वास था कि मैं कुछ अच्छा लिख पाऊँगा और दोस्त इसे जरूर सराहेंगे। लेकिन मैंने उस वक्त यही सोचा था कि आगे मैं और उपन्यास शायद ही लिख पाऊँ। इसलिए मैंने पेन नेम का प्रयोग किया। हालाँकि पहले उपन्यास से ही पाठकों का इतना प्रोत्साहन मिला कि मैंने पेन नेम से ही लिखना जारी रखा।
पेन नेम से जासूसी उपन्यास लिखने के अलावा भी मैं कुछ हटकर करना चाहता था, जिसका परिणाम ‘निमिष’ के रूप में आपके सामने है। ‘निमिष’ जैसे उपन्यास आगे भी ऑफिशियल नेम से आते रहेंगें। दो-चार साल में कम-से-कम एक उपन्यास अपने ऑफिशियल नेम से लिखने का प्लान है।
आपके उपन्यासों, फिर भले ही वह मर्डर मिस्ट्री हों या हॉरर या अभी का विज्ञान गल्प ही ले लीजिए, में हास्य मौजूद रहता है। प्रस्तुत उपन्यास निमिष में भी ऐसी परिस्थितियाँ हैं जो कि मुस्कराने पर मजबूर कर देती हैं। कथानक में हास्य के प्रति आपका क्या नजरिया है? क्या आप अपने कथानकों में हास्य लाने के लिए विशेष मेहनत करते हैं?
हास्य जीवन का अनिवार्य अंग है तो किताबों का क्यों नहीं? वैसे भी मर्डर मिस्ट्री हो या साइंस फिक्शन, कथानक का अधिकांश हिस्सा गंभीर होता है। ऐसे में कथानक को रुचिकर बनाने के लिए अगर कहीं कोई हास्यपूर्ण प्रसंग शामिल कर सकते हैं तो वो मौका मैं छोड़ता नहीं।
अपनी रचनाओं में मौजूद किरदारों के नाम का चुनाव आप कैसे करते हैं? मसलन निमिष का अर्थ पलक झपकाना होता है? कथानक से इसका लेना देना भी है और इसके एक किरदार का नाम भी ये है? इस नाम तक आप कैसे पहुँचे? क्या किरदारों के नाम पहले निर्धारित करते हैं? निमिष के मामले में यह प्रक्रिया क्या रही?
किरदारों के नामों का चयन करना मेरे लिए काफी मुश्किल होता है। कई बार उपन्यास लिखते समय मैं किरदारों के नाम कुछ और रखता हूँ और उपन्यास पूरा होने के बाद उनके नाम बदलता हूँ। आगे इस पर और मेहनत करने की सोच रहा हूँ, जिससे शुरू से ही उपयुक्त नाम रख सकूँ। लेकिन ‘निमिष’ के मामले में अजीब संयोग हुआ। ये नाम मुझे संयोग से ही मिल गया, जो हीरो के नाम के लिए उपयुक्त होने के साथ ही पूरे कथानक और विषय की दृष्टि से भी बेहद महत्त्वपूर्ण है।
आपके उपन्यासों की एक खासियत मजबूत महिला पात्र रहे हैं। निमिष में भी अवनी और स्कारलेट ऐसे पात्र हैं। आपको इन पात्रों की प्रेरणा कहां से मिलती है? क्या असल जीवन में मौजूद किसी व्यक्ति से प्रेरित होकर आप ऐसे पात्र लिखते हैं? अवनी और स्कारलेट को रचने की प्रेरणा कहाँ से मिली और इन पात्रों में से किसे लिखते वक्त आपको मजा आया?
महिला किरदारों को मजबूत दिखाना मुझे काफी महत्त्वपूर्ण लगता है। महिलाओं को हर क्षेत्र में मजबूत होना ही चाहिए। वैसे तो असली जीवन में भी बहुत सी महिलाओं को जानता हूँ, जिनसे मुझे महिला किरदारों को सशक्त दिखाने की प्रेरणा मिलती है।
‘निमिष’ में अवनी और स्कारलेट दोनों को लिखने में मुझे काफी मजा आया। अवनी को जहाँ नायिका के रूप में चित्रित करना था, वहीं स्कारलेट को एक सुपरसोल्जर के रूप में, जो निर्मम होने के साथ ही बेहद रहस्यमयी भी है। ये बताना मेरे लिए भी मुश्किल है कि दोनों में से किसे लिखने में ज्यादा मजा आया। क्योंकि दोनों के किरदार अपनी-अपनी जगह महत्त्वपूर्ण हैं और अपनी-अपनी विशेषताओं से परिपूर्ण हैं।
एक उपन्यास लिखना काफी श्रमसाध्य कार्य होता है। फिर निमिष जैसा उपन्यास लिखना जिसमें विज्ञान के इतने सिद्धांतों की बात होती है तो काफी श्रम की माँग करता है। इस उपन्यास के लिए की गई अपनी रिसर्च के विषय में बताइए? रिसर्च कैसी की? क्या-क्या चीजों को उपन्यास में रखा और क्या क्या छोड़ना पड़ा? ये रखने छोड़ने की प्रक्रिया कितनी कठिन या सरल थी?
‘निमिष’ जैसा साइंस फिक्शन लिखने के लिए मैं काफी समय से प्रयास कर रहा था अतः कह सकते हैं कि रिसर्च भी काफी समय से कर रहा था। लेकिन उस समय मूलरूप से ‘निमिष’ का खाका दिमाग में नहीं था। सिर्फ एक साइंस फिक्शन लिखने की सोच थी।
रही ‘निमिष’ में चीजों को छोड़ने की बात, तो इस मामले में भी ये मेरे लिए शायद अब तक का सबसे हटकर उपन्यास था। जब मैंने ‘निमिष’ का फर्स्ट ड्राफ्ट कम्प्लीट किया, उस समय इसमें शायद 1 लाख 20 हजार से भी ज्यादा शब्द थे। मेरा ख्याल था कि करीब 20 हजार शब्द निकालने के बाद भी एक लाख शब्दों का कथानक बन जाएगा। लेकिन फाइनल ड्राफ्ट तैयार करते समय मुझे उसमें से करीब 60000 शब्द निकालने पड़े। कारण था – मैं ‘निमिष’ को सरल से सरल भाषा में रखना चाहता था, जिससे कहीं भी पाठकों को समझने में विशेष कठिनाई न हो और वे एक अच्छे साइंस फिक्शन का आनंद उठा सकें। प्रोफेसर और निमिष के बीच टाइम ट्रैवल को लेकर हुई चर्चा भी मैंने काफी लंबी लिखी थी, जिसे अधिक विस्तार से बचने के लिए संक्षिप्त करना पड़ा। हालाँकि वो संक्षिप्त भी करीब 20 पृष्ठों में है।
अच्छा क्या आप बता सकते हैं कि निमिष को लिखने का ख्याल कैसे मन में आया? क्या कोई विशेष घटना थी जिसने आपको इसे लिखने के लिए प्रेरित किया? अगर हाँ, तो वो क्या घटना थी?
‘निमिष’ लिखने की प्रेरणा मुझे उसी विषय से मिली, जिसके बारे में मैंने ‘निमिष’ में भर-भरकर लिखा है। टाइम ट्रैवल। यानी समय यात्रा। विज्ञान के इस अबूझे कॉन्सेप्ट ने मुझे हमेशा ही आकर्षित किया है। एक ओर जहाँ टाइम ट्रेवल एक बेहद रोचक अवधारणा लगती है, वहीं दूसरी ओर टाइम ट्रेवल से जुड़ी कुछ चीजें ये भी दर्शातीं हैं कि टाइम ट्रैवल वास्तविक जीवन में लगभग असंभव ही है। टाइम ट्रेवल से जुड़े कुछ पैराडॉक्स-जैसे बूटस्ट्रैप पैराडॉक्स, ग्रैंडफादर पैराडॉक्स, जिनके बारे में मैंने ‘निमिष’ में लिखा भी है-भी इसी बात की ओर संकेत करते हैं।
‘निमिष’ में जो लिखना मेरे लिए सबसे मजेदार था, वो यही था कि टाइम ट्रेवल पर न जाने कितनी फिल्में, कितने उपन्यास हैं। लेकिन ‘निमिष’ में टाइम ट्रैवल को काफी अलग तरह से परिभाषित किया गया है।
निमिष में मुख्य पात्रों को छोड़ दें तो ऐसा कौन सा पात्र है जिसे लिखने में आपको सबसे अधिक मजा आया और ऐसा कौन सा पात्र है जिसे आप अपने अन्य रचनाओं में लाना चाहेंगे?
‘निमिष’ में मुख्य पात्रों के अलावा हैरिस और जिम को लिखने में काफी मजा आया। हैरिस की भूमिका जहाँ बेहद महत्त्वपूर्ण है, वहीं जिम का किरदार थोड़ी देर के लिए ही सही, हास्य का पुट लेकर आता है।
निमिष, अवनी के अलावा प्रोफेसर सिद्धार्थ महादेवन को मैं अपनी अन्य रचनाओं में लाना चाहूंगा।
आपने 3 साल पहले लेखन शुरू किया और अब तक आपके आठ से ऊपर उपन्यास आ चुके हैं। आपकी लेखन प्रक्रिया क्या रहती है?अर्थात आम तौर आपके लेखन का रूटीन क्या होता है? क्या संक्षिप्त में पाठकों को बताना चाहेंगे?
एक उपन्यास लिखने के बाद कम-से-कम 5-10 दिन तक तो अगले उपन्यास का एक पेज भी लिखने के लिए कंप्यूटर को हाथ तक लगाने का मन नहीं करता। उसके बाद ही लिखना शुरू करता हूँ। प्लॉट कई हैं। कुछ तो पुराने प्रोजेक्ट भी हैं, जिन्हें आगे बढ़ाना है। पहले निश्चित करना पड़ता है कि कौन से प्लॉट पर फोकस करके लिखना है। उसके बाद ही आगे लिखना शुरू करता हूँ। समय मिलने के ऊपर भी है। कभी एक ही दिन में 5-10 पेज लिख लेता हूँ तो कभी कई-कई दिनों तक कुछ नहीं लिख पाता। इसीलिए मेरे पिछले कुछ उपन्यास काफी अंतराल से आए हैं।
पिछले वर्ष आप किंडल पेन टू पब्लिश का पुरस्कार जीत चुके हैं। इस बार भी आप एक अच्छी रचना पाठकों के समक्ष ला रहे हैं। ऐसे पुरस्कारों का एक लेखक के लिए क्या महत्व होता है? क्या आपके लेखन पर इसका कोई प्रभाव पढ़ा है?
किंडल पेन टू पब्लिश 4 कॉन्टेस्ट में पुरस्कार जीतना मेरे लिए बेहद महत्त्वपूर्ण था। इस पुरस्कार से मुझे और भी बेहतर लिखने का प्रयास करने की प्रेरणा मिली। किसी भी लेखक के लिए ये बेहद महत्त्वपूर्ण और गौरवान्वित करने वाला पल होता है, जब उसकी रचना को विशेष रूप से सम्मानित किया जाता है। मुझे आज भी याद है, जब विजेताओं के नामों की घोषणा हो रही थी तो अपने उपन्यास का नाम दूसरे नम्बर पर देखकर कुछ पलों के लिए मैं विश्वास ही नहीं कर पा रहा था।
आपके आगे आने वाले प्रोजेक्ट्स कौन-कौन से हैं? आप अब अपराध कथाओं के साथ विज्ञान गल्प में आ गए हैं? क्या आगे जाकर किसी अन्य विधा में लिखने का मन है? आपके प्रिय लेखक ओम प्रकाश शर्मा जितने अपनी अपराध कथाओं के लिए जाने जाते थे उतने ही अपने सामाजिक उपन्यासों के लिए भी जाने जाते थे? क्या कभी कोई सामाजिक उपन्यास लिखने का इरादा है?
आगे भी कई प्रोजेक्ट हैं, जिनमें मुख्यतः जासूसी और हॉरर ही शामिल हैं। ‘द ट्रेल’ सीरीज का अगला उपन्यास भी है, जो कई मायनों में अलग होगा। हालाँकि उसे शायद 5-6 उपन्यासों के बाद ही लिखना शुरू करूँगा। अगला उपन्यास जल्द ही प्रकाशित होने वाला है। वो भी मेरे अब तक के सारे उपन्यासों से काफी हटकर है। उसके कैंसल्ड उपनाम ‘एक छपरी मर्डर मिस्ट्री’ की घोषणा भी हो चुकी है। उपन्यास के लेखकीय में भी इसके बारे में पढ़ने को मिलेगा।
इनके अलावा भी कुछ अलग, कुछ नया लिखने की कोशिश रहेगी। जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी मेरे लिए आदर्श हैं और उनके लेखन को मैं चमत्कारिक लेखन मानता हूँ। मैं अपने लेखन में विविधता तो रखना चाहता हूँ लेकिन सामाजिक उपन्यास लिखना मुझे काफी मुश्किल लगता है। इसलिए इस विधा में मैं शायद ही लिख सकूँगा।
अच्छा, आपके उपन्यासों का पाठक होने के नाते एक प्रश्न ऐसा है जो कि मैं पूछना चाहूँगा और मैं समझता हूँ अन्य पाठक भी अवश्य पूछना चाहेंगे। आपके कुछ उपन्यास (दूसरा चेहरा, मौत अब दूर नहीं, पार्टी स्टार्टेड नाऊ) ऐसे हैं जिनका अंत आपने ऐसे किया था कि पाठकों को लगा था उनका अगला भाग जल्द आएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। क्या उन उपन्यासों के अगले भाग हम पाठकों को जल्द ही पढ़ने को मिलेंगे??
जिन उपन्यासों के अंत में अगले पार्ट या सीरीज के लिए संकेत छोड़ा था, उन पर मेरा इरादा भी जल्दी लिखने का था लेकिन अन्य प्लॉट्स पर पहले लिखने का निर्णय करने के कारण मुझे उन्हें टालना पड़ा। ‘द ट्रेल’ सीरीज में मैंने अगली कड़ी ‘द ट्रायो’ को न सिर्फ ‘द ट्रेल’ के ठीक बाद में लिखा, बल्कि उसकी शुरुआत भी ऐन वहीं से होती है, जहां ‘द ट्रेल’ का समापन हुआ था। इस तरह मैंने अपनी भूल सुधारने की कोशिश की थी कि पार्ट वाले उपन्यासों में ज्यादा अंतराल नहीं रखूँगा। पिछले उपन्यासों की अगली कड़ी भी जल्द लाने का प्रयास रहेगा।
अंत में अपने पाठकों को क्या आप कोई संदेश देना चाहेंगे? इस पटल के माध्यम से आप अपना संदेश उन्हें दे सकते हैं?
पाठकों को यही संदेश देना चाहूँगा कि पुस्तकों के प्रति अपने प्रेम को बरकरार रखिए। हिंदी भाषा में पठन-पाठन को प्रोत्साहन देते रहिए। बुक पायरेसी, पीडीएफ बुक्स के लेन-देन का बहिष्कार करिए। हिंदी की किताबों के लिए तो ये बेहद जरूरी है।
कुछ पाठक हिंदी के क्षेत्र में किताबों का क्रेज कम होने का कारण किताबों का महँगा होना भी मानते हैं। मैं उनसे पूर्णतः सहमत भी हूँ। लेकिन साथ ही ये भी कहना चाहूँगा कि अगर किताबें महँगी हैं…तो किताबें अनमोल भी हैं।
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तो यह लेखक ब्रजेश कुमार शर्मा उर्फ अजिंक्य शर्मा से हमारी बातचीत। उनकी आखिरी बात से हम भी सहमत हैं कि पुस्तकों की पायरेसी का बहिष्कार करना चाहिए। एक लेखक बहुत मेहनत करके एक पुस्तक लिखता है। उसे उस पुस्तक को लिखने का मेहनताना रॉयल्टी के रूप में मिलता है। जब आप पायरेटड किताबें पढ़ते हैं तो एक लेखक से उसका मेहनताना छीन रहे होते है। उसका हक मार रहे होते हैं। अब आपको देखना है कि आप अपने लेखक का हक मारना चाहते हैं या नहीं। अब तो किंडल अनलिमिटेड जैसे माध्यम भी हैं जहाँ कई लेखकों की पुस्तक सब्सक्रिप्शन लेने में पढ़ने को मिल जाती है तो आप सब्सक्रिप्शन लेकर लेखक का साथ निभा सकते हैं।
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ब्रजेश कुमार शर्मा का नवीन प्रकाशित उपन्यास अमेज़न पर उपलब्ध है। अगर आप किंडल अनलिमिटेड सब्सक्राइबर हैं तो आप उपन्यास को बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के पढ़ सकते हैं।
निमिष के विषय में
समय किसी के लिए नहीं रुकता
टाइम मशीन के लिए भी नहीं
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कौन थी वो रहस्यमयी लेकिन बेहद खतरनाक युवती
जो निर्धारित डैडलाइन में दो लोगों को मार न पाने की स्थिति में महाविनाश की चेतावनी दे रही थी
और महाविनाश से उसका क्या मतलब था?
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एक चार घंटे का साधारण-सा लगने वाला मिशन मौत का जाल बन गया था
जिसमें निमिष और अवनी बुरी तरह फंसकर रह गए थे
मौत कदम-कदम पर उनके पीछे थी
और उन्हें हर कदम पर मौत को मात देनी थी
…
ये उपन्यास समय यात्रा यानि टाइम ट्रेवल पर सबसे हटकर लिखे गये उपन्यासों में से है. इसमें लेखक ने टाइम ट्रेवल से जुड़े बूटस्ट्रेप पैराडॉक्स जैसे पैराडोक्सेज पर चर्चा करते हुए उनके एक सम्भावित समाधान की थ्योरी प्रस्तुत की है.
पुस्तक लिंक: अमेज़न
नोट: साक्षात्कार शृंखला के तहत हमारी कोशिश लेखकों और उनके विचारों को पाठकों तक पहुँचाना है। अगर आप भी लेखक हैं और इस शृंखला में आना लेना चाहते हैं तो contactekbookjournal@gmail.com पर हमसे संपर्क कर सकते हैं।
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ब्रजेश शर्मा जी के उपन्यास काफी रोचक और दिलचस्प होते हैं।
इनके उपन्यासों में शामिल हास्य भी प्रभावित करता है।
रोचक साक्षात्कार ।
धन्यवाद
– गुरप्रीत सिंह
जी सही कहा। हार्दिक आभार।
ब्रजेश जी के उपन्यासों की सबसे खास बात सरल भाषा शैली, मजबूत महिला किरदार,बीच बीच मे हास्य का मजेदार पुट जो पाठक को कभी बोर नही होने देता, हैं।
जी सही कहा। आभार।
बहुत बढ़िया साक्षात्कार।
जी आभार।