‘काम्बोजनामा: किस्सा किस्सागो का’ के लेखक राम पुजारी से एक बातचीत

'काम्बोजनामा: किस्सा किस्सागो का' के लेखक राम पुजारी से एक बातचीत
हिन्दी लोकप्रिय लेखन में लेखक वेद प्रकाश काम्बोज का अपना एक अलग स्थान रहा है। वह पिछले 64 वर्ष से अलग-अलग विधाओं में लगातार लेखन कर रहे हैं। लेखक राम पुजारी की नवीनतम पुस्तक ‘काम्बोजनामा: किस्सा किस्सागो का’ वरिष्ठ लेखक वेद प्रकाश काम्बोज को केंद्र में रखकर ही लिखी हुई है और उनकी लेखन यात्रा से पाठकों का परिचय करवाती है। 
‘काम्बोजनामा: किस्सा किस्सागो का’ के प्रकाशन के उपलक्ष्य में एक बुक जर्नल ने लेखक राम पुजारी से  बातचीत की है। आप भी पढ़िए। 

*****

'काम्बोजनामा: किस्सा किस्सागो का' के लेखक राम पुजारी से एक बातचीत

नमस्कार, राम। सर्वप्रथम तो आपको आपकी नवीन पुस्तक ‘काम्बोजनामा: किस्सा किस्सागो का’ के लिए हार्दिक बधाई। कृपया पुस्तक के विषय में पाठकों को बताएँ । क्या यह पुस्तक वेद प्रकाश काम्बोज जी की जीवनी है या फिर यह उनके लेखन यात्रा तक ही सीमित है? 

नमस्कार। बधाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

काम्बोजनामा एक नई तरह की पुस्तक है जिसका जॉनर (genere) पाठकों को तय करना होगा। वैसे इस पुस्तक में उनके जीवन से जुड़े कई प्रसंगों को समाहित करते हुए उनकी लेखन यात्रा पर प्रकाश डाला है।

पुस्तक लिखने का विचार कैसे आया? यह प्रश्न इसलिए क्योंकि यह एक बड़ी जिम्मेदारी है?

वैसे इस प्रश्न का उत्तर इस पुस्तक में ही दिया है। लॉकडाउन के दैरान एक शाम गुरप्रीत और बबलू जाखड़ से फोन पर बात हुई। फिर ये तय हुआ कि अगर पुस्तक नहीं तो कम से कम काम्बोज जी से संबंधित जानकारी तो एकत्रित कर ही लेते हैं। फिर मेशु भाई से बात हुई और हम गुपचुप काम्बोज सर से बात करने लगे और ज्यादा ही पूछताछ करने लगे। हम भूल रहे थे कि हमारी बात उस व्यक्ति से हो रही है जिसने ज़िंदगी भर जासूसी उपन्यास लिखें हैं। एक दिन उन्होंने इस बारे में पूछ ही लिया। उन्होंने कहा अपने बारे में सब अच्छा ही बताएँगे चाहे मैं हूँ या कोई और। तुम पहले अन्य लोगों से पता करो फिर बात करते हैं। फिर जो बातचीत का सिलसिला शरू हुआ तो चलता ही गया।

फिर जिम्मेदारी तो है ही। सभी पाठकों के साथ उनकी प्रतिक्रिया का भी मुझे इंतजार रहेगा।

आपने अब तक केवल उपन्यास या कहानियाँ लिखी हैं। ऐसे में ऐसी पुस्तक, जिसे कथेतर की श्रेणी में ही रखा जाएगा, लिखने का अनुभव कैसा रहा? इसकी लेखन प्रक्रिया में कोई बदलाव आपने किया? 

लिखने का अनुभव मजेदार रहा। उनसे व उनके परिजनों से कई बार मिला। उनके पुराने प्रकाशकों और मित्रों से भी बात हुई। और इसी बातचीत में नीलम जासूस कार्यालय का पुनर्जन्म हुआ। अब बात लेखन प्रक्रिया की। ये ठीक वैसी ही थी जैसी कि एग्जाम से पहले सारी संबंधित पुस्तकें, नोट्स और जानकारी टेबल पर एकत्रित करके बैठकर तैयारी किया करते थे।

बदलाव बस इतना है जितना कि पढ़कर अपने शब्दों में कहानी को फिर से कहना मतलब retell करना और सामने एक दृश्य को देखकर तुरंत लिखने में होता है।

 

वेद प्रकाश काम्बोज जी के लोकप्रिय साहित्य के बड़े नाम है। उनकी लेखनी से आपका पहला परिचय कब हुआ था? क्या आपको उनकी वो रचना याद है जिसे आपने पहली बार पढ़ी थी?

उनके लेखन से मेरा परिचय तो बहुत बाद में हुआ किंतु उनके पात्रों–विजय-रघुनाथ, सिंगही, अलफांसे आदि को मैं अपने बड़े भैया के माध्यम से जानता था। दरअसल वे और उनके दोस्त आपस में इनकी बातें किया करते थे। फिर एक दिन मैंने भी कुछ पेज पढ़े। शायद सिंगही सीरिज का कोई मनोज से पुनः प्रकाशित उपन्यास था। लेकिन स्कूल से आने पर पता चला कि उपन्यास वापस कर दिया गया है।  फिर तब से लेकर नीलम जासूस से पुनः प्रकाशन तक एक लंबा गैप रहा।

क्या वेद प्रकाश काम्बोज जी का कोई किरदार जो आपको विशेष रूप से पसंद है और क्यों?

सभी पात्र विजय रघुनाथ और उनकी मंडली, फिर विलन्स में अलफांसे, गिल्बर्ट और सिंगही। मगर विजय पर तो पूरा एक निबंध लिखा जा सकता है। विजय एक संपूर्ण पात्र है। उसकी देशभक्ति और झकझकी का कोई सानी नहीं है। 

अक्सर जब हम किसी क्षेत्र के प्रसिद्ध व्यक्ति के ऊपर लिखते हैं कई बार वस्तुनिष्ठ नहीं हो पाते हैं। या तो व्यक्ति जरूरत से ज्यादा आलोचना करता है या जरूरत से ज्यादा प्रशंसा करने लगता है? आपने लेखन की अपनी वस्तुनिष्ठता को बचाने के लिए कुछ विशेष कदम उठाए थे? अगर हाँ तो वो क्या थे?

इस पुस्तक के सिलसिले में मेरी कई सज्जनों से बातचीत हुई। लगभग एक ही बात सभी के मुख से सुनी। वैसे भी यह पुस्तक–जैसा उन्हें देखा-सुना और जाना–के आधार पर ही लिखी गई है। फिर भी मैंने तटस्थ रहने की कोशिश की है। पुस्तक की शुरुआत में ही आपको पता चल जाएगा।

इस पुस्तक को लिखते हुए क्या आपने, वेद प्रकाश काम्बोज जी से बातचीत के अतिरक्त, कोई अन्य रिसर्च भी की थी?

रिसर्च कहो या खोजबीन। लेकिन इन दोनों के बीच की कोई चीज तो जरूर ही की है। कई क़िताबों को खंगाला। कई बुक सेलर्स और लोगों से एक ही प्रश्न कई तरीकों से पूछा। बाकी गूगल बाबा तो बड़े स्पोर्टर हैं ही।

रिसर्च के दौरान वैसे तो कई रोचक बातें लेखक वेद प्रकाश काम्बोज के विषय में पता चली होंगी। काफी कुछ तो पुस्तक के विषय में होगा लेकिन वह पहली बात क्या थी जिसने आपको हैरान किया? क्या आपको याद है और उसे पाठकों से साझा करना चाहेंगे?

उनकी सरलता-सहजता ने। वे अपने बीते दिनों का महिमा मंडन नहीं करते जबकि यह विदित है कि वे पल्प फ़िक्शन के पहले सुपर स्टार लेखक हैं। इसके अलावा किसी को खुद से जानने और किसी और सूत्र से जानने में काफी अंतर होता है। आपको खुद के विवेक से काम लेना चाहिए। मुझे सबसे ज्यादा हैरानी उनकी डायरियाँ और नोटबुक्स देखकर हुई। विषय से सम्बंधित जानकारी, हिंदी-इंग्लिश की पुस्तकें, न्यूज़पेपर कटिंग्स, कोट्स और शे’र आदि इनमें संग्रहित की हुई हैं। वो भी तब गूगल बाबा नहीं थे।

अक्सर पाठक एक लेखक से केवल उनकी रचनाओं के द्वारा ही वाकिफ होता है। ऐसे में ‘काम्बोजनामा: किस्सा किस्सागो का ‘ जैसी रचनाएँ पाठक के लिए अपने प्रिय रचनाकार को जानने का एक अच्छा स्रोत होती हैं? पुस्तक के दौरान आपने लेखक वेद प्रकाश काम्बोज और व्यक्ति वेद प्रकाश काम्बोज के बीच में क्या फर्क और क्या समानताएँ पाईं? 

व्यक्त्वि मिला जुला ही होता है। इनका भी ऐसा ही है। कंट्रास्ट भी है और समानता भी।

विजय मजाकिया है किंतु काम्बोज जी उस तरह के मजाकिया नहीं। हाँ, विजय की तरह खोजी जरूर हैं। कैसे, ये तो आपको पुस्तक पढ़ने पर ही पता लगेगा।

मुझे यकीन है वेद प्रकाश काम्बोज जी के प्रशंसक तो इस पुस्तक को खरीदना चाहेंगे ही लेकिन एक ऐसा पाठक जो वेद प्रकाश काम्बोज के लेखन से परिचित नहीं है (यानी आज की पीढ़ी के काफी पाठक) उसे इस पुस्तक से क्या क्या मिल सकता है? आप क्या सोचते हैं उन्हें इस पुस्तक को क्यों पढ़ना चाहिए?

प्रशंसकों की तो मत पूछिए। नीलम जासूस के सुबोध जी को रोज़ाना ही कई फोन केवल यही पूछने के लिए आते हैं कि काम्बोजनामा कब आ रही है। ये पुस्तक पल्प फ़िक्शन की जानकारियों का खजाना है। जिसमें आबिद रिज़वी जी, योगेश मित्तल जी और फ़ारूक़ अर्गली जी का भी योगदान है। किसी भी जिज्ञासु पाठक को इसमें बहुत काम की जानकारी मिल सकती। बाकी एक पुस्तक में एक व्यक्त्वि को समेटना मुश्किल होता ही है। कुछ न कुछ छूट ही जाता है। खैर जो कुछ छूट गया है, उसके लिए बस फ़ैज़ साहब का एक शे’र याद आ रहा है

वो बात सारे फ़साने में जिस का ज़िक्र न था
वो बात उन को बहुत ना-गवार गुज़री है।

*****

तो यह थी लेखक राम पुजारी से हमारी एक छोटी सी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। साक्षात्कार के प्रति अपनी राय से हमें जरूर अवगत करवाइएगा। 

नीलम जासूस कार्यायलय से प्रकाशित पुस्तक किस्सा किस्सागो का अब खरीद के लिए उपलब्ध है आप निम्न नंबर पर ऑर्डर देकर पुस्तक मँगवा सकते हैं :

9310032466 / 9310032470 

(पुस्तकों के लिए सहयोग राशि फोनपे/गूगलपे/व्हाट्सएप्प के माध्यम से दी जा सकती है।)

या आप अमेज़न से भी निम्न लिंक पर जाकर इस पुस्तक को ऑर्डर कर सकते हैं:

कम्बोज नामा: किस्सा किस्सागो का

यह भी पढ़ें


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

4 Comments on “‘काम्बोजनामा: किस्सा किस्सागो का’ के लेखक राम पुजारी से एक बातचीत”

    1. जी सही कहा। हमने भी मँगवा ली है। जल्द ही आ जाएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *