किताब परिचय: कब्रिस्तान वाली चुड़ैल

 

किताब परिचय: कब्रिस्तान वाली चुड़ैल - देवेन्द्र प्रसाद

किताब परिचय

रात के मनहूस अंधेरे को चीरती वह बेबस-सी लड़की, जिसकी बात का कोई यकीन नहीं कर रहा था। यह कहानी मैंने जिसको भी सुनाई, उन्होंने मुझे पागल ही समझा।

​मगर मैं जानता हूँ कि उस रात का एक-एक पल हकीकत से भरा हुआ था।

जो मेरे सामने थी, वह ख्वाब नहीं हकीकत थी। हाँ, वह कब्रिस्तान वाली चुड़ैल बिल्कुल हकीकत थी।

आप मानो या न मानो, वह कहानी नहीं बल्कि एक ऐसा सच था जिसने मेरी पूरी जिंदगी में भूचाल ला दिया।


ऐसी कहानी, जिसे प्रतिलिपि पर 13 लाख+ पाठकों ने पढ़ा और PocketFM ऑडियो पर 30 लाख+ श्रोताओं ने सुना!


पुस्तक लिंक: अमेज़न

पुस्तक अंश

किताब परिचय: कब्रिस्तान वाली चुड़ैल

अचानक बिजली कट गई। बिजली के जाने से कनक झुँझला-सा गया।

खिड़की से बाहर झाँककर देखा तो बाहर सड़क पर चारों तरफ घना स्याह आवरण फैला था। कुछ भी स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था।

तभी अचानक उसे ऐसा जान पड़ा जैसे अभी-अभी कोई तेजी के साथ नीचे वाली सड़क से गुजर गया है। उसके गुजरने के साथ उसे अजीब-सी सरसराहट का एहसास हुआ। कनक के नेत्र स्वतः ही अपने चारों तरफ सूक्ष्म निरीक्षण करने लगे और उसके बाद उस सड़क पर पुनः जा टिके।

अंधेरे का साम्राज्य अब भी चारों तरफ कायम था। इस अंधकार को देखकर उसके मन में संशय के भाव उत्पन्न हुए। अब वह यहाँ एक पल के लिए भी रुकना नहीं चाहता था। वह जल्द ही इस वातावरण से निकलकर कहीं भाग जाना चाहता था।

लेकिन कहाँ? शायद उस साये की तलाश में जिसका एहसास कुछ पल पहले ही उसने किया था।

अभी वह इस सन्नाटे के बीच पूरी तरह निर्णय ले भी नहीं पाया था कि तभी कुत्तों के रोने की आवाज से उसका ध्यान भंग हुआ। वह इस कदर रो रहे थे मानो जैसे वह उस साये से रोशनी लाने की गुहार कर रहे हों। आज रोशनी के न आने से जैसे उनकी साँसों की डोर ही थम जाने वाली हों।

कुत्तों के दर्दनाक ढंग से रोने की आवाजें अब भी लगातार आ रही थीं। यह कुछ अजीब-सा लग रहा था। जब काफी देर तक रोने के बाद भी उनकी आवाज खामोश नहीं हुई, तो कनक ने मेज की दराज को खोलकर मोमबत्ती निकाली और उसे जलाकर मेज पर रख दिया। कमरे में मोमबत्ती के जलने से उजाला हुआ तब कनक ने कुछ राहत महसूस की।

लेकिन कुत्तों के रोने की आवाज में कोई कटौती नहीं हुई। अब आवाज बहुत ही कर्कश हो चली थी। धीरे-धीरे आवाज करीब होने का एहसास हुआ। ऐसा लग रहा था जैसे वह आवाज अब उसके नीचे वाली गेट के पास से ही आ रही हो। जब काफी देर तक रोने के बाद भी उन कुत्तों की आवाज में कोई खास परिवर्तन नहीं हुई तो कनक काफी परेशान हो गया।

“आज गाँव के कुत्ते इस तरह से क्यों रो रहे हैं?”

जब यह आवाज बर्दाश्त से बाहर होने लगी, तो कनक ने सोचा, “क्यों न खुद ही बाहर ही जाकर देखूँ कि आखिर क्या माजरा है!”

कनक कमरे से बाहर जाने को हुआ कि तभी उसकी नजर खिड़की पर पड़ी। खिड़की पर एक जोड़ी इंसानी पंजा दिखाई दिये, जो कुछ अजीब-से करतब दिखा रहे थे। कनक यह देखकर चौंक गया कि आखिर यह कैसे हो सकता है। वह एक जोड़ी हाथ धीरे-धीरे खिड़की के सहारे दीवार की तरफ ऊपर चढ़ने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। वह कुछ दूरी ऊपर की तरफ चढ़ता तो अगले ही पल तय की गई दूरी से आधी दूरी स्वतः ही नीचे खिसक पड़ता। यह काफी अजीब था, क्योंकि वह इंसानी पंजा खिड़की के बाहरी हिस्से पर मौजूद था। चूंकि खिड़की काँच की थी, इस वजह से अंदर से ही सब कुछ साफ-साफ दिख रहा था।

“ओह! अब यह क्या बला है? अगर कोई गाँव का जानकार होता तो दरवाजे से आता। इतनी रात को भला कौन मज़ाक करने के मूड में है? चाहे जो कोई भी हो, अब उसकी खैर नहीं।”

यह कहते हुए कनक जैसे ही दरवाजा खोलने को हुआ, तभी उसकी नजर कमरे के दीवार पर टंगी उस धारदार कुल्हाड़ी पर गई, जो कि इस गेस्ट हाउस में उसके आने से भी पहले काफी समय से ही उस दीवार की शोभा बढ़ा रही थी।

कनक ने लपककर उस कुल्हाड़ी को अपने हाथों में ले लिया और बिजली की फुर्ती के साथ उस पंजे पर खिड़की के इस तरफ से ही जोरदार प्रहार कर दिया।

कुल्हाड़ी लगते ही छन्नाक से काँच टूट गया और दोनों इंसानी पंजे भी गायब हो गए।

कनक तुरंत कमरे से बाहर निकाल आया और बाहर देखा तो हैरान रह गया, वहाँ कोई भी मौजूद नहीं था।

 “ओह! ऐसा कैसे हो सकता है?” वह खुद से ही बड़बड़ाया,“मैंने खुद उन इंसानी पंजों को हिलते हुए देखा था। मेरे किए वार से तो उन पंजों को जख्मी हाल में होना चाहिए था लेकिन उसके विपरीत यह तो अदृश्य ही हो गए हैं। आसपास भी कोई दिख नहीं रहा है। आखिर इतनी जल्दी यहाँ से किसी के जाने का कोई मतलब भी नहीं बनता, क्योंकि नीचे जाने के लिए एकमात्र लोहे की सीढ़ी ही है।”

कनक ने ढंग से सीढ़ी पर भी निगाहें दौड़ाई, मगर वहाँ कुछ नजर नहीं आया।

कुत्तों के रोने की आवाज, जो खामोश पड़ गयी थी, वह खिड़की के काँच टूटने की वजह से फिर से आने लगीं।

उसके दिमाग का पारा अब बढ़ चुका था। कनक को बहुत तेज गुस्सा आया और उस धारदार कुल्हाड़ी को अपने हाथों में थामें, उस लोहे की सीढ़ी के सहारे नीचे की तरफ लगभग दौड़ पड़ा।

“सालों, आज तुम्हारी खैर नहीं, या तो आज तुम नहीं या फिर मैं नहीं।”

उसे इस तरह कुल्हाड़ी को हाथ में थामें बढ़ता देख कुत्तों को समझते देर नहीं लगी और वे दुम दबा के भाग चले। क्या वह पागल हो गया है, जो इस अंधेरी रात में उन कुत्तों के पीछे जा रहा है। सचमुच यह पागलपन नहीं तो और क्या था? आखिर यह कैसी सनक थी, जो कुल्हाड़ी के हाथ में आते ही वह अपने आप को चाहकर भी रोक नहीं पा रहा था?

लेकिन कनक का गुस्सा इतनी जल्दी शांत कहाँ होने वाला था! उसने अब ठान लिया था कि इस धारदार कुल्हाड़ी को रक्त का स्वाद चखा के ही रहेगा। वो उन कुत्तों के आवाज का पीछा करता हुआ, उनके पीछे बेतहाशा दौड़ रहा था। कुछ ही देर में उसे वह कुत्ते दिख गए जो कि एक झुंड बनाकर खड़े थे। कनक उन कुत्तों को एक जगह खड़े देखकर बड़ा खुश हुआ और उनकी तरफ आगे बढ़ा। सभी कुत्ते सड़क के बायीं ओर मुंह उठाकर रोने लगे। कनक ने ध्यान से देखा तो चौंक गया।

वह कुत्ते दौड़ते-दौड़ते भुड्डी गाँव के कब्रिस्तान के पास आ गए थे और वह कब्रिस्तान की दीवार के पास बने गेट की तरफ अपना मुँह उठाकर रो रहे थे। मानो जैसे वह कब्रिस्तान के अंदर दफन हुए मुर्दों से अपनी मदद की गुहार लगा रहे हों।

*****

पुस्तक लिंक: अमेज़न

लेखक परिचय

किताब परिचय: कब्रिस्तान वाली चुड़ैल | देवेन्द्र प्रसाद

देवेन्द्र प्रसाद एक बहुमुखी प्रतिभा वाले इंसान हैं।
इनकी अब तक आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  प्रतिलिपि और कहानियाँ नामक प्लेटफार्म में ये असंख्य कहानियाँ प्रकाशित कर चुके हैं। वहीं कुकू और पॉकेट एफ एम जैसे एप्लीकेशन में इनकी कहानियों के ऑडियो संस्करण आ चुके हैं।
सम्पर्क:

नोट: ‘किताब परिचय’ एक बुक जर्नल की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:

contactekbookjournal@gmail.com


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

2 Comments on “किताब परिचय: कब्रिस्तान वाली चुड़ैल”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *