हेमा बिष्ट उत्तराखण्ड में जन्मी, लखनऊ में पली बढ़ी और फिलहाल ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में रह रही हैं। हाल ही में उनकी दो पुस्तकें ‘तुम तक’ और ‘संभल ए दिल’ का पेपरबैक संस्करण साहित्य विमर्श प्रकाशन से प्रकाशित हुई हैं। यह पुस्तकें ई-बुक फॉर्मैट में पहले ही पाठकों के दिल अपना एक विशेष स्थान बना चुकी हैं।
आज एक बुक जर्नल की साक्षात्कार शृंखला में पढ़िए लेखिका हेमा बिष्ट से एक बातचीत। इस बातचीत में हमने उनसे उनके साहित्यिक सफर, उनकी प्रेरणा और उनकी कृतियों के ऊपर बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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प्रश्न: नमस्कार मैम, एक बुक जर्नल में आपका स्वागत है। सर्वप्रथम तो अपनी आने वाली पुस्तकों के पेपरबैक संस्करण के प्रकाशन के लिए बधाई स्वीकार करें। पाठकों को अपनी पुस्तकों ‘तुम तक’ और ‘संभल ए दिल’ के विषय में कुछ बताएँ?
उत्तर: एक बुक जर्नल आपका हार्दिक धन्यवाद। ‘तुम तक’ और ‘संभल ए दिल’ दोनों की विषय वस्तु प्रेम पर आधारित है। ‘तुम तक’ हॉस्टल के दिनों के लौंग डिस्टेंस रोमैंटिक रिलेशन्शिप पर लिखी गयी है और ‘संभल ऐ दिल’ विवाहोत्तर प्रेम पर लिखी गयी है।
‘तुम तक’ में प्यार के साथ परिवार की मर्यादा का अंतर्द्वंद्व है, जिसके बीच में एक बेटी झूलती रहती है और ‘संभल ऐ दिल’ में प्यार के साथ स्वाभिमान का अंतर्द्वंद्व है, जिसके बीच एक पत्नी उलझी रहती है। ‘संभल ऐ दिल’ में समीर का असमंजस भी है कि एक ही समय में उसे दो महिलाओं से प्रेम कैसे हो सकता है।
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प्रश्न: साहित्य के प्रति आपका अनुराग कब जागृत हुआ? वह कौन से लेखक थे जिन्होंने अपनी लेखनी से शब्दों की इस दुनिया में विचरण के लिए आपको प्रेरित किया?
उत्तर: साहित्य से मेरा ख़ास नाता कभी नहीं रहा। स्कूल और कॉलेज में पाठ्यक्रम की पुस्तकें ही पढ़ी। हाँ, स्कूल लाइब्रेरी में रविंद्र नाथ टैगोर की गोरा पढ़ी थी मैंने और पाठ्यक्रम में जय शंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ का एक अंश था, जो मुझे बहुत अच्छा लगा। पिछले चार साल से प्रवीण झा, अभिषेक प्रिय, अशोक पाण्डे, प्रदीप शर्मा, द्वारिका प्रसाद अग्रवाल, वीर विनोद छाबड़ा और सुशोभित जी को फ़ेसबुक पर पढ़ना बहुत सुखद लगता है। इन्हीं गुणी जनों से मुझे प्रेरणा मिलती रहती है।
प्रश्न: लेखन करने का ख्याल कब आया?
उत्तर: लेखन शुरू में मेरे लिए अपनी भड़ास निकालने और अपना ज्ञान बाँटने का ज़रिया था। उन दिनों में अंग्रेज़ी भाषा में ब्लॉग लिखा करती थी। कई उत्पादों ने मुझे उनके बारे में प्रचार-प्रसार करने के लिए भुगतान देकर लिखवाया। मेरे ब्लॉगर मित्र और पाठक अक्सर कहते थे कि मैं कोई किताब लिखूँ। मुझे लगता था कि वो बड़े सहृदय लोग हैं इसलिए मेरा हौसला बढ़ाने के लिए और अपना प्यार जताने के लिए ऐसा कह देते हैं, अन्यथा मेरे लेखन में ऐसी कोई बात नहीं कि मैं किताब लिख डालूँ। पिछले साल, इत्तेफ़ाकन मैंने सपने पर एक फ़ेसबुक पोस्ट लिखी और उसकी टिप्पणी में मेरी एक मित्र ने लिखा कि मैं इस रोचक विषय पर कहानी लिखूँ। करोना का समय चल रहा था तो ये सुझाव मेरे दिलोदिमाग को व्यस्त रखने के लिए बेहतरीन साबित हुआ। उसी समय तुम तक लिखने का ख़याल आया।
प्रश्न: आप आईटी फील्ड से हैं और फिर विदेश में रह रही हैं। ऐसे में हिंदी में लिखने का विचार कैसे आया? क्या आगे जाकर अंग्रेजी में भी लिखने का विचार है?
उत्तर: पूरी पढ़ाई अंग्रेज़ी में होने के कारण और देश-विदेश में काम करने की वजह से शुरू में विचार अंग्रेज़ी में ही निकलते थे। मेरे लिए अंग्रेज़ी पहली भाषा थी जिसमें मैं सोच पाती थी। मैं अंग्रेज़ी में ब्लोग्स लिख रही थी और मेरे एक मित्र आशीष ने एक दिन मुझे लन्दन से कॉल किया। उसने कहा कि तुम कितना सुंदर लिखती हो। अगर हिंदी में लिखो तो मुझे और भी अच्छा लगेगा। उसने मुझे कुछ हिंदी लेख प्रकाशित करने वाली वेबसाइट्स बताई। मैंने एक दिन हिंदी में एक भारी भरकम लेख ‘भगत सिंह’ पर लिख कर अपनी फ़ेसबुक पर पोस्ट किया। उसी दिन मुझे एक प्रकाशक ने संदेश देकर पूछा कि क्या ये आपका मौलिक लेख है और क्या हम इसे अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित कर सकते हैं। मैंने हाँ कर दी और उसके बाद उस वेबसाइट पर मेरे बहुत से लेख प्रकाशित हुए। मेरी यात्रा अंग्रेज़ी से शुरू होकर हिंदी तक पहुँची है। हालाँकि सम्भव है कि मैं फिर कभी अंग्रेज़ी में दोबारा से लिखूँ।
प्रश्न: कहते हैं लेखक की शुरुआती रचनाएँ आत्मकथात्मक होती हैं। क्या ‘संभल ए दिल’ और ‘तुम तक’ में ऐसा कुछ है? क्या इन उपन्यासों के कुछ किरदारों में आप भी हैं?
उत्तर: ये तो आपने बहुत ही ज़बरदस्त अंदाजा लगाया है। जैसा कि मैंने आपको बताया कि सपने पर कहानी लिखने के लिए मुझे मेरे दोस्तों ने कहा, तो मैंने अपने ही जीवन से एक सपना चुना और उस सपने के सच हो जाने तक की यात्रा को कलमबद्ध कर दिया। ‘तुम तक’ मेरी अपनी ही कहानी है। मैंने वो कहानी फ़ेसबुक के दोस्तों के लिए लिखी थी, लेकिन उसे बहुत प्यार और सराहना मिली, जो मेरे लिए कल्पनातीत था। ‘सोनिया डोगरा’ और ‘प्रगुन’ इन दो दोस्तों ने मुझे आख़िरकार इसे किंडल पर लाने के लिए प्रेरित किया और बुक पब्लिश करवा कर ही चैन लिया। इस तरह बिना किसी योजना के मैं एक किताब की लेखिका बन गयी। किंडल पर मिले प्यार ने मुझमें आत्मविश्वास भरा कि मैं कहानी लिख सकती हूँ। उसके बाद मैंने काल्पनिक कहानी लिखने की चुनौती उठाई और ‘संभल ऐ दिल’ नाम से एक और किताब किंडल पर प्रकाशित कर दी।
प्रश्न: इन दोनों उपन्यासों में कौन सा ऐसा किरदार है जो आपके दिल के ज्यादा करीब है?
उत्तर: ‘तुम तक’ क्यूँकि मेरी अपनी ही कहानी है तो उसके सारे ही किरदार मेरे दिल के क़रीब हैं। ‘संभल ऐ दिल’ में मुझे सुधा का किरदार बहुत पसंद है। उसकी सुलझी हुई सोच और मुश्किलों से जूझने का रवैया मुझे बहुत पसंद है।
प्रश्न: अच्छा हेमा जी आप अपनी रचनाएँ सोशल मीडिया पर भी प्रकाशित करती आई हैं। सोशल मीडिया में ट्रोलिंग संस्कृति बढ़ी है। क्या आपको भी इसका सामना करना पड़ा है? क्या सोशल में रचनाएँ प्रकाशित करते हुए क्या आप खुद को सेंसर भी करती हैं?
उत्तर: सोशल मीडिया में ट्रोलिंग की शिकार मैं हुई हूँ और कुछ मित्र तो अमित्र ही हो गए सिर्फ़ सोशल मीडिया नहीं असल जीवन में भी। मैं सोशल मीडिया पर लिखती हूँ और बिंदास लिखती हूँ। मुझे लोगों को झकझोरना पसंद है इसलिए मैं लेखन को सेंसर नहीं करती। असहमति से भी मुझे सीखने को मिलता है और कभी-कभी मेरा कोर्स करेक्शन भी होता है। ट्रोलर यदि कुछ लिखते हैं तो मुझे यही लगता है मैंने इतनी लम्बी पोस्ट लिख डाली तो इनके अंदर के लेखक को टिप्पणी लिखने की अनुमति तो होनी ही चाहिए। ज़ाहिर है वो मेरी तरह नहीं लिख सकते तो अपनी तरह लिख रहे हैं।
प्रश्न: अभी तक आपकी रचनायाओं के घटनाक्रम भारतीय परिवेश में ही घटित होते हैं। क्या ऑस्ट्रेलिया को लेकर भी आप कुछ लिख रही हैं? दोनों परिवेशों में आप क्या समानताएँ और असमान्यताएँ पाते हैं?
उत्तर: मेरी एक किताब ‘उड़ान’ किंडल पर मौजूद है जिसमें मैंने ऑस्ट्रेलिया के अपने शुरूवाती दिनों के अनुभव लिखे हैं। इसके अलावा ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग पर एक कहानी लिख रही हूँ जो कि पूरी तरह ऑस्ट्रेलिया के परिवेश की है।
भारत में रहते हुए हमें ऐसा लगता है विदेशी बहुत ही स्वतंत्र विचारों वाले होते हैं और नैतिकता के पैमाने पर हमसे बढ़कर हैं। मैंने यहाँ आकर पाया कि ऐसा नहीं है। यहाँ भी बिलकुल हमारे जैसे लोग हैं और हमारी तरह अनेक पूर्वग्रहों से ग्रस्त हैं। ये लोग भी हमारी तरह भाषा और संस्कृति के आधार पर लॉबी बनाते हैं। ये भी हमारी तरह कामचोर, लालची, धोखेबाज़ होते हैं और हमारी ही तरह सहृदय, डरपोक और सज्जन होते हैं।
इंसानों में मुझे बस एक ही तरह की असमानता दिखी कि यहाँ लोग परिवार से उतने जुड़े नहीं होते जितना की भारत में हम जुड़े होते हैं। यहाँ का सिस्टम बहुत कड़क है। नियम क़ानून ना मानने पर दंड तगड़ा मिलता है, इसलिए लोग कहीं भी कैसी भी फैल नहीं जाते। यहाँ का जीवन-स्तर भारत से बेहतर है और महिलाओं के लिए बहुत सुरक्षित है।
प्रश्न: आपके आने वाले प्रोजेक्ट्स क्या हैं? क्या पाठकों को आप उनके विषय में बताना चाहेंगे?
उत्तर: लेखन मेरे लिए ख़ुद को परखने का ज़रिया है, इसलिए मैं ख़ुद को नयी चुनौतियाँ देना पसंद करती हूँ। पहले मैंने फ़िक्शन लिखने की चुनौती उठाई थी और अब मैंने कहानी को किसी एक घटना के इर्द गिर्द ना लिखकर किसी के पूरे जीवन काल पर लिखने की चुनौती उठाई है। निकट भविष्य में मेरी दो किताबें आने वाली हैं, पहली किताब ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग की सच्ची घटना पर आधारित क्राइम ड्रामा है और दूसरी किताब मेरे पिताजी के जीवन पर आधारित है।
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तो यह थी लेखिका हेमा बिष्ट से एक बुक जर्नल की बातचीत। उम्मीद है बातचीत आपको पसंद आएगी। बातचीत के विषय में आप अपनी राय कमेंट्स के माध्यम से दे सकते हैं।
लेखिका का परिचय:
हेमा बिष्ट |
हेमा बिष्ट उत्तराखंड में जन्मी, लखनऊ में पली बढ़ी और फ़िलहाल मेल्बर्न में रहने वाली एक साधारण सी गृहणी हैं। लगभग हर मध्यम-वर्गीय इंसान की तरह भटकाव का शिकार भी हैं। शौक़ है लेखन का लेकिन साहित्य पढ़ने की जगह MCA किया है। माँ बनने से पहले TCS में जॉब किया करती थीं।
लेखिका से निम्न माध्यमो से सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है:
फेसबुक | इंस्टाग्राम | ईमेल: hemwins@gmail.com
हेमा बिष्ट की पुस्तकें:
तुम तक | संभल ए दिल | उड़ान: एक प्रवासी भारतीय की डायरी
बढ़िया साक्षात्कार!
पढ़कर खुशी हुई।
जी साक्षात्कार आपको पसन्द आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।