संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पैपरबैक | पृष्ठ संख्या: 118 | प्रकाशन: नीलम जासूस कार्यालय
किताब लिंक: अमेज़न
कहानी
किरदार
मेरे विचार
‘विषकन्या’ (Vishkanya) लेखक जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा (Janpriya Lekhak Om Prakash Sharma) का ऐतिहासिक गल्प (Historical Fiction) है जिसे नीलम जासूस कार्यालय (Neelam Jasoos Karyalay) द्वारा प्रकाशित किया गया है।
उपन्यास की कहानी एक होटल में शुरू होती है जहाँ पर राजेश और जयंत मौजूद हैं। वह कश्मीर आए हुए हैं लेकिन मूसलाधार बारिश होने के चलते उधर फँस गए हैं। वहाँ मौजूद अतिथियों के इसरार पर राजेश एक ऐतिहासिक जासूसी कथा सुनाने के लिए राजी होते हैं। राजेश द्वारा सुनाई गई यह कहानी ही उपन्यास का कथानक बनता है।
उपन्यास रोचक है। महल की राजनीति, षड्यन्त्र और चालें उपन्यास में दर्शाई गई हैं। इन चालों से बचने के लिए राजा और उसके वफादार लोगों को क्या क्या करना पड़ता है यह इधर दिखता है। यह दाँव पेंच उपन्यास पढ़ते जाने के लिए आपको मजबूर कर देते हैं।
उपन्यास के केंद्र में शंकर मिश्र हैं। शंकर एक उसूलों के पक्के गुप्तचर हैं जो अपने उसूलों के लिए गुप्तचरी तक का त्याग करने से नहीं हिचकिचाते हैं। वह किस तरह अपनी सूझबूझ से अपने को दी गई जिम्मेदारी निभाते हैं यह देखना रोचक रहता है।
उपन्यास में अविनाश और रुद्रभानु नामक किरदार हैं। यह राज्यभक्त हैं। यह किस तरह से एक ऐसे राजा, जिसका बचपन अभी नहीं गया है, संभालते हैं यह देखना रोचक रहता है। कई बार कुछ प्रसंग आपके चेहरे पर हँसी भी ले आते हैं। ऐसा ही प्रसंग तब है जब राजा कुछ ऐसा काम कर देता है जो उसे नहीं करना चाहिए था और फिर जब वह अपने महामंत्री अविनाश की प्रतिक्रिया के विषय में सोचता है वह सहज हास्य पैदा कर देता है।
उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के अनुरूप ही हैं। चूँकि यह एक ऐसे समय और ऐसे किरदारों की कहानी है जो कि सत्ता के केंद्र में हैं तो उसी अनुरूप किरदार इधर मिलते हैं। यह किरदार जीवंत हैं।
उपन्यास की कमी कि बात करूँ तो उपन्यास में एक प्रसंग है जिसमें चंपावती एक किरदार से शादी करने को राजी हो जाती है। यह प्रसंग थोड़ा सा ऐसा बना है जिस पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल होता है। चंपावती जिस तरह से तेज तर्रार युवती है उसका ऐसे इतनी आसानी से शादी के लिए तैयार होना खलता है। अगर इधर थोड़ा और मजबूत कारण दिया होता तो बेहतर होता।
उपन्यास का शीर्षक भी एक अलग अपेक्षा पाठक के मन में जगाता है लेकिन इस पर खरा नहीं उतरता है। ऐसा नहीं है कि उपन्यास में विषकन्या नहीं है लेकिन जैसा शीर्षक से प्रतीत होता है कि वह केंद्रीय किरदार हैं ऐसा नहीं है। ऐसा में लगता है कि यह एक सहायक किरदार है। वह उतनी मजबूत नहीं दर्शाई गई है। अगर विषकन्या और शंकर मिश्र के बीच भी दाँव पेंच होते तो कथानक और रोमांचकारी बन सकता था।
इसके अतिरितक उपन्यास में इक्का दुक्का जगह वर्तनी की गलतियाँ मौजूद हैं।
अभी सूर्योदय नहीं हुआ था, परंतु मित्र जी स्नान आदि से निवृत हो भस्म रमा, धूनी पर विराज चुके थे। (पृष्ठ 25)
जरा सी आहट पा कर ही वह चैंक पड़ता था और निरंतर रुक-रुक कर इधर-उधर देखता हुआ चल रहा था। (पृष्ठ 44)
ऐसे ही कुछ जगह चौसर को चैसर लिखा हुआ है।
इसके अतिरिक्त उपन्यास के कम पृष्ठ भी कुछ पाठकों को खल सकते हैं। पाठक के तौर पर मैं शंकर मिश्र की दुनिया में और गहराई से उतरना चाहता था। विषकन्याओं के विषय में कुछ जानकारी दी गई है लेकिन अगर इनकी दुनिया को और विस्तार दिया गया होता तो बेहतर होता।
अंत में यही कहूँगा कि विषकन्या एक रोचक उपन्यास है जो कि पाठक का मनोरंजन करने में सफल होता है। उपन्यास पुराने समय में गुप्तचरी किस प्रकार होती थी इस पर रोशनी डालता है। यह महलों में होने वाली राजनीति, षड्यंत्र और वहाँ के जीवन को भी दर्शाता है।ऐतिसाहिक पृष्ठभूमि में रचा गया यह उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है।
किताब लिंक: अमेज़न
Nice
जी आभार…