किताब परिचय:
श्यामगढ़ ! राजस्थान के पठारी अंचल में बसा एक छोटा-सा उद्यमी नगर जिसके लोगों का जीवन सिर्फ़ वहाँ चलने वाले सरकारी ताप-बिजलीघर पर निर्भर है । लोग यहाँ आते हैं सिर्फ़ काम करने और रोज़ी-रोटी कमाने । पर एक दिन जब एक क़त्ल हो जाता है तो उसके बाद यह अमन-चैन का शहर एक ऐसी ख़ौफ़नाक रात से रूबरू होता है जिसमें क़त्ल-दर-क़त्ल होते ही चले जाते हैं । पूरा कस्बा दहल उठता है इन ख़ूनी वारदातों से । इस छोटी और शांत जगह में तो क़त्ल जैसी संगीन एक वारदात का हो जाना ही बड़ा वाक़या था । ढेर सारे क़त्लों का तो अंजाम ही था ज़र्रे-ज़र्रे में दहशत का फैल जाना ।
युवा पुलिस अधिकारी संजय ने इस केस को हल करने का बीड़ा तो उठाया और इस काम को अपने लिए इसे एक चुनौती मानकर मामले की पड़ताल में जुट गया लेकिन एक-के-बाद-एक होने वाले क़त्लों ने न केवल उसका ही दिमाग़ घुमा दिया बल्कि उसके साथ-साथ श्यामगढ़ की छोटी-सी पुलिस चौकी के सारे अमले और रामनगर नामक महानगर से आए उसके उच्चाधिकारियों की भी नींद हराम कर दी । कौन है वो अंजान क़ातिल जो मौत के साये की तरह इस औद्योगिक कस्बे में मंडरा रहा है ? और क्यों कर रहा है वो ये ख़ूनख़राबा ?
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पुस्तक अंश
अब बाबू को यकीन हो गया कि वह आदमी सचमुच ही उसे मारने जा रहा था । स्मैक की तरंग से उसमें आया वक़्ती हौसला हवा हो गया, सिगरेट उसके हाथ से छूटी और वह घबराकर पीछे हटने लगा । वह नहीं समझ सका कि रिवॉल्वर वाला यही चाहता था । जितना वह पीछे हटता था, उतना ही रिवॉल्वर वाला और उसकी तरफ़ बढ़ जाता था । कुछ ही पलों में वे पत्थरों वाली खाई के बिलकुल नज़दीक आ गए । बाबू मोटे तौर पर तो इलाके की भौगोलिक स्थिति से परिचित था मगर उस क्षेत्र में विचरने का वह उसका पहला ही अवसर था । इसलिए वह खाई के वजूद से अनजान था । इसके विपरीत रिवॉल्वर वाला पूरी योजना बनाकर और सारे तथ्यों को देख-परखकर आया था । उसे मालूम था कि अब बाबू खाई में गिरने ही वाला है । जैसे ही बाबू खाई के सिरे पर पहुँचा, वह बोला, ‘जान बचानी है तो भाग बाबू ।’
बाबू तेज़ी से पलटा और भागने का उपक्रम करते ही खाई के सिरे से फिसल गया । लेकिन हवा में अपने आपको संभालने की कोशिश करते-करते उसके हाथ में खाई की दीवार का एक पत्थर आ गया जिसके सहारे वह तुरंत नीचे जा गिरने से बच गया । लेकिन उसका दुर्भाग्य यह था कि वह खाई के मुँह से ज़्यादा नीचे नहीं था और उसका संभावित हत्यारा उसके बहुत निकट था । हत्यारे ने बाबू की स्थिति को देखते ही अपने पैर की एक ज़ोरदार ठोकर उसके उसी हाथ पर जमाई जिसके सहारे वह झूल रहा था । चमड़े के भारी बूट की तेज़ ठोकर लगते ही बाबू का हाथ तुरंत पत्थर से छूटा और एक घुटी हुई चीख के साथ वह खाई के तल पर जा गिरा । उसका सर फट गया और हत्यारे ने साफ़-साफ़ उसकी गरदन को एक ओर ढुलकते हुए देखा । अब वह आश्वस्त था कि बाबू मर चुका था और उसके गले से निकली चीख चाहे खाई के भीतर गूँज उठी हो मगर वह इतनी तेज़ नहीं थी कि थोड़ी दूरी पर भी सुनी जा सकती । ‘तेरे जैसे हलके आदमी पर मैं इस कीमती रिवॉल्वर की कीमती गोली ज़ाया करने वाला भी नहीं था बाबू’ – हत्यारा बुदबुदाया – ‘तूने यह बात समझी ही नहीं ।’
फिर रिवॉल्वर को अपनी ज़ेब में रखकर हत्यारा वापस मुड़ा और चारों ओर के हालात का जायज़ा लेते हुए सावधानी से उस ओर आया जिस ओर उसने बाइक और बाकी का सामान छुपा रखा था । बाबू की कार की ओर उसने चुपचाप एक निगाह दौड़ाई और सड़क के दोनों ओर भी सावधानी से देखा । सड़क को पूरी तरह सुनसान पाकर उसने सिगरेट के दोनों पैकेट और अपना सिख वाला मेकअप उठाकर गोलमोल लपेटे और बाइक की टोकरी में डाले । उसने जितने सिगरेट पिए थे, उनके टोटे फेंकने की जगह पैकिटों में ही रख लिए थे । फिर बाइक स्टार्ट करके उसने श्यामगढ़ के रास्ते पर आगे बढ़ाई ।
थोड़ी दूरी पर जाकर जब एक घुमावदार मोड़ आया तो उसने बाइक को सड़क से हटाकर थोड़ी दूरी पर एक पेड़ की ओट में खड़ा किया, पेट्रोल की टंकी खोलकर सिख-वेश वाली पगड़ी का एक सिरा पेट्रोल में डुबोया और कुछ घास-फूस इकट्ठी करके हैट के अतिरिक्त सारा सामान एक साथ घास-फूस पर रखने के बाद माचिस की तीली जलाकर सारे सामान को आग लगा दी । पेट्रोल में भीगे कपड़े के कारण आग तुरंत ही भड़क गई । जब उसे लगा कि सारा सामान आराम से जल रहा है तो उसने उस माचिस को भी उसी आग में झोंक दिया । दूर से किसी गाड़ी को आता देखकर वह ओट में हो गया । गाड़ी के निकल जाने के बाद उसने पूरा मुँह ढक लेने वाला नया हैलमेट अपने सर पर लगाया और बाइक स्टार्ट करके श्यामगढ़ की ओर रवाना कर दी । भीमबास आया तो उसने बाइक रोकने की जगह उसकी गति थोड़ी-सी बढ़ाई और वहाँ स्थित दुकानों और ढाबे के आगे से उसे बिना रोके और बिना किसी भी ओर देखे सीधे निकाल ले गया । वह दिन ढले का समय था और दुकानों वाले भी आराम के मूड में थे, इसलिए उसे यकीन था कि किसी का ध्यान उस पर नहीं गया होगा और यदि किसी ने ग़ौर किया भी होगा तो हैलमेट के कारण किसी को पता नहीं चला होगा कि बाइक कौन चला रहा था ।
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लेखक परिचय:
जितेन्द्र माथुर का जन्म का 30 अक्टूबर, 1969 को राजस्थान के जयपुर ज़िले के एक कस्बे सांभर झील में हुआ।
अपने पैतृक स्थान सांभर झील से ही 1988 में बी. कॉम. की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत वे उच्च शिक्षा के लिए कलकत्ता चले गये जहाँ से उन्होंने चार्टर्ड अकाउंटेंट की उपाधि प्राप्त की तथा उसके उपरांत विभिन्न निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सेवारत रहे।
जितेन्द्र माथुर को बचपन से ही पढ़ने और लिखने में रूचि रही है। जब वे राजस्थान में कोटा नगर के निकट रावतभाटा नामक स्थान पर राजस्थान परमाणु बिजलीघर में सेवारत थे, तब बिजलीघर की गृह-पत्रिका ‘अणुशक्ति’ के लिए उन्होंने लेख लिखना आरंभ किया। उन्हीं दिनों गुजरात में चल रहे सांप्रदायिक दंगों से व्यथित होकर उन्होंने अपनी पहली हिन्दी एकांकी – ‘दोस्ती’ की रचना की जो कि न केवल ‘अणुशक्ति’ में प्रकाशित हुआ बल्कि भाभा आणविक अनुसंधान केंद्र, तारापुर (महाराष्ट्र) में सक्रिय नाट्य-समूह ‘द्वारका’ द्वारा मंचित भी किया गया।
आने वाले वर्षों में भूमि-पुत्र, प्रेम और संस्कृति और चिराग ए सहर नामक तीन और एकांकियाँ लिखी। साथ साथ वे विभिन्न संस्थानिक पत्रिकाओं के लिए भी लिखते लेख लिखते रहे। वह अपने ब्लॉग्स पर भी हिंदी और अंग्रेजी में नियमित रूप से समीक्षाएं और लेख प्रकाशित करते रहते हैं।
कत्ल की आदत उनका प्रथम उपन्यास है।
सम्पर्क:
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