किताब परिचय:
केविन मार्टिन, जो अपनी एजेंसी का सबसे काबिल प्राइवेट डिटेक्टिव था, को चौहड़पुर एक ख़ास मिशन पर भेजा गया था।
मिशन था एक खतरनाक नरपिशाच की सच्चाई का पता लगाना, जो पिछले सौ सालों से चौहड़पुर के लिए आतंक का पर्याय बना हुआ था। जिसके बारे में कहा जाता था कि वह हर 24 साल के बाद क्रिसमस के बाद आता है और नए साल की शुरुआत से पहले चौहड़पुर के इकलौते चर्च के फादर का सारा खून चूसकर उसे मौत के घाट उतार देता है।
24 साल पहले भी उसने फादर मार्कोनी डिकोस्टा को वीभत्स तरीके से मार डाला था और इस बार किसी और की बारी थी।
क्या केविन अपने मिशन में कामयाब हुआ और चौहड़पुर को उस खूनी नरपिशाच के आतंक से मुक्त करवा पाया?
या एक बार फिर.!लौट आया नरपिशाच
किताब लिंक: अमेज़न | फ्लिपकार्ट
पुस्तक अंश
24 वर्ष पहले,
30 दिसम्बर 1995
दिसम्बर का सर्द भरा मौसम था। रात के बारह बज चुके थे। कोहरा शाम से ही छाने लगा था। अँधेरे ने काली चादर फैलाकर अपना साम्राज्य कायम कर लिया था। चर्च के कब्रिस्तान के साथ-साथ पूरा इलाका अँधेरे में डूब चुका था। हवाओं का उग्र रूप इस कदर हावी था, जैसे वह आज कोई बड़ी अनहोनी का न्योता दे रहा हो।
वहीं उस वीराने में जो इकलौता चर्च था, वो उस कब्रिस्तान में पड़ता था, जहाँ एक छोटे से कमरे में फादर मार्कोनी डिकोस्टा अपने ग्यारह साल के छोटे बच्चे एंथनी के साथ रहते थे। आज वह घोड़े बेचकर ऐसे सुकून से सो रहे थे, मानो जैसे उसे बाहर के उग्र मौसम से कोई सरोकार न हो।
उस चर्च की स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि इस खराब मौसम के थपेड़ों को झेल सकें। यह चर्च जैसे-जैसे पुराना होता जा रहा था वैसे-वैसे उसका वजूद धूमिल होने की ओर अग्रसर था। उसकी जर्जर स्थिति बयान कर रही थी कि वह बस अब चंद घंटों का ही मेहमान है। वह चर्च कभी भी गिर सकता था।
शाम से ही आसमान पर काले बदल छाए हुए थे और हवा भी खासी तेज थी। जब कोई झौंका दरवाजे से टकराकर गुजरता तो सांय-सांय की खौफनाक आवाज पैदा होती।
अचानक हवायें इतनी तेज हो गईं कि उस कब्रिस्तान के पास मौजूद इकलौते चर्च की छत, जो टीन से ढकी थी थर्राने लगी।
फादर मार्कोनी डिकोस्टा ने अपनी आँखें खोलकर देखा तो छत के एक कोने का ऊपरी हिस्सा हवाओं के तेज चलने की वजह से वह टीन किसी कागज की तरह फड़फड़ा रहा था।
फादर मार्कोनी डिकोस्टा ने झट से पलटकर अपने ग्यारह साल के बच्चें पर नज़र टिकाई तो देखा कि वह अभी भी गहरी नींद में था। अपने बच्चे की मायूस शक्ल देख फादर मार्कोनी डिकोस्टा उसे निहारने लगे। उन्हें अपनी बेबसी पर आज फिर से रोना आ गया।
धाड़… धाड़… धाड़…!
इस आवाज़ के दखल देने से फादर मार्कोनी डिकोस्टा हड़बड़ाकर उठ बैठे। उन्होंने देखा कि कोई दरवाजे को तेज-तेज थपथपा रहा था। लकड़ी से बने उस दरवाजे की हालत भी खस्ता थी। फादर मार्कोनी डिकोस्टा को पता था कि इस पर अब और हल्का तेज वार हुआ तो वह अब झेल नहीं पाएगा और टूटकर धरती पर बिखर जाएगा।
धाड़… धाड़… धाड़…!
फिर से इस आवाज़ ने फादर मार्कोनी डिकोस्टा के विचारों की श्रृंखला तोड़ी और उन्होंने मफ़लर को अच्छे से गले में लपेटा और मंकीकैप को अपने चेहरे पर चढ़ाते हुआ कमरे के एक कोने में गए। उन्होंने माचिस की तिल्ली से मिट्टी के लैम्प को प्रज्वलित किया और दबे पाँव उस इकलौते दरवाजे के करीब जा पहुँचे।
“क… कौन है?”
जवाब में सिवाय हवाओं के शोर के कुछ हासिल न हुआ। उन्होंने अपनी हिम्मत को दोबारा एकत्रित किया और इस बार जोर से चीखे, “मैं पूछता हूँ कौन है? रात के इस वक़्त भला क्या काम है?”
इस बार भी जब कोई जवाब नहीं मिला तो फादर मार्कोनी डिकोस्टा झुँझला गए और उन्होंने एक झटके से दरवाजे को खोल दिया।
उनकी आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं जब उन्होंने देखा कि वहाँ कोई भी मौजूद नहीं था। अब हवाएँ भी इतनी तेज नहीं थीं कि इस गुस्ताखी का इल्जाम उन पर लगाया जा सके।
अचानक दूर कहीं से कुत्तों के रोने की आवाज़ आई और वातावरण में मनहूसियत सी छा गई। उस आवाज़ के कानों में पड़ने से फादर डिकोस्टा के रौंगटे खड़े हो गए। उसने लैम्प को उठाकर देखा तो सामने अनगिनत कब्रें थीं जिसमें मुर्दे कई दशकों से बेखबर होकर विश्राम कर रहे थे। उन्हें बाहरी दुनिया से कोई लेना-देना नहीं था।
फादर मार्कोनी डिकोस्टा यहाँ वर्षों से रहते आये थे लेकिन इस तरह कभी भयभीत नहीं हुये थे। उनकी अंतरात्मा ने उन्हें आगाह कर दिया था कि आज उनके लिए कयामत की रात थी, जो अपने साथ बहुत कुछ ले कर जाने वाली थी।
फादर मार्कोनी डिकोस्टा ने जैसे ही अपने कदम उस दरवाजे से बाहर निकाले कि तभी चमगादड़ों का एक झुण्ड ‘सांय’ की आवाज़ करता हुआ उनकी खोपड़ी के ऊपर से निकल गया। डर की एक ठंडी लहर उनकी धमनियों से होकर गुजर गई।
उन्हें दूर किसी बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। उन्होने दोबारा हिम्मत इकट्ठी की और उस आवाज़ की दिशा में बढ़ने लगे। हर कदम के साथ वह उस आवाज़ के करीब होते चले जा रहे थे। उन्हें ऐसा लगा रहा था कि बस अब वह उस आवाज़ के काफी करीब ही हैं। काफी देर तक लगातार चलने के बावजूद भी जब वह उस बच्चे तक नहीं पहुँचे तो जल्द ही उनका भ्रम टूट गया और उनकी समझ में आ गया कि वह किसी के पूर्व निर्धारित झाँसे का शिकार हो गये हैं। फौरन उनके दिमाग ने दिल को सूचना दे दी कि अब वह किसी बड़ी मुसीबत में पड़ने वाले हैं।
अचानक उनके पैर एक जगह थम गए। उन्होंने दूर कहीं एक जोड़ी चमकीली आँखें देखी। अँधेरा ज़्यादा होने की वजह से वह उन एक जोड़ी आँखों के सिवाय और कुछ देख पाने में सक्षम नहीं थे।
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लेखक परिचय:
देवेन्द्र प्रसाद एक बहुमुखी प्रतिभा वाले इंसान हैं।
इनकी अब तक आठ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। प्रतिलिपि और कहानियाँ नामक प्लेटफार्म में ये असंख्य कहानियाँ प्रकाशित कर चुके हैं। वहीं कुकू और पॉकेट एफ एम जैसे एप्लीकेशन में इनकी कहानियों के ऑडियो संस्करण आ चुके हैं।
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