अमित वाधवानी धुले महाराष्ट्र से आते हैं। अपराध साहित्य में उनकी विशेष रूचि है और देशी विदेशी दोनों तरह का अपराध साहित्य वह पढ़ते रहते हैं। आनंद कुमार सिंह के उपन्यास है हीरोइन की हत्या पर उन्होंने विस्तृत टिप्पणी लिख कर भेजी है। आप भी उनकी टिप्पणी पढ़िए।
मुख्य पात्र
यश खांडेकर – प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर
बलदेव नारंग – पुलिस इंस्पेक्टर
जागृति – खांडेकर की सहायक
निवेदिता – मकतूल की सिस्टर
जोया – नर्स
हीरोइन की हत्या आनन्द कुमार सिंह का पहला उपन्यास है। इसके कथानक की शुरुआत एक हॉस्पिटल से होती है जहाँ (प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर) यश खांडेकर बेहोशी की हालत में ही पुलिस की गिरफ्त तथा निगाह बन्दी में एडमिट है। होश आने पर खांडेकर को अहसास होता वह सिर पर आई गहरी चोट के चलते अपनी याददाश्त खो चुका है और साथ ही उसे इस बुरी खबर से भी अवगत करवाया जाता है कि वो एक अभिनेत्री की हत्या के जुर्म में उसे बाकायदा बुक किया जा चुका था–वो गिरफ्तार था।
दर्द से फटे जा रहे सिर पर काफी ज़ोर डालने के बावजूद भी वो अपना नाम तक याद नहीं कर पाता है! मर्डर किसका हुआ था–किन परिस्थितियों में हुआ था और वो खुद क्यों इस सब में इन्वॉल्व था! जाहिर सी बात है कि उसकी उक्त मानसिक अवस्था में ये बातें तो क्या याद आनी थी।
आगे उसका ब्यान लेने आ पहुँचा बेहद कड़क और साथ ही बेहद काबिल इंस्पेक्टर, बलदेव नारंग को खांडेकर की इस बात पर रत्ती भर विश्वास नहीं होता है वो अपनी याददाश्त खो चुका था!
उस अजीबोगरीब पेशोपेश की स्थिति में फँसे बेहद लाचार खांडेकर को थोड़ी राहत तब नसीब होती है जब उसकी (कथित!) सहायक जो कि काफी जुगाड़ से पुलिस की निगहबानी में सेंध लगाकर खांडेकर तक पहुँचती है और उसे उसकी (खांडेकर की) पहचान तथा मौजूदा सूरतेहाल से आगाह करवाती है।
अपनी असिस्टेन्ट से हासिल जानकारी के मुताबिक खांडेकर एक बेहद कामयाब और टॉप मोस्ट प्राइवेट इन्वेस्टिगेटर था जो कई हाई प्रोफ़ाइल केसेस बड़ी कामयाबी से सुलझा चुका था।
तो क्या उसकी मौजूदा दुश्वारी का ताल्लुक़ भी उसके काम–उसके किसी केस से था?
आगे किस तरह खांडेकर खुद को इन परिथितियों से उभार पाया?
इस तरह से शुरू हुई एक तेज़ रफ्तार डिटेक्टिव इन्वेस्टिगेशन जो कि कई रोचक प्रसंगों से गुजरते हुए असली कातिल को बेनकाब करती है और साथ ही पाठकों को अंत में हैरतजदा कर जाती है।
क्राइम मिस्ट्री फिक्शन मेरा पसंदीदा जॉनर है इसलिए अक्सर, चाहे कोई अपरिपक्व या नवोदित लेखक ही क्यों न हो– नये नॉवल के ब्लर्ब को जरूर पढ़ता हूँ और अगर प्लॉट दिलचस्प लगे तो नॉवल भी जरूर ट्राय करता हूँ। इसी कवायद के चलते मौजूदा कथानक में भी दिलचस्पी जागी और इसे पढ़ने का मौका बना।
नॉवल के संदर्भ में कहना पड़ेगा कि, चाहे उपरोक्त रचना लेखक का पहला ही प्रयास है इसके बावजूद,न अनगढ़ लेखन,न रिपीटेटिव डायलॉग्स, न कथानक से जबरदस्ती खींच-तान, जो कि अक्सर किसी नवोदित लेखक के लेखन में साफ झलकता है! बल्कि इसके विपरीत– कथानक बिल्कुल कसा हुआ और भाषा/शब्द चयन बेहद संतुलित।
नॉवेल में और भी कई खूबियाँ हैं, गौर फरमाइए:
सुंदर और सशक्त रचना प्रस्तुति, पात्रों का सटीक चरित्र चित्रण, सिर घुमा देने वाला धाँसू प्लॉट, रोचक लेखनशैली, सशक्त मिस्ट्री, और चौंका देने वाला अंत।
मैं तो यही कहूँगा कि उपरोक्त नॉवेल के साथ– इस विधा में एक काबिल लेखक का पदार्पण हुआ है, उम्मीद है जल्द ही वे, इसी कैलिबर की उम्दा मिस्ट्रीज पाठकों को परोसेंगे। शुभकामनाएं।
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पुस्तक विवरण
पुस्तक: हीरोइन की हत्या | लेखक: आनंद कुमार सिंह| पृष्ठ संख्या: 150 | प्रकाशन: फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशन
(आप भी अपनी पसंदीदा पुस्तकों की समीक्षा अगर भेजना चाहें तो अपनी तस्वीर, एक संक्षिप्त परिचय के साथ एक बुक जर्नल के ई मेल : contactekbookjournal@gmail.com पर भेज सकते हैं। )
बहुत बढ़िया ,आनंद कुमार सिंह साहब को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं
वाधवानी जी विकास जी का आभार
आभार…
बेहतरीन नोवेल और बेहतरीन समीक्षा। साधुवाद।
आभार….
बहुत बढ़िया। मुझे तो पता ही नहीं था आनंद सर ने भी नॉवेल लिख मारा… भला हो आपका और अमित वाधवानी सर का। ऐसे ही बढ़िया बढ़िया नॉवेल्स की समीक्षा लिखते रहिये।
जी आभार…🙏🙏🙏🙏पढ़कर बताईयेगा उपन्यास कैसा लगा।