लेखक देवेन्द्र पाण्डेय अपने पाठकों के लिए जब भी कुछ लेकर आते हैं वह उनकी पिछली प्रस्तुति से अलहदा होता है। उन्होंने प्रेम पर लिखा है, यात्रा वृत्तान्त लिखा है, थ्रिलर लिखा है और अब वह जा चुड़ैल के साथ हॉरर रोमांस कॉमेडी अपने पाठकों के लिए लेकर आ रहे हैं। लेखक देवेन्द्र पाण्डेय के उपन्यास जा चुड़ैल के प्रकाशित होने के उपलक्ष्य में एक बुक जर्नल ने उनसे यह छोटी सी बातचीत की है। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आएगी।
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प्रश्न: नमस्कार देवेन भाई। सबसे पहल तो नवप्रकाशित उपन्यास के लिए हार्दिक बधाई। ‘जा चुड़ैल’ नाम आकर्षित करता है। इस उपन्यास को लिखने का विचार सबसे पहले आपको कब आया? क्या कोई विशेष घटना थी जिसने आपको उपन्यास लिखने लिये प्रेरित किया?
उत्तर: इस उपन्यास को जब लिखा जा रहा था तब भी इसका शीर्षक सोचा नहीं गया था। यहाँ तक की उपन्यास सम्पूर्ण होकर प्रकाशक को सौंपे जाने तक शीर्षक पर सहमति नही बन पा रही थी। एक काम चलाऊ शीर्षक रख दिया वह भी इसलिए कि ड्राफ्ट को कोई टाइटल देना था। अंत तक आवरण पर भी वही शीर्षक बन गया था। ‘यह प्रेम कहानी हॉरर है’ किंतु फिर शुभानन्द जी और मिथिलेश जी के साथ हुयी चर्चा में ‘जा चुड़ैल’ फाइनल हुआ। रही बात इस उपन्यास को लिखने की प्रेरणा और विचार की तो जब मैंने अपना उपन्यास ‘रोड ट्रिप 13000 ft’ लिखी थी उसी समय जा चुड़ैल का कॉन्सेप्ट दिमाग मे आ चुका था, किन्तु ‘बाली-कैलाश रहस्य’ में व्यस्त रहने के कारण जा चुड़ैल को पोस्टपोन कर दिया गया। बाली द्वितीय के प्रकाशन के फौरन बाद मैं जा चुड़ैल पर लग चुका था। वैसे ईमानदारी से कहूँ तो कोई खास प्रेरणा या घटना जेहन में थी नहीं जिस कारण जा चुड़ैल लिखता। यह बस ऐसा था कि जेहन में कॉन्सेप्ट चमका और ताना बाना बुन लिया गया। वैसे भी एक हॉरर उपन्यास लिखने की इच्छा भी थी किन्तु मैं गम्भीर, और डार्क हॉरर लिखने के बजाय एक हास्य हॉरर पर प्रयोग करना चाहता था।
प्रश्न: उपन्यास का नायक नायिका से मुम्बई की बारिश में मिलता है। मुम्बई की बारिश बहुत प्रसिद्ध है। मैं खुद तीन साल मुंबई रहा हूँ तो जानता हूँ कि यह बारिश यूँ ही प्रसिद्ध नहीं है। क्या मुम्बई की बारिश से जुड़ा कोई रोमांचक किस्सा आप पाठकों के साथ साझा करना चाहेंगे?
उत्तर: मुम्बई की हर बरसात यादगार रहती है, भले याद रखने के कारण अच्छे हो या बुरे लेकिन याद जरूर रहती है। हर साल मुम्बई में इतनी बरसात हो जाती है कि वह पिछली बरसात का रिकॉर्ड ध्वस्त कर देती है, हर बरसात में लोग यही कहते पाए जाते है कि इस बार बरसात ने रिकॉर्ड तोड़ दिए। जबकि चारों महीने बरसात नहीं होती, बीच मे एकाध सप्ताह ऐसा हो जाता है जब बरसात शुरू हो जाए तो हफ्ते दस दिन तक नहीं रुकती। ऐसी ही एक भयानक बरसात से इस कथानक का आरम्भ होता है, वह बरसात जिसने मुम्बई को घुटनों पर ला दिया था। 26 जुलाई 2005 की उस बरसात ने मुम्बई की जीवटता को चुनौती दे दी थी। हालाँकि उस घटना के पश्चात फिर कभी ऐसे भयंकर हालात नहीं देखे गए इसके लिए प्रबंधन की तारीफ करनी चाहिए जो उसने पुरानी गलतियों से सीख लेते हुए सुधार किए। रही बात बरसात से जुड़ी याद की तो ऐसी कोई विशेष याद तो नही है, किन्तु मुझे बरसात में भीगना पसन्द है। मैं स्कूल के समय से ही भीगना पसन्द करता था, कभी अपने साथ छाता या रेनकोट जैसी चीज नहीं ले जाता था। मुझे यह चीजें परेशान करती है इसलिये मैं नहीं ले जाता। मैं ऑफिस तक बरसात में भीग कर पहुँचता था, मेरे कुछ सहकर्मी रोज कहते कि रेनकोट ले लो, छाता खरीद लो, क्यों पैसे बचाने के चक्कर मे भीगते रहते हो? हालाँकि मुझे उन्हें सफाई देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुयी क्योकि लोग मेरे बारे क्या सोचते है मैंने इस बात को कभी इतना महत्व दिया ही नहीं। किन्तु उनकी रोज रोज की टिप्पणी सुनकर एक बार मैं छाता लेकर चला गया लेकिन खोला नही। बरसात में मजे से भीगते और छाता लहराते हुए मैं ऑफिस पहुँच गया, सहकर्मियों ने जब मुझे भरी बरसात में बंद छाते के साथ भीगकर आते देखा तो पूछा कि छाता होते हुए भी इस तरह कौन भीग कर आता है?
मैंने जवाब दिया “भीगना मुझे अच्छा लगता है, यह छाता केवल आप लोगो को दिखाने के लिये है कि मेरे पास छाता है। और हाँ कल मैं रेनकोट भी कंधे पर टाँग कर आऊँगा, अब मत कहना कि मैं पैसे बचाने के चक्कर मे भीग रहा हूँ।” उस दिन के बाद किसी ने मुझ पर कोई टिप्पणी नहीं की।
प्रश्न: ‘जा चुड़ैल’ एक हॉरर कॉमेडी रोमांस कथा है। यानी इसमें आपने तीन शैलियों (genre) को एक कथानक में बुना। ऐसे में आपने कहानी के तत्वों के साथ संतुलन किस तरह स्थापित किया? क्या हॉरर कॉमेडी और रोमांस के दृश्यों के साथ संतुलन बनाने में कोई दिक्कत हुई?
उत्तर: कहानी में मैंने जानबूझकर या जबरन की कॉमेडी, हॉरर या रोमांस नही डाला है। मैं कथानक में सहजता का सदैव ध्यान रखता हूँ, पाठकों को ऐसा न लगे कि कोई चीज कहानी में केवल पृष्ठ बढ़ाने के लिये जबरन थोपी गयी है इसका मैं ख्याल रखता हूँ। मेरा प्रथम उपन्यास इश्क बकलोल प्रांतवाद और पलायन की पृष्ठभूमि पर लिखा हुआ था किंतु वह कोई डार्क या अत्यधिक गंभीर उपन्यास नहीं था। मैंने पात्रों की स्वाभाविकता पूर्णतया बनाए रखी थी, जहाँ पहले हाफ में उपन्यास हल्का फुल्का और हास्य साथ लिए चलता है वही दूसरे हाफ में उपन्यास में रुमानियत, दोस्ती और भावनाओं का तालमेल है जो अंत तक बना हुआ है। इस प्रश्न के उत्तर में अपने प्रथम उपन्यास का उल्लेख करने का उद्देश्य यही बताना था कि मैं कथानक के विविध भावों को घटनाक्रम के अनुसार बदलता हूँ, न कि जबरन भाव बदलता हूँ। करेक्टर और कहानी के डेवलपमेंट के साथ साथ उसके भाव और व्यवहार भी बदलते रहते है, और जब स्वाभाविक रूप से चीजें लिखी जाती है तब विविध भावों में तालमेल बिठाना अपने आप सहज हो जाता है। मतलब यह कि मुझे हॉरर,रोमांस और कॉमेडी के साथ तालमेल बिठाने में ऐसी कोई खास दिक्कत नहीं हुयी।
प्रश्न: जा चुड़ैल क्योंकि एक पारलौकिक घटनाओं (supernatural incidents) पर आधारित उपन्यास है तो मैं यह जानना चाहूँगा कि क्या कभी आपके साथ ऐसा कभी हुआ है? अगर नहीं तो ऐसा कोई किस्सा जो आपने कभी सुना हो और आपको उसे सुनकर डर लग गया हो।
उत्तर: ऐसे किस्सों से तो हर किसी का बचपन भरा पड़ा होता है। कहते है ना जिसे इन चीजों पर विश्वास नही वह एक बार भारत के गाँव घूम आए। मैं भी मूल रूप से इन्ही गाँव से ही आता हूँ, मैं आस्तिक व्यक्ति हूँ। यदि मैं ईश्वर में विश्वास करता हूँ तो ऐसी चीजों में विश्वास न करने का कोई कारण ही नही बनता। विज्ञान भी यही कहता है कि कोई भी वस्तु पूर्णतया नष्ट नही होती वह बस अपना स्वरूप बदल लेती है। यदि हम इन चीजों को समझ नहीं पा रहे तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि उनका अस्तित्व नही है। हो सकता है भविष्य में शायद हम इनका रहस्य जान लें।
रही बात ऐसी किसी घटना कि तो मुझे बचपन की एक घटना की याद है जब मैं अपनी कजिन के साथ गाँव की सीमा से पार एक खेत से होते हुए उसके ननिहाल जा रहा था। दिन में गाँव की हरियाली,जंगल, दूर दूर तक फैले खलिहान, नदियाँ इत्यादि जितने सुंदर प्रतीत होते है, शाम होते ही वह उतने ही डरावने लगने लगते है। तो हमे नदी पार करते करते शाम हो गयी ( साईकिल द्वारा नाव से ) हम एक सुनसान खेत से गुजरे, वहाँ बीचों बीच एक पुराना कुँआ था जिसे देख मेरी कजिन ठिठक गयी और उसने हाथ जोड़ लिए। उसने मुझे भी उसका अनुसरण करने को कहा किन्तु मैं उस समय काफी अक्खड़ और नास्तिक किस्म का किशोर था तो मैंने उसकी बात नहीं मानी। उसने मुझे बताया कि ये पुराने कुएं पहलवान बाबा की समाधियाँ होती है, पहलवान बाबा वे महात्मा होते है जो गाँव की सीमा की रक्षा करते है। इसलिये हर गाँव के आरम्भ में ऐसी समाधियाँ मिलती है, जहाँ हाथ जोड़ कर उनसे अनुमति माँगी जाती है और सम्मान जाताया जाता है। मैंने उसकी बात अनसुनी करके हाथ जोड़ने तो दूर कुएं पर जाकर पहलवान को ही अनाप शनाप बक दिया और आगे बढ़ गया। रास्ते भर वह बेचारी बाबा से माफी माँगती रही और मैं हँसता रहा। जब घर वापस आये तो खाना वगैरह निपटा कर मैंने बिस्तर पर जैसे ही आँखें मुंदी, वैसे मुझे लगा जैसे किसी ने मेरी आँखें दबोच ली और मुझे अंधेरे कुएं में खींचते चले जा रहा है। मेरी आवाज तक नही निकल रही थी, बड़ी मुश्किल से कजिन ने मुझे जगाया। मैं घबरा गया, मैंने स्लीपिंग पैरालिसीस के विषय मे पढ़ रखा था कि ऐसे आभास को स्लीपिंग पैरालिसी कहते है। लेकिन वह गहरी नींद में होता है, न कि आँखें मुंदने के एक क्षण बाद। किसी प्रकार मैंने अपने डर पर काबू पाया और फिर सोने का प्रयास किया, जब भी आँखें मूँदता फौरन वही दोबारा होता। इस प्रकार मैंने वह पूरी रात जागते हुए काटी, उसके अलावा भी कुछ और अनुभव हुए जिससे मेरा ऐसी शक्तियों पर थोड़ा बहुत यकीन हो गया। इसे ज्यादा डिटेल में बताऊँगा तो यह भी एक फंतासी उपन्यास बन जायेगा इसलिये इसे यही रोकते हैं।
प्रश्न:. जा चुड़ैल के मुख्य किरदारों के नाम को छोड़कर एक ऐसा किरदार का नाम बताएं जिसे लिखने में आपको बहुत आनन्द आया हो और एक ऐसे किरदार का नाम बताएं जिसके विषय में लिखने में आपको अत्यधिक मेहनत करनी पड़ी हो।
उत्तर: जा चुड़ैल का एक किरदार है केशव जो नायक का मित्र है। यह पात्र मेरा पसंदीदा पात्र है। वह एक सनकी व्यक्ति है और उसे पैरानॉर्मल चीजों में पागलपन की हद तक दिलचस्पी है। अंग्रेजी फिल्में देख देख कर उसे घोस्ट हंटिंग का शौक चर्राया है, और उसका यही शौक यही पागलपन कहानी को आगे बढ़ाता है।
दूसरा किरदार जिसे लिखने में अत्यधिक मेहनत करनी पड़ी वह थी प्रियंवदा, अब यह कौन है यह यदि मैं यहाँ बता दूँ तो कहानी का मजा खराब हो जाएगा। इसके लिए उपन्यास पढ़ना ही बेहतर रहेगा।
प्रश्न: बातचीत को अंत करते हुए देवेन भाई क्या आप पाठकों को कुछ संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर: मुझे यह प्रश्न सदैव उलझन में डाल देता है, क्योकि अभी मैं स्वयं को उस स्तर का व्यक्ति नही मानता जो दूसरों को कोई संदेश दे सके। बस पढ़ते रहिए और नव लेखकों को भी एक अवसर अवश्य दें। उनमें क्षमता है जिसे पहचानने की आवश्यकता है। (अंतिम पंक्ति मेरे लिये नही है।)
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तो यह थी जा चुड़ैल के लेखक देवेन्द्र पाण्डेय से एक बुक जर्नल की एक छोटी सी बातचीत। उम्मीद है यह बातचीत आपको पसंद आई होगी। जा चुड़ैल अगर आप लेना चाहे तो सूरज पॉकेट बुक्स की वेबसाइट पर जाकर खरीद सकते हैं। अगर आप किंडल में उपन्यास पढ़ते हैं तो यह उपन्यास आपको किंडल पर भी पढने के लिए मिल जाएगा।
जा चुड़ैल – किंडल (किंडल अनलिमिटेड सब्सक्राईबर किताब मुफ्त में पढ़ सकते हैं)
©विकास नैनवाल ‘अंजान’
सार्थक बातचीत
जी आभार…..
रोचक साक्षात्कार
जी आभार….
बेहतरीन बातचीत। देवेंन भाई नित नये प्रयोग करते रहें।
बातचीत आपको पसंद आई यह जानकर अच्छा लगा। आभार।