चैलेंज होटल – एम इकराम फरीदी

उपन्यास मई पाँच 2020 से मई सात 2020 के बीच पढ़ा गया


संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 256 | प्रकाशक: थ्रिल वर्ल्ड
पुस्तक लिंक: किंडल |  पेपरबैक

रिव्यू: चैलेंज होटल - एम इकराम फरीदी | Review: Challenge Hotel - M Ikram Faridi
चैलेंज होटल – एम इकराम फरीदी

पहला वाक्य:
रात के दस बज रहे थे।

 कहानी:
चालीसगाँव में मौजूद चैलेंज होटल के विषय में यह मशहूर था कि यह होटल भूतहा था और इधर किसी डायन का साया था। गाँव वाले यह तक बताते थे कि उन्होंने अपनी आँखों से इस होटल में मौजूद डायन को देखा हथा। और यही डायन आये दिन गाँव में मौजूद लोगों का खून पिया करती थी। उसके विषय में मशहूर था कि वह पहले आदमियों को अपने रूप जाल में फँसाती है और फिर उनका कत्ल कर देती है।

यही कारण था कि किसी वक्त आबाद यह होटल अब वीरान खडंहर बना था। होटल के मालिक ने इसे बसाने की, इसे किराए पर देने की काफी कोशिशें की थी लेकिन उस हर बार असफलता ही मिली थी। न वो खुद इसे चला सका था और इन कोई किरायेदार ही इसे चला सका था। जो भी आता कुछ दिनों में होटल छोड़कर भाग जाता।

एम इकराम फरीदी एक ठेकेदार थे जो कि अपने काम के सिलसिले में चालीसगाँव आकर रुके थे। उन्हें उधर सोलर पैनल लगाने का काम करना था।

चूँकि चैलेंज होटल उनकी साईट से नजदीक पड़ता था और उन्हें सस्ता मिल रहा था तो उन्होंने इसे अपने साथी ठेकेदार के साथ किराये पर उठाने का निर्णय किया।

इकराम फरीदी और उनके साथी ठेकेदार गिरीश कुमार को होटल के भूतहा होने में विश्वास न था। वह दोनों ही आधुनिक प्रवृत्ति के इंसान थे और ऐसी दकियानूसी बातों पर विश्वास करना उन्हें बेमतलब लगता था। वह इसे गाँव वालों का अन्धविश्वास मानते थे।

क्या इकराम फरीदी और उनके साथी ठेकेदार इस होटल को प्रयोग में ला पाए? 
क्या सच में इस होटल में कोई भूत था या यह गाँव वालों का अन्धविश्वास था? 
क्या थी इस चैलेंज होटल की कहानी?

ऐसे ही कई सवालों के जवाब आपको इस उपन्यास को पढ़कर मिलेंगे।


मुख्य किरदार:
एम इकराम फरीदी – कथावाचक
गिरीश  कुमार – एम इकाराम फरीदी के साथी ठेकेदार जो उनके साथ प्लांट का कार्य कर रहे थे
प्रेमा – चुरई गाँव में रहने वाली एक पैंतालीस वर्षीय औरत जो कि काफी दबंग प्रवृत्ति की थी
राजन – प्रेमा का पति
गोपाल – प्रेमा का जेठ और चैलेंज होटल का मालिक
बबलू – चालीस गाँव में मौजूद मधुमति होटल में काम करने वाला बैरा
मीना – चुरईं गाँव की गाँववासी
मति – मीना का पति
इंस्पेक्टर गौरव पुर्णे  और एस आई कुमावत – पुलिस वाले जो कि चुरई गाँव में हो रही हत्याओं की जाँच कर रहे थे
सत्येन्द्र – पुलिस का गुप्तचर
राजू – चालीसगाँव में रहने वाला एक अफीमची
बाबर खां – चैलेंज होटल में पहले यह काम करता था
तरन्नुम  – एक लड़की
रब्बो – बाबर खां की साथिन
मितराज, मुरारी, मुंडा – एम इकराम फरीदी के लेबर जो कि साईट में आये थे

मेरे विचार:
कहते हैं लेखक जो कुछ भी लिखता है उसमें वह खुद भी किसी न किसी रूप में मौजूद रहता है। हर किरदार में उसके व्यक्तित्व की कुछ छाप अवश्य होती है। लेकिन इस उपन्यास में ऐसा नहीं है। यहाँ लेखक की छाप ही नहीं बल्कि लेखक खुद ही एक किरदार के रूप में मौजूद हैं।

दुनिया के कई लेखकों  ने ऐसे उपन्यास लिखे हैं जिनमे कथानक तो काल्पनिक होता है लेकिन लेखक उसमें स्वयं एक किरदार के रूप में मौजूद होता है। भारतीय लोकप्रिय साहित्य की बात की जाए तो सुरेन्द्र मोहन पाठक साहब ने ऐसी कई कहानियाँ लिखी हैं जिनमे वो खुद एक किरदार के रूप में थे। मैंने सुना है वेद प्रकाश शर्मा जी ने भी ऐसा कुछ किया है। अब एम इकराम फरीदी जी ने यह प्रयोग किया है। उनका यह शायद पहला प्रयोग है।

इकराम फरीदी जी लिखते तो हैं ही लेकिन इसके अलावा उनका अपना इलेक्ट्रिक कंस्ट्रक्शन का व्यापार भी है। इसी व्यापार के सिलसले में उन्हें अलग अलग प्रोजेक्ट्स के लिए इधर उधर जाना पड़ता है। अपने ऐसे ही एक टूर को लेखक ने इस उपन्यास में पृष्ठभूमि के तौर पर इस्तेमाल किया है।

महाराष्ट्र के जलगांव जिले के चालीसगाँव नामक नगर और उसके नजदीक मौजूद चुरई गाँव इस कथानक की पृष्ठभूमि बना है। लेखक ने इधर कुछ समय व्यतीत किया था और अपने उसी अनुभव को कल्पना की उड़ान देकर इस कथानक के रूप में पाठकों के सामने प्रस्तुत किया है।

हॉरर शैली मेरी पसंदीदा शैलियों में से एक है और मैं अक्सर ऐसे उपन्यासों को पढ़ता रहता हूँ। हॉरर उपन्यासों से अक्सर लोगों की यह परेशानी होती है कि वो इनसे डरते नहीं हैं जबकि मुझे लगता है कि हॉरर उपन्यासों को डर के लिए नहीं रोमांच के लिए पढ़ा जाना चाहिए। डर उपन्यास को पढ़कर आपको शायद ही लगे। वैसे मुझे लगता है कि इसमें कुछ हद तक प्रकाशकों की गलती भी है। वह उपन्यासों के ऐसे अतिश्योतीपूर्ण वर्णन लिख देते हैं कि पाठक की अपेक्षाओं को फिर वह उपन्यास पूरा नहीं कर पाता है। इससे भी प्रकाशकों को बचना चाहिए। वर्णन सरल होना चाहिए और फिर पाठकों को पर यह निर्णय छोड़ देना चाहिए कि वह इस उपन्यास को थ्रिलर के तौर पर पढ़ते हैं या हॉरर के तौर पर इसे पढ़ते हैं।

खैर, कहानी पर आते हैं तो चालीसगाँव और उसके आसपास के इलाके में एक डायन का खौफ मौजूद है। आये दिन किसी न किसी की खून विहीन लाश उधर मिलती रहती है। गाँव वालों का मानना है कि यह डायन आदमियों को रिझाकर उन्हें वीराने में ले जाती है और उनका खून पी जाती है। और सरकारी लोग इस मामले को जानवरों द्वरा की गयी हत्या बताकर ठंडे बसते में डाल देते हैं।  लोग यह भी मानते हैं कि यह डायन चालीसगाँव में मौजूद चैलेंज होटल में रहती है।

कहानी की शुरुआत ही इस डायन के खूनी खेल से शुरू होती है। इसके बाद उपन्यास में मुख्य किरदार और कथावाचक एम इकराम फरीदी की एंट्री होती। अक्सर कई बार हम लोग भूत प्रेतों को न मानने का दावा जरूर करते हैं लेकिन यह दावा ऊपरी तौर पर ही होता हैं। अकेले में और ऐसी परिस्थिति का सामना करने में डर लगना आम बात है। ऐसा ही किरदार उपन्यास का मुख्य पात्र एम इकराम फरीदी हैं। वह वैसे तो इन चीजों पर विश्वास नहीं करते हैं। लेकिन फिर उनके साथ कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिसके होने के बाद वह डर और खौफ के साये में जीने लगते हैं।

कहानी रोचक है। एक तरफ जहाँ गाँव में मौजूद डायन का आतंक है तो दूसरे तरफ चैलेंज होटल का रहस्य है।जहाँ एक तरफ गाँव में कत्ल कौन कर रहा है इसका अंदाजा आपको पहले ही हो जाता है लेकिन पुलिस इन कातिलों को कैसे पकड़ेगी यह देखने के लिए आप उपन्यास पढ़ते जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ चैलेंज  होटल में आखिर क्या हुआ था यह जानने के लिए आप उपन्यास पढ़ते चले जाते हैं।  एक बार होटल की कहानी पता चलने के बाद नायक आगे क्या करते हैं यह देखना भी रोचक रहता है।

कहानी एक हॉरर उपन्यास तो है ही लेकिन इसके अलावा भी काफी कुछ दूसरी बातें लेखक कहानी के माध्यम से कहते नजर आयें हैं।

इस उपन्यास के माध्यम से उन्होंने यह रेखांकित किया है कि कैसे अन्धविश्वास हमारे सोचने और समझने की शक्ति हर लेता है। इस कहानी के कुछ किरदार अपने लालच और अन्धविश्वास के कारण ही ऐसी चीजों को अंजाम दे जाते हैं जो कि एक सभ्य मनुष्य नहीं करेगा। वहीं कुछ किरदारों का अन्धविश्वास इतना गहरा है कि चाहे वह सही फल न दे तो वह यह मान कर बैठ जाते हैं कि जरूर उनसे ही इशारा समझने में गलती हुई थी। अक्सर हमे हमारे पास ऐसे लोग दिखते हैं जो इस प्रवृत्ति के होते हैं और कई बार ये अपने अन्धविश्वास के आगे अपना सब कुछ लुटा देते हैं।

चैलेंज होटल की कहानी ऐसे मनुष्यों की कहानी भी है जो लालच की सभी हदे पार कर जुल्म और सितम ढाते हैं। फिर उनके कर्मों की सजा उन्हें कैसी मिलती है यह भी कहानी से पता चलता है। वैसे हिन्दी फिल्मो और उपन्यास में अक्सर भूत प्रेत बना हुआ उन्हीं को दर्शाया जाता है जो किसी सितम के मारे होते हैं। यहाँ भी कुछ ऐसा ही है।

चूँकि इधर इकराम फरीदी जी एक प्रवासी की तरह चालीसगाँव में मौजूद थे तो इस बहाने उन्होंने उन परेशानियो को भी रेखांकित किया है जिससे कि एक अकेले मर्द को दो चार होना पड़ता है। बैचलर को घर न मिलने की यह परेशानी काफी लोगों की भोगी हुई समस्या है। मैंने खुद इसे मुंबई में महसूस किया है। इसमें पूरा दोष मकानमालिकों का नहीं होता है। कई मकान मालिकों  के कटु अनुभव होते हैं जिसके कारण उनकी यह धारणा बनी है। लेकिन फिर एक ही चीज से सबको मापना कहाँ तक सही है। हमे यह समझने की जरूरत है।

कहानी में चूँकि वो खुद के रूप में मौजूद हैं तो लेखन से जुड़ी बातें भी इसमें होती है। अपने लिखने के प्रोसेस को भी उन्होंने थोड़ा बहुत इसमें दर्शाया है। एक लेखक किन समस्याओं का सामना अक्सर करता है यह भी दिखाने की कोशिश की है।

कहानी में हॉरर प्रसंग की बात करूँ तो बाकी प्रसंग तो आम हैं लेकिन मतिराज नाम के किरदार के  साथ एक प्रसंग बना है जिसमें उसे खुद में कोई और नजर आता है जो कि मुझे काफी पसंद आया। यह कुछ अलग था और मजेदार था। मैं अक्सर हॉरर प्रसंग पढ़ता हूँ तो खुद की कल्पना उन प्रसंगों में करता हूँ।  ऐसे में इस प्रसंग ने मुझे काफी डराया था। कहानी में जो बाकी प्रसंग है उन पर और मेहनत की जा सकती थी। वहीं इन प्रसंगों की मात्रा भी कहानी में बढ़ाई जा सकती थी। अगर ऐसा होता तो कहानी के साथ न्याय हो सकता था। अभी प्रसंग के नाम पर पिशाचिनी के खून पीने की घटना, घुंघरुओं की आवाज है, और एक बार मतिराज को दिखता तैरता हुआ साया है जो कि कम महसूस होता है।

मुझे दबंग औरतों का किरदार काफी पसंद आता है तो प्रेमा का किरदार रोचक लगा।

कहानी में कुछ चीजें ऐसी थी जो मुझे लगा न होती तो कहानी और मजबूत हो सकती थी।

कहानी में कई जगह ऐसे वाक्यों का इस्तेमाल हुआ है जो कि सही नहीं है। वाक्य विन्यास की यह गड़बड़ी कहानी पढ़ने की लय को बिगाड़ती है। फरीदी जी शायर हैं तो उनसे ऐसी बातों की उम्मीद नहीं है। अगर यह टाइपिंग मिस्टेक है तो उन्हें किताब को प्रूफ रीड करना चाहिए था। वहीं कुछ जगह चीजों में दोहराव भी दिखा। तो वह दोहराव भी हटा सकते थे।  कुछ जगह चीजों का अनावश्यक रूप से वर्णन मिलता है उसे भी हटा सकते थे। मेरा मानना रहा है कि अगर कहानी 200 पृष्ठ में निपट रही है तो उसे निपटवा देना चाहिए, जबरदस्ती खींच तान उसके साथ नहीं करनी चाहिए।  इससे कहानी सुस्त हो जाती है। कहानी में बातों का दोहराव नहीं होना चाहिए इससे कहानी बोझिल हो जाती है।

यह सब काम सम्पादन के जरिये सम्भव था। उन्हें किताब के लिए सम्पादक रखना चाहिए।

उन्होंने इसको मेरा मसखरापन माना और वो कमरे में झाँकने लगे। कदाचित प्रविष्ट हुए।
(पृष्ठ 127)
क्या मेरा कोई बन्दा? हो सकता है कल शाम के टाइम चढ़ा हो तो इसमें क्या अतिश्योक्ति है?
(पृष्ठ 216)
यह सारा मंजर मेरी मस्तिष्क में क्षणभंगुर में तैर गया।
(पृष्ठ 216)

कहानी में एक दो प्रसंग ऐसे थे जो आम से थे लेकिन उनको ऐसे बढ़ा चढ़ाकर बताया गया है जैसे बहुत पेचीदा रहे हों। इधर मैं ज्यादा कुछ न कहते हुए बस इतना कहूँगा कि अगर किसी दो मंजिला मकान में एक व्यक्ति पहली मंजिल पर न मिला हो और आपको पता है वह नीचे भी न आया है तो साफ बात होती है कि वह छत पर गया होगा। यह एक आम सी बात है जो कि ठीक ठाक बुद्धि वाला कोई भी व्यक्ति समझ जायेगा लेकिन इस बात का पता लगना एक बड़ी घटना सा बताया गया है। एक पल को मान भी लें कि जिस व्यक्ति के साथ यह घटित हो रही है वह घबराया हुआ था और इस वह यह न समझ पाया लेकिन उसका दोस्त घबराया हुआ नहीं था। वह यह चीज पॉइंट आउट कर सकता था। यह थोड़ा अटपटा लगा। कहानी में डर का माहौल जो बनाया गया है वह इतना खौफनाक नहीं बना है जितना कि उनके किरदारों पर इसकी प्रतिक्रिया होती दिखाई गयी है। यह भी ठीक करने की जरूरत थी।

कहानी में डायन की बात को भी साफ़ नहीं किया गया है। क्या डायन थी? या  नहीं थी इसका भी पता नहीं लगता है। कहानी में एक प्रसंग में ही डायन का जिक्र आता है लेकिन वह कही भी इतनी साफ तरीके से नहीं दिखी है। लेखक को भी डायन पूरे उपन्यास में दिखती नहीं है। ऐसे में कई सवाल यह मन में छोड़ जाता है। क्या चैलेंज होटल से डायन का साया खत्म हुआ? क्या वह आबाद हुआ ? उसके मालिक का क्या हुआ? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो कि अभी भी अनुत्तरित हैं।

उपन्यास के खत्म होने पर एक उपसंहार होता तो बढ़िया रहता। उपसंहार से काफी चीजें साफ हो सकती थी।

कई जगह अनावश्यक रूप से अंग्रेजी डाली गयी है उससे बचा जा सकता था विशेषकर ऐसी जगह जहाँ वर्णन किया जा रहा है। किरदारों के बीच की बातचीत में फिर भी एक बार को चलता है। लेखक एक शायर हैं तो उनसे उम्मीद रहती है कि वह भाषा एक स्तर की प्रयोग करें। वह यह मानकर न चलें कि उनको पढ़ने वाला व्यक्ति नासमझ है और उनके लिखे तो न समझ पायेगा। मैं यह इसलिए भी कह रहा हूँ क्योंकि कई बार लगता है कि उन्होंने जानबूझकर भाषा को हल्का करने की कोशिश की है जबकि मुझे मालूम है कि वो बेहतर भाषा लिख सकते हैं।

अंत में यही कहूँगा कि चैलेंज होटल एक बार पढ़ा जा सकता है। उपन्यास को मन में हॉरर की अपेक्षा रखकर नहीं पढ़ेंगे तो इसका ज्यादा लुत्फ़ ले पाएंगे। मैं अक्सर यही करता हूँ। 

यह लेखक का पहला हॉरर उपन्यास है। मुझे उम्मीद है भविष्य में लेखक द्वारा लिखे गये और हॉरर उपन्यास पढ़ने को मिलेंगे।

रेटिंग: 2/5

उपन्यास की कुछ पंक्तियाँ जो मुझे पसंद आई:
निसंदेह व्यक्ति के अहम् और प्रकृति के बीच सीधा कोई विरोधाभासी सम्बन्ध है। जिस बिंदु पर व्यक्ति अहम् पालता है उसी बिंदु पर प्रकृति अमुक व्यक्ति को तिगनी का नाच नचाने के लिए कमर बाँध लेती है या कहो कि साजिशे रचती है। 
और प्रकृति की साजिशें कभी नाकाम नहीं होती। (पृष्ठ 22)

अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक से जाकर खरीदकर पढ़ सकते हैं:
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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “चैलेंज होटल – एम इकराम फरीदी”

  1. सर m ikram faridi जी ने वेद प्रकाश शर्म जी के नायक विजय विकास को लेकर A Trerist उपन्यास लिखी है सर आप उसको पढ़ें मै जनाना चाहता हूँ कि उन्होंने विजय विकास को कैसे लिख है सर मैं आपकी समीक्षा पढ़कर बहुत से नावेल पढ़ा हूँ सर और A treriat आपकी समीक्षा पड़कर ही खरीदना चाहता हूँ

    1. जी, उपन्यास मेरे पास है…मैं जल्द ही पढ़कर उसके विषय में लेख लिखता हूँ… ब्लॉग पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए आभार… आते रहियेगा…..

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