अनुराग कुमार ‘जीनियस’ |
अनुराग कुमार ‘जीनियस’ जी उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर देहात की तहसील डेरापुर के अंतर्गत आने वाले एक छोटे से गांव महोई(पुराना नाम महुआ) में रहते हैं। अनुराग जी एक शिक्षक है।
अनुराग जी कहानियाँ और उपन्यास दोनों ही लिखते रहे हैं। उनकी कृतियाँ पत्रिकाओं में छपती रही है और अब तक उनके तीन उपन्यास आ चुके हैं।
कहानियाँ: घड़ी चोर,सही राह (चम्पक 2007 नवम्बर के प्रथम और द्वीतीय अंक में प्रकाशित), सुनील की बुद्धिमानी(चम्पक 2009 नवम्बर में प्रकाशित),संस्कार (सरस सलिल में 2008 में प्रकाशित ),विशवासघात (सरस सलिल 2008 में प्रकाशित)
उपन्यास: एक लाश का चक्कर (2017 में तुलसी पेपर बुक्स में प्रकाशित, 2019 में सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित),एक्सीडेंट एक रहस्यकथा (2018 में सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित),किस्मत का खेल (2020 में ई बुक रूप में सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित, पेपरबैक संस्करण 2020 में अपेक्षित)
आप अनुराग जी ईमेल के माध्यम से सम्पर्क कर सकते हैं। उनका ईमेल पता है:
anuragkumargenius77@gmail.com
उनके उपन्यास आप निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं:
एक लाश का चक्कर
एक्सीडेंट एक रहस्यकथा
किस्मत का खेल
‘एक बुक जर्नल’ की साक्षात्कार श्रृंखला की यह चौथी कड़ी है। अनुराग कुमार ‘जीनियस’ जी एक उभरते हुए युवा अपराध कथा लेखक हैं। इनके तीन उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं जिन्हें पाठकों ने सराहा है। हाल ही में उनका नया उपन्यास किस्मत का खेल ई बुक फॉर्मेट में प्रकाशित हुआ है। लॉकडाउन के खत्म होते ही उपन्यास का पेपरबेक संस्करण भी बाज़ार में उपलब्ध होगा। उम्मीद है आप सब ने पढ़ा होगा और अपनी राय से भी उन्हें अवगत करवाया होगा।
‘एक बुक जर्नल’ आपके समक्ष अनुराग जी का एक साक्षात्कार प्रस्तुत कर रहा है। अनुराग जी से लेखन और उनके जीवन से जुड़े प्रश्न इस साक्षात्कार के दौरान हमने पूछे। उम्मीद है यह साक्षात्कार आपको पसंद आएगा।
प्रश्न 1: अनुराग जी अपने विषय में पाठको को बतायें। आप कहाँ रहते हैं? आपकी शिक्षा दीक्षा कहाँ हुई। फिलहाल आप किधर कार्यरत हैं?
उत्तर 1: मेरा नाम अनुराग कुमार है। मैं उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर देहात की तहसील डेरापुर के अंतर्गत आने वाले एक छोटे से गांव महोई(पुराना नाम महुआ) में रहता हूँ। मेरी शुरुआती शिक्षा गाँव में ही हुई। श्री गांधी विद्यालय इंटर कॉलेज झींझक से मैंने हाईस्कूल किया। श्री राम रतन इंटर कॉलेज से मैंने इंटर(बारहवीं) किया। ग्रेजुएशन की पढ़ाई झींझक के श्री गौरी शंकर महाविद्यालय,जो छत्रपति शाहूजी महाराज कानपुर से संबंधित है, से किया। क्योंकि बंध कर कोई काम करना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है इसलिए जॉब आदि के लिए कभी मैंने सोचा नहीं। मेरा लक्ष्य एक उपन्यासकार बनना ही था। फिलहाल मैं कभी-कभी प्राइवेट स्कूल में टीचिंग कर लेता हूँ। कोचिंग में निरंतर पढ़ाता रहता हूँ। आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की मदद करने की भी कोशिश करता हूँ।
प्रश्न 2: अनुराग जी आपके नाम के आगे लिखा ‘जीनियस’ मन में एक कौतुहल सा जगाता है। यह उपनाम आपने कैसे जोड़ा? इसके पीछे क्या राज है? क्या आप पाठकों को इस विषय में कुछ बताना चाहेंगे। मुझे यकीन है पाठक भी इस उपनाम के कहानी जानना चाहेंगे।
एक लाश का चक्कर |
उत्तर 2: अपने नाम के साथ मैं जीनियस क्यों लिखता हूँ! इसके दो मुख्य कारण है। पहला कारण तो यह है कि मैं जिस क्षेत्र से आता हूँ वहाँ आज भी जात पात छुआछूत (हालाँकि अब पहले से थोड़ा बहुत कम हुआ है। पर लोगों में जितनी जागरूकता आनी चाहिए उतनी अभी भी नहीं आई है) का माहौल है। लोग एक दूसरे में भेदभाव करते हैं। मुझे यह कभी पसंद नहीं आया। मेरी बोलचाल, उठना बैठना उन सभी लोगों से होता था जो मेरी विचारधारा के हैं। वे सभी वर्गों से आते हैं। पर कई लोगों को यह पसंद नहीं था। आज भी नहीं है। लोग आकर मुझसे कहते थे कि तुम पंडित हो तुम्हें यह शोभा नहीं देता। वे ऐसे कहते जैसे मैंने कोई अपराध किया हो। मुझे ऐसी बातों से चिढ़ होने लगी और मैंने अपने नाम के आगे लिखे चतुर्वेदी (पहले मैं अनुराग कुमार चतुर्वेदी लिखता था) को हटा दिया। मैं अपना पूरा नाम ही बदलना चाहता था। उस समय मैं उपन्यास बहुत पढ़ता था और चाहता था कि उन उपन्यासकारों के जैसा ही मेरा कोई नाम हो। इसीलिए मैंने समीर का नॉवेल जब पढ़ा तो अपना नाम झील रख लिया था। झील नाम से मैंने कई कहानियाँ दिल्ली प्रेस पत्र समूह में भेजी थी। हालाँकि इस नाम से कोई कहानी छपी नहीं। मैं भी इस नाम से संतुष्ट नहीं था। एक दिन मैंने पढ़ते वक्त जीनियस शब्द देखा जो मुझे रोचक लगा और मैंने अपने नाम के आगे झील की जगह जीनियस जोड़ दिया।
प्रश्न 3: साहित्य के प्रति आपका लगाव कैसे हुआ? क्या आप अपनी उन स्मृतियों को साझा करना चाहेंगे जिसके चलते आपका साहित्य के पठन पाठन के प्रति झुकाव हुआ?
उत्तर 3: साहित्य के प्रति मेरा झुकाव बचपन से ही था। उस समय फोन तो थे नहीं, टीवी भी एक दो घरों में ही हुआ करती थीं। मनोरंजन आदि के लिए किताबें ही एकमात्र सहारा थी। घर में पत्रिकाओं के साथ ढेर सारे उपन्यास आते थे। हालाँकि उपन्यास छिपकर पढ़ना पड़ता था। बच्चों को उपन्यास पढ़ने की इजाजत नहीं थी। उस समय मनोज, रानू, अशोक बाजपेई, गुलशन नंदा, वेद प्रकाश शर्मा, अनिल मोहन, परशुराम शर्मा, केशव पंडित, अमित खान, कर्नल रंजीत और भी बहुत से जासूसी लेखकों को पढ़ा। सुरेंद्र मोहन पाठक जी को बहुत बाद में पढ़ा। इनके अलावा प्रेमचंद्र जी को ज्यादा पढ़ा। पर पता नहीं क्यों फणीश्वरनाथ रेणु की रचनाएं मुझे ज्यादा भाती थी।
प्रश्न 4: अच्छा ये बताइये वो कौन से लेखक हैं जिनका असर आप खुद पर देखते हैं? कौन से लेखक ऐसे हैं जिन्होंने आपको लिखने को प्रेरित किया? मैं यह भी जानना चाहूँगा कि आपने लिखने का विचार कब बनाया?
उत्तर 4: पढ़ने को तो मैं सब कुछ पढ़ता था लेकिन जब बात लिखने की आई तो मन जासूसी साहित्य की तरफ ज्यादा झुका। वेद प्रकाश शर्मा जी का प्रभाव मुझ पर ज्यादा था और वही मेरे लिए लिखने की प्रेरणा बने। मैं उनके जैसा ही लिखना चाहता था उनके जैसा ही बनना चाहता था। बाद में जब एसएम पाठक जी को पढ़ा तो उनका प्रभाव भी मुझ पर बहुत गहरा पड़ा। मेरे उपन्यासों में इसीलिए इन्हीं दोनों महान लेखकों की झलकियाँ पाठकों को खूब मिलती हैं।
मैं उस समय कक्षा 9 में पढ़ता था जब मन में लिखने का ख्याल आया। धीरे-धीरे दिमाग में कहानियाँ जन्म लेने लगी। सबसे पहले मैंने ‘बदला’ नाम से एक उपन्यास लिखना शुरू किया। कुछ पृष्ठ लिखें। फिर मन उचट गया। वह उपन्यास आज तक पूरा नहीं हो पाया। कुछ महीनों बाद फिर मन में लिखने की तरंग उठी। इस बार मैंने कुछ कहानियां लिखी जो कुछ तो अधूरी ही रही और कुछ पूरी हुई। एक दो साल तक यही सिलसिला चलता रहा। इसके बाद फिर मैंने जो लिखा उसे पूरा ही नहीं किया केवल एक दो रचनाओं को छोड़कर। मैंने उपन्यास दो सस्पेंस थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री ही लिखें पर कहानियाँ सामाजिक हॉरर रोमांटिक और भी कई विधाओं में लिखी।
प्रश्न 5: अनुराग जी आप की पहली लिखी कृति कौन सी थी और वो कृति कौन सी थी जिसका प्रथम बार प्रकाशन हुआ था?
उत्तर 5: मेरी पहली रचना एक उपन्यास था जिसका नाम बदला था जो कभी पूरा नहीं हुआ। मेरी घड़ी चोर वह प्रथम रचना थी जो चंपक में सन 2007में छपी थी।
प्रश्न 6: मेरी जानकारी के अनुसार अब तक आपके तीन उपन्यास आ चुके हैं। यह सभी उपन्यास अपराध साहित्य के अंतर्गत आते हैं। आपको अपने उपन्यासों को लिखने की प्रेरणा किधर से मिलती है? मसलन आपको अपने नवीनतम उपन्यास किस्मत का खेल लिखने का ख्याल कैसे आया था? वो क्या घटना थी जिसने आपको कलम चलाने के लिए मजबूर कर दिया था?
एक्सीडेंट एक रहस्य कथा |
उत्तर 6: लिखने की प्रेरणा तो मुझे आसपास के माहौल से घटी घटनाओं से मिलती है। इनके अलावा कभी-कभी सोते वक्त दिमाग में कोई विचार कौंध जाता है और दिमाग में फिल्म सी चलने लगती है। मजबूरन उठकर मुझे वह विचार कॉपी में नोट करके रखना पड़ता है। ऐसी बहुत सी कहानियाँ हैं जिनके आइडिया मुझे सोते वक्त आए जैसे स्टोर्मी नाइट, गुनहगार, काली मंदिर का रहस्य, दोस्त, आसमां, नौकर आदि।
अगर मैं बात करूँ अपने नवीनतम उपन्यास किस्मत का खेल की तो इसे लिखने के पीछे एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। मैं अपने घर पर चारपाई पर लेटा था। पास के गाँव में भागवत कथा चल रही थी। माइक पर आ रही वक्ता की आवाज पर मेरा ध्यान ना चाहते हुए भी चला जाता था। वक्ता की आवाज बहुत तेज थी। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। सोच रहा था पता नहीं लोग इतने तेज शोर उत्पन्न करके कौन सी खुशी कौन सा ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। खैर, यह दूसरा विषय है। ना चाहते हुए भी मुझे वक्ता की बात सुननी पड़ रही थी। वक्ता उस समय राजा जनमेजय की कथा सुना रहा था। एक ऋषि जन्मेजय के बारे में कुछ भविष्यवाणियाँ करता है पर राजा को इन बातों में विश्वास नहीं होता है लेकिन उसकी सभी भविष्यवाणी सही साबित होती है। यह बात मुझे बड़ी रोचक लगी और मैं सोच में पड़ गया। दिमाग में सोच के घोड़े बहुत दूर तक निकल गए और जब वापस लौटे तो किस्मत का खेल की कथावस्तु उनके साथ थी।
प्रश्न 7: मैंने देखा है आप बीच में फेसबुक में कहानियाँ भी लिख रहे थे। आपने एक हॉरर कहानी और एक सामाजिक कहानी लिखी थी। इनको लिखने का ख्याल आपको कैसे आया? क्या आप हॉरर या सामाजिक शैली में भी उपन्यास लिखने की इच्छा रखते हैं?
उत्तर 7: मन बदलने की वजह से। ताकि एक जैसा लिखते लिखते कहीं ऊब ना जाऊँ। आगे मैं एक हॉरर उपन्यास ‘मुर्दे की मौत’ और ‘घड़ी का कत्ल’ लिखने की भी योजना बना रहा हूं। इसके अलावा गोदान के जैसा ग्रामीण परिवेश वाला एक सामाजिक उपन्यास लिख़ने का मेरा मन है।
प्रश्न 8: अनुराग जी जैसे जैसे वक्त और तकनीक आगे बढ़ रही है वैसे वैसे कहानियों के कहने के माध्यम भी बदल रहे हैं। नये माध्यम जुड़ते जा रहे हैं। जैसे आजकल लॉक डाउन चल रहा है लेकिन पाठकों के लिए ई बुक रिलीज़ कर दी गयी हैं। आपकी किताब किस्मत का खेल भी ई बुक के तौर पर ही रिलीज़ हुई है। इसके आलावा ऑडियो फॉर्मेट में भी किताबें आई हैं। आप इन माध्यमो को किस तरह देखते हैं? आपके लिए इनकी क्या खूबी और क्या कमियाँ हैं?
उत्तर 8: सही बात है। आज कहानी उपन्यास सिर्फ हार्ड कॉपी में और ई-फॉर्मेट में ही नहीं पढ़े जाते बल्कि ऑडियो फॉर्मेट में भी सुने जा रहे हैं। इससे फायदा ही है कि अपनी बात कई पाठकों तक आसानी से पहुँच जाती है। हालाँकि ऑडियो फॉरमैट अभी नया है। धीरे-धीरे यह और तेज रफ्तार पकड़ेगा।
प्रश्न 9: क्या आप अभी किसी नई कृति पर काम कर रहे हैं? अगर हाँ तो उसका विषय क्या है? अगर आप बताना चाहें तो पाठकों को बता सकते हैं?
उत्तर 9:इस समय मैं एक सस्पेंस थ्रिलर मुर्दे की जान खतरे में और एक रोमांटिक थ्रिलर आई लव हेट स्टोरी पर काम कर रहा हूं।
प्रश्न 10: अनुराग जी अभी लॉकडाउन का वक्त चल रहा है। सभी अपने-अपने घरों में हैं। ऐसे में आप अपना समय कैसे व्यतीत कर रहे हैं? आप अपने पाठको को इस मुश्किल घड़ी में क्या सलाह देना चाहेंगे?
उत्तर 10: कोरोना नामक महामारी की वजह से पूरा देश लॉकडाउन हुआ पड़ा है पर ग्रामीण क्षेत्र में थोड़ी छूट है ताकि किसान खेती बाड़ी का काम आसानी से निपटा सकें। क्योंकि मैं भी एक गांव में रहता हूं तो उस मिली छूट के कारण घर में एकदम कैद नहीं हूँ। खेती बाड़ी का काम देखने खेतों पर कुछ देर चला जाता हूँ। बाकि टाइम घर पर अपने लेखन कार्य में व्यस्त रहता हूँ।थोड़ा टाइम पास मोबाइल पर कोई गेम या मूवी वगैरह देखकर कर लेता हूँ। यूट्यूब पर अपना एक चैनल बनाने की कोशिश भी कर रहा हूँ जिसमें शिक्षाप्रद,कॉमेडी, हॉरर वगैरह सभी तरह की कहानियाँ होंगी।
किस्मत का खेल |
बाकी अपने पाठकों से तो यही कहूँगा कि अपना नजरिया सोच अगर पॉजिटिव रखे हैं तो इन बुरे हालातों में अच्छे से ना सिर्फ लड़ पाएंगे बल्कि विजय भी प्राप्त कर लेंगे। लॉक डाउन की वजह से जो वक्त मिला है उसका उपयोग हम अपनी किसी पुरानी क्रिएटिव एक्टिविटी, जिसे पूरा नहीं कर पाए हों, को पूरा करने में कर सकते हैं। अपने परिवार के साथ इंजॉय कर सकते हैं। हर मुश्किल घड़ी एक परीक्षा की तरह आती है जो हमें कुछ ना कुछ सिखाती जरूर है। हमें हमारी कमियां बताती है। समझदारी इसी में है कि उन कमियों को पता कर उन्हें खत्म कर जीवन जीने के लिए नए-नए सिस्टम्स जो बेहतर हों उन्हें अपना लेना चाहिए और जिन सिस्टम्स की वजह से सभी को दिक्कत हो इनसे कोई फायदा ना हो उन्हें छोड़ देने में ही भलाई है।
प्रश्न 11: आखिर में अनुराग जी मैं यह चाहूँगा कि अगर इन प्रश्नों के अलावा भी आप अपने पाठकों से कुछ कहना चाहते हों, उन्हें कुछ बताना चाहते हों तो आप बता सकते हैं।
उत्तर 11: अंत में अपने पाठकों से यही कहूंगा कि मुझ जैसे नए लेखकों को भी पढ़ें उन्हें भी मौका दें। तभी मुझ जैसे लेखक बढ़िया लिखने के लिए प्रेरित हो सकेंगे। आपके सहयोग से ही यह संभव है कि आगे भविष्य में नए लेखकों में से कोई वेद प्रकाश शर्मा सुरेंद्र मोहन पाठक, गुलशन नंदा, ओम प्रकाश शर्मा प्रेमचंद्र वगैरह सामने आएंगे।
तो यह थी अनुराग कुमार जीनियस जी से एक छोटी सी बातचीत। यह साक्षात्कार आपको कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
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साक्षात्कार
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
अनुराग कुमार जी एक नेक हृदय व्यक्ति हैं। सरल व्यक्तित्व के धनी। उनके उपन्यासों की कथावस्तु रोचक होती है।
प्रस्तुत साक्षात्कार बहुत अच्छा है और उनके विषय में अच्छी जानकारी प्रदान करता है।
धन्यवाद।
जी, आभार।
इनका नावेल जैसे ही लॉकडौन ख़त्म होगा तीनो को पढ़ना है
जी जरूर पढ़ियेगा और बताइयेगा कि कैसी हैं।
जी मैं भी जा आधी नींद मे होता हूँ, तब मुझे भी कई रोचक आईडिया आते है कहानियो के। बस फर्क यह है कि मैं अपने आलस मे उठकर उन्हें अपनी आइडिया वाली नोटबूक मे नही लिखता। फिर भूल जाता हूँ।
बढ़िया साक्षात्कार था।
बस एक सवाल था।
अनुराग जी की आने वाली उपन्यास का नाम "मुर्दे की जान खतरे मे" मिलता जुलता है एक अन्य लेखक की रचना से।
प्रतिलिपि पर अनिल गर्ग नाम के लेखक की एक कृती का यही नाम है।
क्या अनुराग जी ही अनिल गर्ग है?
जी नींद में कई बार मुझे भी ख्याल आते हैं। अगली बार लिख दीजियेगा। उपन्यासों के नाम कई बार एक जैसे हो जाते है। अनुराग जी ही गर्ग जी हैं इसका मुझे आईडिया नहीं है। बहुत दिनों बाद आप ब्लॉग पर दिखे। देखकर अच्छा लगा। उम्मीद है सब कुछ ठीक होगा।