आनन्द कुमार सिंह प्रभात खबर अखबार में सीनियर रिपोर्टर हैं। वह कोलकता में रहते हैं। उन्होंने अब तक दो किताबें : ‘हीरोइन की हत्या’ और ‘रुक जा ओ जाने वाली’ लिखी हैं। जहाँ ‘हीरोइन की हत्या’ एक रहस्यकथा है वहीं ‘रुक जा ओ जाने वाली’ एक रोमांटिक लघु-उपन्यास है।
वह अब अपने तीसरे उपन्यास के ऊपर काम कर रहे हैं। जब वह रिपोर्ट या उपन्यास नहीं लिख रहे होते हैं तो उन्हें किताबें पढ़ना, शतरंज खेलना, संगीत सुनना और फिल्में देखना पसंद है। वह पिछले तीन वर्षों से कोलकता प्रेस क्लब के चेस चैंपियन हैं।
अगर आप उनसे सम्पर्क करना चाहते हैं तो उन्हें निम्न ई मेल अड्रेस पर मेल करके उनके साथ सम्पर्क कर सकते हैं:
anand.singhnews@gmail.com
उनके उपन्यास अमेज़न किंडल पर उपलब्ध हैं और आप निम्न लिंक पर जाकर खरीद कर पढ़ सकते हैं:
हीरोइन की हत्या
रुक जा ओ जाने वाली
प्रश्न: कुछ अपने विषय में पाठको को बताईये? आप फिलहाल क्या कर रहे हैं? आप किधर कार्यरत हैं? बचपन किधर बीता?
उत्तर: मेरा जन्म कोलकाता में हुआ था लेकिन दो वर्ष की उम्र में ही पिताजी की नौकरी की वजह से हम लोग रेणुकूट चले गये थे। मेरे बचपन की यादें वहीं की हैं। पहाड़, ठंड के वक्त चारों ओर धुंध, बारिश के वक्त पत्तों से छनकर आने वाली खुशबू, यह सबकुछ आज भी ज़हन में ताज़ा हैं। पिताजी के नौकरी बदलने पर हम लोग फिर बाद में कोलकाता आ गये और यहीं मेरी बाकी की पढ़ाई भी हुई। पिछले करीब 20 वर्षों से मैं पत्रकारिता में हूँ। पेशे से सीनियर रिपोर्टर। एक राष्ट्रीय दैनिक के साथ पिछले करीब 13 वर्षों से जुड़ा हूँ। पत्रकारिता में रहते हुए तमाम तरह के, तमाम तबके के लोगों के साथ मुलाकात का अवसर मिला। यह सबकुछ लेखनी में काफी काम आता है।
प्रश्न: पाठक के तौर पर आपको किस तरह के उपन्यास भाते हैं – विशेषकर किस शैली (genre) के? लेखक के तौर पर आप किन तरह के उपन्यासों से प्रेरणा लेते हैं? क्या दोनों में फर्क है?
उत्तर: एक पाठक के तौर पर विशेषकर मुझे अपराध कथा(क्राइम), रहस्यकथा(मिस्ट्री), साइकोलॉजिकल मिस्ट्री, टाइम ट्रैवेल, विज्ञान गल्प (साइंस फिक्शन) सहित वह सभी किताबें अच्छी लगती हैं जो अच्छी तरह लिखी गयी हों। लेकिन यह भी सच है कि पढ़ते वक्त मेरी प्राथमिकता अपराध कथा के उपन्यास ही रहते हैं। लेकिन मुझे रोमांटिक, हॉरर, Heist, सबकुछ पसंद आते हैं। जरूरी यह है कि लिखा बेहतरीन गया हो।
जहाँ तक प्रेरणा लेने का सवाल है तो मैं ज्यादातर क्राइम रिलेटेड नॉवल पढ़ता हूँ तो वहीं से प्रेरित होना स्वाभाविक है। लेकिन मेरी यह सप्रयास कोशिश रहती है कि जैसे मैंने पढ़ा है उससे अलग लिखूँ, उसका दोहराव न करूँ। कोई जाने या न जाने मुझे तो पता है न। अगर मैं अनुवाद करता हूँ तो मेरे लेखक होने का कोई मतलब नहीं है। वह फिर अनुवादक का काम हो गया। प्रेरित किसी भी जॉनर से हुआ जा सकता है। आप लिखने के स्टाइल से मंत्रमुग्ध हो सकते हैं, आपको एक खास डायलॉग, एक खास लहजा प्रेरित कर सकता है। लेकिन ईमानदाराना कोशिश यही होनी चाहिए कि जो आपने पढ़ लिया है उसे न लिखें।
प्रश्न: लेखन का ख्याल कैसे आया? क्या बचपन से ही लिखते आ रहे हैं? अगर ऐसा है तो उस वक्त क्या लिखते थे?
हीरोइन की हत्या |
उत्तर: बचपन में तो कहानी वगैरह कभी नहीं लिखा (स्कूली कार्य छोड़ दें तो) लेकिन पढ़ने का शौक बहुत था। मैंने कहानियां वगैरह पढ़ना बहुत पहले ही शुरू कर दिया था। अगर मैं बहुत गलत नहीं हूँ तो तीसरी-चौथी क्लास से ही मैं मधु मुस्कान, नंदन, चंपक, चंदामामा, कॉमिक्स, एससी बेदी की राजन-इकबाल सीरीज वगैरह खूब पढ़ता था। उस वक्त जो मिल जाये सब पढ़ लिया करता था।
पाँचवीं तक आते-आते इक्का-दुक्का उपन्यास भी कहीं से पढ़ने को मिल जाते थे। मुझे वेद प्रकाश शर्मा के नॉवल खूब भाते थे। मैंने अस्सी-नब्बे के दशक में निकले वेद प्रकाश शर्मा और फिर बाद में सुरेंद्र मोहन पाठक के तकरीबन सभी नॉवल पढ़े होंगे।
लेखन का ख्याल तो हमेशा ही रहा। मैं एक डे ड्रीमर हूँ। अपने पसंदीदा लेखकों की तरह लिखने, उनकी तरह प्रसिद्ध होने का सपना देखता रहता था। शायद यह वक्त की बात थी कि मैं लिखना शुरू करूं। बीच में एक मैगजीन का संपादन भी किया। उसके लिए कहानी भी लिखता था। लेकिन वह सोशल कहानियां होती थी। बाद में सोशल मीडिया पर कुछेक कहानी लेखन प्रतियोगिताओं में भाग लिया। उनमें जीत मिलने से लगा कि सचमुच लिख सकता हूँ। फिर कुछ दोस्तों के कहने, विशेषकर यहाँ मैं राजीव रोशन का नाम लेना चाहूंगा जिन्होने लिखने के लिए प्रेरित किया।
प्रश्न: आपने अब तक दो उपन्यास लिखे हैं। दोनों ही जुदा शैली के हैं। अपने उपन्यासों के विषय में बताइये? उनका ख्याल कैसे आया? किरदारों की प्रेरणा किधर से मिली? रिसर्च के लिए क्या किया? क्या दो विभिन्न शैलियों के उपन्यास लिखने में अलग तरह का लेखन किया? अगर हाँ, दोनों में फर्क क्या था? व्यक्तिगत तौर पर आपको कौन सी शैली लिखनी भाई है?
उत्तर: मेरा पहला उपन्यास, हीरोइन की हत्या, था। यह एक मर्डर मिस्ट्री है जिसमें एक्शन, एडवेंचर,सस्पेंस सबकुछ समाहित करने की मैंने कोशिश की। प्लॉट कैसे सूझा यह कहना कठिन है लेकिन सोचते हुए अचानक यह ख्याल आया था कि क्या हो अगर किसी पर कत्ल का इल्जाम लगे और उसे कुछ याद न हो। यह सच है कि ऐसी फिल्में शायद बनी हैं लेकिन मेरे जेहन में जो कहानी पनप रही थी वह बिल्कुल अलग थी। जो नायक है वह एक सुलझा हुआ व्यक्ति है लेकिन उसकी याद्दाश्त दगा दे गयी है। पुलिस उसे कातिल मान रही है और वह पुलिस के पहरे में एक अस्पताल में कैद भी है। तो मैंने सोचा कि अगर किसी पर कत्ल का इल्जाम लग जाये और उसे, from a scratch, कत्ल की पहेली को हल करना रहे तो वह क्या करेगा। उसे बिल्कुल एक आम इंसान की तरह बर्ताव करते हुए उसे कत्ल की गुत्थी का समाधान करना होगा। उसके पास कोई सुपरपावर नहीं। न ही पैसे हैं। उसपर से उसके पीछे कोई पेशेवर कातिल भी पड़ा है। बस लिखना शुरू किया। किताब अपने आप आगे बढ़ती रही। किरदार जीवंत होकर अपनी राह खुद तलाशते गये।
दूसरी किताब, रुक जा ओ जानेवाली है। इसमें एक व्यक्ति अपने प्यास को पाने के लिए क्या कर सकता है वह दिखाया गया है। मुख्य किरदार का अपनी पत्नी से तलाक हो जाता है लेकिन वह उसे भुला नहीं पाता। वापस उसे पाने के लिए वह तड़प उठता है।
देखिए, मेरे लेखन कैरियर का यह शुरूआती वक्त है। मैंने सोचा कि मुझे तमाम तरह के एक्सपेरिमेंट्स करने चाहिए। अगर मिस्ट्री थ्रिलर लिखा है तो एक रोमांटिक भी लिखकर देखूं। लिखने में कामयाब रहा।
यह सवाल उठ सकता है कि दोनों को लिखने में क्या फर्क है- तो मुझे लगता है कि कोई फर्क नहीं है। कहानी, कहानी होती है। जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि लिखा अच्छी तरह जाना चाहिए। पाठक लेखनी के साथ खुद को कनेक्ट कर सकें। यह सही है कि हीरोइन की हत्या ज्यादा पढ़ी गयी लेकिन रुक जा ओ जाने वाली को जिन्होंने भी पढ़ा उससे वह बेहद कनेक्ट हुए। उन्हें खूब पसंद आई।
जहाँ तक रिसर्च की बात है तो दोनों ही कहानियों में रिसर्च के नाम पर कुछेक जानकारियाँ ही थीं जो कि इंटरनेट या फिर दोस्तों को फोन करके जानी जा सकती थी। वही मैंने भी किया। रिसर्च के लिए इंटरनेट और दोस्तों का सहारा लिया। व्यक्तिगत तौर पर मुझे क्राइम लेखन अधिक पसंद है। मेरा अधिकांश फोकस इसपर ही रहेगा। लेकिन कोई अच्छा सब्जेक्ट सूझा तो रोमांटिक नॉवल फिर से जरूर लिखना चाहूँगा।
प्रश्न: आपके पहले उपन्यास का नायक एक प्राइवेट डिटेक्टिव है। क्या पाठक इस डिटेक्टिव के और भी उपन्यास भविष्य में देखेंगे? क्या आप एक श्रृंखला लिखने के इच्छुक हैं? अगर हाँ तो एकल उपन्यास और श्रृंखला में आपको क्या ज्यादा आकर्षित करता है और क्यों?
प्रश्न: आप कोलकता में रहते हैं लेकिन पहले उपन्यास की पृष्ट भूमि मुंबई है। क्या आपने इसके लिए कोई विशेष शोध किया था?अगर हाँ तो क्या? कोलकता भी एक खूबसूरत शहर है। क्या इस शहर को केंद्र में रखकर भविष्य में कुछ लिखने की आपकी योजना है?
उत्तर: मैं कोलकाता में रहता हूँ लेकिन पहले उपन्यास की पृष्ठभूमि मुंबई थी। दरअसल मुंबई के साथ अधिकांश लोग कनेक्ट कर सकते हैं। फिल्मों आदि के जरिये उससे वह परिचित भी होते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि कोलकाता कभी मेरी किताब का हिस्सा नहीं बनेगा। मुंबई की सेटिंग दिखाने के लिए थोड़ी मेहनत जरूर करनी पड़ी थी क्योंकि मुझे उसके बारे में सतही जानकारी ही थी। इसके लिए मैंने इंटरनेट का ही सहारा लिया था।
रुक जा ओ जाने वाली |
प्रश्न: आपने अपनी पहली किताब के लिए किंडल की सेल्फ पब्लिकेशन सर्विस को चुना। आपको इसमें क्या भाया? यह साधारण प्रकाशकों से किस तरह भिन्न है? और इस पर प्रकाशन की प्रक्रिया के अनुभव आपके कैसे रहे?
उत्तर: किसी नये लेखक के लिए शायद लिखने से अधिक मुश्किल उसकी किताब को छपवाना होता है। किंडल सेल्फ पब्लिशिंग किसी नये लेखक के लिए आदर्श जगह है। अब तक का मेरा अनुभव काफी अच्छा रहा है। इसमें सबकुछ पारदर्शी रहता है और इसके नियंत्रण की चाबी आपके ही हाथों में होती है।
प्रश्न: आपका अगला प्रोजेक्ट क्या है? वह क्या जासूसी है या किसी और शैली (genre) का होगा।
उत्तर: मेरा अगला प्रोजेक्ट भी पहले उपन्यास की तरह ही मिस्ट्री थ्रिलर जॉनर का होगा। इसमें भी मैं अपनी पहली किताब के नायक, यश खांडेकर को रिपीट करने वाला हूँ। अभी तक उपन्यास का नाम नहीं रखा है। यह अभी प्राथमिक चरण में है। लेकिन इतना जरूर कह सकता हूँ कि यह सस्पेंस और थ्रिल के साथ रोमहर्षक होगा। कोशिश रहेगी कि पाठक ऐसी किताब पढ़ें जो उनके लिए यादगार हो।
प्रश्न: कुछ दिनों पहले आपकी किताब एक पायरेसी करने वाले एप्प पर दिखी थी। ऐसा जब होता है तो लेखकों के लिए उसके मायने क्या होते हैं? क्या अपने पाठको से आप इस विषय पर कुछ कहना चाहेंगे?
उत्तर: हिंदी फिक्शन, पहले ही काफी बुरे दौर से गुजर रहा है। प्रकाशन संस्थाओं के अभाव और स्तरीय लेखन की कमी से वह जूझ रहा है। ऐसे में अगर किसी नवोदित लेखक की उपन्यास की ही पाइरेसी हो तो वह चिंताजनक है। वैसे मैंने अपनी किताब उस ऐप्प से हटवा दी थी। आगे देखते हैं क्या होता है।
प्रश्न: हिन्दी में रोमांचक बाल साहित्य की कमी है। हम हिन्दी के पाठकों के लिए तो लिए तो तरसते हैं लेकिन नए पाठक नहीं बना रहे हैं। आपका इसके ऊपर क्या विचार है? क्या बाल साहित्य के प्रति आपकी रूचि है? बांगला में तो बाल साहित्य काफी समृद्ध है। हिन्दी में इतना नहीं दिखता है। आपका इसके ऊपर क्या ख्याल है? भविष्य में क्या आप इस विधा में भी हाथ अपनाएंगे?
उत्तर: सच कहूँ तो इस संबंध में मैंने सोचा नहीं है। यह सही है कि विश्व के कई बड़े लेखक अपनी अन्य किताबों के साथ-साथ बाल साहित्य भी लिखते हैं। शायद भविष्य में ऐसा करूं। फिलहाल इसपर नहीं सोचा।
प्रश्न: उपन्यास के आलावा आपके कुछ सोशल मीडिया लिंक्स हैं जहाँ पाठक आपके काम का आनंद ले सकते हैं? उदाहरण के लिए किसी लघु का लिंक इत्यादि।
प्रश्न: आप चूँकि बंगाल में ही रहते हैं तो क्या आपके उपन्यासों के बांग्ला संस्करण भी आएंगे? क्या इस ओर कुछ कार्य किया जा रहा है?
प्रश्न: आपकी नजर में एक अच्छे उपन्यास में क्या होना चाहिए?
उत्तर: किसी भी अच्छे उपन्यास में सबसे पहले तो इंटरटेनमेंट होना चाहिए। ऐसा मनोरंजन जिसमें पाठकों को मजा आये, वह उन्हें इनगेज करे। यह इंटरटेनमेंट उन्हें सस्पेंस में रखकर, उनका दिल धड़काकर, उन्हें स्तब्ध करके भी किया जा सकता है। उपन्यास में बोरियत से मुझे चिढ़ है। अगर आप सीरियस बातें भी लिखना चाहते हैं तो उसे इस तरह लिखा जाना चाहिए कि पाठकों को वह इनगेज करके रख सके। कम से कम पाठकों को ऐसा लगना चाहिए कि उन्हें ठगा नहीं गया। उन्हें इंटरटेन करने की ईमानदाराना कोशिश की गयी। निजी तौर पर उपन्यास में मुझे पेस यानी गति पसंद है। किताब की गति तेज होनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि ठहराव वाले उपन्यास अच्छे नहीं होते लेकिन क्राइम संबंधी नॉवल में ठहराव वाले सिनारियो को हैंडल करने में सावधानी बरतनी चाहिए।
प्रश्न: किसी अच्छे लेखक में क्या गुण होने चाहिए?
उत्तर: मैं अभी उस मुकाम पर नहीं पहुंचा कि अच्छे लेखक के गुण बता सकूं लेकिन इतना जरूर है कि किसी भी लेखक में इमैजिनेशन होनी चाहिए। मैंने पाया है कि लेखकों में ऑब्जर्वेशन की आदत होती है। लोगों के हाव-भाव, उनका स्टाइल वह याद रखते हैं। अच्छा हो या बुरा, लेखक को अपनी बात कहने का सलीका जरूर पता होना चाहिए।
तो यह थी आनन्द कुमार सिंह जी से बातचीत। उम्मीद है एक बुक जर्नल की यह कोशिश आपको पसंद आएगी। अपनी राय टिप्पणी बक्से में जरूर दीजियेगा।
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बढ़िया साक्षात्कार। पढ़कर अच्छा लगा। आगे भी ऐसे साक्षात्कार पब्लिश करते रहें।
आभार हरीश भाई। साक्षात्कार आते रहेंगे। प्यार बनायें रखें।
Good interview.All the very best to Mr. Anand for his next novel.
शुक्रिया पुनीत भाई। प्यार बनाये रखें।
गुड इंटरव्यू
इत्तेफाक से दोनों इंटरव्यू कर्ता और लेखक से वाकिफ हूं
जी आभार गुरप्रीत जी। आशीर्वाद बनाएँ रखें।
बहुत बढ़िया। बहुत पसंद आया इंटरव्यू।
धन्यवाद, हितेश भाई।
बहुत बढ़िया साक्षात्कार है । लेखक को बहुत बहुत
बधाई ।
जी शुक्रिया। ब्लॉग पर आते रहिएगा।
बहुत बढ़िया साक्षात्कार है । लेखक को बहुत बहुत
बधाई ।
जी धन्यवाद। ब्लॉग पर आते रहिएगा।
बहुत सुंदर इंटरव्यू । आनंद जी को बधाई ।उनकी हेरोइन की हत्या मुझे काफी पसंद आई ।अगले उपन्यास का इन्तेजार रहेगा। शुभकामनाये
जी, हीरोइन की हत्या वाकई में एक सशक्त रहस्यकथा थी। मुझे भी उनके अगले उपन्यास का इंतजार है।
आनंद ही को बधाई और शुभकामनाये अगले उपन्यास का इन्तेजार है ।उम्मीद है पिछले उपन्यासों की तरह ही रोचक होगा।
जी, आभार। मुझे भी उम्मीद है।
बढ़िया साक्षात्कार था।
अखबारों मे अधिकतर अंग्रेज़ी लेखको के साक्षात्कार देखे थे, हिंदी लेखको के बहुत कम।
आपके ब्लॉग द्वारा हिंदी लेखको को थोड़ा बढ़ावा मिल रहा है।
वैसे अगले वर्ष तक मैं भी अपना उपन्यास छपवाने वाला हूँ।
हो सके तो मुझे छोटे-मोटे लेखक से भी 2-4 सवाल पूछ लीजियेगा कृपया।
जी, जरूर। आप अपनी डिटेल्स मुझे निम्न ईमेल आई डी पर भेज सकते हैं।
nainwal.vikas@gmail.com
मैं आपसे सम्पर्क कर लूँगा।
बहुमुखी प्रतिभा की झलक…,लाजवाब और बेहतरीन
साक्षात्कार । आशा है ऐसे और भी साक्षात्कार पढ़ने को मिलेंगे।
बहुत शानदार