चेहरा चोर

रेटिंग :2/5
कॉमिक्स २२ सितम्बर को पढ़ी 
संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक 
पृष्ठ संख्या : 56
प्रकाशक : राज कॉमिक्स 
आईएसबीएन : 9789332413412
लेखक : तरुण कुमार वाही 
चित्र : नरेश कुमार , इंकिंग : जगदीश, वेद प्रकाश, रंग : सुनील पाण्डेय 
सम्पादक : मनीष गुप्ता 
एक शैतान अपनी  शैतानी ताकत से कुछ लोगों के चेहरे को खाल समेत खींच रहा है। चेहरा लौटाने को तैयार है बशर्ते वो आदमी उसके बताये काम को अंजाम दे सकें ।  अब चूँकि चेहरा आदमी की पहचान है और उसके बिना वो कुछ  भी नहीं तो ये लोग वो काम करने को मजबूर हो जाते हैं जो वो आदमी इनसे करवाना चाहता है। 
क्या उन्हें उसके बताये काम को करने के बाद चेहरा वापस मिलता है? क्यों वो चेहरा चुरा रहा है? वो कैसे अपने शिकार चुनता है? और वो क्या काम हैं जो वो इन लोगों से करवाना चाहता है?
ये सब कॉमिक्स पढने के बाद आप जान पाएंगे। 
कुछ दिनों पहले राज कॉमिक्स की साईट से एक आर्डर दिया था और इस कॉमिक्स को मंगवाया था। कॉमिक्स की कहानी के विषय में बात बाद में करूँगा पहले एक दूसरी चीज पर बात करनी है।
इस आर्डर के बाद मैंने फैसला किया है कि मैं राजा पॉकेट बुक्स से कोई भी सामग्री नहीं खरीदूंगा। अब आप सोच रहे होंगे की ऐसा क्यों? वो इसलिए कि इस कॉमिक्स पढने के बाद मैं इसके कवर को देख रहा था तो मैंने एक बात नोटिस की। जहाँ कॉमिक्स का मूल्य लिखा होता है उधर एक स्टीकर चिपका था जिसपे कॉमिक्स का मूल्य ४० रूपये लिखा था। ये वो कीमत थी जो मैंने इस कॉमिक्स के लिए अदा की है।  मेरे मन में जिज्ञासा उत्पन्न हुई और मैंने वो स्टीकर निकाला तो मुझे उसके नीचे एक और स्टीकर दिखा जिसमे तीस रूपये इस कॉमिक्स का मूल्य लिखा था। और इस स्टीकर के नीचे भी एक और स्टीकर था। मैंने जब उसे आधा कुरेदा तो पाया कि उसके नीचे वाले स्टीकर में मूल्य 20 रूपये लगा था।  यानी ये कॉमिक्स  इतनी पुरानी है कि इसका मूल्य बीस रूपये था। और गजब बात ये है कि इसके नीचे भी एक स्टीकर लगा था लेकिन उस तक जाने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। कॉमिक्स उस वक्त नहीं बिकी तो राजा वाले अब इसी पे नये स्टीकर लगाकर बेच रहे हैं। मुझे समझ नहीं आता बीस रूपये के चीज को चालीस में बेचना कहाँ तक जायज है। अगर संस्करण नया है तो मुझे इसकी कीमत से कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन पुराने माल पर नये दाम चस्पा कर उसे बेचना मेरी नजरों में तो गलत है।  अब सोच रहा हूँ जो बाकी के कॉमिक्स मैंने इनसे मंगवाए हैं उनमे कितना मुझे ठगा गया है। मेरे मामा जो कॉमिक्स के शौक़ीन थे वो मुझे कहते थे कि राजा वाले पुराने कॉमिक्स को ही ऊंचे दाम में बेच रहे हैं तो मैं उनसे कहता था कि नहीं संस्करण नया होगा तो छपाई में ज्यादा पैसे तो लगेंगे ही  लेकिन अब समझ में आया वो सही ही कह रहे थे। अब मुझे कोई हैरानी नहीं होती कि पॉकेट बुक्स के धंधे क्यों चौपट हो रहे हैं। ऐसे ठग प्रकाशक जब तक रहेंगे तब तक ये होता ही रहेगा। अंग्रेजी और हिंदी में दूसरे कॉमिक्स प्रकाशन हैं और अब मैं उनसे ही अपनी खुराक लिया करूँगा। इन ठगों से तो दूरी भली।
इसके ऊपर सबसे नया चालीस वाला स्टीकर लगा था 

तीस वाले के नीचे ये स्टीकर था। गजब बात ये कि इसके नीचे भी एक स्टीकर था। 
अब आते हैं कॉमिक्स पर। कहानी जब आगे बढती है तो हमे दो चीजें देखने को मिलती हैं। एक तरफ तो कोई कुछ रसूखदार व्यक्तियों के चेहरे खींचकर उनसे आत्मघाती काम करवा रहा है और दूसरी तरफ एक व्यक्ति उन आदमियों के मरने के बाद अपनी पत्नी के सामने उनकी मौत का जश्न मना रहा है। ये दोनों बातें देखने से हमे ये तो अंदाजा हो जाता है कि इनका आपस में कुछ रिश्ता है। ये क्या रिश्ता है? और क्या ये आदमी ही चेहरा चोर है? और अगर वो चेहरा चोर है तो कैसे इस काम को अंजाम दे पा रहा है? इन सब सवालों को जानने के लिए ही पाठक कॉमिक्स पढता जाता है। चेहरा पाने के लिए वो शैतान जो काम अपने शिकार से करवाता है वो भी रोचक रहते हैं। हमे पता है कि वो काम आत्मघाती हैं लेकिन फिर भी चेहरे के बिना जीने से बेहतर वो इन कामों को करकर चेहरा पाने की कोशिश करते हैं। 
कहानी अच्छी है और देखकर ही लगता है कि इसकी ऑडियंस बच्चे हैं।  इसी कहानी को थोड़ा और जटिल और थोड़ा और डिटेल के साथ वयस्कों के लिए भी ढाला जा सकता है। जैसे कविता म्हात्रे के साथ क्या हुआ ये एक ही वाक्य में लिखा गया है जिसके की फ़्लैशबेक में जाकर पाँच दस पन्नों की कहानी बनाया जा सकता है। फिर इसमें एक डिटेक्टिव को लाकर भी कहानी को नया मोड़ दिया जा सकता है। कहानी को और ज्यादा डार्क बनाया जा सकता था। इससे कहानी में रोमांच ज्यादा आता। अभी कहानी थोड़ी ज्यादा ही सरल लगती है। 
हाँ, एक बात कहना चाहूँगा। इस कॉमिक्स में शीशे से वो शैतान अपने शिकार के चेहरे को चुराता है। यानी जब उसका शिकार शीशे में अपना प्रतिबिम्ब देख रहा होता है तो शैतान शीशे के दूसरी तरफ प्रकट हो जाता है और वहीं से चेहरे की खाल को कवर की तरफ खोपड़ी और मांस पेशियों से जुदा कर लेता है।  कल कॉमिक्स पढने के बाद जब बाथरूम गया तो शीशे में देखते हुए उस शैतान का ख्याल आया था। बाथरूम की लाइट बंद थी तो एक दम से उसे जला लिया। जब वो जली में मन के किसी कोने में एक ख्याल था कि अगर लाइट जलते ही शीशे में मुझे किसी  विभीत्स आदमी का चेहरा दिखता तो पता नहीं क्या होता? सोचकर ही एक सिहरन से मन में उठ गयी थी। जल्दी काम निपटाया और वापस बेड की तरफ बढ़ गया।  तो अगर आप कॉमिक्स पढ़े तो जरूर शीशे को गाहे बघाहे देखिएगा कि कहीं आपके शीशे में ही कोई चेहरा चोर न छुपा हो। 😜😜😜😜  
अंत में यही कहूँगा कहानी एक बार पढ़ी जा सकती है। आईडिया अच्छा है। हाँ,अगर बीस रूपये के कॉमिक्स  के लिए चालीस रूपये देने में गुरेज न हो तो जरूर पढियेगा।
कॉमिक्स राज वालों की साईट से ले सकते हैं :

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “चेहरा चोर”

  1. ऐसा तो मेरे साथ भी हो रखा है तब उनका कहना होता है की लेना हो तो लो वर्ना मत लो

  2. ऐसा तो मेरे साथ भी हो रखा है तब उनका कहना होता है की लेना हो तो लो वर्ना मत लो

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