राजा की अँगूठी – सत्यजित राय

रेटिंग : 3.5/5
किताब को मार्च 26,2017 को पढ़ी गयी


संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 102
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स
श्रृंखला : फेलूदा #१
आईएसबीएन: 9788121610001

पहला वाक्य :
बाबा को जब मैंने कहते सुना कि ‘चलो इस साल छुट्टियों में लखनऊ चलते हैं, धीरू बहुत दिनों से आने को कह रहा है। ‘

तोपशे को जब उसके पिताजी ने लखनऊ जाने के लिए कहा तो पहले तो इस बात से खुश नहीं था। उसे लगा था कि लखनऊ में न पहाड़ हैं और न ही समुद्र और इसलिए वो एक उबाऊ शहर होगा। फिर उसने अपने पिता से फेलूदा को भी ले चलने की गुजारिश की तो उसे थोड़ी राहत मिली।

तोपशे को विश्वास था कि फेलूदा के रहते कुछ भी हो लेकिन बोरियत उसके पास फटक भी नहीं सकती थी। और ऐसा हुआ भी। वो जिस रिश्तेदार के यहाँ रुकने वाले थे उनके जान पहचान के व्यक्ति के पास एक मुगुल बादशाह औरेंगज़ेब की अँगूठी थी। और फिर देखते ही देखते लाख कोशिशों के बावजूद किसी ने उस अँगूठी पे हाथ साफ़ कर दिया।

अब फेलूदा को इस रहस्य का पता लगाना था कि अँगूठी को आखिरकार गायब किसने किया। इसके इलावा फेलूदा और तोपशे पर लखनऊ में घूमने के दौरान हमले भी हो रहे थे। क्या ये हमले केवल एक बुरा संयोग था या इसका अँगूठी की तहकीकात से कुछ लेना देना था?

क्या फेलूदा रहस्य का पता लगा पाया?

राजा की अँगूठी फेलूदा श्रृंखला का पहला उपन्यास है। हाँ, ये फेलूदा का पहला केस नहीं है। तोपशे इसमें बताता है कि फेलूदा को जासूसी का काफी ज्ञान है और कोई भी इसमें फेलूदा का सानी नहीं है। वो गाहे बगाहे जासूसी करता रहता है और एक प्राइवेट जासूस है।

फेलूदा एक सत्ताईस साल का युवक है और तेज बुद्धि होने के साथ साथ उसमे युवकों जैसा बचपना भरा हुआ है। वो तोपशे को चिढ़ाता रहता है। उसपे धौंस भी जमाता है। उसकी प्लेट से चीजें उड़ा लेता है। उसकी ये हरकतें आम लोगों जैसी हैं। अकसर बड़े और छोटे भाई के बीच ऐसी छोटी छोटी छेड़खानियाँ चलती रहती है। इन्हें पढने में मुझे बहुत मज़ा आया। मैं भी अपने चचेरे ममरे और फुफेरे भाइयों के साथ ऐसी ही हरकते करता था तो लगा फेलूदा कोई अपना ही जैसा युवक है।

अगर कहानी की बात करूँ तो कहानी में रहस्य आखिर तक बना रहता है। अँगूठी किसने चोरी की और अँगूठी कोई क्यों चुराना चाहता है ? इन सवालों के जवाब पाठक को तभी मिल पाते हैं जब कि लेखक उन्हें देना चाहता है।  रहस्य कथाओं में ये खूबी होना जरूरी है। अगर लेखक के बताने से पहले ही पाठक सारे राज जान ले तो किताब का मज़ा थोड़ा कम हो जाता है। इस मामले में ऐसा नहीं होता इसलिए पठनीयता बनी रहती है।

मेरा फेलूदा से परिचय कुछ दिनों पहले पढ़े एक कहानी संग्रह से हुआ था। इसमें सत्यजित राय साहब की कई कहानियों का हिंदी में अनुवाद  किया गया था। इसमें फेलूदा का तीन चार किस्से  थे जिन्होंने मेरा मनोरंजन  किया था।  इसलिए  इस किरदार   के चारो और  बुने हुए इस उपन्यास को पढ़ना एक बेहतरीन अनुभव था। कथानक कहानियों के मुकाबले वृद्ध था और इसलिए फेलूदा के विषय में ज्यादा जानने का मौक़ा मिला। मैंने इस उपन्यास को काफी मज़े लेकर पढ़ा और इसका भरपूर आनन्द लिया।

अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है तो आपको इसे एक बार तो जरूर पढना चाहिये। वैसे हिन्द पॉकेट बुक्स ने इसे बाल साहित्य की श्रेणी में रखकर छापा है लेकिन ये ऐसी रचना है जिसे बच्चों के साथ व्यस्क भी पढ़ सकते हैं।

अगर आपने इसे पढ़ा है तो उपन्यास के विषय में अपनी राय जरूर दीजियेगा। और अगर अभी तक आपने इसे नहीं पढ़ा है और पढना चाहते हैं तो इस उपन्यास को निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं:
अमेज़न


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “राजा की अँगूठी – सत्यजित राय”

  1. शानदार समीक्षा बधाई
    मस्त है इसी के साथ हिन्द वालों ने सत्यजीत रे का एक और नावेल निकाला है मौत का घर वो भी पढ़िए बढ़िया मिस्ट्री है, मैंने दोनों साथ ही खरीदे थे।

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