ख़ौफ़नाक क़िला – एस सी बेदी

रेटिंग : 3.5/5
उपन्यास 9 नवम्बर से 10, नवम्बर 2016 के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण :
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 64
प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स

पहला वाक्य:
“राजन! कभी तुमने हाथी देखा है?”

जब राजन इकबाल को बुलाया गया तो उन्हें मालूम था कि जरूर कोई जरूरी काम था। और वो गलत भी नहीं थे।

वाईक लायड नाम के कुख्यात अपराधी ने भारत के महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रोफेसर रमाकांत देसाई का अपहरण कर लिया था। उनका अपहरण करके वो उन्हें रंगून ले जा चुका था।  रमाकांत देसाईं ने एक ऐसा आविष्कार किया था जो कि जिस किसी के भी हाथ में आता वो ही दुनिया पे राज कर सकता था। ऐसे में लायड को पता था कि वैज्ञानिक की नीलामी लगाईं जाए तो कई देश उसे ऊँचे दामों में खरीदने के लिए तैयार हो सकते थे। और ऐसा हुआ भी।
रंगून में खतरनाक जसूसों का मेला सा लग गया और उन सबका एक ही मकसद था। लोयड से प्रोफेसर को खरीदकर अपने देश तक पहुंचाना।

भारत से राजन इकबाल को भेजा गया। उनका मिशन प्रोफेसर को लायड के चंगुल से छुड़ाना था।

क्या वो ऐसा करने में कामयाब हो पाये? अपने मिशन के चलते उन्हें किन किन खतरों से रूबरू होना पड़ा? ये सब बातें तो आप इस उपन्यास को पढ़कर ही जान पायेंगे।


बचपन में जब बच्चे कॉमिक्स पढ़ते हैं तो उसके पश्चात उनका प्रगमन बाल उपन्यासों की तरफ होता है। लेकिन मेरे मामले में ऐसा नहीं हुआ था। चूँकि हमारे यहाँ उपन्यास पढने को बुरी लत मानी जाती है तो चौथी पाँचवी के बाद मैंने कॉमिक्स से बाल उपन्यासों की तरफ कदम नहीं रखा।

मुझे कहानी पढने का शौक तो था लेकिन उपन्यासों तक मेरी पहुँच नहीं थी। जब मैं ग्यारहवीं में था तब तक मैंने अनीता देसाईं का उपन्यास विलेज बाय द सी ही पढ़ा था क्योंकि वो कोर्स में था। हिंदी के कोर्स में कोई उपन्यास नहीं था इसलिए हिंदी का कुछ नहीं पढ़ा था। बारहवीं में गया तो हैरी पॉटर वगेरह ही पढना नसीब हुआ। हिंदी का तब भी कुछ हाथ में नहीं आया। कॉलेज में भी अंग्रेजी के ही उपन्यासों की तरफ ध्यान था। हाँ, जब नौकरी लगी तो उपन्यास खरीदने शुरू किये  और हिंदी साहित्य को पढना शुरू किया। फिर पॉकेट बुक्स की तरफ भी गया। फिर एक आध साल पहले पता चला कि लोग बाग़ पॉकेट बुक्स में आने से  पहले बाल उपन्यास पढ़ते थे और एस सी बेदी इस श्रेणी में मास्टर थे और उनकी राजन इकबाल श्रृंखला बहुत ही ज्यादा प्रसिद्द थी।

फिर जब अमेज़न में इस श्रृंखला का  उपन्यास देखा तो खरीदे बिना नहीं रह सका। जो बचपन में नहीं किया था वो अब करना था। और मुझे अच्छा लगा कि मैंने इस लघु उपन्यास को खरीदा।

हिंद पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित ये लघु उपन्यास मुझे बहुत पसंद आया। वैसे ये उपन्यास छोटा है लेकिन रोमांच से भरपूर है। इसमें जासूस हैं, जासूसी कोड हैं, गोलिया चलती हैं और ऐसे किरदार भी  हैं जो संजीदा से संजीदा परिस्थिति में मजाक करना नहीं भूलते हैं। राजन जहाँ संजीदा है वहीं इकबाल मजाकिया है। उसके जोक छोटी छोटी कविताओं के बने होते हैं जिन्हें पढ़कर मज़ा आया। दोनों एक दूसरे को कॉम्प्लीमेंट करते हैं।  बस कमी खली तो यह ही उपन्यास काफी छोटा था।

अगर आप छोटे बच्चों के रोमांचक उपन्यास ढूँढ रहे हैं तो आपको ये जरूर खरीदना चाहिए। आप अपने बच्चों को इसे उपहार स्वरुप भी दे सकते हैं। हिंदी में फिलहाल शायद ही कोई  भी बच्चों के लिए रोमांचक उपन्यास लिख रहा है। उनके पास या तो अंग्रेजी विकल्प होता है या हिंदी में पढना हो तो अंग्रेजी उपन्यास का हिंदी अनुवाद। ऐसे में ये उपन्यास एक अच्छा विकल्प हैं। उपन्यास ज्यादा बड़ा नहीं है और रविवार की छुट्टी में आसानी से खत्म किया जा सकता है।

अमेज़न में इसी श्रृंखला का एक और उपन्यास मौजूद है। मैंने पहले इसे खरीदा था ताकि देख सकूं की ये मुझे पसंद आता है या नहीं। अब चूँकि ये मेरी उम्मीदों में खरा उतरा है तो दूसरा उपन्यास भी मैं खरीदूंगा।

बाकी उम्मीद है इस श्रृंखला के उपन्यासों को बाज़ार में दुबारा उपलब्ध कराया जाएगा।

अगर आपने उपन्यास पढ़ा है तो अपनी राय जरूर बताइयेगा। अगर आपने नहीं पढ़ा तो आप निम्न लिंक में जाकर इसे मंगवा सकते हैं:


FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *