एक लेखक कभी नहीं चाहेगा कि उसकी चलती कलम में विराम लगे लेकिन फिर भी लेखक के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब उसे लगने लगता है कि उसकी कलम ने उसका साथ छोड़ दिया है। अंग्रेजी में इस स्थिति को राइटर्स ब्लॉक कहा जाता है जब लेखक को सूझता नहीं है कि वो जो लिख रहा था उसे पूरा कैसे करे या कुछ नए लिखने की शुरुआत कैसे करे?
ऐसे में कैसे कोई लेखक राइटर्स ब्लॉक से उभर सकता है ये प्रवीण कुमार झा ने साहिन्द में प्रकाशित अपने इस लेख में बताया था। अब एक बुक जर्नल पर यह प्रकाशित हो रहा है। उम्मीद है यह लेख राइटर्स ब्लॉक से उभरने में आपकी मदद करेगा।
यह आज की नहीं, पुरानी समस्या है कि लेखक की कलम रुक गयी। ख़ास कर ऐसे लेखक की, जिनकी एक किताब धूम मचा गयी हो। ऐसे भी लेखक हुए, जिन्होंने ऐसी एक किताब लिखने के बाद कभी कोई दूसरी किताब लिखी ही नहीं, या लिखी भी तो विधा बदल दी। जितनी शिद्दत से वह पहली किताब लिखी, लोकप्रिय होने के बाद कलम में धार गायब हो गयी। एक मानसिक दबाव भी आ गया कि दूसरी किताब अगर औसत निकल गयी तो पहली से कमाया नाम भी मिट्टी में। जिन पर यह दबाव न भी हो, उनकी भी कलम कई बार आधा-अधूरा लिख कर रुक जाती है, और किताब पूरी नहीं हो पाती। समझ ही नहीं आता कि आगे क्या लिखूँ? कुछ अन्य पारिवारिक व्यस्तता की वजह से भी लोग लिखना नहीं शुरू कर पाते।
मैं कुछ बिंदु लिखता हूँ, जो शायद मददगार हो।
- पढ़ना- राइटर्स ब्लॉक का सबसे बड़ा तोड़ किताबें पढ़ना हो सकता है। उसमें भी ख़ास कर खोयी हुई, भूली-बिसरी किताबें पढ़ना। विदेशी लेखकों को पढ़ना। अन्य भारतीय भाषा के लेखकों को पढ़ना, सम्भव हो तो अनुवाद भी करना। वहाँ से ऐसे आइडिया जन्म ले सकते हैं, जो आपकी कलम को एक किक देंगे, और आप लिखना शुरू कर देंगे।
- एक नोटबुक/डायरी खरीदना- आजकल डिजिटल राइटिंग पैड भी आ गए हैं, जिसमें आप एक चित्र जैसा बनाते हैं। कुछ यूँ ही रगड़ते हैं। जैसे स्थानों के नाम, पात्रों के नाम, विषयों के नाम। कुछ भी लिखते चले गये। कोई फ़िल्म देखते कुछ पसंद आ गया, या अखबार पढ़ते, या दिनचर्या में, या किसी से बतियाते। यह डायरी एक ‘आइडिया बैंक’ का काम करेगी, जब आप इसे बाद में पलटेंगे। लेखकों के पास ऐसे कई नोटबुक मिल सकते हैं, जिनमें क्या रगड़ा है, यह लेखक को भी याद नहीं।
- रोज हज़ार शब्द लिखना- आप क्या लिख रहे हैं, यह मायने नहीं रखता। मगर रोज लिखना एक अनुशासन है। ऐसे लेखक मिलेंगे, जो रोज नहीं लिखते। ऐसे तो गेंदबाज़ भी मिल सकते हैं, जो रोज गेंद डालने की प्रैक्टिस नहीं करते। लेकिन, यह करना पारंपरिक भी है और वैज्ञानिक पद्धति भी।
- लिखने से ब्रेक लेकर लिखना- यह विरोधाभासी लग सकता है। यहाँ मेरा तात्पर्य विषय बदलने से है। शशि थरूर की एक किताब फ़िल्मी दुनिया पर है, दूसरी क्रिकेट पर, तीसरी इतिहास पर, चौथी में लघु-कथाएँ मिलेगी, पाँचवी में पैरोडी। हालिया एक मजाक पढ़ा कि वह फेसबुक पोस्ट की गति से किताबें लिखते रहते हैं। उनकी कुछ किताबें तो ऐसी भी हैं, जिनमें बहुत कुछ कॉमन है। आपको लगेगा कि यह बात इनकी ही दूसरी किताब में पढ़ी है।
- संगीत सुनना (हेडफोन से)– यह टोटका है, पर इसमें विज्ञान भी है। आप कुछ और नहीं सुनते। शोर खत्म होता है, फोकस बनता है। इस टोटके में शब्द-विहीन क्लासिकल म्यूज़िक जोड़ सकते हैं।
अभी इतना ही कहूँगा। चार्ल्स बुकोस्की ने कहा है- ‘राइटर्स ब्लॉक का इलाज है राइटर्स ब्लॉक विषय पर लिखना’
(यह लेख साहिंद में जुलाई 12 2020 को प्रकाशित हुआ था।)