वैसे तो सुरेन्द्र मोहन पाठक अपने लिखे अपराध साहित्य के लिए जाने जाते हैं लेकिन उन्होंने अन्य विधाओं में भी अपनी कलम चलायी है। बहुत कम लोग ये जानते होंगे कि लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक ने लोकप्रिय लेखन की अन्य प्रसिद्ध विधा सामाजिक साहित्य में भी सृजन किया है।
बताते चलें लोकप्रिय लेखन में सामाजिक उपन्यास वो कहे जाते हैं जिनमें प्रेम, प्रेम में बिछोह, प्रेमियों का त्याग इत्यादि मुख्य थीम होते थे और इनके इर्द गिर्द ही कथानक बुने जाते थे। इन उपन्यासों में प्रेमियों की तकरार, उनके मिलन में होने वाली रुकवाट और उनका उस रुकावट से जूझकर निकलना ही मुख्यतः दर्शाया जाता था। उस समय की हिंदी फिल्मों की तरह इसमें कुछ किरदार कॉमेडी का तड़का भी लगाते थे। गुलशन नंदा, दत्त भारती, कुशवाहा कान्त, रानू, राजहंस इस विधा के लोकप्रिय लेखक रहे हैं।
लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक ने अपने जीवन में केवल दो सामाजिक उपन्यास लिखे हैं। यह उपन्यास हैं ‘आशा’ और ‘एक मामूली लड़की’।
अब लेखक सुरेन्द्र मोहन पाठक के प्रशंसकों के लिए अच्छी खबर ये आयी है कि लेखक का लिखा सामाजिक उपन्यास ‘आशा’ काफी दशकों बाद पेपरबैक के रूप में प्रकाशित हो रहा है। यह उपन्यास प्रथम बार 1968 में प्रकाशित हुआ था। अब यह उपन्यास साहित्य विमर्श प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया जा रहा है और फिलहाल इसका प्री ऑर्डर चल रहा है।

प्रकाशक द्वारा बताया गया है कि उपन्यास का यह नया संस्करण अद्यदित संस्करण है और लेखक द्वारा इसमें आज के समय के हिसाब से कई बदलाव किये गए हैं। ऐसे में यह उपन्यास उन पाठकों को भी पढ़ने में नवीन अनुभव देगा जिन्होंने इसे पहले से पढ़ा हुआ है।
अगर उपन्यास की बात करें तो यह मूलतः एक युवती आशा की कहानी है। आशा एक जवान खूबसूरत लड़की है जिसे पुरुष अपनी प्रेमिका बनाने को आतुर रहते हैं। पर आशा चाहती है उसका जो प्रेमी हो वो उसकी सूरत से नहीं बल्कि सीरत से प्यार करे। ऐसे में वह किसे अपना प्रेमी चुनती है यह उपन्यास का कथानक बनता है। उपन्यास की पृष्ठभूमि मुंबई है और आशा और उसकी दोस्त सरला के माध्यम से लेखक ने मुंबई फिल्म इंडस्ट्री और फिल्मी समाज को भी दर्शाया है।
उपन्यास साहित्य विमर्श प्रकाशन की वेबसाइट और अमेज़न पर प्री ऑर्डर के लिए उपलब्ध है।