संस्करण विवरण:
फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 44 | प्रकाशन: तहकीकात | शृंखला: विजय
पुस्तक लिंक: अमेज़न
कहानी
अकबर फिल्म इंडस्ट्री का जाना पहचाना नाम था जिसे हर वो लड़की मिल जाती जिसकी उसे इच्छा थी।
ऐसे में जब उसने शहनाज से शादी की घोषणा की तो इस घोषणा ने सबको हैरत में डाल दिया। यह हैरत इसलिए भी क्योंकि कभी शहनाज एक कॉल-गर्ल हुआ करती थी।
लेकिन शादी हुई और शादी की जानदार पार्टी भी हुई। और फिर शादी की रात को ही शहनाज गायब भी हो गई।
अपनी पत्नी के गायब होने से अकबर बेहद दुखी था। शादी की रात उसने इतनी पी ली थी कि उसे कुछ चीजों का होश ही नहीं रहा था और अब वह अपने दोस्त विजय के पास आया था।
वह चाहता था कि विजय उसकी गुमशुदा पत्नी को तलाशे।
आखिर शहनाज कहाँ गायब हो गई थी?
उसके गायब होने के पीछे क्या कारण था?
क्या विजय शहनाज को तलाश पाया?
किरदार
अकबर – एक फिल्म निर्माता
शहनाज – अकबर की नई बीवी
निजाम – अकबर का सेक्रेटरी
रामपाल – अकबर के पिताजी का नौकर जिसे अकबर चाचा कहता था
कादिर – अकबर का आदमी
विजय – वैसे कहने को तो एक प्राइवेट जासूसी है लेकिन भारतीय सीक्रिट सर्विस का हेड है
रघुनाथ – एक पुलिस अफसर जो कि विजय की मदद से केस हल करता है
मैडम – वह औरत जिसके लिए शहनाज काम करती थी
निलीमा – एक और औरत जो कि मैडम के लिए कभी काम करती थी
अजीम – राजनगर का एक धनपति
मेरे विचार
‘शराबी कातिल’ लेखक वेद प्रकाश काम्बोज द्वारा लिखी हुई उपन्यासिका है जो कि तहकीकात पत्रिका के प्रवेशांक में प्रकाशित हुई है। 40 पृष्ठों में फैली ‘शराबी कातिल’ मूल रूप से एक रहस्यकथा है जो अकबर नामक फिल्म निर्माता की शादी की पार्टी से शुरू होती है और फिर उसकी नई नवेली बीवी की तलाश में तब्दील हो जाती है।
इस तलाश के दौरान विजय, जो कि अकबर का दोस्त भी है, को क्या क्या करना पड़ता है और वह किस तरह इस गुत्थी सुलझाता है यह इस उपन्यासिका का कथानक बनता है। कथानक सरल है। विजय एक बार मामले में हाथ डालता है तो पहले नीलिमा के रूप में उसके हाथ में जरूरी सबूत खुद ब खुद लग जाता है और फिर सारी गुत्थी विजय एक एक कदम आगे बढ़ाकर सुलझा ही लेता है।
आगे जाकर मामला इतना सरल हो जाता है कि विजय भी एक बार कहता है:
“खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाला मामला तो अब हुआ है। लेकिन आरंभ में यह केस मेरे लिए बहुत ही रहस्यमय और दिलचस्प था… ”
मुझे लगता उपन्यासिका में पहले तो निलीमा का विजय से टकराना और फिर दूसरे कत्ल के वक्त ही किस्मत से विजय का कत्ल की जगह पर तब पहुँचना जब कातिल उधर था इस पूरे मामले को एक रहस्यकथा के तौर पर थोड़ा सा सरल कर देता है। अगर निलीमा तक विजय किसी तरह की तहकीकात करके पहुँचता और दूसरे कत्ल वाला संयोग न होने के चलते विजय को तहकीकात कर कातिल तक पहुँचने की जहमत उठानी पढ़ती तो कथानक और अधिक सशक्त बन सकता था।
वैसे तो शराबी कातिल एक रहस्यकथा है लेकिन अपने किरदारों के चलते यह केवल रहस्यकथा नहीं रह गई है।
उपन्यासिका में चूँकि विजय भी है तो हँसी मज़ाक भी आपको देखने को मिलता ही है। विजय के दिल्ली में रात में मैडम वाले प्रसंग हँसा देते हैं और यह भी दर्शा देते हैं कि उस मजाकिया लहजे के पीछे कितना खतरनाक व्यक्ति है। विजय का साथी रघुनाथ भी उपन्यासिका में दर्शन तो देता है लेकिन वो केवल मेहमान कलाकार के रूप में ही आता है।
उपन्यासिका में अकबर नाम का फिल्म निर्माता है जिसके माध्यम से लेखक ने फिल्मी चकाचौंध के पीछे का स्याह चेहरा पाठकों को संक्षिप्त रूप में ही सही लेकिन दर्शाया है। अकबर का किरदार इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह आम लोगों की तरह दकियानूस नहीं है। वह जानता है कि उसका किरदार ठीक नहीं है और इसलिए वह शहनाज पर कभी उस चीज के लिए उँगली नहीं उठाता है जिसके चलते उसके खुद के दामन में दाग हैं। भारतीय समाज में शायद ही ऐसे लोग होंगे और जो होंगे वो गिने चुने होंगे वरना बाकी सभी तो दूसरे के विशेषकर औरतों के चरित्रों के दागों पर उँगलियाँ उठाने के लिए तत्पर रहते हैं। अकबर का यह गुण पाठकों को उससे सीखना चाहिए।
इस उपन्यासिका में शहनाज और नीलिमा नाम की कॉल गर्ल भी हैं जिनके रूप में जिस्म फरोशी के धंधे में लिप्त औरतों की विभिन्न परेशानियों को लेखक ने दर्शाने की कोशिश की है। शहनाज उन गिनी-चुनी लड़कियों में से एक है जो कि जिस्म फ़रोशी के धंधे से बाहर निकलने में कामयाब होती है लेकिन निकलने के बावजूद किस किस तरह से लोग उसके गुजरी ज़िंदगी के चलते उसका शोषण करने से बाज नहीं आते हैं यह लेखक ने बाखूबी दर्शाया है। आज भी कई लड़कियाँ ऐसी हैं जो शहनाज के चलते शोषित हो रही हैं।
नीलिमा भी कभी कॉल गर्ल रह चुकी है लेकिन अब उसकी उम्र हो चुकी है और एक उम्र के बाद ऐसी लड़कियों का क्या होता है यह इस उपन्यासिका के माध्यम से लेखक ने दर्शाने की कोशिश की है। वह लड़कियाँ जो कि इस धंधे में धकेली गई थी कैसे समाज के रूखे पन के चलते हमेशा प्रताड़ित रहती हैं और जिन लोगों से वह घृणा करती हैं उन्हीं की चिरोरी करने को मजबूर हो जाती हैं यह इसमें देखने को मिलता है।
वहीं उपन्यासिका में मैडम नाम की किरदार है जो कि स्वार्थ की देवी है और मुँह में राम बगल में छुरी का जीता जागता उदाहरण है। वह शैतान की नानी ही नजर आती है और आप खुद को उससे नफरत करने से खुद को रोक नहीं पाते हो।
उपन्यासिका में रामलाल नामक किरदार भी है जिसके माध्यम से लेखक ने दोस्ती क्या होती है यह दर्शाने की कोशिश की है और यह भी कि कई बार बहुत अमीर लोगों की दौलत के पीछे कुछ अपराध छुपे होते हैं।
उपन्यास का शीर्षक ‘शराबी कातिल’ है और यह उपन्यासिका के विषय में काफी जानकारी दे देता है। वैसे उपन्यसिका में दो शराबी हैं लेकिन कोई एक भी शराबी शुरुआत में कत्ल के मामले में फँसता नहीं दिखता है। अगर ऐसा भी होता तो शायद शीर्षक सटीक होता क्योंकि फिर कौन सा शराबी कातिल है यह पता लगाना पड़ता। पर अभी के कथानक के हिसाब से शीर्षक ‘शराबी कातिल’ के बजाए कुछ और होता तो बेहतर होता क्योंकि ये कातिल की पहचान का हिंट दे देता है।
अंत में यही कहूँगा कि उपन्यासिका शराबी कातिल एक पठनीय रचना है जो रहस्य तो परोसती है लेकिन उसके चोले में कई समाजिक मुद्दों पर भी बात करती है। एक बार आप इसे पढ़ सकते हैं। हाँ, ऊपर लेख में जिन दो संयोगों का जिक्र किया है उसके बदले विजय उन संयोगों से हासिल जानकारी तक तहकीकात करके पहुँचता तो उपन्यासिका और सशक्त बन सकती थी।
पुस्तक लिंक: अमेज़न
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