बुक हॉल: सितम्बर में खरीदी गई किताबें

सितम्बर में ली गई किताबें

सितम्बर के महीने खरीदी किताबों की अगर मैं बात करूँ तो इस महीने मैंने कुल नौ किताबें खरीदीं। इन किताबों में से दो तो कहानी संग्रह हैं, छः उपन्यास हैं और एक रिपोर्ताज है। 
अगर भाषा की बात करूँ तो सितम्बर के महीने में खरीदी गयी किताबों में से चार अंग्रेजी भाषा की है और पाँच हिन्दी भाषा की हैं। इन किताबों में से पाँच किताबें मैंने अमेज़न से खरीदी और बाकी की चार किताबें चूँकि सूरज पॉकेट बुक्स के सेट की थी तो उनकी साईट से ही मँगवाई थी।
इन नौ किताबों में ‘पुकार’ और द एडवेंचर्स ऑफ़ काकाबाबू ही ऐसी किताब है जिसके विषय में पहले से कोई आईडिया था कि इनका विषय क्या हो सकता है। बाकियों के विषय में या तो मुझे आईडिया नहीं था (मैंने लेखक या श्रृंखला देखकर मँगवाई) या फिर अमेज़न में टहलते हुए मुझे ये भा गयीं थीं)।

किताबों के फ्रंट कवर

ऊपर आपने ली हुई किताबों के आवरण तो देख ही लिए होंगे। 
चलिए अब तफसील से इन किताबों के विषय में जानते हैं। जितना मुझे अभी पता है (जो कि बहुत ही कम है) उतना ही बताऊंगा और जिस किताब के विषय में नहीं पता होगा उसके बैककवर के पीछे दर्ज किताब की जानकारी आपके सामने रख दूँगा। ठीक है न:
कानून की आँख – परशुराम शर्मा 

क़ानून की आँख (Kanoon ki Aankh) परशुराम शर्मा (Parshuram Sharma) का सूरज पॉकेट बुक्स  (Sooraj Pocket Books) से प्रकाशित उपन्यास है। यह उपन्यास एक रीप्रिंट है। उपन्यास पहली बार कब प्रकाशित हुआ था इसकी जानकारी मुझे नहीं है और न मुझे किताब में इस विषय में कोई जानकारी नहीं मिली। अगर सच पूछो तो उपन्यास खरीदने से पहले मुझे केवल इसके लेखक का नाम पता था। चूँकि परशुराम शर्मा के जितने उपन्यास मैंने पढ़े (अगिया बेताल, कोरे कागज का कत्ल) हैं वो मुझे पसंद आये तो मैंने नये सेट में प्रकाशित उपन्यास भी ले लिए। 
इस किताब के बैककवर पर उपन्यास के विषय में जो दर्ज है वह पढ़कर मुझे तो उपन्यास रोचक लग रहा है। आप भी पढ़िए:
अगर कोई कत्ल हो जाए पर उसका न्याय माँगने वाला कोई न हो तो क़ानून क्या करेगा? अगर कोई अपराधी गवाहों को अदालत तक पहुँचने न दे तो कानून उसे कैसे सज़ा देगा? अगर समाज के इज्जतदार लोग जरायम में लिप्त हों, जिनके खिलाफ कहीं कोई सबूत न हो, जिनके बलबूते पर चुनाव जीते जाते हों, क्या ऐसे लोगों के खिलाफ कोई क़ानून से इंसाफ माँग सकता है? आइये देखें कैसे एक आदमी ने क़ानून से इंसाफ पाने के लिये जंगल का कानून लागू कर दिया।
– उपन्यास के बैक कवर से
है न रोचक? यह पढ़कर यह तो आप सोच रहे होंगे कि यह व्यक्ति कौन है और इस पर ऐसी क्या बीती कि इसने यह जंगल का कानून लागू कर दिया? उसके इस निर्णय ने आखिरकार उसे कहाँ पहुँचाया? फ़िक्र नहीं कीजिये, मैं भी यही चीजें सोच रहा हूँ और किताब पढ़ने की ललक मेरे भीतर जाग ही रही है?

किताब आप चाहें तो निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:

बंगला नम्बर 420 – परशुराम शर्मा 

बंगला नम्बर 420 (Bangla Number 420) सूरज पॉकेट बुक्स (Sooraj Pocket Books) के नये सेट में प्रकाशित परशुराम शर्मा का दूसरा उपन्यास है। यह उपन्यास भी मेरे ख्याल से पुनः प्रकाशित हुआ है। इस उपन्यास में अच्छी बात यह है कि इसमें परशुराम शर्मा जी का लेखकीय भी है जिससे पता लगता है कि उपन्यास में थ्रिल के साथ हॉरर का पुट भी है। हॉरर उपन्यास चूँकि मुझे विशेष रूप से पसंद आते हैं तो मैं अभी के लिये इतना कहूँगा कि इस उपन्यास को मैं बाकी उपन्यासों से पहले पढूँगा। 

उपन्यास के बैककवर पर निम्न चीज दर्ज की गयी है:

पहला बयान
“और जब मेरी आँख खुली तो न सिर्फ मेरा बेडरूम, मेरा लिबास अजनबी था बल्कि मेरा जिस्म और मेरी शक्ल भी अपनी नहीं थी । मैं अपने बंगले में सोया था पर आँख खुली बंगला नंबर 420 में ।

दूसरा बयान

“मैंने खुद अपनी लाश बंगला नंबर 420 में देखी है, इंस्पेक्टर ।”

तीसरा बयान
“धुएं का आदमी – हाँ – धुएं का आदमी । वह इंसानों का खून पीता है और जिसका भी खून वो पी लेता है वो उसका गुलाम होकर रह जाता है । बंगला नंबर 420 में उसकी पूजा होती है ।”

– किताब के बैक कवर से 

इन तीनों बयानों को पढ़ने के बाद एक बात तो साफ हो गयी है कि बंगला नम्बर 420 में कुछ न कुछ ऐसा घटित हो रहा है जिसे आप सामान्य तो नहीं कह सकते हैं। कुछ न कुछ परालौकिक इधर हो रहा है और मैं इसे पढ़ने के लिए बेताब हूँ। 

जल्द ही आपको इसे पढ़कर बताऊँगा कि मुझे यह उपन्यास कैसा लगा। 

उपन्यास आप अगर चाहें तो निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
पेपरबैक | किंडल

पुकार – परशुराम शर्मा 

मुझे अब यह तो याद नहीं है कि  परशुराम शर्मा (Parshuram Sharma) के उपन्यास पुकार (Pukar) के विषय में मैंने पहली बार कब सुना था लेकिन हाँ इतना जरूर  याद है कि जब मैंने इस उपन्यास के विषय में पहली बार जब भी सुना था तो उसी वक्त मेरे मन में इस उपन्यास को पढ़ने की इच्छा जागृत हो गयी थी। भारत में तृतीय लिंग के लोग आज भी बहुत ज्यादा अलग थलक हैं और उनके विषय में इतना ज्यादा लिखा नहीं जाता है। ऐसे में एक लोकप्रिय लेखन करने वाले व्यक्ति का एक किन्नर को अपने उपन्यास का केन्द्रीय पात्र बनाना सचमुच एक अनोखा काम रहा होगा। मुझे यह तो नहीं पता जब यह उपन्यास छपा होगा तब उस वक्त के लोगों ने इसे कैसे लिया था लेकिन मैं इस उपन्यास को पढ़ने के लिए काफी उत्सुक हूँ।

इस किताब में उपन्यास के विषय में निम्न चीज दर्ज है जो कि मुझे लगता है आप लोगों को के बार पढ़नी चाहिए:

जब आपके घर किसी नवजात शिशु का जन्म होता है तो आपकी प्रतिक्रिया इस प्रकार होती है– लड़का उत्पन्न होने पर खुशी, लड़की पैदा होने पर रंज और अगर दुर्भाग्य से इन दोनों के बीच की संतान होती है तो आप इस तरह मातम मनाते हैं जैसे कोई मरा हुआ बच्चा पैदा होता है । इस बीच की चीज को हमारे समाज में हिजड़ा कहा जाता है । आपके यहाँ कोई भी खुशी का अवसर हो तो यह हिजड़े ढोल पिटते हैं, हथेलियाँ चटकाते, कूल्हे मटकाते आपके आँगन में बधाई देने पहुँच जाते हैं । आप दूसरों की बधाइयों का दिल खोलकर धन्यवाद अदा करते हैं । परन्तु इन्हें दिल दहलाकर दुत्कार देते हैं । उस वक्त आप यह नहीं सोचते, यह वही मरी हुई संतान है, यही वही पाप है जो आपके यहाँ पैदा हुआ और सड़कों पर ढोल पीटने के लिए छोड़ दिया गया । समाज में इनका कोई सम्मान नहीं, धर्म इनका कोई नहीं, अपमान की फांस पर जिन्दा रहने वाले ये प्राणी आखिर क्या हैं ? क्या ये इंसान नहीं हैं ? क्या इनके भाई, बहन, माँ, बाप नहीं हैं ?

सबसे खूबसूरत लड़की, सबसे आकर्षक मर्द और सबसे बड़ा गुंडा, जब यह तीनों ही एक शख़्सियत के रूप में आपके सामने आ जाए तो यकीनन आपके पाँवों तले से जमीन सरक जायेगी ।
– उपन्यास में दर्ज विवरण से

किताब निम्न लिंक से खरीदी जा सकती है:
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जीना इसी गली में – अनिल मोहन

जीना इस गली(Jeena Is Gali Mein) में अनिल मोहन (Anil Mohan) की देवराज चौहान श्रृंखला (Devraj Chauhan Series) का उपन्यास है। यह बात ही मेरे लिए इस उपन्यास को खरीदने के लिए काफी थी। 
आप उपन्यास के विषय में बैक कवर में क्या लिखा है यह एक बार पढ़िए:

साधारण दिखने वाली बैंक वैन रॉबरी को देवराज चौहान के दखल के बाद साधारण नहीं रही। डकैती का ऐसा मंजर जिसने धुरंधरों के छक्के छुड़ा दिए। 
है न रोचक? अब देखना तो यह है कि साधारण वैन बैंक रॉबरी कैसे असाधारण बन गयी और क्या देवराज को इस बार कुछ मिल पाया?  इस उपन्यास में अनिल मोहन का लेखकीय भी है जो कि अच्छी बात है। लेखकीय में क्या है यह तो आप उसे पढ़कर ही पता लगाइयेगा।
 
फिलहाल मुझे भी लग रहा है कि देवराज से मिले हुए मुझे काफी समय हो गया है। जल्द ही उससे मिलना होगा। अब मेरे पास इस श्रृंखला के काफी उपन्यास हो भी चुके हैं। देखना यह है कि किस उपन्यास के माध्यम से मैं उससे मिलने का फैसला करता हूँ। 
किताब निम्न लिंक से खरीदी जा सकती है:
 यू ब्लडी शिट पंजाबी – लोकेश गुलयानी

यू ब्लडी शिट पंजाबी (You bloody Shit Punjabi) लोकेश गुलयानी (Lokesh Gulyani) का नवप्रकाशित हिन्दी कहानी संग्रह है। चूँकि मुझे उनके द्वारा लिखी गयी जे और बोध पसंद आई थी और इस कहानी संग्रह के शीर्षक ने मुझे आकर्षित किया था तो मैंने इसे लेने का फैसला कर लिया था। 

इस किताब के विषय में मैंने वेबसाइट में एक अलग से पोस्ट बनाई है और किताब के सम्बन्ध में उनका साक्षात्कार भी लिया था। आप दोनों चीजें निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

किताब परिचय: यू ब्लडी शिट पंजाबी
यू ब्लडी शिट पंजाबी पर लोकेश गुलयानी से बातचीत

किताब निम्न लिंक से खरीदी जा सकती है:
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अ फिस्टफुल ऑफ़ अर्थ – सिद्धार्थ गिगू

अ फिस्टफुल ऑफ़ अर्थ एंड अदर स्टोरीज (A fistful of earth and other stories) सिद्धार्थ गिगू (Siddhartha Gigoo) की 16 कहानियों का संग्रह है। यह अंग्रेजी कहानी संग्रह है। इस संग्रह की सभी कहानियाँ कश्मीर की पृष्ठ भूमि पर ही लिखी गयी हैं। 

कश्मीर भारत का ऐसा हिस्सा है जो अपनी खूबसूरती के लिए जितना प्रसिद्ध है उतना ही वहाँ की राजनितिक गतिविधियों के लिए चर्चा का केंद्र बना रहता है। हम सबकी कश्मीर को लेकर कुछ न कुछ धारणाएं रही हैं जिन्हें हम अपने पूर्वाग्रहों से पोसते रहते हैं। और यह सब हम उस जगह को जाने बिना ही करते हैं। ऐसे में साहित्य एक दरवाजा खोलता है, एक ऐसा दरवाजा जहाँ हम चीजों को एक अलग नजर से देखते हैं। एक ऐसी नजर जिसकी शायद जरूरत हम सभी को है। यही कारण है कश्मीर की पृष्ठभूमि पर लिखा गया साहित्य मुझे रोचक लगता है।

किताब निम्न लिंक से खरीदी जा सकती है:
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द हाउस ऑफ़ थाउजेंड स्टोरीज – अरुनी कश्यप

द हाउस ऑफ़ थाउजेंड स्टोरीज (The House of Thousand Stories) अरुनी कश्यप (Aruni Kashyap) का अंग्रेजी उपन्यास है। इस उपन्यास को लेने से पहले मैं इस उपन्यास के विषय में कुछ भी नहीं जानता था। मुझे याद नहीं कि मैं अमेज़न पर उस दिन क्या देख रहा था लेकिन इस पर नजर पड़ी और फिर इसे लेने का मन बना दिया। 

अगर कहानी की बात करूँ तो यह पाब्लो की कहानी है। 2002 का समय है और पाब्लो अपनी बुआ की शादी के लिए अपने गाँव मायोंग आया हुआ है। पाब्लो ने अपना ज्यादातर वक्त गुवाहाटी शहर में ही बिताया है और यह दूसरी बार हुआ है कि वह अपने गाँव इस तरह आया है। इस शादी की तैयारी के दौरान उसे अपने परिवार और उसमें मौजूद सदस्यों के बीच के समीकरण का पता चलता है। उसे कई नये अनुभव होते हैं और वह पहली बार प्यार में पड़ता है।

यह सब कैसे होता है यह इस उपन्यास का कथानक बनता है।

मेरी बहुत दिनों से इच्छा थी कि उत्तर पूर्वी राज्यों में बसाई गयी कोई कहानी पढूँ। यह विवरण पढ़ा तो रोचक लगा और इसे खरीद लिया। एक तो यह उपन्यास आसाम में बसाया गया है और फिर एक शहरी लड़के के नज़र से गाँव को और उसके लोगों को देखना मुझे लगता है रोचक होगा। आसाम के शहरी जीवन और ग्राम्य जीवन के फर्क को भी देखने को शायद मुझे मिलेगा। वहीं जब मैंने गूगल में मायोंग के विषय में ढूँढा तो पता चला कि यह गाँव इसलिए भी विख्यात है क्योंकि इधर के लोग तंत्र मन्त्र साधना में विश्वास करते हैं और वो लोग इन्हें काफी मानते हैं। गढ़वाल के पहाड़ से मैं आता हूँ और इस चीज का चलन हमारे यहाँ भी है लेकीन जितना इधर है उससे कम है। क्या इस उपन्यास में इस चीज का भी जिक्र होगा? मुझे देखने होगा। इस चीज ने मेरी इस उपन्यास में रूचि और बढ़ा दी है।

उपन्यास की काफी तारीफ़ भी की गयी है। अब देखना है कि कैसा बन पड़ा है। 

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द एडवेंचर्स ऑफ़ काकाबाबू -सुनील गंगोपाध्याय

काकाबाबू के विषय में मैंने सबसे पहले तब जाना जब मैंने अमेज़न प्राइम मौजूद फिल्म येती ओभियान देखा। येती ओभियान में काकाबाबू चीन से जुड़ी बॉर्डर में यति की तलाश में जाते हैं। इसी फिल्म ने मेरी रूचि काकाबाबू में जगाई और मैंने अमेज़न में जाकर सुनील गंगोपाध्याय (Sunil Gangopadhay) ने इस किरदार को लेकर जो उपन्यास लिखे हैं उन्हें तलाश किया।  वैसे तो मैं मूल बांग्ला से  हिन्दी में अनूदित उपन्यास लेना चाह रहा था लेकिन चूँकि मुझे मिले नहीं तो अंग्रेजी में अनूदित  द एडवेंचर्स ऑफ़ काकाबाबू (The adventures of Kakababu) ली। 

राजा रॉयचौधरी, जो कि काका बाबू के नाम से प्रसिद्ध है, अफगानिस्तान में एक सीक्रेट मिशन के दौरान बुरी तरह घायल होने के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के निदेशक के पद से इस्तीफा दे देते हैं और अपने घर लौट आते हैं। दुर्घटना में उनकी टांग काटनी पड़ी थी लेकिन अपनी इस कमी के बावजूद वो अलग अलग रहस्यों को सुलझाने की इच्छा रखते हैं और अपनी इसी इच्छा के चलते कई रहस्यों से दो चार हो जाते हैं। यह रहस्य ही उन्हें अनेक रोमांचक जगहों पर ले जाते हैं जहाँ वो अपने तेरह वर्षीय भतीजे शोंटू के साथ जाते हैं। 

इन्हीं रोमांचक कारनामों में से दो कारनामों को इस किताब में जगह दी गयी है। यह निम्न हैं:

द एम्पर्रस लॉस्ट हेड

किताब के बैक कवर में मौजूद जानकारी के अनुसार इस उपन्यास में काकाबाबू शोंटू को लेकर काश्मीर जाते हैं। यहाँ जाने का उनका उद्देश्य  एक गुप्त सल्फर (गंधक) की खदान को ढूँढना है। यह खदान वो क्यों ढूँढना चाहते हैं और इस  कार्य में उन्हें किन किन मुसीबतों से दो चार होना पड़ता है यह तो उपन्यास पढ़कर ही पता चल पायेगा। 

किंग ऑफ़ एमराल्ड आइल

किंग ऑफ़ एमराल्ड आइल में काकाबाबु शोंटू को हिन्द महासागर (इंडियन ओशन) में मौजूद एक टापू पर लेकर जाते हैं। वह टापू में क्यों जाते हैं और उधर उनके साथ क्या होता है यह भी उपन्यास को पढ़कर पता चलेगा। हाँ, इतना तो तय है कि कुछ न कुछ रोचक आवश्यक जरूर होगा।

दोनों ही उपन्यास मुझे तो रुचिकर लग रहे हैं और अब तक मुझे यही लग रहा है कि फिल्म देखकर किताब मंगवाने का मेरा यह निर्णय गलत तो नहीं है। बाकी तो आगे ही पता चलेगा।

किताब निम्न लिंक से खरीदी जा सकती है:
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विद ऐश ऑन देयर फेसेस – कैथी ओटन

विद ऐश ऑन देयर फेसेस (With Ash On their Faces) कैथी ओटन (Cathy Otten) द्वारा लिखा गया  रिपोर्ताज है। इस रिपोतार्ज  में यज़ीदी औरतों की दास्ताँ लिखी गयी है। 

2014 में जब इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने उत्तरी ईराक में मौजूद यज़ीदी लोगों पर हमला किया तो उन्होंने काफी मर्दों को तो मार दिया लेकिन हजारों औरतों को अपने साथ इस्लामिक स्टेट लेकर चले गये ताकि उन्हें वहाँ मौजूद लड़ाकों को यौन गुलामों की तरह बेच दें। यह रिपोर्ताज इन्हीं औरतों की कहानी है। 

इस रिपोर्ताज से मैं अमेज़न में टहलते हुए ही वाकिफ हुआ और इसने मेरी रूचि अपनी तरफ कुछ इस तरह आकर्षित की कि मैं इसे लेने को विवश हो गया।

धर्मांधता किस हद तक व्यक्ति को क्रूर बना देती है यह किताब इसका ही उदाहरण है।

किताब निम्न लिंक से खरीदी जा सकती है:
पेपरबैक

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तो यह था सितम्बर में खरीदी हुई किताबों का ब्यौरा। 

कुछ दिनों पहले ही सितम्बर के महीने में पढ़ी गयी किताबों का ब्यौरा मैंने दिया था। उस ब्यौरे को निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

सितम्बर में पढ़ी गयी किताबें 

आपने सितम्बर के महीने में कौन सी किताबें खरीदी हैं? मुझे बताइयेगा? 

क्या आपने ऊपर दी गयी किताबों में से कोई किताबें पढ़ी हैं? अगर हाँ, तो मुझे उनके विषय में अपने राय से जरूर अवगत करवाईयेगा। 

© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “बुक हॉल: सितम्बर में खरीदी गई किताबें”

  1. बहुत सुन्दर जानकारियाँ

  2. बहुत बढिया जानकारी, किताबों की प्रति उत्सुकता जगाती है आपका लेख…..

    1. लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

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