एक थी मल्लिका – शोभा शर्मा | फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन

 संस्करण विवरण

फॉर्मैट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 147 | प्रकाशक: फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन 
पुस्तक लिंक: अमेज़न

कहानी 

टीकमगढ़ की वह हवेली भौजी की हवेली कहलाती थी। वह हवेली वहाँ के लोगों के लिए खौफ का एक कारण बन चुकी थी। शाम होते ही सभी उस हवेली के आगे से निकलना छोड़ देते थे।
 
क्योंकि वहाँ बैठी रहती थी वह अनिद्य सुंदरी मल्लिका जो लोगों से अपने बालों से गिरा हुआ गुलाब का फूल लाने का आग्रह किया करती थी। 
लोग जानते थे जिसने भी यह आग्रह माना वो कभी लौट कर नहीं आया था। 
आखिर कौन थी यह मल्लिका?
क्या था उस हवेली का राज?
क्यों वह आने जाने वालों से गुलाब माँगती थी?

किरदार 

राजू और जग्गू – लल्लूराम हलवाई के सहायक जो झांसी से टीकमगढ़ आए थे
मल्लिका – हवेली की भौजी
सामंत सिंह – मल्लिका के दादा ससुर
शेर सिंह – सामंत सिंह का पोता
नन्हे – दुलारी का पिता
दुलारी – मल्लिका का घर का नाम
रसवंती – महल की मुख्य सेविका 
कमलालक्ष्मी – मल्लिका की सास
लीना – नाँवेल्जिया सर्कस की जिम्नास्ट 
नितेश – नाँवेल्जिया सर्कस का जोकर जो गायब हो गया था

मेरे विचार

 ‘एक थी मल्लिका’ ( Ek thi Mallika) लेखिका शोभा शर्मा (Shobha Sharma) का लिखा हुआ उपन्यास है। उपन्यास फ्लाईड्रीम्स पब्लिकेशन (flydreams publication) द्वारा प्रकाशित किया गया है। उपन्यास के अब तक दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इसका पहला संस्करण मात्र 68 पृष्ठ का था और इसका दूसरा संस्करण जब प्रकाशित हुआ तो लेखिका द्वारा कथानक में वृद्धि करके इसे लगभग 150 पृष्ठ का कर दिया था। यहाँ ये बताना भी जरूरी है कि उपन्यास के प्रथम संस्करण और द्वितीय संस्करण दोनों ही दस दस अध्यायों में विभाजित थे। ऐसे में दोनों संस्करणों की मूल कहानी एक जैसी है बस अध्यायों में दर्शाये गए घटनाक्रम को लेखिका ने वृद्धि दी है। इस वृद्धि ने ही उपन्यास के किरदारों को और जीवंत कर दिया था। ऐसे में इस बात में दोराय नहीं है कि वृहद संस्करण संक्षिप्त से बेहतर है और यह बात मैं दोनों संस्करण पढ़ने के पश्चात ही कह रहा हूँ। मेरा सुझाव यही रहेगा कि आप वृहद संस्करण ही पढ़ें। वैसे भी संक्षिप्त संस्करण अब शायद ही आपको कहीं मिले। 

कहते हैं अगर कोई व्यक्ति अधूरी इच्छा लिए मृत्यु को प्राप्त करता है तो उसकी आत्मा भटकने लगती है और वह प्रेतयोनि में दाखिल हो जाता है। प्रस्तुत उपन्यास एक थी मल्लिका भी ऐसे ही किरदारों की कहानी है जो कि प्रेत योनि में मौजूद हैं। उपन्यास का घटनाक्रम उन्नीसवें सदी के छठवें सातवें दशक यानी 1860 से 1870 के करीब मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ इलाके में घटित होता है और उपन्यास का कथानक लेखिका की बचपन में सुनी एक कथा पर आधारित है। 
‘एक थी मल्लिका’ का अस्तित्व, शायद बीज रूप में किशोरावस्था से ही दादी के मुँह से कभी सुना होगा, मेरे मन के किसी कोने में पड़ा हुआ था। (उपन्यास में मौजूद लेखकीय से)
उपन्यास के केंद्र में एक हवेली है जिसमें बैठी एक अद्वितीय सुंदरी राह चलते लोगों को अपने पास बहाने से बुलाती है और फिर उन लोगों का कभी पता नहीं लगता है। यह सुंदरी कौन है? वह क्यों लोगों को बुलाती है? हवेली में सुंदरी के अलावा कौन कौन है? ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर हमें कथानक में पढ़ने को मिलते हैं। 
किरदारों की बात करूँ तो कथानक के केंद्र में मल्लिका है। जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है आपको मल्लिका की कहानी पता चलती है और उसके प्रति आपकी सांत्वना बढ़ती चली जाती है। रसवंती कथानक का एक महत्वपूर्ण किरदार है। उसका नजरिया हमें एक ही बार देखने को मिलता है लेकिन इस किरदार की सोच को, इसके नजरिए को लेखिका और एक्सप्लोर कर सकती थीं। इसके अतिरिक्त जग्गू और राजू के किरदार भी रोचक हैं। चूँकि मल्लिका कहानी इन्हें ही सुना रही है तो इनके साथ साथ पाठकों को वह कहानी सुनने को मिलती है। यह दोनों ही किरदार हास्य के तत्व भी कथानक में लेकर आते हैं। इनकी आपसी खुसुरपुसुर और आपसी टाँग खिंचाई कई बार पढ़ते हुए चेहरे पर मुस्कान ला देती है। उपन्यास के बाकी किरदार कथानक एक अनुरूप ही हैं।  
लेखिका की भाषा पर पकड़ मजबूत है और वह शब्दों एक माध्यम से दृश्यों को उभारने का कार्य बाखूबी करती हैं।  उदाहरण देखिए:

वाकई बारिश से ठंडाती रात सन्नाने लगी थी। कुत्ते इत्यादि रात में घूमने वाले जानवर भी कहीं दूर दुबके पड़े थे, उनकी आवाज भी ना आती थी। ऊपर आकाश में चाँद अपने पूरे शबाब पर था। कभी-कभी तो ऐसा महसूस होता था कि एक सभा बैठी है, जिसका सभापति चाँद है और सभी अपनी-अपनी परेशानियाँ निवेदन कर रहें हों। सभा से बेखबर, कोई दो-तीन साल की मुनिया सी बिटिया चाँदनी मानो बारादरी, हवेली के सहन और बाहर, चारों ओर अठखेलियाँ करती गाती फिर रही हो। उधर चमकते चाँद ने खेल-खेल में अपने दोस्त सितारों के ऊपर एक झीनी सी चादर डाल दी थी, मानो कह रहा हो कि बच्चो! अब निकल कर दिखाओ इसमें से!? चाँदी की गेंद समझ कर खेला था न मुझसे? अब बताता हूँ मैं तुम्हें! वह फिर आँखें गोल-गोल घुमाता, किसी शोहदे उद्दंड बच्चे सा शैतानी से हँस रहा था। (पृष्ठ 33)

 उन्होंने हिंदी के साथ स्थानीय भाषा का प्रयोग किया है जो कि पात्रों को जीवंत बनाता है। उपन्यास का कथानक  पारलौकिक चरित्रों  के विषय में जरूर है लेकिन लेखिका ने कथानक के माध्यम से वहाँ के समाज, वहाँ की परंपराएँ, उस समाज में स्त्री की स्थिति, किसानों की स्थिति, राजा महाराजों के महलों में होने वाले षड्यन्त्र और इन षड्यंत्रों में पिसने वाले लोगों की दशा का भी वर्णन किया है। कथानक के साथ साथ किरदारों की स्थितियों पर भी वह टिप्पणी करती रहती हैं जो कि सोचने के लिए व्यक्तियों को काफी कुछ दे जाती हैं। उदाहरण के लिए:

कहते हैं कि घोड़े की पिछाड़ी और राजा, अफसर की अगाड़ी से सदैव बचना चाहिए। इसी में खैर है। कहीं चढ़ गये हत्थे तो बवाल ही बवाल है। (पृष्ठ 23) 

 

ऐसा अक्सर हो जाता है, जब बेमेल विवाह हो। जब बेटी अपने से ऊँचे घर खानदान में ब्याही जाए, जो पक्ष निचली पायदान पर होता है, वो हमेशा धूल, मिट्टी, घास के तिनकों की भांति पैरों में रोंदा जाता है।(पृष्ठ 44)

 

एक उम्र होती है जीवन में, जब इंसान पलट-पलट कर झाँकता है अपने बीते जीवन में कि उसने क्या खोया? क्या पाया? सोचने विचारने लगता है कि उसने क्या गलत किया? कहाँ गलती हुई उससे? जिन गलत कार्यों के लिए उसे प्रायश्चित करने होंगे उन्हें खोजते हुए वह अपने बीते हुई जीवन कि यात्रा मन ही मन बारंबार करता है। बाहरी यात्रा को त्याग वह भीतरी यात्रा करते हुए बाकी का जीवन बीतता है। ऐसे में उसे कोई ऐसा साथी चाहिए होता है जो उसके साथ बैठकर उसकी स्व की यात्रा में, खोज में उसके उजले पहलू याद दिलाये ताकि उन्हें यादकर वह गिल्टी से बाहर निकाल सके और अपने अच्छे कर्मों को यादकर सुकून से, चैन से जी सके।(पृष्ठ 99-100) 

 

ऐसा रिवाज क्यों है कि प्रत्येक पिता अपने बेटे को महल, दुमहले, समस्त संपत्ति सौंपता है और बेटी को आंख की किरकिरी समझ कर परदेश ब्याह देता है। कभी-कभी खबर खोज ले लेने से उसके कष्ट तो नहीं मिट जाते, जबकि दोनों एक ही पिता की संतान हैं। 

क्यों नहीं पिता अपनी कन्या को भी वही सम्मान, सुख, प्यार, संवेदनायें नहीं देता? क्यों पिता वर बने बेटे का नहीं, बेटी का दान करके स्वर्ग का रास्ता खोजना चाहता है? 

पिता के उसी रक्त, माँस, मज्जा, वीर्य से तो बेटी का भी तो निर्माण हुआ है। 

ओ पिता! फिर अपनी बेटी के साथ ही ऐसा भेदभाव क्यों?

(पृष्ठ 128)

 

चूँकि उपन्यास के किरदार पारलौकिक हैं खौफ के दृश्य भी उपन्यास में मौजूद हैं। यह दृश्य भी सुंदर बन पड़े हैं और भय उत्पन्न करने में सफल होते हैं। 
उपन्यास की कमी की बात करूँ एक आध जगह संपादन की त्रुटि मुझे लगी। 
जैसे उपन्यास में मल्लिका जब पहली बार अपने गाँव पहुँचती है तो कहानी प्रथम पुरुष में थी। फिर अचानक तृतीय पुरुष में चली जाती और फिर वापस प्रथम पुरुष में आ जाती है। प्रथम पुरुष में कहानी का होना समझ में आता है क्योंकि मल्लिका अपनी कहानी सुना रही होती है। ऐसे में अचानक तृतीय पुरुष में जाना खटकता है। 
राजू जग्गू को भी न जाने क्या हुआ था। जाना भूले, अपना काम काज भूले, घर द्वार भूले, बस सुने जा रहे थे मल्लिका भौजी की कहानी, उन्हीं के मुंह से। “फिर लाला हम अपने घर उतरीं जाकर। थकान तो बस गाँव के बाहर ही थी, जैसे ही गाँव में प्रवेश किए तो ऐसे लगा स्वर्ग में आ गए हों।
….
लाजो ने ननद को आते ही चिढ़ाना शुरु कर दिया था। वह स्वभाव से बहुत ही हँसमुख थी, आज ठिठोली का कोई मौका नहीं छोड़ने वाली थी।
 (पृष्ठ 44-45) 
(इधर ननद को नहीं हमको होना चाहिए था…)
बीच में दादा ठाकुर का लाव लश्कर सहित फेरा लगा, अपने राज्य संबंधी कार्यों से तो वह दुलारी के सिर पर भी हाथ फेरते गए, आशीर्वाद देते गए। 
******
दो साल बीतते ना बीतते हमारा गौना हुआ, दूसरी बार फिर ससुराल हवेली में आ गयी। अबकी बार वह तेरह की हो गई थी और विवाह के बाद ससुराल में रहने के बहुत कुछ नियम, तहजीब सिखाकर भेजी गयी थी। (पृष्ठ 49)
पृष्ठ 49 में आकर फिर प्रथम पुरुष में कहानी चलने लगती है।
 ऐसे में उसे कोई ऐसा साथी चाहिए होता है जो उसके साथ बैठकर उसकी स्व की यात्रा में, खोज में उसके उजले पहलू याद दिलाये ताकि उन्हें यादकर वह गिल्टी से बाहर निकाल सके और अपने अच्छे कर्मों को यादकर सुकून से, चैन से जी सके।
(पृष्ठ 99-100)
यहाँ ग्लानि से बाहर निकल सके शायद होगा न कि गिल्टी से बाहर निकाल सके। हिंदी में गिल्टी का मतलब गाँठ होता है। ऐसे में गाँठ अगर लेखिका का मन्तव्य हो तो अलग बात है लेकिन ऐसा लगता नहीं है। 
 हाँ, एक चीज में शंका है। हवेली के कुएँ में तेरह कंकाल मिलते हैं जिसमें एक महिला का और बाकी 12 नर रहते हैं। कहानी में मल्लिका की एक सेविका का कत्ल भी होता है। उसका कंकाल भी गायब कर दिया गया होता है। इस कंकाल का क्या हुआ था? इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी है। 

एक और चीज मुझे खटकी थी। उपन्यास के संक्षिप्त संस्करण में यह बात एक सस्पेंस रहती है कि कौन हवेली के अंदर मौजूद लोगों को गायब कर रहा है। पर इस वृहद संस्करण में चीजों को बढ़ाने के चक्कर में एक हिंट दे दिया गया है जिससे पता लग जाता है कि लोगों को गायब करने के पीछे किसका हाथ है। अगर यह सस्पेंस आखिर तक बचाकर रखते तो बेहतर होता। इधर ये भी बताना जरूरी है कि संक्षिप्त संस्करण में मल्लिका का किरदार इतना बड़ा नहीं था और उसे पढ़ते हुए मुझे लगा था कि कहानी का शीर्षक हवेली या टीकमगढ़ की हवेली या ऐसा ही कुछ होता तो बेहतर होता। लेकिन वृहद संस्करण में मल्लिका के किरदार को लेखिका ने इतना विस्तार दे दिया है कि शीर्षक सटीक लगता है। इस मामले में वृहद संस्करण बेहतर है। 
अगर भूखी आत्माएँ और काली बिल्ली नामक अध्याय की बात करें तो उधर दो चरित्रों का जिक्र है जो कि हवेली से निकलने में कामयाब हो जाते हैं। यह दोनों कैसे निकल पाए इसका कोई ठोस कारण नहीं दिया गया है। इनसे पहले भी कई लोग गए थे जो निकल न पाए थे। जो इन किरदारों के घरवालों के किया वो दूसरों के भी ने किया होगा। ऐसे में वो क्यों न निकल पाए? इस बात का उत्तर अगर कथानक में दिया होता तो बेहतर होता। 
इसके अतिरिक्त ऐसी कोई खास कमी मुझे उपन्यास में नहीं दिखी।
अंत में यही कहूँगा कि उपन्यास रोचक है और उन्नीसवीं सदी के बुन्देली समाज के जीवन को दर्शाता है। लेखिका की भाषा पर पकड़ मजबूत है और लेखन में प्रयोग बुन्देली भाषा और बुन्देली गीत उनके लेखन को सजाने का कार्य करते है। उपन्यास में हॉरर के तत्व तो हैं ही साथ ही यह सोचने के लिए आपको काफी कुछ दे जाता है। 
पुस्तक लिंक: अमेज़न

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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10 Comments on “एक थी मल्लिका – शोभा शर्मा | फ्लाईड्रीम्स प्रकाशन”

  1. बहुत ही उम्दा समीक्षा। मजा आ गया पढ़कर। चूंकि यह किताब मैंने भी पढ़ी हुई है परंतु जिस तरह से इसके पात्रों और दृश्यों का सटीक विवरण किया गया है वह काबिलेतारीफ के योग्य है। यह किताब वाकई पढ़ने लायक है क्योंकि मुझे इसकी भाषा शैली जबरदस्त लगी थी।

    1. पुस्तक पर लिखा यह लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

    1. Do Try Reading it. The book is available on Kindle Unlimited too. Would love to hear what you think about it.

  2. I don't have Kindle Unlimited subscription. Many books on my TBR list are not on KU. How does it work?Can I have it just for a month and then discontinue? How many books can I borrow in a month, and would those books remain in my Kindle shelf to read anytime I want in case I couldn't read them in a month? Sorry for asking too many questions.

    1. Oh. I find KU very useful. Now a days rajkamal, prabhat, Rajpal, Hind Yugm and many more publishers have their books on it so you'd have a lot of literature to explore.
      Yes, you can have the subscription for a month only too. One can download at most twenty books. It's like a library. Once you read it you can return that book and download another one. If your subscription ends than those books would cease to exist on your library. I have annual subscription which comes around 150 rupess per month which i find is very nominal amount for this kind of service.

  3. क्या बात है, विकास जी, वाह 🙏

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