संस्करण विवरण
फॉर्मैट: पेपर बैक | पृष्ठ संख्या: 44 | प्रकाशक: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास | चित्रांकन: अबीरा बंद्योपाध्याय
पुस्तक लिंक: एनबीटी
कहानी
गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हो गई थी और गनेश को खुश होना चाहिए था। वह खुश तो था पर इस खुशी में थोड़ी परेशानी भी घुली हुई थी क्योंकि गनेश की हिंदी शिक्षिका ने उन्हें छुट्टी की एक डायरी बनाने को कहा था।
गनेश इन गर्मियों की छुट्टियों में अपने नाना जी के घर अखनूर जाना चाहता था।
पर अब यह डायरी का चक्कर उसे परेशान किए हुए था। गनेश को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी इस डायरी में क्या लिखेगा।
क्या गनेश की डायरी बन पायी?
उसने अपनी डायरी में क्या लिखा?
मेरे विचार
स्कूल के दिनों में बच्चों को सबसे अधिक प्रतीक्षा छुट्टियों की रहती है। यह छुट्टियाँ ही होती हैं जिनमें बच्चों को अपने रूटीन से निजाद मिलती है और कहीं घूमने फिरने का भी मौका लगता है। छुट्टियों में स्कूल की तरफ से काम जरूर मिलता है लेकिन छुट्टियों की मस्ती इतनी होती है कि काम की चिंता कम ही होती है।
यशपाल निर्मल की प्रस्तुत कहानी ‘डायरी’ एक बच्चे गनेश की कहानी है जिसकी गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू हो गई हैं। उसे स्कूल की तरफ से काम मिला है और इन्हीं कामों में से एक काम छुट्टियों का ब्यौरा डायरी के रूप में लिखना है। गनेश छुट्टियों में अपने नाना जी के यहाँ जाता है और उसके नाना जी डायरी बनाने में किस तरह उसकी मदद करते हैं यह कहानी बनती है।
चूँकि गनेश को डायरी लिखनी होती है तो इसके लिए उसे जगह जगह जाना होता है। लेखक ने इस चीज का प्रयोग कर अखनूर के दर्शनीय स्थलों की जानकारी पाठकों को दी है। इसके साथ ही चूँकि कहानी की पृष्ठभूमि जम्मू की है तो उधर के खान पान और जीवन की झलक भी इधर देखने को मिलती है।
कहानी की कमी की बात करूँ तो वह यही है कि चूँकि इसमें डायरी लिखना मुख्य बिंदु है कहानी का ज्यादातर हिस्सा नाना जी द्वारा अखनूर के स्थलों की कथा ही बनता है। कथा में गनेश के अलावा उसके मामा के बच्चे वंशू और विनायक भी हैं। लेखक अगर इनके बीच होने वाली मस्ती पर भी फोकस करते तो कहानी और ज्यादा रोचक बन सकती थी।
कहानी को अबीर बंद्योपाध्याय के चित्रों द्वारा सजाया गया है जो कि कहानी के अनुसार ठीक हैं। कलाकार ने इधर पेंटिंग के साथ तस्वीरों का प्रयोग भी किया है जो कि अलग तरह का अनुभव पढ़ते हुए देता है।
आखिर में यही कहूँगा कि यह कहानी अखनूर, जहाँ की लेखक हैं, के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों की जानकारी देने में सफल होती है। बस इस चक्कर में बच्चों और उनके आपसी समीकरण दर्शाने से फोकस हट गया है जिससे कहानी में रोचकता उतनी नहीं रहती है। अगर कहानी को रोचक बनाने पर भी थोड़ा ध्यान अधिक दिया होता तो बेहतर होता।
पुस्तक लिंक: एनबीटी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (29-06-2023) को "रब के नेक उसूल" (चर्चा अंक 4670) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा अंक में पोस्ट को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।