राजकमल प्रकाशन की नई पहल—‘राजकमल उर्दू’ : दो ज़ुबानें एक रास्ता

राजकमल प्रकाशन की नई पहल—‘राजकमल उर्दू’ : दो ज़ुबानें एक रास्ता

16 जुलाई, 2025 (बुधवार)

नई दिल्ली। राजकमल प्रकाशन ने उर्दू और हिन्दी के बीच संवाद को बढ़ाने की दिशा में एक नई पहल की घोषणा की है। प्रकाशन ने कहा है कि वह ‘राजकमल उर्दू’ के तहत उर्दू का चुनिंदा और महत्वपूर्ण साहित्य देवनागरी लिपि में प्रकाशित करेगा।

राजकमल पिछले अस्सी वर्षों से हिन्दी के श्रेष्ठ लेखन के साथ-साथ उर्दू का चुनिंदा साहित्य भी देवनागरी में प्रकाशित करता रहा है। हिन्दीभाषी समाज को अगर समग्रता में समझना है तो हिन्दी और उर्दू―दोनों ज़ुबानों के साहित्य को पढ़ने की ज़रूरत स्वाभाविक है।

उर्दू का साहित्य-संसार अनोखा और बड़ा है। अब तक बहुत काम होने के बावजूद उसका एक छोटा-सा हिस्सा ही हमारे सामने आ सका है; और यह फ़ासला समय के साथ बड़ा होता गया है। इस ज़रूरत पर अरसे से चर्चा बनी हुई है कि इस बढ़ते फ़ासले को कम किया जाए। राजकमल प्रकाशन इसी मंशा से ‘राजकमल उर्दू’ की शुरूआत करने जा रहा है।

तसनीफ़ हैदर

‘राजकमल उर्दू’ के सम्पादन की ज़िम्मेदारी कथाकार, शायर और पॉडकास्टर तसनीफ़ हैदर संभाल रहे हैं। उन्होंने अपनी ‘और’ नामी पत्रिका और वेबसाइट दोनों के ज़रिये हिन्दी के कई लेखकों, कवियों को उर्दू के पाठकों तक पहुँचाया है और उर्दू के अदीबों का काम भी हिन्दी पाठकों के लिए लाते रहे हैं। उनका ‘अदबी दुनिया’ के नाम से एक ऑडियोबुक चैनल भी है जिसके ज़रिये हज़ार से ज़्यादा उर्दू कहानियाँ, अहम शायरों के कई मजमूए और क़ाबिल-ए-ज़िक्र उपन्यास पेश किए जा चुके हैं।

‘राजकमल उर्दू’ की घोषणा करते हुए राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष अशोक महेश्वरी ने बुधवार को कहा, हिन्दी और उर्दू साझी ज़मीन की ज़ुबानें हैं। एक-दूसरे के बिना ये नामुक्कमल हैं। हमारे अनुभव में उर्दू से हिन्दी में आने के लिए ‘अनुवाद’ नहीं, सिर्फ़ ‘लिप्यन्तरण’ की ज़रूरत होती है क्योंकि भाव, व्याकरण, मुहावरे, सब साझे होते हैं। लिपि की भिन्नता के कारण शायद दूरी अधिक बढ़ी है, जबकि साहित्य के ज़रिए इन दोनों भाषाओं के समाज के बीच आपसदारी अधिक होनी चाहिए थी।

उन्होंने कहा, आज जब उर्दू शायरी हिन्दी भाषी युवाओं में आश्चर्यजनक रूप से लोकप्रिय हो रही है, जब दोनों भाषाओं के लेखक और पाठक साझा मंचों पर आ रहे हैं, तब यह ज़रूरी है कि प्रकाशन जगत भी इस संवाद को मजबूती दे। हमारा मानना है कि भाषाओं के बीच दूरियाँ तभी दूर हो सकेंगी जब हम उनके बीच संवाद को बढ़ाएँगे। ‘राजकमल उर्दू’ का विचार हमारे उसी प्रतिबद्ध विश्वास से निकला है कि साहित्य सीमाएँ नहीं, बल्कि पुल बनाता है। हम तसनीफ़ हैदर का स्वागत करते हैं और आश्वस्त हैं कि उनके साथ मिलकर यह पहल एक सृजनात्मक सांस्कृतिक संवाद को नई दिशा देगी।

इस मौक़े पर तसनीफ़ हैदर ने कहा, ‘राजकमल उर्दू’ की शुरुआत इस एहसास से हो रही है कि देवनागरी पढ़नेवाले बड़े हिन्दी पाठकवर्ग तक उर्दू की अहम किताबों को पहुँचाना अब एक ज़रूरत बन चुका है। तमाम कोशिशों के बावजूद हिन्दी समाज उर्दू के बेहतरीन लेखन से एक अरसे से महरूम रहा है। ऐसे वक़्त में, जब ज़बानों के नाम पर हर तरफ़ नाइत्तिफ़ाक़ियाँ गहराती जा रही हैं, इन दो जुड़वां तहज़ीबों—हिन्दी और उर्दू—को क़रीब लाने की सख़्त ज़रूरत है, ताकि हिन्दी साहित्य और समाज में उर्दू की अहमियत और उसकी तहज़ीबी समझ को नए सिरे से पैदा किया जा सके। हमारी कोशिश आगे चलकर उर्दू पढ़नेवालों का दायरा भी बढ़ाने की होगी, जहाँ वे न सिर्फ़ नई किताबें, बल्कि मुख़्तलिफ़ ज़बानों के तर्जुमे भी उर्दू में पढ़ सकें।


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