कुछ ही देर अपने बचपन में रहा जा सकता है। लौटकर फिर वहीं आना होता है, जहाँ आज आप हैं और आना भी चाहिए वहीं क्योंकि अभी तक का अपना जीवन आपने-मैंने बच्चे रहकर नहीं जिया, हाँ अपना कुछ बचपन बचाकर अवश्य जिया। आज आप-हम जो कुछ हैं, उसमें बचपन से लेकर आज तक का एक लम्बा सफर है और वह सफर करते हुए आज जहाँ हम पहुँचे हैं, वहीं से सब कुछ देखने की कोशिश कर सकते हैं – कुछ धुँधला, कुछ साफ, कुछ साफ लगता सा मगर असल में वह भी धुँधला है। कुछ तो महज स्वप्न है मगर लगता है, ऐसा तब हकीकत में हुआ था।
– विष्णु नागर, बच्चे की दुनिया का उजाड़(नया ज्ञानोदय फरवरी 2020 में प्रकाशित संस्मरण से)