किस्सा ए काफ्का | रैना उवाच

गजानन रैना साहित्यानुरागी हैं। साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लिखते रहते हैं। उन्होंने फ्रांज़ काफ्का के ऊपर लिखा है। आप भी पढ़िए उनकी यह टिप्पणी। 

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किस्सा ए काफ्का | रैना उवाच
By Anonymous (see File:Kafka.jpg) – Franz Kafka: Pictures of a Life by Klaus Wagenbach (1984), p. 209; sourced to Klaus Wagenbach Archiv, Berlin, Public Domain, 

फ्रांज काफ्का (Franz Kafka) को जहाँ जाॅयस, प्रुस्त और स्ट्राविन्स्की के साथ रखने वाले आलोचक हुये हैं वहीं एडमंड विल्सन जैसे लोग भी थे जो उसको ओवररेटेड, सैडो मैसोचिस्टिक और अपठनीय मानते थे।

विल्सन का कथन था कि वह काफ्का (Franz Kafka) को पढ़ते नाश्ता नहीं कर सकता था।  देखा जाये तो वह बहुत गलत भी नहीं कह रहा था।

काफ्का (Franz Kafka) की रची दुनिया में क्रूरता थी, शर्मिंदगी थी, अपराधबोध था । यहाँ  चूहे, कीड़े, गुबरैले, गिद्ध मंडराते थे, यातनायें होती थीं,  जख्म होते थे और होता था एक नाउम्मीदी का कुहासा।

काफ्का (Franz Kafka) अनिर्णय का शिकार, अनिद्रा का रोगी, जीवन से आतंकित और मृत्यु से मोहाविष्ट था।

फ्रांज काफ्का (Franz Kafka) एक जर्मन भाषा के लेखक थे। काफ़्का का ज्यादातर काम उनकी मृत्यु के बाद ही प्रकाशित हुआ था।

फ्रैंज काफ्का (Franz Kafka) के जीवन की विसंगतियाँ, असीम मेधा, जीवन और शब्दों के प्रति उनकी संवेदना उन्हें एक महान कथाकार और कलाकार बनाती है। 

‘हमें ऐसी किताबें पढ़नी चाहिए, जो कुल्हाड़ी की तरह हमारे अंदर के जमे समंदर के ऊपर पड़ें, हमें चोट पहुँचाए, घायल कर दे। उन किताबों को पढ़ने के बाद हम पहले जैसे बिल्कुल न रहें।’                            

जर्मन लेखक फ्रैंज काफ्का (Franz Kafka) का जन्म प्राग के एक मध्यमवर्गीय जर्मन भाषी बोहेमियन यहूदी परिवार में 3 जुलाई 1883 को हुआ था। वह बीसवीं सदी के सर्वाधिक प्रभावशाली कथाकार और सांस्कृतिक रूप से समझदार लेखक थे। उन्होंने एक समूची पीढ़ी को प्रभावित किया। उनकी रचनाओं के अनुवाद पूरी दुनिया में हुए, जिनमें भारतीय भाषाएँ, और प्रमुख रूप से हिंदी भी शामिल है। उनकी लघु कथा, कहानियों और उपन्यास के कहने ही क्या..।

कम शब्दों में अपनी बात कहने में काफ्का को महारत हासिल थी। खास बात यह कि वह हर हाल में संघर्षरत मानव के पक्ष में थे। तमाम अवसरों के बावजूद काफ्का ने अपनी तमाम जिंदगी अकेलेपन,आंतरिक संघर्ष और विश्वास की तलाश में गुजार दी। 

लाल खपरैल की छत के घर के बाहर  अंग्रेजी अक्षर के लकड़ी के लॉकेट की तरह बने निशान पर  K लिखा है। यानी आप काफ्का के म्यूजियम पहुँच गए हैं । ‘के’ यानी काफ्का। काफ्का यानी विचित्र कथानक और रहस्यमय शब्दों का जादूगर। जो कहते थे, ‘हमें ऐसी किताबें पढ़नी चाहिए, जो कुल्हाड़ी की तरह हमारे अंदर के जमे बर्फ के समंदर को चीरती चली जाए, हमें चोट पहुँचाए, हमें भीतर तक घायल कर दे। हम ऐसी किताबें पढ़े, जिसे पढ़ने के बाद हम वैसे न रहें जैसे हम किताब पढ़ने से पहले थे।’

फ्रैंज काफ्का (Franz Kafka), जो केवल इकतालिस साल की उम्र में एक बंद अँधेरे कमरे में गले के तपेदिक से खाँसते-खाँसते मर गये। वही काफ्का, जिसने मरने से पहले अपने दोस्त और अपनी प्रेमिका से वादा लिया कि वह उसके अब तक लिखे सारे साहित्य को आग में जला दे, क्योंकि वो सब कचरे के अलावा और कुछ नहीं। लेकिन उनके दोनों करीबी दोस्तों ने ये हिम्मत जुटाने में खुद को असमर्थ पाया। उन्होंनें जलाने के बजाए उसे प्रकाशित कराया था। 

‘ मेटामार्फोसिस’ जब छपी तो छपते ही पूरी दुनिया में तहलका मच गया। उनकी कलम में एक जादू था। अतियथार्थवाद के पुरोधाओं में वे अग्रगण्य थे।

वह रातों रात एक इंसान से एक कीड़े में तब्दील होकर उसकी तरह सोच सकते थे। वे एक घिनौने गंदे कीड़े की तरह खुद को रेंगता हुआ महसूस कर सकते थे। वो काफ्का, जो नौकरशाही से बेतरह नफरत करते थे और कहा करते थे कि ‘हर क्रांति आखिरकार भाप बन कर उड़ जाती है, और अपने पीछे नई नौकरशाही का कीचड़ छोड़ जाती है।’

काफ्का कहते थे-‘मैं आपको समझा नहीं सकता। मैं किसी को भी ये समझा नहीं सकता कि मेरे भीतर क्या चल रहा है। और हैरत की बात है कि इसे मैं खुद को समझा भी नहीं सकता कि मेरे अंदर क्या चल रहा है।’ 

काफ्का  प्राग के शानदार महल, प्राग कैसल, के चट्टानी पत्थरों से छोटे से सर्वेंट क्वाटर नम्बर-22 में आकर अपने अंदर का सारा जहर कागजों पर उतार देते थे।  काफ्का खून की उल्टियाँ करते हुए लिखते रहे, लिखते रहे, जब तक कि वह मर नहीं गये।

काफ्का की लघु कहानियों ने समूची दुनिया में अपना रुतबा एस्टैब्लिश किया। काफ्का 20वीं सदी के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक हैं।

काफ्का और उनकी रचनाओं का महत्व इससे समझा जा सकता है कि ‘Kafkaesque’ अंग्रेजी भाषा का एक शब्द बन गया। इसका उपयोग ‘बहकानेवाला’, ‘खतरनाक’, ‘जटिल ‘ आदि के संदर्भ में किया जाने लगा।

– गजानन रैना

 टिप्पणीकार परिचय

गजानन रैना
गजानन रैना बनारस से हैं। वह पढ़ने, लिखने, फिल्मों  व संगीत के शौकीन हैं और इन पर यदा कदा अपनी खास शैली में लिखते भी रहते हैं। 
एक बुक जर्नल में मौजूद उनके अन्य आलेख: गजानन रैना

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About गजानन रैना

गजानन रैना का जन्म फिरोजपुर, पंजाब में  हुआ था। वह वाराणसी में पले, बढ़े हैं। काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से स्नातकोत्तर हैं। वह पढ़ने, लिखने, फिल्मों  व संगीत के शौकीन हैं और इन पर यदा कदा अपनी खास शैली में लिखते भी रहते हैं।  फ्रीलांस अनुवाद व संपादन आय का जरिया । हॉबी ज्योतिष।

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4 Comments on “किस्सा ए काफ्का | रैना उवाच”

  1. भिन्न-भिन्न लेखकों के बारे में रैना जी का ज्ञान अद्भुत है और उनकी टिप्पणियाँ बेमिसाल होती हैं। यदि वह व्यंग्य में हाथ आज़माएँ तो आज के दिनों में, दिग्गज कथाकारों में अग्रणी निकलेंगे।

    1. जी सही कहा आपने। आभार।

    1. लेख आपको पसंद आया यह जानकर अच्छा लगा। आभार।

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