पॉकेट बुक्स में ट्रेडमार्क लेखकों की शुरुआत – योगेश मित्तल

पॉकेट बुक्स में ट्रेडमार्क लेखकों की शुरुआत - योगेश मित्तल

सत्तर के दशक में एक वक़्त ऐसा आया था, जब हर प्रकाशक ने ट्रेड मार्क चलाये।

उस दौर में पुराने स्थापित नामों को छोड़ कर, असली नाम वाले इक्का-दुक्का लेखक ही छपे।

गौरी पॉकेट बुक्स में केशव पंडित नाम से छपने वाले सभी उपन्यास खतौली में रहने वाले राकेश गुप्ता ने लिखे, जिनके कुछ उपन्यास नूतन पॉकेट बुक्स, मेरठ से ‘राकेश पाठक’ नाम से छपे।

‘मनोज’ नाम से मनोज पॉकेट बुक्स में छपने वाले आरम्भिक पच्चीस तीस उपन्यास जमील अंज़ुम ने लिखे, जोकि उर्दू में लिखे होते थे और उनका उर्दू से हिंदी अनुवाद कहिये या रूपांतर – देशराज जी करते थे। उनकी तस्वीरें उपलब्ध नहीं हो सकतीं।

लेकिन पॉकेट बुक्स में ट्रेडमार्क की शुरुआत हिंद या राज ने नहीं की। यह शुरुआत पंजाबी पुस्तक भंडार वालों ने स्टार पॉकेट बुक्स के बैनर के साथ की, जिसमें पहला नाम था राजवंश – राजवंश लिखने के लिए उर्दू में लिखने वाले आरिफ मारहर्वीं साहब को अनुबंधित किया गया, जो पहले कैसर हयात निखट्टू ( मार्शल क्यू) के उपन्यास लिखते थे।

उसके बाद स्टार ने ही समीर, लोकदर्शी आदि कई नाम पैदा किये। स्टार के ट्रेडमार्क लेखकों की सफलता ने ही सबसे पहले ‘हिंद’ को चौंकाया, फिर राज तथा छुटभैये प्रकाशक मी ट्रेडमार्क लेखक छापने की लाइन में लगते चले गये।

हिंद ने ट्रेडमार्क लेखक छापने की शुरुआत कर्नल रंजीत नाम से की, जिसमें मखमूर जालंधरी साहब (जोकि शायरी भी करते थे) ने मेजर बलवंत नाम के जासूस पात्र का सृजन करके की।

जानकारों का कहना है कि मखमूर साहब का लेखन भी पूर्णतः मौलिक नहीं था। वह अंग्रेजी में छपे पैरी मैसन सीरीज़ के उपन्यासों से आइडिया लेते थे, किंतु विशेष बात यह थी कि उनके उपन्यास न तो अनुवाद होते थे, ना ही रूपांतर। सिर्फ आइडिया अंग्रेजी से होता था। कहानी को वह अपनी मर्जी से घुमाते थे।

मेजर बलवंत चरित्र इतना पापुलर हुआ कि जब मैं ( योगेश मित्तल) गाँधी नगर में जनता पॉकेट बुक्स के लिए जासूसी उपन्यास लिखने लगा तो कुमारप्रिय की सलाह पर लेखक का नाम मेजर बलवंत रख दिया गया और उपन्यास के बैक कवर पर मेरी जैकेट पहने और हैट लगाये तस्वीर छाप दी गयी। उपन्यास का नाम था – चीख का रहस्य।

हिंद ने बाद में शेखर, मीनाक्षी माथुर तथा और भी कई ट्रेडमार्क लेखक पैदा किये, किंतु उनमें बार-बार लेखक नहीं बदले गये।

इसके बाद मनोज पॉकेट बुक्स में भी मनोज नाम का ट्रेडमार्क लेखक निकाला गया, पर काफी समय तक मनोज नाम में जमील अंजुम साहब के उपन्यास ही छापे गये।

बाद में मनोज में रायजादा, विनय प्रभाकर, भारत, सूरज आदि कई ट्रेडमार्क लेखक निकाले।

मनोज पॉकेट बुक्स के मालिकों के जीजाजी की फर्म विमल पॉकेट बुक्स में भी दीपक, रमा और कई ट्रेडमार्क लेखक निकाले गये।

जब मनोज पॉकेट बुक्स के संस्थापक श्री राजकुमार गुप्ता जी ने मनोज से अलग होने के बाद पहले राज पॉकेट बुक्स, फिर राजा पॉकेट बुक्स निकाली तो उन्होंने कुछ नये नाम धीरज, टाइगर आदि ट्रेडमार्क लेखक निकाले।

जब लक्ष्मी नगर से एक नयी फर्म मोहन पॉकेट बुक्स ने मैदान में कदम रखा तो उसमें मोहन, सीमा, वर्षा सभी ट्रेडमार्क लेखक नाम थे।

मोहन पॉकेट बुक्स की नींव एक अति महत्वाकांक्षी और बला की खूबसूरत युवती वीना वैद्य ने रखी थी, जोकि बहुत ही बुद्धिमान एवं कल्पनाशील भी थीं।
बस, गनीमत यह थी कि उसने कलम नहीं उठायी, पर उसने कई उपन्यास मुझसे एक-एक सीन बताकर लिखवाये।

ट्रेडमार्क लेखिका वर्षा के नाम से दो भागों के उपन्यास ‘बहन का सुहाग’ और ‘सौतेला भाई’ मोहन पॉकेट बुक्स के ऑफिस में वीना वैद्य के सामने बैठकर ही मैंने लिखे थे, जिसका एक-एक दृश्य वीना वैद्य का ही बताया हुआ था।

खास बात यह थी कि जब मुझे बुलाया गया था, तब मुझे झुंझुनू के नागर नंदा के उपन्यासों को एडिट करने के लिए बुलाया गया था, लेकिन जब काम शुरू किया गया तो वीना वैद्य ने नागर नंदा के उपन्यास की थीम एक तरफ फेंक दी और खुद ही एक-एक सीन बता कर अपनी मर्जी का उपन्यास मुझसे लिखवा लिया।

मोहन पॉकेट बुक्स की नींव बाल पॉकेट बुक्स के सैट के साथ रखी गयी थी और सभी बाल पॉकेट बुक्स मैंने ही लिखी थीं।

अर्थात मोहन पॉकेट बुक्स की शुरुआत के कई सैट्स में मेरा भरपूर योगदान था।

(20 सितंबर 2020 को लेखक की फेसबुक वॉल पर प्रकाशित।)


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Author

  • योगेश मित्तल

    25 मार्च 1957 को दिल्ली के चांदनी चौक के पत्थरवालान में जन्में योगेश मित्तल के बचपन के कुछ वर्ष सिविल लाइन्स, शाहदरा में व्यतीत हुए। शाहदरा के बाद उन्होंने कुछ वर्ष चुरू, राजस्थान में गुज़ारे। उसके बाद 1963 से 1968 तक वे अपने परिवार के साथ कलकत्ता में रहे और फिर 1969 में दिल्ली आकर दिल्ली में ही बस गए। तब से लेकर अब तक वह दिल्ली में ही रहते आये हैं।

    कलकत्ता में रहते हुए ही योगेश मित्तल की पहली कविता व कहानी 1964 में कलकत्ता के दैनिक समाचार पत्र 'सन्मार्ग' के 'बालजगत' स्तम्भ में छपी।

    1969 में दिल्ली आने के पश्चात उनकी रचना जब गर्ग एंड कम्पनी की पत्रिका 'गोलगप्पा' में छपी तो वो प्रकाशक ज्ञानेंद्र प्रताप गर्ग की नज़र में आये। इसके पश्चात शुरू हुआ लेखन का सिलसिला आज पाँच दशक से भी ऊपर का समय गुजरने के बाद भी अनवरत ज़ारी है।

    लेखन की पहली पारी में योगेश मित्तल का अधिकतर लेखन ट्रेड नाम के लिए किया गया है। उपन्यास लेखन के अतिरिक्त उन्होंने खेल पत्रकारिता, कॉमिक बुक लेखन और सम्पादन के क्षेत्र में भी कार्य किया।

    अपने लेखन की दूसरी पारी में अब अपने नाम से उनकी पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं।  प्रेतलेखन, वेद प्रकाश शर्मा: यादें बातें और अनकहे किस्से, शैतान: जुर्म के खिलाड़ी नीलम जासूस कार्यालय से और  चांदी की चोंच, लड्डू मास्टर की भैंस, लोमड़ी का दूल्हा, काठ की अम्मा लायंस पब्लिकेशंस से प्रकाशित हुई हैं।

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