अनुराग कुमार ‘जीनियस’ |
अपने नाम के साथ मैं जीनियस क्यों लिखता हूँ! इसके दो मुख्य कारण है। पहला कारण तो यह है कि मैं जिस क्षेत्र से आता हूँ वहाँ आज भी जात पात छुआछूत (हालाँकि अब पहले से थोड़ा बहुत कम हुआ है। पर लोगों में जितनी जागरूकता आनी चाहिए उतनी अभी भी नहीं आई है) का माहौल है। लोग एक दूसरे में भेदभाव करते हैं। मुझे यह कभी पसंद नहीं आया। मेरी बोलचाल, उठना बैठना उन सभी लोगों से होता था जो मेरी विचारधारा के हैं। वे सभी वर्गों से आते हैं। पर कई लोगों को यह पसंद नहीं था। आज भी नहीं है। लोग आकर मुझसे कहते थे कि तुम पंडित हो तुम्हें यह शोभा नहीं देता। वे ऐसे कहते जैसे मैंने कोई अपराध किया हो। मुझे ऐसी बातों से चिढ़ होने लगी और मैंने अपने नाम के आगे लिखे चतुर्वेदी (पहले मैं अनुराग कुमार चतुर्वेदी लिखता था) को हटा दिया। मैं अपना पूरा नाम ही बदलना चाहता था। उस समय मैं उपन्यास बहुत पढ़ता था और चाहता था कि उन उपन्यासकारों के जैसा ही मेरा कोई नाम हो। इसीलिए मैंने समीर का नॉवेल जब पढ़ा तो अपना नाम झील रख लिया था। झील नाम से मैंने कई कहानियाँ दिल्ली प्रेस पत्र समूह में भेजी थी। हालाँकि इस नाम से कोई कहानी छपी नहीं। मैं भी इस नाम से संतुष्ट नहीं था। एक दिन मैंने पढ़ते वक्त जीनियस शब्द देखा जो मुझे रोचक लगा और मैंने अपने नाम के आगे झील की जगह जीनियस जोड़ दिया।
कहानियाँ
- घड़ी चोर,सही राह (चम्पक 2007 नवम्बर के प्रथम और द्वीतीय अंक में प्रकाशित)
- सुनील की बुद्धिमानी (चम्पक 2009 नवम्बर में प्रकाशित)
- संस्कार (सरस सलिल में 2008 में प्रकाशित )
- विशवासघात (सरस सलिल 2008 में प्रकाशित)
- डिटेक्टिव मोहिनी (अमेज़न)
- प्लैटफॉर्म पर कत्ल (अमेज़न)
- अनोखी चोरी (अमेज़न)