सी बी आई और सीक्रेट सर्विस दोनों के ही दफ्तर में इस वक्त हड़कम्प मचा हुआ था। जहाँ सी बी आई के दफ्तर में खुद को पत्रकार बताने वाले एक व्यक्ति ने सी बी आई अफसर विजित साहिनी पर हमला कर दिया था। वहीं सीक्रेट सर्विस के दफ्तर के एक केबिन में फाइलों को अस्त व्यस्त हालात में पाया गया था। ड्यूटी अफसर विकास भी एजेंट्स को बेहोशी की हालत में मिला था।
हमारे सीक्रेट एजेंट्स राजन, इकबाल, सलमा और शोभा इस दोहरे हमले से परेशान थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि भारत की दो महत्वपूर्ण संस्थाओं में किये गये इस कृत्य के पीछे कौन था।
तहकीकात के बाद जो बात सामने आई थी वह यह थी कि इन दोनों ही घटनाओं में जिन फाइलों को छुआ गया था वो सेलगाम नाम की जगह में कुछ महीनों पहले हुई एक दुर्घटना और एक हत्या से जुड़े थे।
अब हमारे सीक्रेट एजेंट सेलगाम जाने की तैयारी कर चुके थे। इस बार चीफ ने इकबाल को यह निर्देश दिया था कि उसे किसी भी हालत में इस मामले को सुलझाना था और चोर को पकड़ना था।
वही सेलगाम पहुँचने पर राजन को किसी रहस्यमय व्यक्ति ने एक संदेश भेजा था जिसमें उसे जहाँगीर कब्रिस्तान में उसकी उलटी कब्र में रात के बारह बजे आने को बोला गया था। राजन इस संदेश को पाकर हैरान था। आखिर वह व्यक्ति कौन था? इस बात ने राजन को कौतहुल में डाल दिया था और यही कारण था कि राजन बिना किसी को बताये जहाँगीर कब्रिस्तान के लिए निकल चुका था।
और इसके बाद राजन को किसी ने देखा नहीं था।
अब यह इक़बाल, सलमा और शोभा के जिम्मे था कि वह सारे रहस्यों से पर्दा उठा सकें।
सी बी आई और सीक्रेट सर्विस के दफ्तरों में हुई इन चोरियों के पीछे आखिर कौन था?
सेलगाम में ऐसा क्या हुआ था कि उसकी गूँज दूर मौजूद सीक्रेट सर्विस और सी बी आई दफ्तर में सुनाई दी थी?
क्या इकबाल मामले की तह तक पहुँच पाया?
राजन को गुप्त संदेश किसने और क्यों भेजा था? आखिर उलटी कब्र का क्या चक्कर था? राजन संदेश पाकर किधर गायब हो गया था?
क्या सीक्रेट एजेंटस चोरियों के पीछे छुपे रहस्य का पता लगा पाये?
रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए उन्हें किन किन मुसीबतों का सामना करना पड़ा?
मुख्य किरदार:
दिनेश सिसोदिया – ब्रेकिंग न्यूज़ का एक रिपोर्टर
राजन, इकबाल, सलमा, शोभा – सीक्रेट सर्विस के एजेंट्स
विकास – सीक्रेट सर्विस का एक एजेंट जिसकी ड्यूटी के दौरान दफ्तर में डाका पड़ा था
पवन – सीक्रेट सर्विस का एजेंट
जमुनादास – फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट
इंस्पेक्टर भास्कर राव – सेलगाम का पुलिस इंस्पेक्टर जिसका खून दो महीनों पहले हुआ था
बलबीर सिंह – एसीपी और राजन इकबाल के अंकल
श्रीराम मूर्ती- कर्नाटक की समाज शक्ति पार्टी का एक युवा नेता जिसकी कुछ महीनों पहले एक दुर्घटना में मृत्यु हुई थी
प्रकाश – सेलगाम का एक पुलिस इंस्पेक्टर
एच पी रामास्वामी – जनहित पार्टी का नेता
अशोक – श्रीराम मूर्ती का एक अंगरक्षक
सोमनाथ – एक बहरूपिया जो कि नौकर बनकर श्रीराम के घर आया था
सत्यपाल – सी बी आई का एक एजेंट
रंगास्वामी – रामास्वामी का बेटा
शोहराब – एक कॉन्ट्रैक्ट किलर
नारायण मूर्ती – श्रीराम मूर्ती का पिता
पटवर्धन -समाज शक्ति पार्टी का एक नेता
जगत – एक सी बी आई अफसर
अल्ताफ शेख – जनहित पार्टी का एक मुस्लिम नेता
चन्द्रा – जनहित पार्टी का एक नेता
महेश – जनहित पार्टी का नेता
सोमेश्वर – एक व्यक्ति जिस तक इकबाल तहकीकात करके पहुँचा था
चिन्तन कालिया – सोमेश्वर का दोस्त जिस पर इकबाल को एक अपहरण का शक था
सरोज – राजन की माँ
कर्नल विनोद – राजन के पिता
मेरे विचार:
कब्र का रहस्य राजन इकबाल रिबॉर्न श्रृंखला का छठवाँ उपन्यास है। इस बार उपन्यास का कथानक राजनीति के इर्द गिर्द रचा गया है। उपन्यास की शुरुआत सी बी आई और सीक्रेट सर्विस के दफ्तरों में चोरी से होती है जिसके बाद इकबाल को केस का चार्ज देकर चोर का पता लगाने के लिए भेजा जाता है। यहाँ पर तहकीकात शुरू होती है और कथानक जैसे जैसे आगे बढ़ता है कथानक में घुमाव आते जाते हैं। राजन के अचानक गायब होने से भी एक रहस्य कथानक में आता है और पाठक राजन के गायब होने का रहस्य जानने के लिए भी आतुर हो जाता है। इकबाल, सलमा और शोभा कैसे इस केस को सुलझाते हैं यह देखना रोचक रहता है।
वैसे तो कब्र के रहस्य में चोरी के केस को इकबाल को सौंपा रहता है लेकिन यह जो चोरी से शुरू होता है आगे चलकर बड़ी राजनितिक साजिश में बदल जाता है। राजन मुख्य इन्वेस्टिगेटर न होते हुए भी मुख्य ही लगता है। हाँ, बीच में वो गायब जरूर होता है लेकिन केस के मुख्य घटनाक्रम और खुलासे के वक्त वो वापस भी आ जाता है और कमान फिर उसके ही हाथों में दिखाई देती है।
उपन्यास चूँकि राजन इकबाल श्रृंखला का है तो इकबाल का मजाकिया अंदाज इधर दिखाई देता है। यह कथानक को रोचक बनाता है। उपन्यास में कई ऐसे दृश्य हैं जो बरबस ही पाठक के चेहरे पर हँसी ले आते हैं।
वैसे तो उपन्यास रोचक है लेकिन अंत का रहस्योद्घाटन मुझे काफी फ़िल्मी लगा। मुझे नहीं लगता कि कोई नेता ऐसा काम करेगा जैसा इधर दर्शाया गया है क्योंकि इस काम में खोने को काफी कुछ है जबकि पाने को कुछ भी नहीं। नेता लोग अपनी लिगेसी के चक्कर में रहते हैं। अपने परिवार के चक्कर में रहते हैं तो उनके द्वारा इस उपन्यास में दर्शाया गया कृत्य मुझे अक्लमंदी नहीं लगती है। एक अनुभवी नेता द्वारा तो बिल्कुल भी नहीं। मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि अंत को और बेहतर तरीके से दर्शाया जा सकता था। कुछ ऐसा दर्शाया जा सकता था जो कि इतना फ़िल्मी और बेतुका न लगे।
कहानी में मसूरी का जिक्र है और उसी सन्दर्भ में प्लास्टिक सर्जरी का जिक्र है लेकिन मसूरी के आस पास प्लास्टिक सर्जरी शायद ही होती हो। मसूरी हिल स्टेशन है और सारी मुख्य सुविधायें देहरादून में मिलती हैं और उधर भी शायद ही कोई प्लास्टिक सर्जन मिले। इसके अलावा कहानी तेलुगु भाषी आंध्रा प्रदेश की है जहाँ हिन्दी कम ही बोली जाती है। लेकिन उपन्यास में कहीं भी इस बात को नहीं दर्शाया गया है। अगर दर्शाया गया होता तो बेहतर होता। थोड़ा बहुत तेलुगु का इस्तेमाल भी होता तो बेहतर होता।
चूँकि मैं खुद आंध्रावासियों के नाम से वाकिफ नहीं हूँ तो किरदारों के नामों के विषय में कुछ नहीं कह सकता। मैं यह मानकर चल रहा हूँ कि जिन नामों का इधर इस्तेमाल हुआ है वह आंध्रा में प्रचलित नामों जैसे ही होंगे।
अंत में यही कहूँगा कि कब्र का रहस्य मुझे पंसद आया। जहाँ अपने तेज रफ्तार और घुमावदार कथानक से मेरा मनोरंजन किया वहीं उपन्यास में मौजूद इक़बाल की हरकतों ने मुझे हँसाया। हाँ, उपन्यास में कुछ बातें थी, जिनके विषय में मैं ऊपर लिख चुका हूँ, जो मुझे थोड़ी कमजोर लगी तो मेरे हिसाब से इस पर मेहनत की जा सकती थी। ऐसे सरल कथानक एस सी बेदी जी के वक्त पर ही चलते थे। रिबॉर्न सीरीज से थोड़ा यथार्थवादी अंत की उम्मीद हमे रहती है।
रेटिंग: 2.5/5
अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।
किंडल
पेपरबैक
पाठकों के लिए कुछ प्रश्न:
प्रश्न 1: राजीनीति के इर्द गिर्द रचे गये उपन्यासों को क्या आपने पढ़ा है? ऐसे कुछ उपन्यासों के नाम आप बता सकते हैं?
प्रश्न 2: ऐसे कौन से राजनितिक घटना है जिस पर आधारित उपन्यास आप पढ़ना चाहेंगे?
राजन-इकबाल रिबोर्न सीरीज के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हो:
राजन इकबाल रिबोर्न
शुभानन्द जी के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हो:
शुभानन्द
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
बढ़िया समीक्षा।
जी, आभार हितेश भाई। अगर किताब पढ़ें तो अपनी राय से मुझे वाकिफ जरूर करवाइयेगा।