ड्राप डेड – शुभानन्द, डॉ रुनझुन

किताब पढ़ी 16 मार्च 2019 को पढ़ी गई

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 100
प्रकाशक : सूरज पॉकेट बुक्स
आईएसबीएन :
श्रृंखला : क्राइम एम डी #1

ड्राप डेड - शुभानन्द, डॉ रुनझुन
ड्राप डेड – शुभानन्द, डॉ रुनझुन

पहला वाक्य:
शाम का वक्त था।


स्वान पैलेस मुम्बई के नामी गिरामी होटल्स में से एक था। यहाँ जब एक लाश पाई गई तो हलचल मचनी ही थी। अब लाश की मौत के पीछे का कारण ढूँढने के लिए सी आई डी मौके पर पहुँच गई थी।

मरने वाला प्रदीप सोनी नाम का आदमी था जिसे उस वक्त अपने दफ्तर में होना चाहिए था लेकिन वो होटल में मौजूद था।

पुलिस के अनुसार मरने वाले व्यक्ति ने आत्महत्या की थी जबकि सी आई डी के इंस्पेक्टर मकरंद उर्फ़ मैक के अनुसार यह एक ह्त्या थी और किसी बड़ी साजिश का आगाज़ हो सकती थी।

आखिर मैक के ऐसा सोचने के पीछे क्या कारण था?  आखिर प्रदीप सोनी होटल में क्या कर रहा था? क्या यह सच में खून था या यह एक साधारण आत्म्हत्या? आखिर इसके पीछे कारण क्या था?

ऐसी ही कई सवालों के जवाब आपको इस लघु उपन्यास को पढ़कर मिलेंगे।

मुख्य किरदार:
इंस्पेक्टर देशपांडे – मुंबई पुलिस में इंस्पेक्टर
मकरंद राज उर्फ़ मैक – एक सी आई डी इंस्पेक्टर
प्रदीप सोनी – वह व्यक्ति जिसकी लाश होटल की छत पर मिली थी
उर्मिला – प्रदीप की पत्नी
समाया उर्फ़ लतिका नारंग  – एक औरत जिसने फर्जी नाम पर कमरा बुक करवाया गया था। यह एक गुप्त संस्था गार्जियन्स ऑफ़ द ईस्ट की सदस्य थी
एंथनी बकार्डो – एक कॉन्ट्रैक्ट किलर
विजय पाण्डेय – मैक का सहकर्मचारी जो केस में उसकी मदद कर रहा था
डॉ मैत्रेयी भारद्वाज – मुंबई मेडिकल कॉलेज में फॉरेंसिक डिपार्टमेंट की हेड
नवीन, रयान, आर्यन, सुकांत – मैत्रेयी की टीम के सदस्य
कांता बाई – मैत्रेयी के घर पर काम करने वाली बाई
जयशंकर पिल्लई – पाइनियर कंसल्टेंसी में प्रदीप का मेनेजर
किशोर – पाइनियर कंसल्टेंसी में प्रदीप का दोस्त
रिचा – सुकांत की गर्ल फ्रेंड
एड लोगन – एक बैंड का सिंगर
हेगड़े और कादिमणि – सी आई डी की बेंगलुरु ब्रांच के अफसर

ड्राप डेड शुभानन्द और रुनझुन सक्सेना जी की साथ मिलकर लिखी गई एक रचना है। यह लघु-उपन्यास  क्राइम एम डी श्रृंखला की पहली रचना है।  इस श्रृंखला की ख़ास बात यह है कि इसमें हिन्दी में पहली बार डिटेक्शन के साथ फॉरेंसिक विज्ञान को भी महत्व दिया जा रहा है।यानी फोरेंसिक विशेषज्ञ भी कथानक में मुख्य भूमिका निभाएगा। उसकी कार्यशैली भी कथानक में दर्शायी जाएगी। अगर अंग्रेजी साहित्य में इसके समतुल्य की बात करूँ तो पेट्रीशिया कॉर्नवेल के डॉ के स्कारपेट्टा(Dr kay Scarpetta) श्रृंखला का ख्याल मेरे जहन में आता है। इस श्रृंखला में भी मुख्य किरदार एक मेडिकल एग्जामिनर है।

कथानक की बात करूँ तो इसकी शुरुआत एक लाश के पाए जाने से होती है। पुलिस के मुताबिक यह एक आत्महत्या का केस है। पर फिर मौका ए वारदात पर सी आई डी का इंस्पेक्टर मैक पहुँचता है जिसके अनुसार यह कत्ल है और इस क़त्ल के पीछे एक गहरी साजिश है। वह ऐसा क्यों सोचता और इस विचार पर काम करने के बाद क्या क्या रहस्य उजागर होते हैं यह कथानक पढ़कर आप जान पाएंगे।

अक्सर ऐसे उपन्यासों (जिसमे विशेष सरकारी एजेंसी किसी अपराध की तहकीकात कर रही हों) में आम पुलिसवालों को एजेंट्स की तुलना में काफी दब्बू और नाकारा दिखाया जाता है लेकिन इस उपन्यास  की अच्छी बात यह है कि इसमें ऐसा नहीं है। इसमें मौजूद इंस्पेक्टर देशपांडे काफी तेज तरार पुलिसिया है जो कि मुझे पसंद आया।

कैसे सबूतों के आधार पर तहकीकात आगे बढ़ती है यह देखना रोचक है। इधर किरदार सब कुछ पहले से ही नहीं जानते हैं वो जैसे जैसे सबूत मिलते हैं उस हिसाब से संदिग्ध की शिनाख्त करते हैं। कभी वो सही साबित होते हैं और कभी गलत। ऐसे ही सबूतों के आधार पर बढ़ते बढ़ते केस सुलझाया जाता है।

चूँकि यह एक नई श्रृंखला की शुरुआत है तो इसके किरदारों के ऊपर बात करना मैं जरूरी समझता हूँ। इस लघु उपन्यास में दो मुख्य किरदार : सी आई डी इंस्पेक्टर मकरंद राज और मुंबई मेडिकल कॉलेज में कार्यरत डॉ मैत्रयी भारद्वाज हैं।

मकरंद राज मैक के नाम से बुलाया जाना पसंद करता है। यह एक तेज तरार असफर है जो ऊपरी तौर पर तो गैर जिम्मेदार लगता है लेकिन अपने काम के प्रति बहुत जिम्मेदार है। फिर भी बीच बीच में हँसी मजाक और बच्चों जैसे व्यवहार करता है। इसकी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में कुछ परेशानी तो है लेकिन क्या ये हमे नहीं बताया गया है। बस हल्की सी एक झलक मिलती है।अभी तक तो इस कड़ी में यही पता लगता है कि यह व्यकितगत ज़िन्दगी में रिश्ते बनाने से कतराता है। जिस लड़की के साथ इसका रिश्ता है वो अब उसे छोड़ना चाहता है और शायद इसके पीछे कारण है वो ज्यादा नजदीक आने लगे हैं। इसके अलावा हम लोग मकरंद की ज़िन्दगी के विषय में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं। हाँ, वो कई सालों से एक सीक्रेट कल्ट गार्जियन्स ऑफ़ द ईस्ट के पीछे पड़ा है लेकिन उस कल्ट के सदस्यों को अभी तक गिरफ्तार नहीं करा पाया है। उसकी एक सदस्या समाया के साथ इसका शायद कोई गहरा रिश्ता है लेकिन वो क्या है वो हमे इस कड़ी में तो पता नहीं चलता है।

वहीं दूसरी ओर  मैत्रेयी भारद्वाज फोरेंसिक विशेषज्ञ हैं। अपने काम में तो उसका काफी नाम है लेकिन उसकी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में कई रहस्य है। वो अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी को लोगों से छुपाकर रखती है। मसलन उसके घर में एक ऐसा कमरा है जहाँ वो खुद ही सफाई करना पसंद करती है।  आखिर उस कमरे में ऐसा क्या है? रविवार को वह न किसी से मिलती है और न ही उसे गंवारा है कि कोई उसके घर आये? ऐसा क्यों? उपन्यास के आखिर में वह एक गलतफहमी की बात करते करते भावुक सी हो जाती है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्या उसके व्यक्तिगत जीवन में भी किसी गलतफहमी के वजह से बड़ी त्रासदी हुई थी? उपन्यास पढ़ते हुए मैत्रेयी को लेकर ऐसे कई सवाल मन में रह जाते हैं। उम्मीद है अगली कड़ी में इन पर और रोशनी डाली जाएगी।

उपन्यास के बाकी किरदारों की बात करें तो एक किरदार विजय पाण्डेय है जो कि मैक का सहकर्मचारी है। वो दोनों दोस्त हैं और केस पर साथ काम कर रहे हैं। उनके आपसी नोक झोंक वाले डायलॉग पढने में मजेदार हैं।

वहीं मैत्रेयी की टीम में भी काफी लोग हैं। उनमें से केवल सुकांत ही उभर कर आता है क्योंकि वही टीम में ऐसा है जो कि एक जरूरी सबूत अकेला ढूँढ पाता है।

उपन्यास के बाकी किरदार कथानक के हिसाब से फिट बैठते हैं। समाया का किरदार मुझे विशेष लगा है। वह है तो खलनायिका लेकिन मुझे आशा है वह आगे की कड़ियों में जरूर आयेगी।

उपन्यास को चूँकि फोरेंसिक विज्ञान पर केन्द्रित रखा गया है तो काफी ऐसी बातें भी डॉक्टरों के बीच होती दर्शाई गई है जिन्हें समझने में आम पाठक को मुश्किल हो सकती है और वो बातें उन्हें गैर जरूरी लग सकती हैं। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुझे यह बातें पसंद आई।

लघु उपन्यास के लेखकीय में लेखक द्विय यह बात बताते हैं कि चूँकि यह श्रृंखला की पहली रचना है तो उन्होंने इसे ज्यादा जटिल नहीं बनाया है। यह बात कथानक में दिखती है। मुझे लगता है उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था।

किताब  में कुछ बातें थी जो मुझे खटकी या जिनका जवाब मुझे नहीं मिला या जो मुझे कमी लगी। वह बातें निम्न हैं:



उपन्यास में एक वेटर का कत्ल होता है और जिधर उसका कत्ल होता है उधर एक कागज के टुकड़े पर कल्ट(गार्जियन्स ऑफ़ द ईस्ट) का लोगो मिलता है। लेकिन फिर वह कागज कैसे उस कमरे में आया इसके विषय में कुछ नहीं बताया गया है। जबकि उसका कारण बताया जाना चाहिए था।

पृष्ठ 58 पर ब्लड स्प्लेटर एनालिसिस (खून के छीटों को जाँचने की प्रक्रिया) मैक को समझाया जाता है। मैक काफी सीनियर अफसर था। मुझे यह अजीब लगा कि उसे यह तकनीक बतानी पड़ी। उसने तो काफी पेचीदा केस हैंडल किये थे(जैसे कि कथानक के शुरुआत में बताया गया था) तो उधर उन सब चीजें उसने देखी होगी। मुझे यह पता है कि लेखक जोड़ी  मैक के माध्यम से ब्लड स्पलेटरिंग की तकनीक पाठकों को बताना चाहते रहे होंगे।यह अच्छी बात है लेकिन इसके लिए कोई जूनियर किरदार(नोर्मल अफसर या कोई मेडिकल इंटर्न) चुना सकता था। इस मामले में उसकी जिज्ञासु होना ज्यादा तर्कसंगत लगता।

ऐसे पृष्ठ 63 में एक ब्रेसलेट का जिक्र है। लेकिन उससे पहले यह कहीं भी नहीं बताया गया है कि प्रदीप सोनी के पास से कोई ब्रेसलेट मिला था। अगर ऐसा होता तो उसकी पत्नी से उस ब्रेसलेट के विषय में पूछा जाता। पर ऐसा कुछ नहीं है।

इस कथानक में एक गुप्त संस्था गार्जियन्स ऑफ़ द ईस्ट का जिक्र है। मैक की उनसे पहले भी मुठभेड़ हो चुकी है। हमे इस विषय में कुछ नहीं पता लेकिन कथानक में कई बार इसका जिक्र आता है तो पाठक के तौर पर ऐसा लगता है जैसे हम श्रृंखला के पिछले भागों से वाकिफ नही है। एक अधूरापन सा लगता है। 



यह चीजें हैं तो छोटी लेकिन चूँकि मुझे महसूस हुई तो इधर लिख रहा हूँ।

अंत में यही कहूँगा कि यह एक पठनीय, तेज रफ्तार लघु उपन्यास है। शुरुआत से अंत तक यह पाठक को बाँध कर रखती है। अगर आपको प्रोसीजरल ड्रामा(ऐसे धारावाहिक जिसमें यह दर्शाया जाता है कि कैसे कोई सरकारी संस्था अपराध सुलझाती है और अपराधी तक पहुँचती है) पसंद है तो यह कथानक आपको पसंद आयेगा।
मुझे श्रृंखला की दूसरी किताबों का इन्तजार रहेगा। उम्मीद है उसमें मामले और ज्यादा जटिल और कथानक का कलेवर और वृद्ध होगा।

मेरी रेटिंग: 3/5

अगर आपने इस पुस्तक को पढ़ा है तो आपको यह कैसी लगी? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा। अगर आपने इस पुस्तक को नहीं पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं:
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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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8 Comments on “ड्राप डेड – शुभानन्द, डॉ रुनझुन”

  1. बहुत बहुत धन्यवाद। क्योंकि यह एक सिरीज़ किताब है, कई सवालों का जवाब अगली किताब में मिलेगा, और कई नये सवाल भी बनेंगे। लेखक जोड़ी में विश्वास रखने के लिए धन्यवाद।

    1. जी, ब्लॉग पर आने का शुक्रिया। अगली कड़ियों का इन्तजार है।

  2. इस किताब की निश्चय ही या तो खास पब्लिसिटी नही हुई या मैं ही सोया हूँ। ब्लॉग पूरा नहीं पढ़ा क्योंकि नावेल पढ़ने के बाद ही रिव्यू का मजा है। और ये ब्लॉग स्पॉइलर अलर्ट केटेगरी का है।

    1. आप उपन्यास पढ़िये और हो सके तो अपने विचारों से जरूर अवगत करवाईयेगा। उपन्यास पढ़कर आप रिव्यु पढेंगे तो पाएंगे कि इसमें स्पोइलेर जैसा कुछ नहीं है। आपके विचारों का इन्तजार रहेगा।

  3. अच्छी समीक्षा है |लास्ट बुक यही पढ़ी है | बढ़िया लघु उपन्यास है | मैं आपसे सहमत हूँ की कथानक को थोडा जटिल रखना चाहिए था और पेजेज की कमी भी खली | उपन्यास पढ़ने के बाद बहुत से प्रश्न है जिनका उत्तर चाहिए आशा है की सीरीज की नेक्स्ट बुक में उत्तर मिलेंगे और थोडा वृहद होगा |

    1. जी मुझे भी यही उम्मीद है इस श्रृंखला के अगले उपन्यासों में विस्तृत कथानक पढ़ने को मिलेंगे। 

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