चार आँखों का खेल – बिमल मित्र

उपन्यास अप्रैल 14,2018 से अप्रैल 15,2018 के बीच पढ़ा गया


संस्करण विवरण:


फॉर्मेट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 136 | प्रकाशक: लोकभारती प्रकाशन






पहला वाक्य:
यह एक दूसरा ही पक्ष है। 

चार आँखों का खेल कहानी है डी’सा परिवार की। जॉन डी’सा जब तक जिंदा थे तब तक ये परिवार हँसी खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहा था। बाकी लोगों के लिए भी ये एक आदर्श परिवार था। उनके जीने का तरीका, पति पत्नी के बीच का समीकरण सब कुछ ही ऐसा था कि लोगों के लिए ये परिवार प्रेरणा का स्रोत ही था।

लेकिन फिर जॉन डी’सा की अचानक मृत्यु हो गई और सब कुछ खत्म सा हो गया। किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक हँसते खेलते परिवार के सदस्यों का ऐसा हश्र होगा।

आखिर ऐसा क्या हुआ था डी’सा परिवार के साथ?  और ऐसा क्यों हुआ इन लोगों के साथ?


ये सब तो आप इस उपन्यास को पढ़कर ही जान पाएंगे।

मुख्य किरदार:
लेखक – कथावाचक
जॉन डी’सा – कथावाचक के पड़ोसी जो कि चक्रधरपुर में उसके किराए के मकान के आधे हिस्से में रहते थे
मिसेज डी’सा – जॉन की पत्नी
रेनी – जॉन और मिसेज डी’सा की बेटी
चार्ल्स – जॉन और मिसेज डी’ सा का बेटा
अल्फ्रेड डी’सा/फ्रेडी/फ्रेड – जॉन डी’सा का भतीजा जो अपने माँ की दूसरी शादी के पश्चात अपने चाचा के घर रहने को आ गया था
जोसफ – डी’सा लोगों का नौकर
नैंसी – वो लड़की जिसे फ्रेडी पसंद करता था
मिस्टर बुकानन – नैंसी के पिता
फादर वाटसन – उस कान्वेंट के पादरी जहाँ लेखक ने शरण ली थी



बिमल मित्र जी का उपन्यास चार आँखों का खेल मुख्यतः एक परिवार की और पुरुष महिला के बीच के शारीरिक आकर्षण की कहानी है। आकर्षण जिसे हम प्यार का नाम देते हैं, आँखें चार होना कहते हैं, नैन मट्टका भी कहते हैं। उपन्यास में ये सब ऐसे दो लोगों के बीच होता है जो कि सामजिक रूप से गलत समझा जाता है। इसके बाद परिवार का क्या हश्र होता है वही उपन्यास का कथानक बनता है।

उपन्यास की शुरुआत में लेखक कहते हैं कि उनको उपन्यास लिखने की जरूरत अपने एक पाठक की टिपण्णी से महसूस हुई। वो कहते हैं कि जब पाठक ने उनसे कहा कि उनकी कहानियाँ यथार्थ के निकट नहीं लगती है तो उन्होंने इस घटना को सुनाने की कोशिश की बशर्ते सुनने वाले के अन्दर घटना को सुनने की शक्ति हो।

इसका मतलब हम लोग अपने चारों ओर जिन लोगों को देखते हैं,उनके बारे में आप लोगों की कहानियाँ नहीं होती। आप लोग जिनके बारे में लिखते हैं वह इस संसार के चरित्र प्रतीत नहीं होते। (पृष्ठ 10)

 …..उनके साथ यदि आज साक्षात हो जाता तो कहता कि आँखों देखी घटना अगर लिखूँ तो आप पढ़ पायेंगे क्या? यदि पढ़कर सहन कर सकें तो आप जहाँ भी हों यह कहानी पढ़ियेगा। (पृष्ठ 11)

ऐसे ही कहानी शुरू होती है। और पता चलता है कि कैसे इनसान क्या से क्या हो जाता है? मेरा शुरू से मानना रहा है कि कोई भी इनसान अच्छा या बुरा नहीं होता। हम सब अपने चुनावों से बनते हैं। और ये चुनाव हमे हर दिन करने होते हैं। एक दिन के गलत चुनाव से लोग आपको कटघरे में ले आयेंगे फिर ये बात मायने नहीं रखेगी कि उससे पहले आपके चुनाव क्या थे? उन्हें ढोंग भी समझा जा सकता है। इसके इलावा गलत और सही क्या है?
कई बार भावनाओं में बहकर कुछ ऐसा कर देते हैं कि जो शायद नैतिक दृष्टि से गलत हो। लेकिन हो सकता है वो करने वाले की नज़र में गलत न हो। फिर समाज के गलत और सही के मायने भी कई बार उलटे हो सकते हैं।

उपन्यास की मुख्य पात्र मिसेज डी’सा कुछ ऐसे ही कदम उठाती हैं जो समाज के सामने सही नहीं होते। वो अपने भावनाओं को काबू में नहीं रख पाती है। वो जो कुछ करती है वो गलत है या सही ये तो मैं नहीं कहूँगा। ये सोचने की बात है। उसके दृष्टिकोण से उसका किया काम मुझे ठीक ही लगता है। जब आदमी का सब कुछ लुट रहा हो तो जो बचे वह उसी को बचाने में लग जाता है जो बचा सकता था। यही चुनाव शायद मिसेज डी’सा को करना था। (आप पढेंगे तो इस विषय पर अपनी राय इधर जरूर दीजियेगा।)

उपन्यास का अन्य पात्र फ्रेडी है। वो रिश्ते में मिसेज डी’सा का भतीजा है और आसरे की तलाश में उनके यहाँ आता है। वो क्योंकि मिसेज डी’सा पे निर्भर है तो मिसेज डी’सा के स्नेह को मना नहीं कर पाता है। हो सकता है पहले उसे ये सब पसंद हो क्योंकि ये सब फंतासी के समान रहता है लेकिन बाद में उसे घुटन होने लगती है। हम चूँकि लेखक की दृष्टि से फ्रेडी को देखते हैं तो उसके विषय में उतना ही जान पाते हैं जितना वो बताता है। यही हाल बाकी के किरदारों नैंसी,चार्ली और रेनी के साथ है। नैंसी को ऐसे किरदार के रूप में दिखाया है जिसे पता है वो क्या है। उसे पता है वो खूबसूरत नहीं है इसलिए वो किसी को भाव नहीं देती। उसे पता है कि फ्रेडी सीधा है और आसानी से उसके काबू में आ जायेगा तो वो उससे मित्रता करती है। और उसे मिसेज डी’सा के घर से  निकालकर उससे शादी कर लेती है। एक तरह से वो कैटेलिस्ट है जो कि उपन्यास में हो रही घटनाओं को शुरू करती है। उपन्यास पढ़ते हुए सोच रहा था कि अगर वो इतनी तेज तर्रार नहीं होती तो शायद ही वो सब होता।

उपन्यास पढ़ते हुए आप एक समाज को भी देखते हैं। कैसे वो दूसरों की विपत्ति को मनोरंजन के तौर पर लेता है। उन्हें चटकारे लगाकर सुनता है और सुनाता है। समाज  जिसकी सबसे ज्यादा मानता है  जब वही धराशायी होता है तो वही समाज सबसे ज्यादा चटकारे लेकर उसके पतन को देखता है। शायद एक सुख भी महसूस करता हो क्योंकि ये पतन दर्शाता है कि वे लोग इतने प्रेरक या अच्छे या बेहतर नहीं थे जितना कि माना गया था। यही शायद कारण है जब कि प्रसिद्ध व्यक्तित्व का स्याह चेहरा सामने आता है तो वो एक प्रमुख खबर बन जाता है।

मिसेज डी’सा जो कुछ करती है उसका असर उस तक सीमित नहीं रहता है। इनसान दुनिया में आता भले ही अकेले हो लेकिन फिर लोगों से ऐसे जुड़ जाता है कि उसकी एक हरकत कई लोगों के जीवन पर असर डालती है।  उसके द्वारा किए गये काम से उसके रिश्ते नातों पर भी फर्क पड़ता है। कई बार लोग चीजें कर तो जाते हैं लेकिन उस चीज से परिवार पे क्या गुजरेगी ये नहीं सोचते। यही इधर दिखता है कि मिसेज डीसा के कारण चार्ली और रेनी पे क्या असर पड़ता है।

उपन्यास में घटित होने वाली घटनाएं एक कस्बे में होती हैं और एक कस्बाई जीवन को लेखक ने अच्छी तरह से दर्शाया है। ये घटनाएं एक एंग्लो इंडियन परिवार में घटित होती है तो वो परिवार किस प्रकार आम भारतीय परिवारों से अलग होते है इसका भी चित्रण लेखक ने किया है।

उपन्यास में होने वाली घटनाओं को लेखक ने इस तरह से बुना है कि उपन्यास में एक रहस्य लगातार बना रहता है। पाठक को रूचि रहती है कि किरदारों के साथ आखिर क्या हुआ होगा? ये रहस्यात्मकता अंत तक बनी रहती है।

हाँ, कई बार कहानी का फ्लो लीनियर नहीं है। कभी आगे की घटनाओं को पहले दर्शाया है और कभी पिछली घटनाओं को बाद में। इससे कई बार मुझे थोड़ा कंफ्यूजन तो हुआ था लेकिन घटनाओं को अगर सिलसिलेवार लिखते  तो शायद ही कथानक रहस्मय रहता इसलिए ऐसे लेखक को करना पड़ा जो कि मेरे ख्याल से ठीक ही था ।

उपन्यास मुझे पसंद आया। उपन्यास सोचने पर मजबूर करता है कि इनसान कितना जटिल जीव है। हम लोग कई बार अखबार में ऐसे विवाहेत्तर सबंधों से जुड़ी कहानियाँ पढ़ते हैं और सोचते है कि कोई ऐसा कैसे कर सकता है।  अक्सर हम शीर्षक पढ़कर ही लोगों के प्रति धारणाएं बना डालते हैं लेकिन शायद फिर परिस्थितियों का पूरा आभास हमे होता तो धारणा कुछ और रही होती। यही चीज इस उपन्यास को पढने के बाद आप सोचने लगते हैं।उपन्यास पठनीय है और इस तरह से लिखा गया है कि पाठक उपन्यास के किरदारों में खो सा जाता है। एक रहस्य का पुट भी उपन्यास में लगातार बना रहता है जो पाठक को उपन्यास पढ़ते रहने के लिए विवश सा  कर देता है।





उपन्यास की वो पंक्तियाँ जो मुझे अच्छी लगीं:


सन्देह यों ही एक ऐसा सर्प होता है जिसका फन हो या न हो,नज़र पड़ते ही सारे शरीर में सिहरन दौड़ जाती है। 
जब तक सामने रहता है तब तक किसी भी तरह मन से अलग नहीं किया जा सकता।


ऐसी बहुत सी  बातें होती हैं जो लिखी नहीं जातीं, जिनको लेकर लिखना उचित भी नहीं होता। जिनको लेकर लिखना मनुष्य की रूचि के विरुद्ध है। … जड़ के जिस प्रकार धरती के अन्दर छुपे रहने से वृक्ष का सौन्दर्य बढ़ जाता है उसी प्रकार कटु सत्य के छुपे रहने से जीवन का सौन्दर्य भी बढ़ता है। 


शायद प्रथम बार आँख-से-आँख मिलते ही जो होना था हो चुका था।  शायद आँखों का ही दोष है। किसी  की आँखों में किसी की आँखें पड़ जाएं तो फिर उसका कोई ईलाज नहीं रहता शायद। इसी का नाम शायद चार आँखों का खेल है।


और मैं तो केवल प्रतिवेशी ही नहीं दर्शक भी था। आँखों के झरोखे खुले रखकर सब देखता और, मन का आईना सामने करके सब उसमें उतारने का प्रयत्न करता था। किसी के ऐसे संकट के समय जिस तरह मेरा सांसारिक मन सहानुभूति दिखाता, उसी तरह मेरे लेखक मन को एक दार्शनिक आनन्द की अनुभूति होती। जैसे देखने, सोचने, लिखने की एक पृष्ठभूमि मिल गई हो। 


जैसी ही किसी की आँखों में किसी की आँखें पड़ती हैं, चार आँखों का खेल शुरू हो जाता है। तब न तो उम्र का ख्याल रहता है और न सम्पर्क का तारतम्य। शर्म-लिहाज भी ताक पर रखी रह जाती हैं। इसी का नाम शायद चार आँखों का खेल है। न्याय-अन्याय, सत् का प्रश्न भी नहीं रह जाता तब। विचार, विवेचना-बुद्धि भी नहीं रह जाती। चार आँखों के खेल में कोई भी प्रश्न, प्रश्न नहीं होता है, वहाँ तो आँखों का नशा होता है बस। उस नशे के कारण कितने ही परिवार संकटग्रस्त हो जाते हैं, कितने अतल गहराई में चले जाते हैं कहीं कोई रिकॉर्ड नहीं है इसका।


आजकल कितनी तरह के बोझ मनुष्य के कन्धे पर पड़ने लगे हैं। मेरे पूर्वजों की चौदहवीं पीढ़ी ने भी इनकी कल्पना नहीं की होगी। प्रतिदिन सुबह अखबार आने के साथ-साथ ये हमारे मन पर जमते हैं। और एक-पर-एक जमते इतने अधिक हो जाते हैं कि और कोई नया बोझा उठाने का साहस नहीं रह जाता।




अगर आपने इस उपन्यास को पढ़ा है तो आपको ये कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे कमेंट द्वारा अवगत करवाईयेगा। अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है और पढ़ना चाहते हैं तो आप इसे निम्न लिंक्स के माध्यम से मँगवा सकते हैं:
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बिमल मित्र जी द्वारा लिखे गए दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
बिमल मित्र


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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6 Comments on “चार आँखों का खेल – बिमल मित्र”

  1. very interesting review… hadn't heard of this author. Have marked it to be read.
    And by the way, I have the same bedsheet and similar phone (black colred) 🙂

    1. thanks…he's written साहिब बीवी और गुलाम. You must have heard about the movie that Gurudutt made based on it. Same pinch for the bedsheet and phone. I needed this one because in treks you need something with you that doesn't needs to get charged every 6 hours..फिलहाल क्या पढ़ रहे हैं,आप?

  2. आकर्षक एवं रहस्यमय उपन्यास से साक्षात्कार करवाने हेतु आभार ।

  3. आपका आज का उद्धरण पढ़कर उसमें दिए गए लिंक के माध्यम से यहाँ तक पहुँचा और इस समीक्षा को पढ़ा । आपकी उपयोगी समीक्षा पढ़ने के उपरांत इस उपन्यास को पढ़ने के लिए लालायित हो उठा हूँ । मैंने बिमल मित्र की जितनी भी कृतियां पढ़ीं (कहानियां, उपन्यास आदि), मैं एक ही परिणाम पर पहुँचा कि बिमल मित्र ने जीवन और संसार को बहुत निकट से देखा और समझा था ।

    1. जी सही कहा… उनके उपन्यास आम जनजीवन से जुड़े होते हैं….

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