आधिरा मोही : विचित्रपुर का शैतान

कॉमिक मई 10, 2020 को पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 36
प्रकाशक : बुल्सआय प्रेस
लेखक: अश्विन कल्मने,  आर्ट एवं कलर्स : एमिलियो उतरेरा
हिन्दी रूपांतरण एवं शब्दांकन: वैभव पांडे
श्रृंखला : आधिरा मोही #2

आधिरा मोही

कहानी:
विचित्रपुर दक्षिण भारत का एक आम सा दिखने वाला गाँव था। यहाँ के लोग बाहर के लोगों से ज्यादा मिलना जुलना पसन्द नहीं करते थे। वो लोग अपने में ही रहते थे। बस साल के चंद ही दिन होते थे जब उन्हें बाहरी लोगों की जरूरत पड़ती थी।

विचित्रपुर में रहना वाला मेयप्पन अपने पालतू कुत्ते परशु के लिए परेशान था। मेयप्पन को लगता था कि उसके कुत्ते के पीछे एक शैतान पड़ा है और परशु उसे मिल नहीं रहा था। मेयप्पन किसी भी तरह से अपने परशु की रक्षा करना चाहता था। वहीं मेयप्पन की बातों पर गाँव के किसी व्यक्ति को विश्वास न था। उन्हें शैतान के अस्तित्व पर भरोसा नहीं था। वह उसे एक डरे हुए बच्चे की कल्पना समझते थे।

केमिकल एक्स की फैक्टरियों को तबाह करने के अपने मिशन पर निकली आधिरा और मोही को हालातों के चलते इसी विचित्रपुर से गुजरकर जाना पड़ा। उन्हें यह अहसास हो गया था कि आम सा दिखने वाला यह गाँव उतना आम भी नहीं था। यह अपने नाम के अनुसार ही विचित्र था।

आधिरा और मोही को क्यों विचित्रपुर से जाना पड़ा?
क्या विचित्रपुर का शैतान असलियत में था या यह केवल डरे हुए मेयप्पन की कल्पना थी?
विचित्रपुर आम गाँवों से किस तरह अलग था?


मेरे विचार:
विचित्रपुर का शैतान आधिरा मोही श्रृंखला का दूसरा कॉमिक बुक है। जहाँ पहले कॉमिक में हमारी नायिकायें विज्ञान के कारण आई मुसीबत से दो चार हुई थी वहीं इस अंक में नायिकाओं को शैतानी ताकतों का सामना करना पड़ता है।

कहानी की शुरुआत में ही पाठकों की मेयप्पन से मुलाकात होती है जो कि अपने पालतू जानवर की तलाश में भटक रहा है। इसी तलाश के दौरान आपको विचित्रपुर के विषय में काफी बातों का पता चलता है। आपको उसके इतिहास का पता चलता है, आपको पता चलता है कि यहाँ कुछ तो गड़बड़ है और आपको यह भी पता चलता है कि आधिरा और मोही दोनों ही इस गाँव में फँस चुकी हैं।

कहानी कसी हुई है। आर्टवर्क उम्दा है। कॉमिक आपको अंत तक बाँध कर रखता था।

जैसे कि मैंने पहले कॉमिक के लिये कहा था कि कॉमिक बुक में लेखक को काफी कम में अपनी बात कहनी होती है तो काफी चीजों को या तो वह नजरअंदाज कर देता है या उन्हें कहानी में इस्तेमाल नहीं करता है। इससे किरदार उतने मानवीय नहीं रह जाते हैं जितने की वो किसी कहानी या किसी नावेल में हो सकते थे।

 उदाहरण के लिए आधिरा और मोही दोनों ही एक बड़ी त्रासदी से होकर गुजरी हैं। आधिरा के परिवार में तो वैसे भी कोई नहीं था लेकिन मोही के परिवार वालों को देखकर लगा था कि वह एक आम सा परिवार था। ऐसा परिवार जिसमें अभिभावक बच्चों को और बच्चे अभिभावकों को प्यार करते हैं। लेकिन अपने परिवार के खोने की बात से मोही इतनी प्रभावित नहीं दिखती है(कहानी के अंत में वह अवसाद में होने की बात जरूर करती है लेकिन वह किस कारण है इसका पता नहीं चलता है।)। यहाँ दिखती इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इस बिंदु को इस कॉमिक में भी नहीं छुआ गया है। पहले अंक में  तो वह अपनी जान बचाने के पीछे ही लगे थे तो मोही ने जो चीज खोई है उसके बारे में बात करने या सोचने का मौका उसे नहीं मिला था। लेकिन अब मुम्बई से पावगाड़ा के सफर के दौरान उसे अहसास जरूर हुआ होगा और दोनों ने बातचीत भी की होगी लेकिन इस बिंदु को कॉमिक में जगह नहीं दी गयी है। यह शायद पैनलस बचाने के लिए किया होगा।

दूसरी बात यह है कि कॉमिक का आखिरी टकराव भी जल्द ही खत्म होता सा प्रतीत होता है। इस टकराव को  और रोमांचक बनाया जा सकता था। मुझे यकीन है अगर लेखक इसे कॉमिक के बजाय कहानी या उपन्यास के फॉर्म में लिख रहे होते तो वह इस दौरान काफी कुछ कर सकते हैं लेकिन यहाँ भी पेनल्स की समस्या दिखलाई देती है।

वैसे प्रकाशक को पैनल्स बढाने की सोचनी चाहिए।

कहानी में मेयप्पन का किरदार मुझे पसन्द आया। हाँ, जैसा उसका अंत हुआ वो क्यों हुआ यह समझ नहीं आया। पैंतालीस साल कोई बड़ी उम्र नहीं होती है। अगर 100-150 साल होती तो बात होती लेकिन शायद लेखक इसे क्लोजर देना चाहते रहे होंगे तो ऐसा हुआ होगा। कहानी में मेयप्पन और उसके दोस्त जीवन का एक संवाद है जो रोचक है। विचित्रपुर की विचित्रता उन पर क्या मनोवैज्ञानिकअसर डाल रही है वह इससे उजागर होता है।

कॉमिक बुक का आर्टवर्क बेहतरीन है। एमिलियो उतरेरा ने ही इसका आर्टवर्क किया है। पैनल देखते रहने का मन करता है। आर्टवर्क थोड़ा मटमैला है जो कि एक तरह का अलौकिक वातावरण सा बनाता है। कॉमिक का कवर पृष्ठ की बात करूँ तो यह देखकर अच्छा लगा कि इस बार नायिकायें अपने साँवलेपन के साथ दर्शाई गई हैं। हाँ, लेकिन उनके चेहरे मोहरे कॉमिक वाले ही होते तो बेहतर होता। अभी तो वो ग्लैम डॉल्स सी दिखती हैं जो कि कहानी से मेल नहीं खाता है।

अंत में यही कहूँगा कि विचित्रपुर का शैतान मुझे पसन्द आया। अब देखना है कि इसके आगे कहानी किधर को जाती है। अगले अंक का मुझे इंतजार रहेगा।

रेटिंग : 4/5

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आधिरा मोही: विचित्रपुर का शैतान

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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4 Comments on “आधिरा मोही : विचित्रपुर का शैतान”

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