संस्करण विवरण:
फॉरमेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : 278
प्रकाशक : रवि पॉकेट बुक्स
आई एस बी एन: 978177895048
टेक 3 – कँवल शर्मा |
पहला वाक्य:
“ये सब…ये सब क्या है!” मेरे सामने बैठे शख्स ने हड़बड़ाते हुए मुझसे पूछा।
कोई था जो उसे फंसाने की चाल चल रहा था।
आखिर किसने उसे फँसाने की साजिश की थी?
मुख्य किरदार:
दीपचंद मखीजा – कैसिनो फीनिक्स का मेनेजर
काली – कैसिनो फीनिक्स में काम करने वाला एक कर्मचारी
दादुल भूटिया – कैसिनो फिनिक्स का बार टेंडर
रमेश आहूजा – कैसिनो फीनिक्स में मखीजा का मातहत
मिस लिली उर्फ़ झिमरी – कैसिनो फीनिक्स में काम करने वाली एक लड़की
मिलन गुरुंग – एक लोकल लीडर
आदर्श छेत्री – गंगटोक पुलिस में काम करने वाला एक पुलिस अफसर
रिन्चिन दोरजी – शहर का मेयर
रुबीना थापा – एक लोकल सिंगर
बद्री भट्टराई – गंगटोक शहर का एक धनाढ्य व्यापारी
गुलाब सिंह – कैसिनो फीनिक्स का सिक्यूरिटी इनचार्ज
डॉ बिस्वा तमंग – शहर का चीफ मेडिकल ऑफिसर
नीमा – बिस्वा तमंग की बेटी
टेक 3 कँवल शर्मा जी का तीसरा तीसरा मौलिक उपन्यास है। इससे पहले उनके द्वारा किये गये जेम्स हेडली चेज़ के उपन्यासों के अनुवाद भी रवि पॉकेट बुक्स से प्राकशित हो चुके हैं। वैसे इस समय यानी 2019 के अप्रैल माह तक उनके लिखे पाँच मौलिक उपन्यास बाज़ार में आ चुके हैं। मैं जरा इस मामले में लेट लतीफ़ हूँ तो उनके पहले के लिखे उपन्यास पढ़ रहा हूँ।
रवि पॉकेट्स बुकस से प्रकाशित इस किताब में उपन्यास तो है ही लेकिन इसके अलावा 32 पृष्ठों का एक वृहद् लेखकीय भी है। इसलिए उपन्यास पर बात करने से पहले मैं इसके लेखकीय पर बात करनी बनती है।
हाँ, इधर ये चीज कहना चाहूँगा कि लेखक ने लेखकीय के आखिर में एक quote दिया है:
When a thing has been said, and said well, have no scruples. Take it and copy it.
यह कोट अनातोले फ्रांस का है जिनके नाम के साथ लेखक यह quote साझा करते हैं। इस quote में किसी बात की बात हुई है। यानी उदाहरण के लिए कबीर दास जी ने दोहा दिया है : काल करे सो आज कर, आज करे सो अब । पल में प्रलय होएगी,बहुरि करेगा कब। अगर मुझे कहीं आलस त्यागने की बात करनी होगी तो मैं इसका इस्तेमाल करूँगा लेकिन मैं ये नहीं कहूँगा कि यह मेरा कही हुई बात है। कबीर दास जी के नाम के साथ ही इसे बोलूँगा। यही चीज उपन्यासों, फिल्मों पर लागू होती है।
आप एक आईडिया ले सकते हैं उसे आधार बनाकर अपनी कृति भी रच सकते हैं। लेकिन फिर यह आपका नैतिक कर्तव्य होता है कि आप यह बताएं कि आपने किधर से आईडिया लिया है। यह आपके किरदार को दर्शाता है। उस कृति को सीन बाय सीन कॉपी करके यह बोलना कि यह मेरी कृति है वह किसी भी कोण से सही नहीं है। और न ही ऐसी प्रवृत्ति को बढ़ावा देना चाहिए। फिर चाहे कितने बड़े नामों ने यह काम किया हो।
हिन्दी अपराध साहित्य की सबसे बड़ी खामी यही रही है कि उधर मौलिक रचनायें काफी कम हुई हैं। जब लुगदी वाले यह कहकर रोते हैं कि उन्हें वैसी इज्जत नहीं मिलती है जैसे पश्चिम के अपराध साहित्यकारों को मिलती है तो उन्हें आईने में खुद को देखना चाहिए और सोचना चाहिये कि क्या वो इज्जत के लायक हैं। जो चोरी करके दूसरे के कथानक को अपने नाम से बेच रहे हैं और पैसे छाप रहे हैं उन्हें अगर इज्जत नहीं भी मिलती है तो मेरे नजर में उसमें कोई बुराई नहीं है। मौलिक चीज की इज्जत की जाती है। जो कॉपी हो उसकी नहीं।
हिन्दी अपराध साहित्य की नकल के मामले में हालत ऐसी है मेरे ही ब्लॉग में एक व्यक्ति ने हिन्दी अपराध साहित्य के एक बड़े दिग्गज लेखक के विषय में कहा था कि जब भी मैं उनका लिखा कोई अच्छा उपन्यास पढ़ता हूँ तो मेरे मन में यही ख्याल सबसे पहले आता है कि इसके कथानक को उन्होंने कहाँ से उठाया होगा? उस वक्त मैं यही सोच रहा था कि इस बात पर हँसूँ या हिन्दी अपराध साहित्य की दुर्गति का प्रमाण मै इसे मानूँ। यह एक सोचने वाली बात है। लेखकों और पाठकों को इस पर सोचना चाहिए।
उपन्यास एक थ्रिलर है जिसका किरदार एक ऐसा व्यक्ति है जो गुनाह के रास्तों को छोड़ शराफत का रास्ता अख्तियार करना चाहता है। लेकिन फिर अगर इनसान जैसा चाहे वैसा ही हो जाये तो बात ही क्या हो। हम अक्सर जैसा सोचते हैं कई बार उसके एन उलट ही होता है। मुख्य किरदार के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित होता है। इतने गुनाह करने के बाद भी आज़ाद रहने वाला शख्स जब गुनाह की दुनिया से बाहर जाने की सोचता है तो एक ऐसे पचड़े में पड़ता है जिसके कारण उस पर एक कत्ल का इल्जाम लग जाता है। आगे के कथानक में उसे खुद को बेगुनाह साबित करने के लिए क्या क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं ये पाठक पढ़ता जाता है।
उपन्यास शुरुआत से लेकर अंत तक पाठक को बाँध कर रखता है। कथानक तेजी से भागता है और कहानी में ऐसे ऐसे मोड़ आते हैं कि पाठक पृष्ठ पलटता जाता है। यानी उपन्यास ने पाठक के रूप में मेरा भरपूर मनोरंजन किया है।
उपन्यास का मुख्य किरदार कौन है यह हमे अंत से कुछ देर पहले तक पता नहीं लगता है। इस कारण उपन्यास के मुख्य किरदार के प्रति एक तरह की जिज्ञासा बनी रहती है। आखिर यह कौन है और क्यों इसे साजिश में फँसाया गया यह प्रश्न आपको पृष्ठों को पलटते जाने के लिए मजबूर कर देता है।
मुझे नायक के विषय में काफी बातें जानने का मन था। वह किसी संस्था को छोड़ने का मन बना चुका था। वह उससे क्यों जुड़ा और छोड़ना क्यों चाहता है? यह बात हमे इस उपन्यास में नहीं पता चलती है। शायद अगले उपन्यास में पता चले। मैं इस किरदार की पिछली ज़िन्दगी के विषय में जानना चाहूँगा।
उपन्यास का पूरा घटनाक्रम सिक्किम की राजधानी गंगटोक में घटित होता है। मैं कभी इस शहर में नहीं गया लेकिन इसकी खूबसूरती की काफी तारीफ सुनी है। वैसे भी मैं गढ़वाल से आता हूँ तो पहाड़ों से नाता रहा है। सिक्किम में बसाया गया यह उपन्यास किरदारों के नाम पर तो सिक्किम जैसा लगता है लेकिन फिर एक स्टेडियम या कुछ सीन्स को छोड़ ऐसा नहीं लगता है कि हम सिक्किम में हैं। थोड़ा सिक्किम इस उपन्यास में झलकता तो शायद बेहतर होता। उपन्यास और ज्यादा निखरता। फिर कभी सिक्किम जाना होता तो उपन्यास लेकर जाते और जिन जगहों का नाम इसमें होता उधर का दौरा लगाते।
उपन्यास में मुख्य किरदार के आलावा एक और किरदार है दादुल। दादुल कैसिनो फीनिक्स का बारटेंडर है और मुख्य किरदार की काफी मदद करता है। किस्मत से हर जरूरी काम की उसे जानकारी होती है या कुछ ऐसा होता है कि वह उस काम में मदद करने के काबिल होता है। यह मुझे उपन्यास का थोड़ा कमजोर हिस्सा लगा। उपन्यास में वह पैसों के लिए यह सब करता दिखता है लेकिन शुरुआत में उसे 2000 रूपये ही मिलते हैं। और कोई बड़ी रकम देना का वादा भी नहीं होता है। ऐसे में वो कई अपराधिक गतिविधियों में मुख्य किरदार का साथ देता है। यह मुझे थोड़ा सा खटका। पहाड़ में अपने आदमी के खिलाफ पैसों के लिए किसी बाहरी आदमी को कोई जानकारी देना तो कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन अपने मालिक के खिलाफ आपराधिक कदम उठाना तो थोडा अजीब बात है। यह अजीब इसलिए भी हो जाता है क्योंकि दादुल में अपराधिक प्रवृत्ति नहीं है। उपन्यास के अंत में यह देखने को मिलता है कि उसे नायक की मदद करने का कुछ ऐसा ईनाम मिलता है जो न दादुल ने सोचा था और न पाठक ही सोच सकता है। ऐसे में अगर दादुल का नायक की मदद करने के पीछे कोई पुख्ता कारण होता तो मेरे हिसाब से बेहतर होता। खाली थ्रिल के लिए वो ऐसा काम करे ऐसा मुझे तो नहीं जंचा।
उपन्यास में बाकी किरदार कथानक के हिसाब से फिट बैठते हैं। महिला किरदारों में लिली और रुबीना थापा हैं। दोनों ही किरदार कहानी के अनुरूप गढ़े गये हैं। कहानी कुछ ऐसी थी कि उसमें रुबीना के लिए ज्यादा कुछ करने को नहीं था। उम्मीद है उससे दुबारा मुलाक़ात होगी।
उपन्यास का मुख्य खलनायक शुरुआत में भारी पड़ता दिखाई देता है लेकिन अंत में जिस तरह से खलनायक पर काबू पाया गया वो और बेहतर हो सकता था। उसे थोड़ा और रोमांचक बनाया जा सकता था।
उपन्यास के कथानक विभिन्न पहलुओं पर बात करने के बाद मैं इस संस्करण के विषय में भी कुछ कहना चाहूँगा। रवि पॉकेट बुक्स इस बात के लिए तारीफ़ के हकदार हैं कि वो इस महंगाई में उपन्यास को इस वाजिब कीमत में पाठकों को मुहैया करवा रहे हैं। लेकिन उन्हें अपनी किताबों की बाइंडिंग पर काम करने की जरूरत है। उपन्यास के पन्ने पढ़ते पढ़ते ही अलग होने लगते हैं। उपन्यास के कागज की क्वालिटी और छपाई कीमत के हिसाब से अच्छी है। बस एक बाइंडिंग की दिक्कत दूर कर दें तो किताब में चार चाँद लग जाएँ। ऐसा नहीं है कि बाइंडिंग की दिक्कत मुझे इसी किताब में हुई है। मुझे रवि से प्रकाशित ज्यादातर किताबों में इस दिक्कत का सामना करना पड़ता है। इसलिये मैंने सोचा इस विषय में इधर लिखा जाये।
उपन्यास का कवर साधारण सा है। इस लेख को लिखते समय मुझे ख्याल आया कि अगर मैं इस उपन्यास का कवर मैं बनवाता तो वो कुछ इस तरह दिखता:
एक होटल का कमरा है। कमरे के एक कोने में झिमरी उर्फ़ मिस लिली चीख रही है। बीच में एक लाश पड़ी है और हमारा नायक उस लाश को आश्चर्य से देख रहा है। ऐसा कवर होता तो मजा आ जाता।
खैर ये तो मेरी कल्पना है।
अब अंत में यही कहूँगा कि उपन्यास मुझे बहुत पसंद आया। उपन्यास एक थ्रिलर है और एक थ्रिलर उपन्यास से जो आपकी अपेक्षाएं होती हैं उन पर यह पूरी तरह खरा उतरता है। उपन्यास का अंत जरा जल्दबाजी में समेटा गया लगता है लेकिन उससे कथानक के रोमांच में कोई कमी नहीं आती है। उसमें जो राज उजागर होते हैं वो कथानक का स्तर और उठा देते हैं।
अगर आप एक अच्छा थ्रिलर पढ़ना चाहते हैं तो यह उपन्यास आपको निराश नहीं करेगा।
रेटिंग: 4.5/5
भले सज्जनों को अपने जिम्मेदार व्यवहार के लिए किसी कानून की जरूरत नहीं होती है, जबकि दुष्ट पापी और करामाती जमात, ऐसे कानूनों को भेदकर अपना काम निकाल देती है।
यकीनन हम सब में एक अँधेरा है, एक शैतान है और हम खुद अपनी दुनिया को नर्क बनाने पर तुले हैं।
दौलत ईमानदारी की कमाई गई हो तो ज़िन्दगी आराम करती है लेकिन अगर बेईमानी की हो तो हराम भी कर देती है।
बीस की उम्र में आदमी अपनी मर्जी से फैसले करता है, तीस की उम्र में अपनी अक्ल से लेकिन चालीस तक आते-आते बन्दा बहादुर अपने तजुर्बों से फैसले लेने लगता है
रवि पॉकेट बुक्स
कँवल शर्मा जी के दूसरे उपन्यासों के विषय में मेरी राय आप निम्न लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं:
कँवल शर्मा
हिन्दी पल्प साहित्य
उपन्यास साहित्य की दुर्दशा के लिए प्रकाशक और लेखक भी जिम्मेदार हैं
जो व्यक्ति अपने कर्तव्य(लेखन) के साथ न्याय नहीं कर पाये वहीं आज इसकी दुर्दशा का रोना रोते हैं। हिन्दी अपराध साहित्य में जितनी नकल, Ghost writing हुयी है उतनी अन्यत्र ही कहीं हुयी हो।
धन्यवाद।
जी ये तो है ही। भूत लेखकों ने अधपका सामान बेचा और प्रकाशकों ने उसे छापने से पहले एक बार पढ़ने की जहमत उठाना गँवारा न समझा और इसी ने लुगदी का नाश किया। हम लोग अब हाल देख रहे हैं। ghost writing बाहर भी बहुत हुई है। हार्डी बॉयज के लेखक ने अपने साथ पूरी टीम बैठाई थी। ऐसा माना जाता है वो टीम ही काम करती थी। लेखक बस यह सुनिश्चित करता था कि कहानी का स्तर वही है जैसा वो लिखता था। हिन्दी में ये सुनिश्चित करने वाला कोई नहीं था और हम लोग इसका नतीजा भुगत रहे हैं। हिन्दी में क्वालिटी का निर्धारण करने वाले अभी भी काफी कम हैं। उम्मीद है जल्दी लोग सुधेरेंगे।
कथानक वाकई बेहतरीन है और कंवल शर्मा जी की उत्कृष्ट लेखन शैली नॉवेल का स्तर और ऊंचा उठा देती है। और नॉवेल के मुख्य नायक के विषय में जानने के लिए पढिये वन शॉट नॉवेल।
जी वो भी मँगवाया हुआ है। जल्द ही पढूँगा।
Hanks for this detailed review Vikas Ji.
The title – Take 3 – as suggest was the third in my writing career but then actually it is part two of One Shot.
I have noted down the points u have raised and will try to clarify them with my next in this series i.e. Catch 4.
Regards
जी वन शॉट भी मैंने मँगवाई है। जल्द ही उसे भी पढूँगा। कैच फोर की बेसब्री से प्रतीक्षा है।
Thanks Vikas Ji.
जी आभार।
अच्छी समीक्षा है | नॉवेल ख़रीदे बहुत टाइम हो गया पर पढ़ नही पाया | कँवल जि के स्टार्ट के 2 नॉवेल पढ़े है वो औसत से थोड़े अच्छे लगे थे |
सेकंड चांस के साथ मुझे जो दिक्कत लगी थी वह यह थी कि उसमें भूमिका स्थापित करने के लिए काफी पृष्ठ लिए गए थे। कथानक में तेजी काफी देर में आती है। टेक थ्री उससे काफी बेहतर है। पढ़िए निराश नहीं होंगे।
आप कथानक के साथ पूरा न्याय करके समीक्षा लिखते है।
जी आभार सर…