सुलग उठा सिन्दूर – वेद प्रकाश शर्मा

रेटिंग : 3/5

उपन्यास जुलाई 1, 2018 से जुलाई 4, 2018 के बीच में पढ़ा गया 
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक 
पृष्ठ संख्या : 240
प्रकाशक : रवि पॉकेट बुक्स 
पहला वाक्य:
“लो दीपा, कल शहर में एक और बड़ी डकैती पड़ गई!”

देव और दीपा एक अच्छी खुशहाल ज़िन्दगी जी रही थी। देव को बस एक ही बात खलती थी। उसके पास उतना पैसा नहीं था जिसकी उसे तमन्ना थी। वो इसी फिराक में रहता था कि कैसे उसे पैसे मिले और वो अपनी ज़िन्दगी को उस हिसाब से जी सके जिसके वो ख्वाब देखा करता था।

फिर उसकी ज़िन्दगी में ऐसी परिस्थिति आई जिसके चलते उसकी ज़िन्दगी में दस लाख रूपये की आमद तय हो गई। वैसे तो वो पैसे एक डकैती के थे लेकिन देव को पूरा यकीन था वो इन पैसों को आसानी से अपनी मिलकियत बना सकता था। यही कारण था उसने दीपा के मशवरे को ताक पर रखकर पैसे को हथियाने की ठानी।

दीपा को लगने लगा कि पैसे की चाह ने देव को इतना अँधा कर दिया है कि जिस दीपा के लिए देव ने कभी दुनिया से बगावत की थी उसी दीपा को वह पैसों के लिए कुर्बान भी कर देगा।

और फिर जैसे दीपा और देव की ज़िन्दगी में भूचाल सा आ गया। और ऐसी घटनाएं होने लगी कि वो दोनों उस वक्त को कोसने लगे जब पैसे उनकी ज़िन्दगी में आये थे।

आखिर ऐसा क्या  हुआ देव और दीपा के साथ?  

ये कौन से पैसे थे जो देव के हाथ लगने थे ? क्या देव के हाथ वो पैसे लग सके?


क्या दीपा का डर सही साबित हुआ?


 आखिर इन दोनों किरदारों के क्या हुआ?


इन सब बातों के जवाब तो आपको इस उपन्यास को पढ़कर हासिल होंगे।

मुख्य किरदार :
देव – एक बैंक क्लर्क
दीपा – देव की पत्नी
जब्बार – एक सब इंस्पेक्टर जो दीपा को कॉलेज के वक्त से चाहता था
सुक्खू – ट्रेजरी की चोरी में शामिल एक चोर
जगबीर – ट्रेजरी की चोरी में शामिल एक चोर
गजेन्द्र – ट्रेजरी की चोरी में शामिलचोर
मुश्ताक – एक पाकिस्तानी जासूस
कर्नल भगत सिंह – देव के पिता और आर्मी के अफसर
अंजली – कर्नल की पत्नी और देव की माँ

वेद जी की सुलग उठा सिन्दूर मूलतः पैसे पे पीछे लालची देव की कहानी है। अक्सर कई बार व्यक्ति जल्द से जल्द अमीर बनने की चाहत रखता है। वो इसके लिए मेहनत नहीं करना चाहता अपितु कुछ ऐसा करना चाहता है कि झट से पैसों का मालिक बन जाए। देव भी ऐसा ही है। जब उसे मुफ्त के पैसे हथियाने का मौका मिलता है तो उसके अन्दर का लालची इनसान जाग जाता है और फिर वह अपनी बीवी के खबरदार करने के बाद भी उन पैसों को हथियाने का मन बना लेता है। इसी पैसे के फेर में उसकी और उसकी पत्नी की ज़िन्दगी फंसती जाती है और वह दोनों साजिशों के दलदल में धँसते चले जाते हैं। ये कौन सी साजिशे हैं? वो इनके चक्कर में पढ़कर क्या करते हैं? और आखिर में उनके साथ क्या होता है?

यही सब बातें ही उपन्यास का कथानक बनाती हैं।

उपन्यास के कथानक के विषय में यही कहूँगा कि यह एक तेज रफ्तार से भागता हुआ उपन्यास है। शुरुआत में ही पाठको को यह बाँध लेता है और फिर कहानी में इतने मोड़ आते हैं कि पाठक आगे की कहानी को जानने के लिए इसे पढ़ता चला जाता है। जैसे जैसे कहानी आगे बढती है वैसे वैसे कहानी के किरदारों के दूसरे चेहरे भी सामने आते हैं। कौन कब क्या कर जाये यह कहना मुहाल हो जाता है जिससे उपन्यास में एक अनिश्चितता बनी रहती है। शायद वेद जी इन्ही ट्विस्ट एंड टर्नस के लिए जाने जाते हैं। और उन्होंने इस उपन्यास में  इनका भरपूर इस्तमाल किया है।

कहानी में लगातार आते मोड़ एक तरफ तो इसकी यूएसपी है लेकिन वहीं मेरे लिए इसकी कमजोरी भी साबित होते हैं।  कई बार जब रोमांच अपने चरम पर होता है तो कुछ ऐसा हो जाता है कि कहानी का रुख ही बदल जाता है। ऐसा जब पहले कुछ बार हुआ तो मुझे मज़ा आया लेकिन फिर जब कभी भी कहानी में ऐसा मौका आया तो ये मेरे लिए अपेक्षित था कि अब कहानी यहाँ से घूमेगी। ये predictiblity मुझे कहानी का कमजोर हिस्सा लगी। पाठक के तौर कहानी में आ रहे घुमाव मुझे तब ज्यादा प्रभावित करते हैं जब वो मेरे लिए अप्रत्याशित रहते हैं। शायद मेरे लिए कहानी में ट्विस्ट कम होते तो उनकी नोवेल्टी बनी रहती और असर ज्यादा होता। लेकिन इसके चलते भी एक तरह से आप कहानी में इन्वोल्व तो रहते ही है कि आगे न जाने क्या हो?

इसके अलावा कहानी के  मुख्य खलनायक का राज जब खुलता है तो वह  आश्चर्यचकित जरूर कर देता है। पर मेरे लिए एक बार जब उसकी पहचान उजागर हो गई तो उसने ये साजिश क्यों  रची इसके विषय में जानना इतना मुश्किल नहीं था। मुझे अंदाजा हो गया था कि ऐसा क्यों होगा।  वो अंदाजा काफी हद तक सही भी था।

कहानी में एक बात ये भी है कि ये पूरी लेखक की कहानी है। इसमें वो कुछ भी कभी भी कर सकता है और पाठक के तौर पर आपके पास उसके ऊपर विश्वास करने के अलावा कोई चारा नहीं होता है। उदाहरण के लिए एक किरदार मेकअप में रहता है लेकिन पाठको को इस बात का पता तब तक नहीं लगेगा जब तक लेखक न चाहे। अगर आप हुडनइट के शौक़ीन हैं तो ये बात आपको शायद पसंद न आये। लेकिन मुझे इससे कोई इतनी दिक्कत नहीं थी। बस इस बात से लेखक को फायदा ये होता है कि वो कभी भी कहानी में कुछ भी दिखा सकता है। ट्विस्ट डालने आसान होते हैं। क्योंकि मेकअप के नीचे किसी भी किरदार को लेखक फिट कर सकता था। और पाठको के पास ये जानने का कोई चारा नहीं था कि कौन सा किरदार फिट किया है।

वेद जी के उपन्यासों  में अतिश्योक्तियों के विषय में मैंने काफी सुना है। इसमें इतनी नहीं है। सारे किरदार लगभग जीवंत ही प्रतीत होते हैं। बस एक बार ही मुझे लगा कि कुछ ज्यादा हो गया। पृष्ठ 139 में एक पात्र के विषय में कहा गया है कि
वास्तव में — में एक ऐसी क्वालिटी है कि वह लगातार दो घंटे तक न सिर्फ साँस रोक सकता है – बल्कि नब्ज और दिल की धड़कन भी बंद रख सकता है – उस दौरान बड़े से बड़ा डॉक्टर भी इसे मृत घोषित करेगा।

अब यह बात यकीन करने लायक नही है कि एक गली के गुंडे के पास ऐसी कोई  ताकत हो। इसके बदले अगर ऐसा लिख देते कि उस पात्र के पास कोई दवाई थी जिससे ये करिश्मा मुमकिन था तो वो एक बार को माना जा सकता था। यह दवाई वाली  बात कई बार कहानियों में इस्तमाल होती रही है। आदमी अपनी साँस तो रोक सकता है लेकिन दिल के धड़कने और नब्ज के रोकने को पचाना थोड़ा सा मुश्किल होता है। इसके अलावा कहानी में ऐसा कुछ ज्यादा नही था जो कि अतिश्योक्ति लगे।

उपन्यास के अलावा संस्करण के विषय में भी कुछ कहना चाहूँगा। संस्करण अच्छे पेपर पर तो छपा है लेकिन इसकी बाईंडिंग निम्न स्तर की थी। किताब पढ़ने  के दौरान ही ये बीच से फट गई और कुछ पन्ने भी निकलने लगे। इससे पढ़ने  में दिक्कत तो हुई लेकिन पढ़ने  का अनुभव भी खराब हुआ। प्रकाशक को इस चीज पर ध्यान देना चाहिए कि ऐसा न हो। पुस्तक पढ़ना एक अनुभव है और ऐसी चीजों से मुझ पर तो असर पढ़ता है। फिर अगर मैं इस पुस्तक को दोबारा पढ़ना चाहूँ तो मुझे पहले इसकी मरम्मत करनी होगी।

भले ही प्रकाशक थोड़ी कीमत बढ़ा सकते हैं लेकिन गुणवत्ता की तरफ ध्यान दिया जाना चाहिए।

बीच से फटी स्पाइन

निकलते पृष्ठ 

अंत में इतना ही कहूँगा कि ये उपन्यास मुझे पसंद आया। कथानक तेज रफ्तार है और कहानी में शुरू से अंत तक इतने घुमाव हैं कि ये पाठक को कहानी पढ़ते जाने को विवश से कर देते हैं। अगर तेज रफ्तार ट्विस्ट से भरपूर कथानक पढ़ने में आपकी रूचि है तो ये जरूर आपको पसंद आयेगा। 
सुलग उठा सिन्दूर अगर आपने पढ़ी है तो इसके विषय में आप क्या सोचते है? अपने विचारों से मुझे कमेंट्स के माध्यम से अवगत करवाईयेगा। अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है और पढ़ना चाहते हैं तो निम्न लिंक्स से इसे मँगवा सकते हैं: 
वेद जी के मैंने कुछ और उपन्यास भी पढ़े हैं। उनके प्रति मेरे विचार आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
वेद प्रकाश शर्मा
हिन्दी पल्प मैं अक्सर पढ़ता रहता हूँ। हिन्दी पल्प के दूसरे उपन्यासों के प्रति मेरी राय आप निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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0 Comments on “सुलग उठा सिन्दूर – वेद प्रकाश शर्मा”

  1. आपसे एक शिकायत है विकास जी मेरे हिसाब से आप वेद जी के सभी उपन्यासों को कम रेटिंग देते है।इसको कम से कम 4/5 मिलना चाहिए।

    1. उदय जी आप अपनी राय रखने के लिए स्वतंत्र हैं। उपन्यास की मेरी रेटिंग सिस्टम ब्लॉग के किनारे ही रखी गई है। रेटिंग व्यक्तिगत चीज होती है। और लेख का छोटा सा हिस्सा है। आप पूरे लेख को पढ़े। तीन का मतलब किताब पसंद आई ही है।
      आपकी चार रेटिंग सही है लेकिन वो आपके हिसाब से है। यही तो खूबी है। हर रचना अलग तरह से लोगों को छूती है। उपन्यास पढ़ते हुए जो चीज मुझे कहीं कहीं खली वो लेख में लिखी है। अगर वो न होता तो शायद मैं इसे और ज्यादा रेट करता। वहीं हो सकता है जो चीज मुझे खली हों वो चीज किसी को पसंद आती हों। ये सब व्यक्तिपरक(सब्जेक्टिव) होती हैं। इसलिए मैं कभी इन लेखों को रिव्यु नहीं कहता। ये खाली एक पाठक के विचार हैं।

  2. बढ़िया रिव्यु लिखते हो विकास भाई। अगर संभव हो तो वेद प्रकाश जी का 'सभी दीवाने दौलत के' उपन्यास भी पढ़ना।
    अच्छा लगेगा।

    1. शुक्रिया सुनीत भाई। वेद जी के काफी उपन्यास खरीद कर रखे हैं। उन्हें धीरे धीरे पढूँगा।

  3. वेद जी के उपन्यासों की सबसे बड़ी विशेषता ही यही है की कहानी अचानक एक नया मोड़ ले लेती है। वेदप्रकाश शर्मा जी के बहुत से उपन्यास अविस्मरणीय है।
    हाँ, कुछ उपन्यासों में अतिशयोक्ति हो सकती है, क्योंकि यह सब काल्पनिक घटनाएं हैं इसलिए कुछ अति कल्पनिय हो गयी।
    वेदप्रकाश शर्मा जी को पढने का एक अलग ही‌ मजा है।
    प्रस्तुत उपन्यास की अच्छी समीक्षा लिखी है। दौलत के विषय पर आप 'कानून बदल डालो', 'फाँसी दो कानून को' भी कभी पढना, बहुत शानदार कथा है।
    अच्छी समीक्षा के लिए धन्यवाद।

    1. जी जरूर इन्हें भी इसी वर्ष पढूँगा।

  4. विकास जी मै वेद प्रकाश शर्मा जी का फैन हूँ उनके 100 से ज्यादा उपन्यास पड़ चूका हूँ उनके उपन्यासों से मेरी लाइब्रेरी भरी हुई है मेरे ख्याल से आपको देवकांता संतती पढना चाहिए ये 14 उपन्यास 7 जिल्दों में प्रकाशित है ये अमेजॉन पर उपलब्ध है। ये उपन्यास पढ़ते हुए आप खुद को एक अलग ही दुनिया में पाएंगे। मैंने पढ़ा है बहुत ही अच्छी नावेल है

    1. जी जरूर एक बार उन्हें पढूँगा। वैसे देवकांता संतति चंद्रकांता संतति के तर्ज पर लिखी गई थी। पहले मेरा विचार चंद्रकांता संतति पढ़ने का ही है। बाद में देवकांता पढूँगा। ये सब किताबें पढ़ने वाली किताबों की सूची में जोड़ रखी है। जल्द ही उन्हें पढूँगा।

    1. जी, आपकी रेटिंग भी अपनी जगह सही है। रेटिंग व्यक्तिपरक चीज होती है। हर आदमी के लिए हर किताब अलग तरह की होगी। ब्लॉग पर आने का शुक्रिया। आते रहिएगा और अपने विचारों से अवगत करवाते रहिएगा।

  5. एक बात समझ मे नही आई,जब देव कर्नल से कहता है कि आपने दीपा की बनायी हुई खीर खाई तो कर्नल भगतसिंह कहता है नही खीर तो लेबोरेट्री के लिए भिजवाई है।फिर भी वो देव के सारे सवालो के जवाब सही सही दे देता है।तो देव और दीपा के मन मे ये बात क्यो नही उठती कि इसने खीर खाई नही तो खीर मे मिलाई गोली का इसपर असर कैसे हुआ?और कैसे उसने सारे भेद खोल दिये?

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