रैना @ मिडनाइट – नितिन मिश्रा

उपन्यास 11 अगस्त से 12 अगस्त के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 162
प्रकाशक: फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन

रैना @ मिडनाइट - नितिन मिश्रा
रैना @ मिडनाइट – नितिन मिश्रा

पहला वाक्य:
घड़ी के काँटे रात के ठीक बारह बजा रहे थे। 



कहानी:
रैना प्रधान और उसके दोस्तों का केवल एक ही मकसद था, समाज में व्याप्त अंधविश्वास  को उजागर करके उसके प्रति लोगों को जागरूक करना। यह काम वो लोग अपने प्रोग्राम रैना ऐट मिडनाइट के माध्यम से बखूबी कर रहे थे।

लेकिन फिर कुछ ऐसी घटनाएं होने लगी जिसके चलते उनके खुद के विश्वास डगमगाने लगे। ऐसा लगने लगा जैसे जिन भूत प्रेतों के अस्तित्व को नकारने के लिए रैना और उसके दोस्त लड़ते थे, उन्ही का साया रैना पर पड़ गया।

और फिर एक के बाद एक ऐसी घटनाएं होने लगी जिसके चलते उन्हें सोचना ही पड़ा कि जिन शक्तियों के अस्तित्व को वो लोग झुठलाते थे कहीं वो शक्तियाँ असल में ही तो मौजूद नहीं हैं।

आखिर कौन थी रैना प्रधान? क्यों वो लोग समाज में व्याप्त अन्धविश्वास से लड़ रहे थे?


उनके साथ ऐसा क्या हुआ जिसके चलते उन्हें आत्मा के अस्तित्व पर पुनर्विचार करना पड़ा?

ऐसे ही कई प्रश्नों के उत्तर आपको इस उपन्यास को पढ़कर पता चलेंगे।


मुख्य किरदार:
रैना प्रधान – रैना @ मिडनाइट नाम के वेब शो की प्रस्तुतकर्ता
शशांक, प्रत्युष, विकास – रैना के टीम मेट्स
महाजन सिंह – राजनगर के निकट के एक गाँव रौनक पुर का एक बाशिंदा
इमरती देवी – महाजन सिंह की पत्नी
हिमांशु – एक चालीस वर्षीय व्यक्ति जो कि एक आईटी फर्म में मुलाजिम था
निधी – फर्म में काम करने वाली एक फ्रेशेर
इशानी – रैना की दोस्त
डॉक्टर पौद्दार – रैना का डॉक्टर
रानी दर्पणा – मुन्नार में रहने वाली एक युवती जो रैना और उसके दोस्तों को नींद में चलते हुए मिली थी

मेरे विचार:
रैना @ मिडनाइट नितिन मिश्रा जी का दूसरा उपन्यास है। इससे पहले फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन से ही उनका उपन्यास  वेयर इस द वेरेवुल्फ़ आया था। वह उपन्यास भी हॉरर श्रेणी का था और यह उपन्यास भी हॉरर और रहस्यकथा श्रेणी का ही है।

रैना @ मिडनाइट में नितिन जी ने हॉरर और रहस्य का एक अच्छा कॉकटेल तैयार किया है जिसका नशा पढने वाले पर शुरुआत से लेकर अंत तक तारी रहता है। उपन्यास की शुरुआत 31 दिसम्बर 2017 की घटना से होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि रैना प्रधान एक आत्मा के चंगुल में फँस चुकी है। फिर धीरे धीरे हमे बीते वर्ष की घटना के विषय में पता चलता जाता है। पाठक के रूप में हमारे अंदर यह उत्सुकता रहती है कि इन 11 महीनों में ऐसा क्या हुआ कि रैना की यह हालत हो गयी? यह चीज जानने  की उत्सुकता हमे पन्ने पलटने पर विवश कर देती हैं।

जैसे जैसे हम कहानी पढ़ते जाते हैं हमे पता चलता है कि रैना कौन है? क्यों वो अंधविश्वास उन्मूलन के कार्य में लगी हुई थी? और उसके अपनी व्यक्तिगत दुश्वारियाँ क्या हैं? जैसे जैसे कहानी आगे बढती है हम कहानी में खो जाते हैं। कुछ ऐसी घटनाएं होती है जिससे लगने लगता है कि इधर कुछ परालौकिक शक्तियों से उपन्यास के किरदारों का पाला पड़ा है। किरदारों के साथ क्या हो रहा है?इस रहस्य को पढ़ने के लिए पाठक उपन्यास के पन्ने पलटता चला जाता है।

उपन्यास के किरदारों की बात करूँ तो ज्यादातर किरदार अर्बन यूथ है। उनकी भाषा शैली भी शहरी युवाओं की तरह है। इस कारण अंग्रेजी की अधिकता दिखती है। किरदारों के बीच में आपसी चुहलबाजी भी संवादों को रोचक बनाती है।

किताब की एक और ख़ास बात इसमें मौजूद चित्र हैं। ये चित्र उपन्यास के कथानक के अनुरूप हैं और कहानी पढ़ने के अनुभव में इजाफा करते हैं।

उपन्यास समाज में फैले अंधविश्वास के ऊपर भी करारी चोट करता है।उपन्यास में दर्शाया गया है कि किस तरह भूत प्रेत के साये के नाम पर लोग अपने परिवार वालों को प्रताड़ित करते हैं, काले जादू के चक्कर में लोगों को नुक्सान पहुँचाते हैं। यह सब हम लोग खबरों के तौर पर आये दिन अखबार में पड़ते हैं लेकिन फिर भी इन सबसे दूर नहीं होते हैं।आज भी गाँव में ही नहीं बल्कि शहरों में भी इन अंधविश्वासों का बोलबाला है। गाहे बगाहे ख़बरे हम पढ़ते रहते हैं कि लोगों को तांत्रिक कैसे अपने चक्कर में फाँसते हैं। कई लोग तो अपनी जमा पूँजी भी इनके चक्कर में गँवा देते हैं।

उपन्यास जैसा कि मैंने कहा कि शुरुआत से लेकर अंत तक रोचक है। वैसे तो इसमें ऐसी कोई बड़ी कमियाँ नहीं हैं लेकिन एक दो बातें ऐसी थी जो मुझे थोड़ा खटकी तो उनके विषय में मैं इधर लिखूँगा।

उपन्यास के शुरुआत में एक लेखकीय है। मेरी राय यही रहेगी कि आप उस लेखकीय को उपन्यास खत्म होने के बाद पढ़े। शुरुआत में न पढ़ें। मुझे लगता है कि नितिन जी ने जो बात उसमें की है उससे कहानी का अंत का घुमाव क्या होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इसलिए अगर आप लेखकीय बाद में पढ़ेंगे तो मेरे ख्याल से कहानी आप ज्यादा एन्जॉय कर पाएं।

रैना @ मिडनाइट की कहानी की बात करूँ तो कहानी बीच में एक जगह ठहर सी जाती है। रैना और उसके दोस्त मुन्नार जाते हैं। वहाँ उनके साथ कुछ घटनाएं होती है और फिर सारे रहस्यों से पर्दा उठने के पहले वो लोग दो तीन महीनों तक नहीं मिलते हैं। वैसे तो पाठक को रहस्य जानने के लिए दो तीन महीनों का इन्तजार नहीं करना पड़ता है लेकिन पढ़ते हुए फिर भी एक तरह का गैप महसूस होता है। इससे पहले रोमांच अपने चरम पर होता है और फिर एक तरह का ठहराव कुछ पृष्ठों के लिए आ जाता है जिसमें इन दो महीनो  में क्या हुआ इसके बाबत लेखक ने बताया है और फिर इसके बाद दोबारा कहानी शुरू होती है और सभी रहस्यों से पर्दा उठता है। बीच का यह ठहराव मुझे थोड़ा अजीब लगा था। अगर यह न होता तो और कहानी एक ही फ्लो में चलती तो मेरे हिसाब से शायद बेहतर होता। अभी यह एक तेज रफ्तार हाईवे पर एक स्पीड ब्रेकर सा प्रतीत होता है।

कहानी में एक प्लेंचेट वाला प्रसंग है। उसमे घटित घटनाओं के लिए जो कारण बाद में लेखक ने दिया है वो मुझे थोड़ा जमा नहीं।यह इसलिए भी था क्योंकि उससे पहले जो व्याख्या दी गयी थी वह यथार्थ के ज्यादा निकट लगती है जबकि यह व्याख्या यथार्थ से थोड़ा जुदा लगती है जिस पर सहज विश्वास कर पाना थोड़ा मुश्किल है। ऐसे फेनोमेनन होते हैं इसकी जानकारी मुझे है लेकिन इन्हे वैज्ञानिक रूप से अभी तक साबित नहीं किया जा सका है।

इसके अलावा रैना @ मिडनाइट का अंत भी कुछ कुछ वेयर इस द वेरेवुल्फ़ की तरह हुआ है। यह अंत कैसे एक समान है वो तो आप तभी जान पायेंगे जब दोनों किताब पढ़ेंगे। अगर आपने दोनों पढ़ी हैं तो टिप्पणियों में मुझे जरूर बताइयेगा कि आपको यह समानता महसूस हुई या नहीं। अगर अंत थोड़ा अलग होता तो शायद बेहतर था। इसमें थोड़ा ट्विस्ट होता तो शायद अच्छा रहता।

अंत में यही कहूँगा कि रैना @ मिडनाइट एक पठनीय उपन्यास है। कथानक तेजी से भागता है और अपनी रोचकता अंत तक बरकरार रखता है। अगर हॉरर और रहस्यकथाओं के शौक़ीन हैं तो आपको इसे एक बार जरूर पढ़ना चाहिए। उपन्यास मुझे तो पसंद आया तो उम्मीद करता हूँ कि आपको भी पसंद आएगा।

रेटिंग: 3/5


क्या आपने इस उपन्यास को पढ़ा है? अगर हाँ, तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे आप कमेंट्स के माध्यम से अवगत करवा सकते हैं। अगर आपने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा है और आप इसे पढ़ना चाहते हैं तो इसे आप निम्न लिंक पर जाकर मँगवा सकते हैं:
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© विकास नैनवाल ‘अंजान’


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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6 Comments on “रैना @ मिडनाइट – नितिन मिश्रा”

  1. अच्छी समीक्षा है | नॉवेल खरीद लिया है जल्द ही पढूंगा | इनकी 'वेयरवुल्फ़' पढ़ी है जो मुझे बहुत पसंद आई | हॉरर थ्रिलर पर लेखक की अच्छी पकड़ है |

    1. जी बिलकुल सही कहा आपने। इनके उपन्यास ही नहीं कॉमिक बुक्स भी बेहतरीन हैं। पढ़कर मज़ा आ जाता है। किताब पढ़कर अपनी राय जरूर दीजियेगा।

  2. मैंने नितिन मिश्रा जी का उपन्यास 'वेयरवुल्फ' पढा था, रोचक लगा। प्रस्तुत उपन्यास तो खैर नहीं पढा। समीक्षा अच्छी लगी।
    गुरप्रीत सिंह
    धन्यवाद।

    1. उपन्यास पसंद आएगा आपको।  एक बार पढ़ियेगा। आभार।

  3. मैंने तो हालांकि इसे वेब पॉर्टल और प्रतिलिपि एप पर पढ़ा है, मगर एक दफा इसे हार्डबुक के साथ भी पढ़ना चाहूंगा !!

    1. जी जरूर पढ़िएगा… हार्डकॉपी में पढ़ने का अपना अलग लुत्फ़ है… फिर हार्ड कॉपी में तो कहानी के साथ कुछ इलस्ट्रेशन्स भी दिए हैं जो रोचकता बढ़ा देते हैं….

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