संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 40 | प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स | श्रृंखला: राजन-इकबाल
मुख्य किरदार:
पवन, विक्टर ,पूनम, आफताब – दूसरे एजेंट्स जो राजन इक़बाल के साथ इस केस पर काम कर रहे थे
प्रोफेसर मदान, प्रोफेसर अजीत घोष, डॉक्टर रामाराव – जाने माने वैज्ञानिक जिनके पास राजन और शोभा महाशक्ति का राज जानने गए थे
ज़रीन – महाशक्ति की सेविका
प्रोफेसर विनायक राव पाटिल – एक वैज्ञानिक जिन्हें राजन जानता था
विचार
उपन्यास के कमजोर पक्ष की बात करूँ तो उपन्यास में खलनायक और नायको (क्योंकि सारे एजेंट ही नायक हैं) कि मुठभेड़ मुझे जमी नहीं। हो सकता है खलनायक ने जो किया वो ओवर कॉन्फिडेंस में किया लेकिन फिर भी अगर मैं उसकी जगह होता तो वो नहीं करता। मसलन मैं खुद एजेंट्स के सामने खुद को जाहिर नहीं करता। मेरा जो मकसद था उस पर ध्यान देता। फिर यदि मैंने जाहिर भी कर दिया तो एजेंट्स को खुद अपने अड्डे तक नहीं ले जाता। दूसरी बात खलनायक अगर बनो तो पूरी तरह से बनो। इधर खलनायक खून नहीं बहाना चाहता है इसलिए वो रक्त पात करने से बचता है। यही उसकी कमजोरी भी है।
‘आप हमे आदेश दें, हम उन्हें खत्म कर देंगे।’ तीसरा सदस्य बोला।
‘नही! हम फिजूल का खून खराबा पसंद नहीं करते। खून हम तभी बहाते हैं – जब हमारा काम आसानी से न हो।’
(पृष्ठ 15)
अगर वो राजन इकबाल को मौका लगते ही मार देता तो कथानक वैसे खत्म नहीं होता जैसे हुआ। मुझे यही कथानक की कमजोरी भी लगती है। क्योंकि अंत में नायकों का रुख ऐसा नहीं होता है। वो बेतरतीब तरीके से खून खराबा करते हैं। खलनायक का अंत जैसा होता है वो भी दर्शाता है कि खलनायक अगर खून खराबा करता तो शायद बच जाता। अगर नहीं भी बचता तो कथानक और रोमांचक हो जाता। अभी इतना रोमांचक नहीं रह पाता है। क्योंकि नायको को खलनायक तक पहुँचने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है। दूसरा पहुँचने के बाद भी ऐसा नहीं है कि उन्हें यातनाएं दी गई हों। उन्हें आराम से रखा जाता है तो वो जद्दोजहद नहीं रहती है तो होनी चाहिए। इसके इलावा भी खलनायक की समाप्ति का भी आसान सा तरीका बेदी जी ने ढूंढ लिया था। वो अपनाने के बाद सारे नायक अजय हो जाते हैं। अब पाठक के रूप में मुझे ऐसे नायक पसंद नहीं आते जो अजय हों। अगर नायक को कहानी में कुछ संघर्ष न करना पड़े तो उस कहानी को पढ़ने का मजा नहीं रह जाता। इसके बनिस्पत अगर बेदी जी ने राजन इकबाल को दिमागी सूझ बूझ और जासूसी ट्रेनिंग के इस्तेमाल के द्वारा खलनायक पे विजय पाते दिखलाया होता तो उपन्यास और रोचक बन पड़ता। इसकी वजह से उपन्यास का कथानक भी बढ़ सकता था जो कि पाठक के लिए अच्छी बात होती।
खैर,चूँकि ये बाल उपन्यासिका है तो उस तौर पर एक बार पढ़ा जा सकता है। लेकिन हमे ध्यान रखना चाहिए कि आजकल बच्चे पर्सी जैक्सन,इंकवर्ल्ड ट्राइलॉजी जैसे कथानक पढ़ते हैं जो कि काफी जटिल होते हैं। तो उन्हें हिन्दी में भी उसी स्तर का कथानक देना पड़ेगा।
अगर आपने इस उपन्यासिका को पढ़ा है तो आपको ये कैसी लगी? कमेंट के माध्यम से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।