संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: ई बुक
प्रकाशक : डेली हंट
खिलौना – प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके |
पहला वाक्य :
रात के तकरीबन नौ बजे थे।
रात के वक्त सलीम अशरफ के घर आया तो बेहद परेशान लग रहा था। और उसकी परेशानी का सबब था वह खिलौना जिसे पाकर एक बार वो ख़ुशी से फूला न समाया था।
आखिर सलीम क्यों परेशान था? उसे क्या दिक्क्त थी? खिलौने की कहानी क्या थी?
मुख्य किरदार :
कर्नल अशरफ – फ़ौज के रिटायर अफसर
कमलान – कर्नल अशरफ का पुत्र और एक फौजी अफसर जो छुट्टी में घर आया था
सरायना – कमलान की माँ
सलीम – कर्नल अशरफ का दोस्त
खिलौना प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके की एक लघु कथा है। मैं अक्सर हॉरर कहानियों की तलाश में रहता हूँ। डेली हंट में यह रचना दिखी तो इसके शीर्षक ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। मुझे उस वक्त लगा था कि यह उपन्यास होगा लेकिन खरीदकर पढ़ना शुरू किया तो पाया कि यह एक लघु कथा थी।
लघुकथा में जो कहानी है उससे मिलती जुलती कहानियाँ मैं कई बार देख चुका हूँ। आहट, विकराल और गबराल जैसे धारवाहिक में ऐसी कहानियाँ आ चुकी हैं।
ख्वाहिशों के लिए हमे कीमतें चुकानी होती हैं और कई बार किसी ख्वाहिश की कीमत उस ख्वाहिश को पाने से ज्यादा हो जाती है। इसी विचार को लेकर यह कहानी बुनी गयी है।
कहानी में वर्तनी की भी कई गलतियाँ हैं। यह गलती लेखक की हैं या प्रकाशक की यह कहना मुहाल है लेकिन इससे पढ़ने का अनुभव खराब होता है। कहानी में कब क्या होगा इसका अंदाजा भी आसानी से लग जाता है। मुझे पता था कि पहली ख्वाहिश का क्या नतीजा निकलेगा और उसके बाद की ख्वाहिशों का नतीजा क्या होगा इसका भी अंदाजा मुझे हो गया था और वही हुआ। इस तरह से कहानी कब क्या रुख लेगी इसका अंदाजा हो जाता है तो कि कहानी के असर को कम करता है।
कहानी के बीच में एक प्रसंग है जिसमें एक ऋषि एक नाग के मरने पर आँसू बहाता है। वो ऐसा क्यों करता है। यह कहानी में नहीं बताया गया है। अगर इस प्रश्न का उत्तर दिया रहता तो अच्छा रहता।
कहानी के विषय में यही कहूँगा कि कहानी पठनीय तो है लेकिन इसमें कुछ नया नहीं है। अगर आप हॉरर पढ़ते या देखते आये हैं तो इससे मिलती जुलती कई कहानियाँ आपने पहले भी पढ़ी होंगी या धारावाहिक में आपने यह देखी होंगी। कहानी अचानक से खत्म भी हो जाती है। कहानी को बेहतर बनाया जा सकता था। उदाहरण के लिए खिलौने का नाश कैसे होगा यह दर्शाया जा सकता था। खिलौने का इतिहास क्या था यह दर्शाया जा सकता था। इससे कहानी आसानी से उपन्यास का स्वरूप ले सकती थी। परन्तु अभी तो लघु कथा के रूप में ही इसे समेट दिया गया जो कि प्रभावित नहीं करती है।
मेरी रेटिंग : 1.5/5
अगर आपने इस कहानी को पढ़ा है तो आपको यह कैसी लगी?
अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाइयेगा।
अगर आपने इसे नहीं पढ़ा है तो आप इसे निम्न लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं:
खिलौना