दौलत की खातिर – अनिल मोहन

रेटिंग : 2.5/5
उपन्यास 27 अक्टूबर,  2017 से  29 अक्टूबर, 2017 के बीच पढ़ा गया 


संस्करण विवरण:

फॉरमेट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 304 | प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्सश्रृंखला: अर्जुन  भारद्वाज 
 
पहला वाक्य:

बत्तीस वर्षीय आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक, अनुपम शिंदे ने बेहद खूबसूरत ऑफिस में कदम रखा।

कहानी

अनुपम शिंदे शहर का जाना माना रईस था। बीस दिन पहले जब उसे धमकी भरे पत्र मिलने शुरू हुए तो उसने उसे किसी की मसखरी समझ नज़रन्दाज कर दिया। पत्रों में उसे शहर छोड़ देने के लिए कहा था। फिर दस दिन पहले उसे धमकी भरे फोन आने लगे कि अगर वो अपनी सलामती चाहता है तो डायरी को कॉल करने वाले  के हवाले कर दे। ऐसा न करने पर उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा। और इसके लिए उसे 24 घंटे दिए थे। 
अनुपम शिंदे की दिक्कत ये थी कि जिस डायरी की उससे माँग हो रही थी उसके अस्तित्व से आज तक वो अनजान था। अब वो इस धमकी को नजरअंदाज नहीं कर सकता था।
इसलिए अनुपम ने सुपर प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी के मालिक और प्राइवेट डिटेक्टिव अर्जुन भारद्वाज से मदद की गुहार लगाई थी। उसने अर्जुन को ये जिम्मेदारी दी थी कि वो एक तो उस डायरी का पता लगायें जिसके कारण उसकी ज़िंदगी दुश्वार हुई थी और दूसरा वो उसको धमकाने वाले व्यक्ति से उसकी जान की रक्षा करें।
क्या अर्जुन इन कामों में सफलता प्राप्त कर पाया? अनुपम को धमकाने वाला शख्स आखिर कौन था? डायरी का क्या रहस्य था? क्या धमकी जारी करने वाला अपने कहे को सच में तब्दील कर पाया?

महत्वपूर्ण किरदार:

अनुपम शिंदे : शहर का एक धनवान व्यक्ति
अंकिता शिंदे : अनुपम की धर्मपत्नी
मनोरमा शिंदे : अनुपम की माँ
निहालसिंह : अनुपम का वफादार नौकर
गजानन्द शिंदे : अनुपम का मरहूम चाचा
गिरजाशंकर शिंदे : अनुपम के मरहूम पिताजी
अर्जुन भारद्वाज : सुपर प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी का मालिक
बंसल : अर्जुन का सहायक
नीना : अर्जुन की सेक्रेटरी
जोगिंदर : एक प्राइवेट जासूस जिससे अर्जुन नफरत करता था क्योंकि जोगिंदर पैसे बनाने के लिए किसी को ब्लैकमेल भी कर सकता था
पठानिया : दिल्ली का नामी गुंडा
गोगिया : पठानिया का साथी
इंस्पेक्टर जयसिंह : दिल्ली पुलिस का इंस्पेक्टर जो अर्जुन से खार खाये हुए था क्योंकि वो केसेस के दौरान अर्जुन के अपनाये तरीकों जिनमे अक्सर खून खराबा होता था से सहमत नहीं था। उसका मकसद अर्जुन को इन सबसे रोकना रहता था
गरिमा शिंदे : एक लड़की जो अर्जुन की मदद मांगने के लिए उसे कॉल करती रहती थी।
सोफिया : गरिमा की दोस्त
शैफाली : एक टेलीफोन ओपरेटर

मेरे विचार

‘दौलत की खातिर’ अनिल मोहन की अर्जुन भरद्वाज श्रृंखला का उपन्यास है। इससे पहले मैंने इसी श्रृंखला का उपन्यास खतरनाक आदमी पढ़ा था। अर्जुन भरद्वाज का किरदार मुझे उस वक्त अच्छा लगा था और इसीलिए इस श्रृंखला के कुछ और उपन्यास मैंने मंगवा लिए थे। ये उन्हीं में से था।
उपन्यास की कहानी की बात करूँ तो कहानी पठनीय है। एक के बाद एक घटनाक्रम होते हैं जिसके कारण पाठक उपन्यास से बंधा रहता है। उपन्यास पढने योग्य है और एक बार पढ़ा जा सकता है। 
ऐसा नही है इसमें कमियाँ नहीं है। कई जगह ऐसी बातें लिखीं हैं जो अपने आप को काटती प्रतीत होती है या बेतुकी लगती हैं। उदारहण के लिए:
पृष्ठ २५ में अर्जुन अनुपम को देखकर हैरान होता है:
लेकिन उसे देखकर अर्जुन भारद्वाज को हैरानी अवश्य हुई थी। क्योंकि वह तो इस बात का अंदाजा लगाए बैठा था कि जिस शख्स से मिलने जा रहा है उसकी उम्र 50 के आस पास होगी
लेकिन फिर पृष्ठ ३५ में वो कहता है :
‘मैं जानता हूँ आप गिरिजाशंकर के बेटे हैं और शाही खानदान के एकमात्र चिराग हैं और शिंदे स्टील लिमिटेड के एक लौते मालिक हैं।’  
‘आप तो मेरे बारे में काफी जानकारी रखते हैं।’
‘रखनी पड़ती है’- अर्जुन भरद्वाज ने जवाब दिया
अब जब उसे सारी जानकारी थी तो वो शुरुआत में इतना हैरान क्यों था?
पृष्ठ २५५ का एक प्रसंग है। अर्जुन एक ओपरेटर का पता लगाता है। उसे शक है कि वो खलनायक से मिली हुई है। वो उस ओपरेटर को किसी से पैसे लेते हुए भी देख लेता है। फिर वो पैसे देने वाले बन्दे के पीछे जाने की बजाय ओपरेटर के पीछे चलने लगता है?? आखिर क्यों??
मैं होता तो मेरा लॉजिक ये होता कि मुझे ऑपरेटर की जानकरी पहले से ही है तो उसके घर का पता आसानी से निकाल सकता हूँ। और शायद मुझे पता भी होगा ऐसे में जिसने पैसे दिये उसके पीछे जाने का तुक था।
कहानी में ही एक बार अर्जुन के फ्लैट में खलनायक हमला कर देता है और अर्जुन को बेहोश करके चलता बनता है।(पृष्ठ ६९ का प्रसंग) फिर उसे वो डायरी हासिल होती है जिसकी उसे तलाश है और वो उस डायरी को अपने कमरे में रखता है। ये तो बेवकूफाना काम हुआ। जो खलनायक एक बार कमरे में आ सकता है वो दोबारा आ जाएगा। फिर अर्जुन जो कि एक परिपक्व जासूस है उसने इतना बेतुका  कदम क्यों उठाया? और डायरी वो बेड के कवर के नीचे रखता है। अर्जुन की ये हरकत मुझे पची नहीं।
पृष्ठ १०१ में अर्जुन के विषय में ये दर्ज है :
पर उसने उसे शूट करने का इरादा अपने दिमाग से निकाल दिया क्यूंकि इस समय उसके पास लाइसेंस शुदा रिवाल्वर था और उसके नाम रजिस्टर्ड था। अगर उसने इस रिवाल्वर से उस पर गोली चला दी और वह मर गया तो वह तो फिर से पुलिस के चक्कर में पड़ जाएगा। 
ऐसे समय में अक्सर वो उस रिवाल्वर का इस्तेमाल किया करता था, जो उसके पास दो नंबर का होता था। 
लेकिन पृष्ठ ९९ में वो एक बार इसी रिवाल्वर से गोली चला चुका होता है :
तभी सामने से एक साया नजर आया। 
अर्जुन ने उसका निशाना बांधा और ट्रिगर दबा दिया। 
धायं !
रिवाल्वर की नाल से गोली निकली और अगले ही पल किसी की चीख वातावरण में गूंजती चली गयी।    
अब अचानक दो पृष्ठों बाद उसे ये ख्याल कैसे आया। फिर उसपे अनुपम के सामने हमला हुआ था जो कि गवाह था कि उसने जो किया अपने बचाव के लिए किया। ऐसे में ये ख्याल मुझे तो बेतुका ही लगा। 
पृष्ठ 275 पे अर्जुन भारद्वाज को खुद नहीं पता होता कि वो किस जगह जा रहा है।
उस पर दृष्टि पड़ते ही अर्जुन भारद्वाज हक्का-बक्का रहा गया। वह वही खण्डर था….
पृष्ठ 300 पे वो अनुपम शिंदे से ये कहता है:
“मैं आपको खजाने का पता बताने के लिए ही यहाँ लाया हूँ शिंदे साहब…”
अर्जुन तो उधर खलनायक के बुलाने पर आया था। उसे नीना को बचाना था और वो खलनायक का राज फाश करने के लिए ही अनुपम को अपने साथ लाया था। इसलिए उसका बाद का कथन शेखी ही लगता है। लॉजिकल तो था नहीं।
जिस पठानिया ने अपनी आइडेंटिटी को गुप्त रखने का इतना प्रयास किया उसने शैफाली के माध्यम से अनुपम की घर की लाइन को अपने नाम वाले नम्बर पर क्यों redirect किया। ऐसे में तो उसने अपने खिलाफ ही सबूत  छोड़ा।
कई जगह ऐसा लगता है कहानी में पृष्ठ भरने के लिए संवाद डाले हैं। पृष्ठ २४१ में खलनायक अनुपम शिंदे को कॉल करता है। उधर अर्जुन भरद्वाज भी रहता है तो अनुपम के बाद वो भी खलनायक से बात करता है। ये संवाद २४१ से २४६ यानी पाँच पृष्ठ लम्बा था। इसमें कोई काम की बात नहीं थी। ये एक पृष्ठ में भी निपटता तो चल जाता। ऐसे ही कई संवाद हैं जो कि फ़ालतू के प्रतीत होते हैं और कथानक की तेजी में स्पीड ब्रेकर का  सा काम करते  प्रतीत होते  हैं।
ऊपर लिखी बातों के इलावा जब अंत में सारे राज फाश होते हैं तो उनको दर्शाने का तरीका भी मुझे नहीं जमा। ये काम अर्जुन के बड़े बड़े मोनोलोग से करवाया गया है। पृष्ठ २८० से बात शुरू होती है और पृष्ठ २९५ तक जाती है। आखिर का वक्त क्लाइमेक्स का होता है जिसमे  एक्शन को तवज्जो देनी चाहिए थी।  ये 15 पृष्ठ कम किये जा सकते थे ताकि एक्शन और गतिशीलता बरकरार रहे। या ये सारे जवाब एक्शन निपटने के बाद भी दिये जा सकते थे। 
उपन्यास के दौरान कई बार इंस्पेक्टर जयसिंह अर्जुन के पीछे पीछे हर जगह पहुँच जाता है। अब अर्जुन एक डिटेक्टिव है लेकिन वो इंस्पेक्टर के आने से हमेशा हैरान ही होता है। अगर मैं डिटेक्टिव होता और मुझे ये न पता लग रहा होता कि मेरे पर नज़र रखी जा रही है तो अपने चुने हुए काम के विषय में एक बार जरूर सोचता कि जो कर रहा हूँ उसके लिए उपयुक्त हूँ या नहीं। 
ये छोटी छोटी इक्का दुक्का बातें हैं जो मुझे इस उपन्यास में थोड़ी खटकी।
अर्जुन का किरदार मुझे पसंद तो है लेकिन इस उपन्यास में थोड़ा अपरिपक्व लगा। जैसे वो अनुपम की सुरक्षा का जिम्मा तो लेता है लेकिन अपना कोई आदमी उसकी सुरक्षा के लिए तैनात नहीं करता है। ये तो किस्मत की बात होती है कि खलनायक कई बार जब अनुपम पे हमला दिखाया तो अर्जुन को आस पास दिखाया गया है। एक बार अनुपम उसे जेल से छुडाने आता है और एक बार खुद अर्जुन डायरी की तालश में अनुपम के घर जाता है। 
अर्जुन भरद्वाज का पिछला उपन्यास हार्ड बॉयल्ड शैली का लगा था और यही शैली इसमें भी दिखती है। ये मुझे पसंद है। अर्जुन जिस हिसाब से खून करने से पहले सोचता तक नहीं है वो मुझे पसंद आता है। 
अर्जुन और जयसिंह के डायलॉग और उनके बीच का समीकरण मजेदार था। खलनायक भी कहानी के हिसाब से बढ़िया था। उसने जाल तगड़ा बुना था। 
अर्जुन और उसकी सेक्रेटरी नीना के बीच के प्रसंग भी मज़ेदार थे। आगे उनके बीच क्या होता है ये देखना बनता है।
मेरे हिसाब से अपनी कमियों के साथ भी  दौलत की खातिर एक पठनीय उपन्यास है जिसे एक बार पढ़ा  जा सकता है।  
अगर आपने उपन्यास पढ़ा है तो इसके विषय में अपनी राय जरूर दीजियेगा। अगर नहीं पढ़ा तो उपन्यास को निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं:

FTC Disclosure: इस पोस्ट में एफिलिएट लिंक्स मौजूद हैं। अगर आप इन लिंक्स के माध्यम से खरीददारी करते हैं तो एक बुक जर्नल को उसके एवज में छोटा सा कमीशन मिलता है। आपको इसके लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ेगा। ये पैसा साइट के रखरखाव में काम आता है। This post may contain affiliate links. If you buy from these links Ek Book Journal receives a small percentage of your purchase as a commission. You are not charged extra for your purchase. This money is used in maintainence of the website.

About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

View all posts by विकास नैनवाल 'अंजान' →

4 Comments on “दौलत की खातिर – अनिल मोहन”

  1. Yah upanyas Lagbhah 9 Saal pahle likhe gaye Mere (Narinder Nagpal) ke asli novel 'Bakre ki Maa' ki Asafal nakal hai.Anil Mohan ke Arjun Bhardwaj series ke lagbhag 29 original novels maine likhe hain.Ek handwritten novel abhi bhi mere paas hai.Ek Court case bhi hua tha.

    1. अगर ऐसा है तो उम्मीद करता हूँ आपको इंसाफ मिला होगा। आशा है जल्द ही आपके नाम से उपन्यास पढने को मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *