खतरनाक आदमी – अनिल मोहन



संस्करण विवरण :

फॉर्मेट:
पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 240 | प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्सश्रृंखला: अर्जुन भरद्वाज

पहला वाक्य:
अर्जुन भरद्वाज को छत्तीसगढ़ से दिल्ली के लिए रवाना हुए अभी पंद्रह मिनट ही हुए थे कि छत्तीसगढ़ की सीमा पर वाहनों की लम्बी लाइन देखकर उसने कार रोकी और सिगरेट सुलगाकर कार से बाहर देखते हुए माजरा समझने की चेष्टा करने लगा। 

कहानी

अमरनाथ वोहरा, छत्तीसगढ़ के नामी व्यापारियों में से एक था।  जब उसके पुत्र का अपहरण हुआ तो उसने इस सिलसिले में अर्जुन भरद्वाज को बुलाया। इसी केस को निपटाकर जब अर्जुन दिल्ली वापस जा रहा था तो पुलिस चेकिंग के दौरान उसे पकड़ लिया गया।

पुलिस को उसकी गाड़ी की डिग्गी में एक युवती की लाश मिली थी। अर्जुन को पुलिस इंस्पेक्टर ज्योति प्रसाद के पास ले जाया गया जिसने रिश्वत के एवज़ में उसे छोड़ने का मौका दिया। इससे बिफरे अर्जुन ने जब मदद के लिए अमरनाथ को बुलाया तो अमरनाथ उसे छुड़ाने में कामयाब हो गया। लेकिन अर्जुन को उसका तरीका पसंद नहीं आया। अमरनाथ ने ज्योति प्रसाद को रिश्वत ही दी थी। क्योंकि रिश्वत गुनाहगार ही देते थे तो अब अर्जुन ने फैसला किया कि वो इस कलंक को अपने माथे से पोछेगा और असली कातिलों का पता लगाएगा।

लेकिन छत्तीसगढ़ में कोई चाहता था कि अर्जुन इस काम को आगे न बढाए। पहले अर्जुन को ये गीदड़ भभकियाँ ही लगी थी लेकिन फिर जब उसपे हमले होने लगे तो उसे एहसास हुआ कि उसने एक खतरनाक दुश्मन बना लिया है। ऐसा दुश्मन जो नहीं चाहता कि युवती के मरने का रहस्य उजागर हो। और इस राज को राज रखने के लिए वो किसी भी हद तक जा सकता है।


कौन था वो खतरनाक आदमी? क्या अर्जुन इस राज़ से पर्दा उठा पाया? आखिर युवती को क्यों मारा गया था और उसकी लाश कैसे डिग्गी में पहुँची थी?

विचार

अर्जुन भारद्वाज एक पी डी(प्राइवेट डिटेक्टिव) है जो जरूरत पड़ने पर कानून को अपने हाथ में लेने में झिझकता नहीं है।  इस श्रृंखला के मैंने एक दो उपन्यास मंगवाए थे और ये इस श्रृंखला का पहला उपन्यास है जिसे मैंने पढ़ा।

अगर उपन्यास की बात करें तो यह एक तेज रफ़्तार एक्शन से भरपूर थ्रिलर है। इसमें काफी खून खराबा है, काफी गोलियाँ चलती है और कई लाशें गिरती हैं। आधे से ज्यादा उपन्यास में कथानक इतना तेज और रोचक है कि आप पढ़ते ही चले जाते हैं।

हाँ, लेकिन जैसे उपन्यास की कहानी आगे बढती है तो आपको अंदाजा हो जाता है कि ये ‘खतरनाक आदमी’ कौन है। मुझे तो आसानी से पता लग गया था इसलिए जो अंत में एक बड़ा राज बनकर खुलना था वो नहीं खुला और उपन्यास का असर थोड़ा कम हो गया। अगर लेखक इस राज़ को तब तक बरकरार रखने में कामयाब हो जाता जब तक वो इसे खोलना नहीं चाहता था तो ये एक बेहतरीन उपन्यास बन सकता था।

अनिल जी के उपन्यासों में अक्सर मैंने ये कमी देखी है। उनके उपन्यासों का बाकी भाग तो बेहतरीन होता है लेकिन अंत तक आते आते उपन्यास कमज़ोर पड़ जाता है।  इससे पाठक के तौर पर मेरे मन में एक कमी सी अंकित हो जाती है जो कि बाकी उपन्यास के प्रभाव को कम कर देती है और उपन्यास की रेटिंग गिर जाती है। मुझे लगता है उन्हें इस पर और काम करना चाहिए था।

मेरे हिसाब से एक उपन्यास का शुरूआती हिस्सा और आखिरी हिस्सा सबसे महत्वपूर्ण होता है। शुरूआती इसलिए क्योंकि यही ठीक नहीं होगा तो पाठक की पढने में रुचि नहीं जागेगी और आखिरी इसलिए  कि अगर ये कमजोर है तो अंत में पाठक के मन में एक उपन्यास के प्रति एक असंतोष या अतृप्ति की भावना होगी जो कि पहले के सारे काम को बिगाड़ देगी। बीच का यदि कमजोर भी है लेकिन शुरुआत और आखिरी तगड़े हैं तो पाठक एक बार को बीच के हिस्से की कमजोरी को नज़रअंदाज कर सकता है।

इस उपन्यास के चरित्रों की बात करूँ तो सारे चरित्र काफी अच्छे लिखे गये हैं। खलनायक काफी क्रूर है और व्यवाहरिक है। इसके इलावा मुझे इंस्पेक्टर ज्योति प्रसाद के चरित्र काफी आकर्षक लगा। शुरुआत में वो एक  घूसखोर इंस्पेक्टर की तरह उपन्यास में आता है। आप उससे घृणा करने लगते हैं क्योंकि वो पुलिस की ऐसी छवि को दर्शाता है जिससे हम सब वाकिफ हैं।  लेकिन बाद में उसके चरित्र के विभिन्न शेड्स देखने को मिलते हैं। ये हमे सोचने पर मजबूर करते हैं कि आखिर वो भी इंसान है और उसमे बुराई है तो अच्छाई भी है।  वो घूसखोर बना तो क्यों बना? अक्सर हम पुलिस महकमे में मौजूद लोगों पे आरोप लगा तो देते हैं कि सभी घूसखोर होते हैं लेकिन ऐसा क्यों होता है ये हम नहीं सोचते हैं? अर्जुन भरद्वाज का चरित्र भी तगड़ा है। और उसके सम्मुख जो भी प्रतिद्वंदी आते हैं उन्हें भी अच्छा दिखाया गया है। वो अर्जुन को नाको चने चबा देते हैं जिससे पाठक को ये नहीं लगता कि अर्जुन कोई सुपरमैन है।

अंत में केवल इतना कहूँगा कि उपन्यास को आप एक बार पढ़ सकते हैं। इसमें एक्शन सीन बेहतरीन है और कथानाक तेज रफ़्तार से भागता है। आप एक बार पढना शुरू करेंगे तो रुकने का नाम नहीं लेंगे। थोड़ी कमी है लेकिन एक बार पढने योग्य है। उपन्यास का बहुत सारा हिस्सा मनोरंजक है इसमें कोई दो राय नहीं है।

उपन्यास अगर आपने पढ़ा है तो ये आपको कैसा लगा यह बताना न भूलियेगा। अगर आपने उपन्यास नहीं पढ़ा और पढना चाहते हैं तो आप इसे निम्न लिंक से मंगवा सकते हैं:
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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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6 Comments on “खतरनाक आदमी – अनिल मोहन”

  1. किताब ''खतरनाक आदमी'' की आपने बहुत ही अच्‍छी समीक्षा प्रस्‍तुत की है। विकास नैनवाल जी आप बहुत ही अच्‍छा काम कर रहे हैं। साहित्‍य, और पुस्‍तकों पर कोई भी अच्‍छा ब्‍लाग नजर में नहीं आया था। लेकिन आपका ब्‍लाग उस रिक्‍त स्‍थान को भरने में पूरी तरह कामयाब हुआ है।

    1. जी हौसलाफजाई का, शुक्रिया। आपकी टिपण्णी बहुमूल्य है और मुझे प्रेरित करती रहगी। इधर आते रहियेगा और पढ़ते रहियेगा।

    1. अब इस विषय में तो मैं कुछ नही कह सकता क्योंकि ऑफिसियल तौर पर तो उन्हीं के नाम से छपा है। हाँ, अगर ऐसा है तो आप एक टैलेंटेड लेखक हैं और आशा करता हूँ आप अपने नाम से जल्द ही उपन्यास प्राकशित करेंगे। आजकल तो आप किंडल में भी अपनी रचनाएँ स्वयं प्रकाशित कर सकते हैं। उम्मीद करता हूँ जल्द ही आपके द्वारा लिखा हुआ कुछ पढने को मिलेगा।

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