ब्रह्म पिशाच – प्रभाकर पाण्डेय

किताब 3 फरवरी 2019 से 6 फरवरी 2019 के बीच पढ़ी गई


संस्करण विवरण:
फॉर्मेट: पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 49
प्रकाशक : फ्लाई ड्रीम्स पब्लिकेशन

ब्रह्म पिशाच - प्रभाकर पाण्डेय
ब्रह्म पिशाच – प्रभाकर पाण्डेय

ब्रह्म पिशाच प्रभाकर पाण्डेय जी की  कहानियों का संग्रह है। इस संग्रह में उनकी निम्न छः कहानियों को संकलित किया गया है:


भूतही दुनिया
पहला वाक्य:
भादो का महीना।

रात अँधेरी थी और हवाएं रह रहकर चल रही थी। रमेसर काका अपने घोठे में आराम कर रहे थे कि तभी उन्होंने देखा कि उनकी भैंस अजीब सी हरकत कर रही थी। वो अचानक से डरी हुई लग रही थी और डरते डरते उनके नजदीक आ गई थी।

आखिर वो इस तरह क्यों बर्ताव कर रही थी? रमेसर काका यही सोच रहे थे कि तभी उन्हें वो साया दिखाई दिया। साया किसी औरत का प्रतीत होता था। आखिर कौन थी वो औरत? इस तूफानी रात में वो क्या कर रही थी?

गाँव देहात में कई जगह ऐसी होती हैं जहाँ भूतों और प्रेतों का बसेरा माना जाता है। ऐसी जगह से ही इस कहानी की शुरुआत होती है। कहानी की शुरुआत तो रोमांचक थी लेकिन बाद में वो एक आम किस्सा बन कर रह गई। अक्सर भूत प्रेत के किस्से जो मैंने सुने हैं और जिनका अनुभव भी किया है उनमें सुनाने लायक ज्यादा कुछ होता भी नहीं है। इधर भी लेखक ने जस का तस किस्से को रख दिया है। कहानी पठनीय है लेकिन इसमें रोमांच की थोड़ी कमी है। कहानी में एक प्रंसग है जहाँ एक भूत ने दूसरे भूत पर कब्जा कर लिया था और वो उसे सताता था। बाद में उस भूत को  कब्जे से आज़ाद करवाने की जुगत लगती है। लेकिन इस जुगत का विवरण नहीं दिया है। अगर मेरे कब्जे में कोई है और अन्य व्यक्ति आकर उसे मेरे कब्जे से निकलवाने की कोशिश करता है तो मैं उसकी कोशिश को विफल करने के लिए पूरी ताकत लगा दूँगा। इधर ऐसा कुछ नहीं दर्शाया गया है। यहाँ कहानी में रोमांच पैदा करने की सम्भावना थी। अगर इस कोण से कहानी को बढाते हैं और कई मुश्किलों का सामना मुक्ति दिलाने वाले को करना पड़ता तो कहानी और रोचक हो सकती थी। अभी के लिए ऐसा लगता है जैसे एक अच्छा अवसर लेखक ने गँवा दिया और कहानी जितनी अच्छी हो सकती थी उतनी न बन पाई।


ब्रह्म राक्षस 
पहला वाक्य:
भूत-प्रेतों की लीला भी अपरम्पार होती है।

कुशीनगर जिले के गाँव में एक पंडीजी रहा करते थे। वह उस जगह के जाने माने ठेकेदार हुआ करते थे। सज्जन प्रवृत्ति के पंडीजी अपने स्वभाव के लिए गाँव भर में प्रसिद्ध थे। लेकिन फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि सब कुछ बदल गया। वो ऐसी ऊट पटांग हरकतें करने लगे कि यह बात तो निश्चित हो गई कि उन्हें कुछ न कुछ हो गया था। उनके परिवार के लोग भी उनसे डरने लगे थे। आखिर क्या हुआ था पंडीजी को और आखिर कैसे उन्हें अपनी इस परेशानी से निजाद मिली।

ब्रह्म राक्षस कहानी संग्रह की दूसरी कहानी है। कहानी में रोमांच बना रहता है। तांत्रिक और ब्रह्म-राक्षस के बीच एक प्रसंग है जो और विस्तृत होता तो कहानी और ज्यादा रोमांचक हो सकती थी।

कहानी पठनीय है और अंत में एक अच्छा संदेश देती है। सन्देश मुझे पसंद आया।

भूत का प्यार 
पहला वाक्य:
सोलह वर्ष की रमकालिया अपने माँ बाप की इकलौती सन्तान थी।

सोलह वर्ष की रामकलिया अपने विचारों में मगन बगीचे में लेटी हुई थी कि उसे लगा कि कोई उसके बालों में उंगलियाँ फिरा रहा है। उसने उठकर देखा तो उधर कोई न था? क्या यह कोई शरारती लड़का था या कोई प्रेत?

प्रेतों के किसी इनसान के इश्क में गिरफ्त होने के किस्से काफी आम हैं। हम भी छोटे में ऐसे किस्से आपस में खूब सुना करते थे। भूत का प्यार भी ऐसा ही एक किस्सा है। कहानी एक बार पढ़ी जा सकती है।

ब्रह्म पिशाच और हिमालयी संत 
पहला वाक्य:
आज भी गाँवों आदि में, अगर कोई व्यक्ति गाँव से दूर खेतों, बागों आदि में हो या किसी सुनसान जगह पर हो तो कुछ भी खाने से पहले, उस खाने वाली वस्तु का कुछ भाग, उस जगह पर गिरा(चढ़ा) देता है, ताकि उसके सिवा अगर वहाँ कोई है, जैसे कि कोई न दिखने वाला प्राणी,प्रेत आदि, तो वह उसे ग्रहण कर ले।

वो चार पाँच लोग अपने गाँव से हिमालय के दर्शन के लिए निकले थे। एक दिन ऐसे ही वो किसी शिखर पर चढ़ रहे थे कि उन्हें एक विशाल हिम मानव दिखाई दिया। उन्होंने उसका पीछा करने की कोशिश की लेकिन फिर खुद ही रास्ता भटक गये। इस निर्जन जगह पर अब उनकी मदद करने वाला कोई नहीं था। अगर उन्हें रात इधर ही बितानी पड़े तो ठंड के कारण उनकी मृत्यु होना निश्चित था। क्या वो बच पाए? अगर हाँ, तो कैसे?

ब्रह्म पिशाच और हिमालयी संत एक रोचक तरीके से शुरू हुई थी। इसमें हिम मानव का जिक्र है जिसके विषय में जानने के लिए मैं उत्सुक था। पर कहानी में वो आगे कहीं नहीं दिखता है। कहानी में ब्रह्म राक्षस आता है और कहानी का रुख मुड़ जाता है।

कुछ भी खाने से पहले उसका एक हिस्सा पुण्यात्माओं को देने का रिवाज हमारे इधर भी है। इसी को लेकर कहानी लिखी गई है। कहानी पठनीय है लेकिन हिममानव वाले प्रंसग में मुझे ज्यादा आकर्षित किया था।

भूत की लंगोट 
पहला वाक्य:
“भागते भूत की लंगोटी भली!” यह कहावत बहुत ही कही-सुनी जाती है पर वह लंगोट पहना भूत अभी तक मुझे नहीं दिखा।

कहानी के विषय में केवल यही कहूँगा कि यह कहानी एक भूत की लंगोट के विषय में है। कहानी की शुरुआत में ‘भागते भूत की लंगोट’ मुहावरे का विश्लेषण किया जाता है। यह हिस्सा रोचक था मजाकिया था। पढ़ने में मुझे मजा आया। इसके पश्चात कहानी शुरू होती है। कहानी ठीक ठाक है। एक बार पढ़ी जा सकती है।

पालतू प्रेत
पहला वाक्य:
भोजपुरी में एक कहावत है कि भाग्यशाली का हल भूत हाँकता है (भगीमाने के हर भूत हाँकेला)।

क्या प्रेत को बस में किया जा सकता है? अगर वो बस में हो तो उससे क्या क्या काम लिया जा सकता है? इन सवालों का जवाब मेरे पास तो नहीं है लेकिन इस कहानी का विषय एक पालतू प्रेत ही है।

कहानी ठीक ठाक है। एक बार पढ़ सकते हैं। कहानी में एक प्रसंग है जिसमें आदमी और प्रेत की भिड़ंत होती है।
इस भिड़ंत में आदमी एक चालाकी करता है। यह चालाकी धोखे के नजदीक था। दूसरे प्रेतों भी उधर थे लेकिन उन्होंने उस वक्त इस विषय में कुछ क्यों नहीं किया। यह मुझे कहानी का कमजोर पक्ष लगा। कहानी एक बार पढ़ी जा सकती है।

इस संग्रह में मौजूद सभी कहानियाँ गाँव या उसके आस पास ही घटित होती  हैं। भले ही कहानियाँ ज्यादातर पूर्वांचल में घटित होती  हैं,केवल एक ही हिमालय में हो रही है, लेकिन भूत प्रेतों के विषय में जितनी भी बात इन कहानियों में दर्शायी गई है भूत प्रेतों को लेकर वैसी ही बातें हमारे यहाँ गढ़वाल में भी बोली ही जाती हैं। इसलिए कहानियों के किस्सों से मैं खुद को जोड़ पाया। इनसे मिलते जुलते किस्से मैंने सुने हुए हैं। कहानियों में रोमांच और रहस्य की कमी है तो इस पर लेखक ने काम किया होता तो कहानी संग्रह और बेहतर हो सकता था। इस कारण कहानियाँ पठनीय तो हैं लेकिन डर पैदा नहीं करते हैं। शायद इन्हें और बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया जा सकता था।

मेरे विचार से कहानी संग्रह औसत है। एक बार पढ़ सकते हैं।
मेरी रेटिंग: 2/5


अगर आपने इस कहानी संग्रह को पढ़ा है तो आपको यह कैसा लगा? अपने विचारों से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “ब्रह्म पिशाच – प्रभाकर पाण्डेय”

  1. किताब खरीद चुका हूँ पढ़ना बाकी है, पढ़ चुका होता तो जरूर अपने विचार रखता।

    1. जी, जब पढ़ लेंगे तब कर दीजियेगा।

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