फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 108 | प्रकाशक: हिन्द पॉकेट बुक्स | आईएसबीएन: 9789353493691
अंधी दुनिया – प्रतापनारायण टंडन |
पहला वाक्य:
उपन्यास की कहानी पर आऊँ तो उपन्यास की कहानी रीति के चारों और घूमती है। रीति दिव्यांग है जो बचपन से ही देख नहीं सकती है। लेखक ने इस उपन्यास में रीति के मन के भावों को उकेरा है। उपन्यास रीति के जीवन के शुरूआती वर्षों (लगबग चार छः वर्षों) का ही चित्रण करता है।
उपन्यास की शुरुआत रीति के जन्म से होती है। पैदा होने से बाद से ही वह अपने आस पास की दुनिया को किस तरह समझती है यह चीज लेखक ने इस उपन्यास में उकेरी है। जैसे जैसे वो बड़ी होती है उसका बाल मन को अपनी असमर्थता का अहसास होता जाता है। इस जानने की प्रक्रिया, इससे उपजी खीज, डर और परेशानी का विवरण पढ़ रीति के लिए आपका मन तड़प उठता है। उसकी कोशिशें और उन कोशिशों में होती हार आपके मन को कचोटने लगती है। आपके उसके दर्द को, उसकी बेबसी को महसूस कर पाते हो।
मैं अपनी बात करूँ तो यह खुद के अन्य बच्चों से अलग होने का अहसास या बच्चों द्वारा खुद को किसी चीज के लिए चिढ़ाया जाना ऐसे अनुभव हैं जिनसे मैं गुजर चुका हूँ। बचपन में मेरा वजन बहुत ज्यादा हुआ करता था। इस कारण बच्चों के ताने सुनना, वजन के कारण आती परेशानियों को अनुभव करके यह सोचना कि मैं वह काम क्यों नहीं कर सकता जो ये करते हैं कुछ ऐसे भाव हैं जिन्हें मैं महसूस कर चुका हूँ। मुझे याद है क्योंकि मैं तेज नहीं भाग पाता था तो क्रिकेट खेलते हुए मेरे लिये रनर लगाया जाता था। टीम में भी चुनने में भी वरीयता नहीं दी जाती थी। मुझे मालूम है रीति की परेशानी के सामने यह कुछ भी नहीं है लेकिन मैं यह कहने की कोशिश कर रहा हूँ कि उसने जो भाव महसूस किये होंगे उनमें से एक दो मैंने भी किये हैं। इस कारण रीति के दर्द को काफी हद तक मैं समझ सकता था। लेकिन अगर मैंने यह भाव अनुभव नहीं भी किये होते तो भी प्रतापनारायण टंडन जी की लेखनी इतनी सशक्त है कि आप रीति के सभी मनोभावों को समझ सकते हैं। उन्होंने उनका बेहद जीवंत और मार्मिक चित्रण किया है। रीति के अलावा बाकि लोगों के उसके प्रति व्यवहार, उनके खुद के भावों का भी बहुत अच्छा चित्रण लेखक ने किया है। रीति और उसके मम्मी पापा के बीच के कई दृश्य दिल को छू जाते हैं। मैं पढ़ते हुए यही सोच रहा था कि इस उपन्यास को लिखने की उनकी प्रेरणा कौन रहा होगा?
हाँ, उपन्यास की जो एक कमी है वह यह है कि यह आधे में खत्म हुआ सा लगता है। उपन्यास का अंत तब होता है जब रीती को आखिरकार अपनी परेशानी का पूर्ण अहसास होता है। वह इतनी बड़ी हो चुकी होती है कि वह अब समझ सकती है कि उसके साथ क्या दिक्कत है। और इस कारण वह एक तरह नैराश्य का अनुभव करने लगती है।
आपके समक्ष जब भी कोई बड़ी समस्या होती है, जिसे लेकर आपको पता है कि आप उसे ठीक तो नहीं कर सकते हैं, तो पहले पहल आप उससे परेशान हो उठते हैं। आपको सबसे पहले निराशा ही महसूस होती है। लेकिन फिर इस निराशा के बाद एक ऐसी अवस्था भी आती है जब आपको इस बात का अहसास हो जाता है कि इस परेशानी के आगे घुटने टेकने से कोई फायदा नहीं है। आपको आगे बढ़ना है और आप अगला अदम बढाते हो। परेशानी से जूझते हो। मैं यह जूझना रीति के मामले में भी देखना चाहता था। रीति उपन्यास के दौरान जो जिजीविषा दिखलाती है उससे यह तो पता लग गया था कि वह आसानी से हार नही मानेगी लेकिन आखिरी का अध्याय जहाँ पर अंत होता है वहाँ सब कुछ अन्धकारमय सा दिखता है। मुझे नहीं पता लेखक ने यह कहानी कब और क्यों लिखी थी? हो सकता है उनका इरादा ही इस अन्धकार को ही दर्शाना रहा हो पर एक पाठक के नाते मैं रीति के इस अन्धकार के बाद के जीवन के विषय में जानने के लिए ज्यादा इच्छुक था। मैं चाहता था लेखक इस कहानी को पूरा करे।
अंत में यही कहूँगा कि अंधी दुनिया रीति के मनोभावों को दर्शाने में पूरी तरह कामयाब हुआ है। उपन्यास मुझे पसंद आया। यह मन को छू जाता है। उपन्यास यह भी दर्शाने में कामयाब हुआ है कि भले ही रीति देख न पाती हो लेकिन उसके आस पास की दुनिया भी यह देखने में असमर्थ है कि रीति भले ही दृष्टि विहीन है लेकिन उसके पास दृष्टि के अलावा भी कई गुण है। उसके घर वाले भी उसके इन गुणों को बढ़ाने की कोशिश नहीं करते हैं। एक तरह से यह दुनिया भी उसके बाकि गुणों के प्रति अंधी हो जाती है।
हाँ, उपन्यास का जिस बिंदु पर अंत हुआ है वह एक अधूरेपन का अहसास पाठक के मन में जगाता है। मुझे यकीन है रीति के भविष्य में इस अँधेरे के अलावा भी बहुत कुछ रहा होगा। अच्छा होता लेखक रीति की कहानी को आधे रास्ते में न छोड़कर अंत तक ले जाते।
प्रतापनारायण टंडन जी का यह पहला उपन्यास था जो कि मैंने पढ़ा है। अगर आपने इनके दूसरे उपन्यास पढ़े हैं तो मुझसे उनके नाम साझा जरूर करियेगा। मैं उनके द्वारा लिखे गये दूसरे उपन्यास जरूर पढ़ना चाहूँगा।
रेटिंग: 3.5/5
अगर आप यह किताब पढ़ना चाहते तो इस किताब को आप निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं:
© विकास नैनवाल ‘अंजान’
उपन्यास की कथानक बहुत अच्छा लगा और उतनी ही अच्छी इसकी समीक्षा । प्रयास रहेगा इस उपन्यास को पढ़ने का ।
जी आभार मैम। जरूर पढ़ियेगा। हिन्द पॉकेट बुक्स ने कई पुरानी किताबें इस बार पुनः प्रकाशित की हैं। कई ऐसी हैं जो काफी वक्त से आउट ऑफ़ प्रिंट चल रही थीं। किताब के प्रति आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी।
Bahut khoob
जी आभार….
Such a thoughtful review. Sounds like a poignant read. The cover is really nice. And I know what you mean about the ending. Ending of a story is really important, as it stays with you…
Such a thoughtful review. Sounds like a poignant read. The cover is really nice, and I know what you mean about the ending. Ending of a story is really important as it stays with you. It has to be satisfying, or else it leaves you frustrated, especially when you like (rest of) the book.
I completely agree with you. Hindi Pocket Books has reprinted many such titles. I had grabbed few of them and have enjoyed reading them. Do give them a try.