मौत का खेल – सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग : 2.5/5
उपन्यास 23 मार्च से 24 मार्च के बीच पढ़ा गया

संस्करण विवरण:
फॉरमैट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या: 114
प्रकाशक: राजा पॉकेट बुक्स
सीरीज: विमल #1

पहला वाक्य:
बारिश कब की थम चुकी थी, लेकिन मैंने अपनी प्लास्टिक की बरसाती उतारने का उपक्रम नहीं किया था।

विमल कुमार खन्ना विक्टोरिया टर्मिनस में बैठा में इस  जद्दोजहत में मशगूल था कि क्या उसे खाने के लिए अपराध का सहारा लेना पड़ेगा। उसकी हालत दो दिन से न खाये होने के कारण बेहद खराब थी और ये अब तक उसका ईमान ही था जो उसे अपराध करने से रोक रहा था।

इसी सोच विचार में वो डूबा हुआ था कि कुछ ऐसी घटनायें उसके साथ होती है जो कि उसकी मुलाकात लेडी शांता गोकुलदास से करवा देती है। विमल को लगता है कि शांता उसकी ज़िन्दगी में देवी की तरह आई थी। वो उसे नौकरी की पेशकश देती है और उसकी बुरी हालत से उबार देती है।लेकिन वो भूल गया था कि इस दुनिया में हर चीज़ की कुछ कीमत चुकानी पड़ती है।
उसे नहीं मालूम था कि ये कीमत कितनी बड़ी साबित होगी?
क्या जिस गुनाह की दुनिया से वो बचना चाहता है उसे उसी में दाखिल होना पड़ेगा और खेलना होगा ये मौत का खेल?

मौत का खेल विमल सीरीज का पहला उपन्यास है। विमल जिसके विषय में कहा गया है  ‘न भूतो न भविष्यति’ लेकिन इस उपन्यास में अभी विमल ने गुनाह की दुनिया में कदम नहीं रखा है।

उपन्यास मुम्बई में शुरू होता है जहाँ पे विमल के साथ कुछ ऐसी घटनायें होती है  कि चोरी के लिए जिस विमल का मन नहीं मानता है उसे ही क़त्ल करना पड़ जाता है।

उपन्यास का कथानक मुझे तो औसत से थोड़ा बेहतर  लगा।उपन्यास एक थ्रिलर है और पाठक की रूचि उपन्यास के कथानक में बनी रहती है। 

हाँ,उपन्यास का अंत ऐसा है कि पाठकों को दूसरा उपन्यास पढ़ना ही पढ़ेगा ।इस वजह से उपन्यास में एक अधूरापन सा झलकता है।

उपन्यास एक बार पढ़ा जा सकता है। लेकिन अगर आपने उपन्यास नहीं भी पढ़ा है तो भी ज्यादा फर्क नहीं पढ़ेगा। अगर आप विमल के फेन हो तो आपने इस उपन्यास को नही पढ़ा है तो आप इस उपन्यास को उसके पहले किस्से के लिए पढ़ सकते हैं।

क्या आपने इस उपन्यास को पढ़ा है? अगर हाँ तो आपको यह कैसा लगा?अगर नहीं तो आप उपन्यास को निम्न लिंक से मँगवा सकते हैं।या फिर आप अपने फोन में डेली हंट नामक एप्प के माध्यम से भी इस उपन्यास को पढ़ सकते हैं।


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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2 Comments on “मौत का खेल – सुरेन्द्र मोहन पाठक”

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