उपन्यास १५ जुलाई से १६ जुलाई के बीच पढ़ा गया
संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : पेपरबैक
पृष्ठ संख्या : ३०३
प्रकाशक : दिव्यांश पब्लिकेशन
पहला वाक्य:
‘मास्साब, पैलागी!’
कुछ लोग खेत में काम कर रहे थे।
कमलेश कभी गाँव में रहा करता था। उसके पिताजी ने उसकी माँ को छोड़ दिया था और वो लोग गरीबी में अपने दिन काट रहे थे। फिर कुछ ऐसा हुआ की कमलेश ने अपने आप को बाल सुधार केंद्र में पाया। वहाँ उसने कालीपांडे का उपनाम पाया और वो उधर से निकलकर एक कुख्यात अपराधी बन गया। लेकिन ये सब बीते दिन की बात थी। कल का कालीपांडे आज हरिद्वार के सबसे प्रसिद्ध आश्रम शक्ति मठ का महंत कमलेश्वर बन गया था। ये करतब उसने क्यों और कैसे किया ? इस बात की जानकारी तो आपको इस उपन्यास को पढने के बाद ही मिलेगी।
उपन्यास रोचक और पठनीय था। उपन्यास धार्मिक गुरुओं और राजनेताओं की सांठ गाठ दिखाता है। बच्चे कमलेश का काली पांडे बनने का सफ़र और उसके बाद एक शक्तिशाली मठ के महन्त बनने का सफ़र रोमांचक है। कमलेश छोटी उम्र में आवेश में आकर एक अपराध कर देता है। लेकिन फिर उसके जीवन में गिरिजा शंकर आता है। गिरजा शंकर से मिलकर उससे असली दुनिया का पता चलता है कि किस तरह लोग चिकनी चुपड़ी बाते करकर अपना मतलब सिद्ध करते हैं। छोटी उम्र में ही बड़ा हुआ कालीपांडे जीवन के कई गुड रहस्यों को समझ जाता है। काली पांडे बुरा आदमी नहीं है लेकिन उसके हालात ऐसे हो जाते हैं की उसे अपराध करने होते हैं। कहते हैं आदमी की पहचान तब होती है जब उसको ताकत से नवाज़ा जाता है और ऐसा काली पांडे के साथ भी देखने को मिलता है।
धार्मिक गुरुओं के पास काफी ताकत होती है क्योंकि अक्सर लोगों की उनमे श्रद्धा होती है। लेकिन फिर भी ये अक्सर देखा जाता है की वो इस ताकत का इस्तेमाल अपने स्वार्थ के लिए ही करते हैं। वो भोग और विलास का जीवन जीते हैं। और नेताओं से सांठगाँठ करके उनके वोट बैंक का साधन बन जाते हैं। शक्तिमठ के पहले महंत महाराज गोपालदास ऐसे ही संत थे जिन्होंने धर्म गुरु की पदवी को अपने भोग विलास और अपनी प्रसिद्धि के लिए इस्तेमाल किया था। लेकिन कमलेश्वर इस ताकत का इस्तेमाल इस तरीके से करता है की आप उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह पाते।
उपन्यास का खलनायक गिरजा शंकर है। वो देवरिया के बहरिया क्षेत्र का विधायक है। वो एक कुशल राजनीतिज्ञ है जो एक भले व्यक्ति का चोला पहने हुए हैं लेकिन सारे आपराधिक कार्यों में लिप्त है। वो इंसानों को इस्तेमाल करता है और फिर जब उनकी ज़रुरत पूरी हो जाये तो उन्हें दूध से मक्खी की तरह फेक देता है। काली पांडे के साथ भी वो ऐसा करने की कोशिश करता है।
उपन्यास में बाकी किरदार राजनीति और मठों के इर्द गिर्द घूमने वाले किरदार ही हैं। मंगलेश्वर जैसे बाबा है जो अपनी हवस के लिए भोली भाली युवतियों का इस्तेमाल करते हैं। कुछ संत हैं जो सच में बदलाव चाहते हैं। कुछ राजनीतिज्ञ हैं जो भ्रष्ट हैं और कुछ राजनीतिज्ञ है जिन्हें खुद भ्रष्ट न होते हुए भी दूसरे भ्रष्ट नेताओ का साथ लेना पड़ता है ताकि सरकार बनी रहे।
उपन्यास ये दर्शाता है कि अगर धर्म को सही तरीके से इस्तेमाल किया तो वो केवल भंडारे करने के ही नहीं बल्की ऐसे बदलाव करने के काम भी आ सकता है जिसकी दायरा बड़ा हो और समाज को जिसका फायदा असलियत में हो।
उपन्यास मुझे पसंद आया। हाँ, आखिर में जो गिरजा शंकर ने कदम उठाया और उसका जो कारण दिया वो मुझे नहीं पचा। बाकी तो उपन्यास बेहतरीन हैं और आपको पढना चाहिए।
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अभी पढ रहा हूँ।
वाह!! ब्लॉग पर समीक्षा का इंतजार रहेगा।