किताब परिचय:
‘द ट्रेल’ एक प्रयोगात्मक मर्डर मिस्ट्री है, जिसमें असामान्य परिस्थितियों में हुआ एक कत्ल उस घटना से जुड़े कई लोगों के जीवन में तूफान ले आता है। उपन्यास का शीर्षक अपने आप में बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो एक तरह से नहीं, बल्कि कई तरह से फिट बैठता है और ऐसा क्यों है, ये तो आप उपन्यास पढ़कर ही जान पाएंगें।
उपन्यास में एक पहेली है। मृतक द्वारा छोड़ा गया संदेश, ‘यूनाइटेड वी राइज’, जिसने पुलिस का भी दिमाग घुमाकर रख दिया कि आखिर मकतूल ने अपने कातिल का नाम लिखने की जगह ‘यूनाइटेड वी राइज’ क्यों लिखा?
क्या वो कोई सन्देश देना चाहता था?
या ‘यूनाइटेड वी राइज’ में ही कातिल को बेनकाब करने का हिंट छिपा था?
“अपराधी चाहे कितना ही शातिर क्यों न हो, सबूतों की एक ट्रेल जरूर छोड़ जाता है।”- रंजीत विश्वास का ऐसा मानना था।
लेकिन तब क्या हुआ, जब खुद उसका कत्ल हो गया?
क्या उसके कातिल ने भी वो ट्रेल छोड़ी थी? और अगर छोड़ी थी तो क्या पुलिस उस ट्रेल का पीछा करते हुए कातिल तक पहुँच सकी?
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पुस्तक अंश
रात में शैली की आँख खुली तो उसने अपने आपको अँधेरे में पाया।
लाइट गुल थी।
उसने हाथ आगे बढ़ाकर अंदाजे से बैड के सिरहाने रखी टेबल पर रखा मोबाइल उठाया और उसका बटन दबाया। बटन दबाते ही मोबाइल की टचस्क्रीन रोशन हो गई और घुप्प अंधेरे में थोड़ा-बहुत देख सकने लायक रोशनी हो गई।
उसने मोबाइल उठा लिया और टाइम देखा।
रात के दो बज रहे थे।
बाहर से बारिश होने की आवाज आ रही थी और रह-रह कर बिजली भी कड़क रही थी।
शैली कुछ देर तक बिस्तर पर लेटी लाइट आने का इंतजार करती रही। फिर बाहर गलियारे में कदमों की आहट सुनकर वो बिस्तर से उतरी और स्लीपर पहनकर दरवाजे की ओर बढ़ गई।
”ये लाइट कितनी देर से गई हुई है।’’-उसे बाहर से अंजना की मद्धिम सी आवाज सुनाई दी।
शैली दरवाजा खोलकर बाहर निकली। मोबाइल उसने अपने साथ ले लिया था और उसकी टॉर्च भी ऑन कर रखी थी।
बाहर गलियारे में उसे अंजना अशोक के साथ दिखाई दी।
”ये लाइट को क्या हो गया?’’-शैली बोली।
”पता नहीं।’’-अंजना बोली-”लगता है कुछ खराबी आई है। अशोक,’’- उन्होंने अपने बेटे को आवाज दी-”जाओ, जाकर देखो तो बिजली में क्या गड़बड़ हुई है।’’
”ओके मॉम।’’-अशोक बोला और मैंशन के पिछले हिस्से की ओर बढ़ गया, जहां मीटर वगैरह लगे थे।
शैली मैंशन का गेट खोलकर बाहर निकल आई। बाहर निकलते ही वो चमत्कृत रह गई। ठण्डी हवा के झोंके ने उसके तन-मन को भिगो दिया। आसमान में चांद नहीं था, जिससे बाहर प्राकृतिक रोशनी भी बहुत कम थी। अंधेरे के कारण ज्यादा दूर का दृश्य दिखाई नहीं दे रहा था। बारिश अब हल्की बूूंदाबांदी में बदल चुकी थी
और ठण्डी हवा चल रही थी।
”बहुत ठण्ड है।’’-अंजना बोली, जो उसके बगल में आकर खड़ी हो गईं थीं।
”हाँ।’’-शैली बोली-”आप बाहर क्यों आ गईं? आपको ठण्ड लग सकती है।’’
”अरेे, ऐसे मौसम का मजा लेने के लिए मैं ठण्ड लगवाने के लिए भी तैयार हूँ।’’
शैली हँसी, फिर बोली-”लाइट कितनी देर से गई है?’’
”थोड़ी देर हो गई। शायद 15-20 मिनट।’’
”मैं एक बार ऊपर चैक कर आती हूँ। सर अभी भी सो रहे हैं या जाग रहे हैं।’’
”ठीक है।’’
शैली मैंशन के अंदर हॉल में पहुँची और मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में रास्ता देखती हुई सीढिय़ों से ऊपर पहुँची।
ऊपर पहुँचकर उसने रंजीत विश्वास के कमरे का दरवाजा धकेल कर चैक किया।
दरवाजा अंदर की ओर खुलता चला गया।
उसने अंदर कदम रखा।
बाहर तेज हवाएं चलने की साँय-साँय की आवाजें सुनाईं दे रहीं थीं।
खिड़की से आ रही हवा से खिड़की पर लगा पर्दा इतना ऊंचा लहरा रहा था कि बाहर का अंधेरे में डूबा वातावरण भी दिखाई दे रहा था।
खुली खिड़की से बारिश का पानी अंदर भी आया था, जिससे खिड़की के सामने का फर्श गीला हो रहा था।
टॉर्च की रोशनी में खिड़की से थोड़ी दूर बैड पर रंजीत विश्वास की लाश पड़ी थी, जिसके सीने में चाकू धंसा हुआ था।
शैली की हृदयविदारक चीख मैंशन में गूंज उठी।
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लेखक परिचय:
अजिंक्य शर्मा |
अजिंक्य शर्मा ब्रजेश कुमार शर्मा का उपनाम है। ब्रजेश कुमार शर्मा छत्तीसगढ़ के महासमुन्द नामक नगर में रहते हैं। फिलहाल छत्त्तीसगढ़ में वे एक साप्ताहिक समाचार पत्र में कार्यरत हैं।
बचपन से ही किस्से कहानियों के शौकीन अजिंक्य शर्मा उपन्यासों और कॉमिक बुक्स पढ़ा करते हैं। किस्से कहानियाँ पढ़ते पढ़ते ही वो अब किस्से कहानियाँ गढ़ने लगे हैं। वह अपने उपन्यास किंडल पर स्वयं प्रकाशित करते हैं।
उपन्यास निम्न लिंक पर जाकर पढ़े जा सकते हैं:
अजिंक्य शर्मा – उपन्यास
अजिंक्य शर्मा से आप निम्न माध्यमों से सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:
फेसबुक | ईमेल
बहुत अच्छी समीक्षा
आभार सर परन्तु यह समीक्षा नहीं केवल किताब परिचय है…..