किताब परिचय:
अपने बीते हुए कल की दर्दनाक यादों से पीछा छुड़ाने के लिए साक्षी शहर से दूर एक पुराने, वीरान बंगले – तनेजा मैन्शन में शरण लेती है। नए माहौल में और नए लोगों के बीच, एक नई ज़िंदगी की शुरुआत करने की अपनी कोशिश मे साक्षी काफ़ी-कुछ कामयाब भी हो जाती है। मगर उसे क्या पता था की पुरानी समस्याओं से पीछा छुड़ाने की कोशिश मे वो एक नई साज़िश का शिकार हो जाएगी।
कुछ ही दिनों मे साक्षी को ये एहसास होने लगता है की तनेजा मैन्शन की खामोश दीवारें उससे कुछ कहना चाहती हैं। उसके तहखानों में कोई ऐसा काला राज दफन है जो ज़ाहिर होने को बेचैन है। कोई है वहाँ, जो वजूद मिट जाने के बाद भी, हर वक़्त साक्षी को अपने होने का एहसास दिलाता रहता है।
वो कौन है? वो क्या राज है?
इन सावलों के जवाब, अपने रहस्यमयी मगर नापाक अतीत के ताबूतों मे कब तक दफन रखेगा, तनेजा मैन्शन।
किताब लिंक: अमेज़न
पुस्तक अंश
बैठक के एक बड़े हिस्से में अँधेरा छाया हुआ था। बस बीचों-बीच एक बल्ब की मद्धम सी रोशनी थी। उस रोशनी में उसने देखा की एक आदमी, दूसरे आदमी की बाँह को कसकर पकड़े उसे गुस्से से घूर रहा है। उसकी आँखें शोलों जैसे लाल थीं, जिनमें से इंतकाम की आग भभक रही थी। मगर, बैठक में अँधेरा होने की वजह से साक्षी उस आदमी का चेहरा न देख पाई। वो केवल उसकी आँखें हीं देख पा रही थीं जिनमें आक्रोश भरा था। हालाँकि, साक्षी ने अपनी नज़रों पर ज़ोर देकर उस दूसरे आदमी का चेहरा देखने का भी भरसक प्रयत्न तो किया। मगर, उसे बस यही समझ आया की वो आदमी एक लंबा सा ओवरकोट पहने हुए था, जिसके कॉलर खड़े करके उसने अपना चेहरा काफ़ी– कुछ छुपा लिया था।
“कमीने !” वो आदमी गुस्से से पागल होकर चिल्लाया, “मैं सोच भी नहीं सकता था तेरे मन में इतना कलंक है। मैंने तेरे लिए क्या नहीं किया। तेरे लिए मैं अपनी जान पर भी खुशी–खुशी खेल जाने को तैयार था। मगर तू…तू तो आस्तीन का साँप निकला। तूने मुझे ही ड़स लिया !”
इतना कहकर उस आदमी ने ओवरकोट पहने आदमी के मुँह पर अपनी मुट्ठी से एक ज़ोरदार घूँसा दे मारा। वो आदमी दर्द के मारे कराहने लगा और उसके चेहरे से खून की कुछ बूंदें, उस पहले वाले आदमी की शर्ट पर आ गिरीं। मगर, उस आदमी को ओवरकोट पहने उस शख्स पर कोई दया न आई। उसके सर पर तो खून सवार था। उसने उस ओवरकोट वाले पर फिर से वार किया और वो लड़खड़ाते हुए बैठक मे रखी दो खंजरधारी योद्धाओं की प्रतिमा के पास जा गिरा। उसने दौड़कर उस ओवरकोट वाले को जमीन से उठाया और उसे दीवार से सटा कर खड़ा कर दिया। फिर वो अपने फौलादी हाथों से उस आदमी का गला घोंटने लगा। उसके हाथों की पकड़ उस ओवरकोट वाले के गले पर काफ़ी मज़बूत थी। उस आदमी का दम घुटने लगा था। उसने अपनी जान बचाने के लिए हाथ–पाँव मारने शुरू कर दिए।
तभी उस ओवेरकॉट पहने शख्स का हाथ, पास रखी प्रतिमा के हाथों में पकड़े खंजर पर जा लगा। उस आदमी ने अपना पूरा दम लगाया और उस खंजर को उस प्रतिमा के हाथों से बाहर निकाला। खंजर हाथ लगने की देर थी की उस आदमी मे एक नया जोश आ गया। उसने अपनी पूरी ताकत लगाई और उस खंजर को उस दूसरे आदमी की छाती मे घोंप दिया। उसकी छाती से खून की नदियाँ बहने लगी और वो दर्द से कराहते हुए नीचे फर्श पर गिर पड़ा। ये देखकर साक्षी इतनी डर गई की उसने कसकर अपनी आँखें बंद ली और ज़ोर से चीखी।
अगले ही पल, साक्षी की आँखें खुल गईं और उसे एहसास हुआ की वो तो अपने बिस्तर पर ही है। उसके कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद था। उसके कमरे की सारी खिड़कियाँ भी बंद थीं। उसने पिछवाड़े वाली खिड़की से बाहर लगे बरगद के पेड़ को देखा। वो उसी तरह मौन खड़ा था। कहीं पर भी तूफान का भी कोई लक्षण नहीं नज़र आ रहा था। उसने एक ठंडी आह भरी और वापस बिस्तर पर ही लेट गई। बहुत देर तक कोशिश करने के बाद भी जब उसे नींद न आई तो उसने करवट बदली और उसकी नज़र खिड़की के बाहर खामोशी की ज़ुबान में बहुत सारे राज़ बयाँ करने वाले उस विशाल बरगद पर जा रुकी।
वो समझ गई थी की उस बरगद की जड़ों में अब भी कईं और काले राज़, खामोशी की नींद सो रहें है। वो पेड़, अब उसके लिए वाणी की आत्मा से संपर्क स्थापित करने का एक अहम ज़रिया बन गया था। साक्षी की नजरें उस पुराने बरगद से हटने को तैयार ही नहीं हो रही थीं। वक़्त करीब रात के दो बजे का था। चारों तरफ सन्नाटा था जैसे प्रकृति मातम मना रही हो। साक्षी का मन घबरा रहा था और दिमाग में अनगिनत सवाल उठ रहे थे। वो जानती थी की उसने अभी जो कुछ सपने में देखा, वो तनेजा मैन्शन में हुए भयानक हादसे से जुड़ी कोई गुप्त कड़ी ही है। मगर वो इस बात की पुष्टि करे भी तो कैसे ?
लेखक परिचय:
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