पुस्तक के विषय में
गौरवशाली उत्तर-वैदिक युग में, दंडक मध्य भारत में एक वन राज्य है। हरा और समृद्ध। पड़ोसी राज्यों की नज़र दंडक की संपदा पर है। उत्तर में कोसल, दक्षिण में आंध्र, पश्चिम में विदर्भ और पूर्व में कलिंग। दंडक के युवा राजा मुकुंद वर्मा की मुख्य चिंता अपने राज्य को पड़ोसी राज्यों की बुरी नज़र से बचाने की है। वे इस बात से अनजान हैं कि उनका असली शत्रु उनके अपने ही राज्य के भीतर छुपा हुआ है। इस आंतरिक शत्रु की सहायता से शक्तिशाली पड़ोसी राज्य दक्षिण कोसल के सम्राट रुद्रसेन दंडक पर एक प्रचंड आक्रमण करते हैं। दंडक को न केवल बाहरी हमले का सामना करना पड़ता है बल्कि आंतरिक विद्रोह का शिकार भी होना पड़ता है। किन्तु युवा रानी कुसुमलता की कुटिल रणनीतियों के उपयोग से, दंडक अपने शत्रुओं को धूल चटाने में सफल हो जाता है। पराजित और अपमानित रुद्रसेन कुसुमलता से प्रतिशोध लेने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं, किन्तु वे युवा रानी की रणनीतिक चतुराई से भयभीत भी हैं। कुसुमलता को हराने की हताश इच्छा में, रुद्रसेन एक जादुई यंत्र और उसमें निहित आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करने के लिए लालायित हो उठते हैं। किन्तु वे इस बात से अनजान हैं कि वह यंत्र अभिशप्त है। जादुई यंत्र को प्राप्त करने के अपने उन्मत्त प्रयास में, रुद्रसेन को यंत्र के प्रतिद्वंद्वी साधकों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होगी।
कौन सी जादुई शक्तियाँ छुपी हैं उस यंत्र में?
वह कौन सा अभिशाप है जो इन शक्तियों का आवाहन करने वाले को जकड़ लेता है?
आखिर यंत्र को कौन प्राप्त कर पाएगा और कौन होगा इसके अभिशाप का शिकार?
पुस्तक लिंक: अमेज़न
पुस्तक अंश
दक्षिण कोसल की सेना ने कलिंग की सेना पर आक्रमण कर दिया। कुसुम के संदेश के अनुसार कलिंग की सेना ने दिखावा किया कि वह दक्षिण कोसल की सेना से हार रही है और डरकर पीछे हट रही है। चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली दक्षिण कोसल की सेना का हौसला बढ़ गया। वह कलिंग की सेना को कलिंग की सीमा तक खदेड़ने का निश्चय किए आगे बढ़ती गई। ऐसा करते हुए हुए वह श्रीपुर से बहुत दूर निकल आई।
“सेनापति, दण्डक की सेना को श्रीपुर पर आक्रमण के लिए तैयार करें।”
कुसुम ने सेनापति से कहा।
“श्रीपुर पर आक्रमण? यह क्या कह रही हैं महारानी? श्रीपुर पर आक्रमण आत्मघाती होगा। हमारा कोई भी सैनिक वहाँ से जीवित वापस नहीं लौटेगा।” सेनापति के आश्चर्य का ठिकाना न था। उसे लगा कि कुसुम अपना मानसिक संतुलन खो बैठी है। ऐसा मूर्खतापूर्ण आदेश वह मानने को तैयार न था।
“सेनापति, आप हमारी पूरी योजना को ध्यान से सुनें और जैसा हम कहते हैं वैसा ही करें। विजय निश्चित ही हमारी ही होगी।”
कुसुम ने सेनापति को अपनी पूरी योजना समझाई। सेनापति आरंभ में कुछ आशंकित लगे किन्तु जैसे जैसे पूरी योजना खुलने लगी उन्हें आश्वस्त होना पड़ा। फिर महारानी का आदेश था। उन्हें पालन तो करना ही था।
कलिंग की सेना हारती हुई पीछे हट रही थी। चंद्रचूड़ अपनी उपलब्धि पर गौरान्वित था। जब कलिंग की शक्तिशाली सेना उनके सामने न टिकी तो दण्डक की मामूली सेना की औकात ही क्या? वह मन ही मन फूले न समा रहा था कि शीघ्र ही वह दण्डक का राज्य जीत कर दण्डक और दण्डक की महारानी कुसुमलता को सम्राट रुद्रसेन के सामने भेंट के रूप में प्रस्तुत करेगा। बलवीर की तुलना में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। रुद्रसेन प्रसन्न होकर उसे प्रमुख सेनापति का पद देंगे। बलवीर को उसके अधीन काम करना होगा। चंद्रचूड़ अभी इसी दिवास्वप्न में डूबा हुआ था कि एक सैनिक ने आकर सूचना दी, “सेनापति दण्डक की सेना श्रीपुर पर धावा बोलने के लिए निकल चुकी है।”
चंद्रचूड़ हैरान रह गया। दण्डक की सेना यह क्या मूर्खता कर रही थी। श्रीपुर पर आक्रमण? दण्डक की साधारण सी सेना श्रीपुर के भीतर प्रवेश भी न कर पाएगी। श्रीपुर की प्राचीरों को भेद पाना दण्डक की सेना के लिए असंभव था। दण्डक की पराजय सुनिश्चित थी। दक्षिण कोसल की विजय असंदिग्ध थी। किन्तु चंद्रचूड को भय हुआ कि इस विजय का श्रेय श्रीपुर की रक्षा कर रहे बलवीर की सेना को मिलेगा। वह इस विजय का श्रेय बलवीर को नहीं लेने देना चाहता था। फिर उसे यह शंका भी थी दण्डक की सेना को पराजित करने के बाद बलवीर की सेना वहीं नहीं रुकेगी, बल्कि वह आगे बढ़कर दण्डक की राजधानी पर भी धावा बोल देगी। चंद्रचूड़ जानता था कि सम्राट रुद्रसेन दण्डक पर विजय और दण्डक की महारानी कुसुमलता को पाने के लिए कितने लालायित थे। यह भेंट वह स्वयं रुद्रसेन को देना चाहता था।
कलिंग की सेना पीछे हटते हुए कलिंग की सीमा तक पहुँच गई। चंद्रचूड़ के लिए यह उपयुक्त समय था वापस मुड़कर दण्डक की सेना को श्रीपुर पहुँचने से पहले समाप्त कर देने का। उसने अपनी सेना को एकत्र कर आदेश दिया, “दण्डक की सेना श्रीपुर की ओर कूच कर चुकी है। हमें शीघ्रताशीघ्र उनका पीछाकर उन्हें श्रीपुर पहुँचने से पहले ही समाप्त करना होगा।”
“किन्तु सेनापति हम श्रीपुर से बहुत आगे आ चुके हैं। वापस लौटने में हमें बहुत समय लगेगा। तब तक तो दण्डक की सेना श्रीपुर पहुँच चुकी होगी।”
“हम लौटते समय महानदी के किनारे का लम्बा रास्ता नहीं लेंगे। एक छोटा मार्ग गंधमर्दन पर्वत होकर जाता है। हम उसी मार्ग से वापस लौटेंगे।”
“मगर सेनापति, वन और पर्वतों से होकर जाने वाला वह मार्ग अति दुष्कर मार्ग है। क्या उस मार्ग से जाना उचित होगा?”
“भीरू न बनो सैनिक। हमारी सेना पर्वतों को चीरकर भी मार्ग निकाल सकती है।” चंद्रचूड़ ने अपनी सेना का मनोबल बढ़ाते हुए उसे गंधमर्दन पर्वत होकर जाने वाले छोटे मार्ग से लौटने के लिए तैयार किया।
विजयभाव से श्रीपुर की ओर लौटती दक्षिण कोसल की सेना गंधमर्दन पर्वत की घाटी में पहुँची। एक ओर ऊँची पहाड़ियाँ थीं और दूसरी ओर एक विशाल झील। दृश्य अत्यंत ही मनोरम था। दक्षिण कोसल के सैनिक घाटी के इस नयनाभिराम सौंदर्य में खो गए। झील के बीच उन्हें वृक्षों से ढका एक बड़ा टापू दिखाई दिया। टापू के सौंदर्य को निहारते हुए वे आगे बढ़े। वे कुछ दूर ही गए होंगे कि उन्हें लगा कि टापू तैरकर झील के किनारे आ पहुँचा। दक्षिण कोसल के सैनिक हतप्रभ रह गए कि टापू कैसे तैरने लगा। इससे पहले कि वे इस अचरज से उबरते उन पर टापू से बाणों और भालों की वर्षा होने लगी। उन्होंने गौर किया कि जिसे वे टापू समझ रहे थे वह झाड़ियों और पत्तों से घिरी नौकाएँ थीं। दक्षिण कोसल के सैनिकों ने अपने अस्त्र निकालते हुए नौकाओं से आ रहे बाणों और भालों की बौछारों का उत्तर देना चाहा मगर तब तक दूसरी ओर से पहाड़ियों के पीछे से बाणों और भालों की वर्षा आरंभ हो गई। दो ओर से होने वाले आक्रमणों से दक्षिण कोसल के सैनिक बौखला उठे। मगर अब तक तो उन्होंने कुसुम की चाल का छोटा सा नमूना ही देखा था। असली जाल तो कहीं अधिक विकट था। दक्षिण कोसल के सैनिकों ने घबराकर श्रीपुर की ओर भागना शुरु किया। मगर थोड़ी ही देर में श्रीपुर की ओर बढ़ रही दण्डक की सेना अपनी दिशा बदलकर वहाँ आ पहुँची। तीन ओर से घिरी दक्षिण कोसल की सेना को आखिरी धक्का तब लगा जब पीछे से कलिंग की सेना भी वहाँ आ गयी। अब वह चारों ओर से घिर चुकी थी। कुसुम के बिछाए जाल में चंद्रचूड़ की सेना पूरी तरह फँस चुकी थी। दण्डक और कलिंग के सैनिकों ने चंद्रचूड़ और उसकी सेना को जाल में फड़फड़ाते हुए पक्षी की तरह दबोच लिया था। दक्षिण कोसल की सेना के पास शस्त्र डालने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं था। कुसुम ने अपने शत्रु से बिना रक्तपात के ही समर्पण करवा लिया था।
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पुस्तक लिंक: अमेज़न
लेखक परिचय
संदीप नैयर |
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