किताब परिचय: अहसास

 

किताब परिचय: अहसास | सुरेश चौधरी

किताब परिचय

कबीर ने काजल को टूटकर चाहा था लेकिन  वह जानता था कि यह समाज उनके प्यार को इतनी आसानी से स्वीकार नहीं करेगा। उसने यह बात काजल को भी समझाना चाहा था लेकिन काजल ने समाज के सामने कबीर का साथ देने की बात ही कबीर से की थी। कबीर को काजल की बात पर विश्वास भी था। 
लेकिन फिर क्या हुआ कि काजल कबीर से नफरत करने लगी? 
यह नफरत ने इन दोनों प्रेमियों की जिंदगी में क्या तूफान लाई। 
पुस्तक लिंक: अमेज़न

पुस्तक अंश

“पापा…आप समझना क्यों नहीं चाहते…कबीर आपके लिये पराया हो सकता है…मेरे लिये नहीं…।” काजल ने सख्ती से जवाब दिया। 
“काजल…।” चीख पड़ा जयदेव। 
“…।” काजल ने कोई जवाब नहीं दिया। 
“तुम्हारा मेरी इजाजत के बिना…साँस लेना भी स्वीकार नहीं है मुझे…प्यार की या शादी की बात तो दूर है…।” दाँत पीसते हुए जयदेव ने ऊँची आवाज़ में कहा। 
“पापा…।” काजल ने कुछ कहना चाहा, लेकिन जयदेव ने काजल की बात को शुरू होने से पहले ही काट दिया। 
“शटअप…मेरे लाड़ प्यार ने तुम्हें पाल-पोसकर इतना बड़ा कर दिया कि पापा से ही बहस करने चलीं…अगर मुझे  इस घड़ी का पता होता तो मैं बचपन में ही तुम्हें…।” अपनी अधूरी बात से ही जयदेव ने अहसास करा दिया कि आगे के शब्द क्या होंगे। 
“लेकिन पापा…।”
“तुम कुछ नहीं बोलोगी… कुछ नहीं करोगी…जो करूँगा…केवल मैं करूँगा…अब से तुम्हारा कॉलेज जाना बंद…और तुम्हारी शादी वहीं होगी…जहाँ मैं चाहूँगा…।” काजल की बात शुरू होने से पहले ही काटते हुए जयदेव ने चेतावनी के रूप में कहा।
“पापा…।” तड़प उठी काजल। लेकिन पापा के आक्रमक रुख को देखते हुए काजल ने यहाँ से उठ जाना ही बेहतर माना और सोफ़े से उठकर धीरे-धीरे अपने कमरे की ओर चल दी। 
“आज के बाद काजल यहाँ से बाहर न जाने पाये…।” कमरे में जाने के बाद काजल के कानों में अपने पापा की आवाज सुनाई दी। शायद पापा ने नौकर को कुछ हिदायत दी थी। काजल अपने बिस्तर पर औंधे मुँह लेटकर सुबकने लगी। 
*****
“क्या हुआ…?” नौकर को सामने देखते ही जयदेव ने पूछा। 
“मालिक… आज भी बिटिया ने खाना नहीं खाया…।” नौकर ने रुआँसे शब्दों में कहा। 
“यह लड़की भी बस…।” दाँत पीसते हुए जयदेव ने हाथ में ली हुई फाइल एक और रखते हुए कहा। 
“मालिक…एक बात कहना चाहता हूँ… अगर आप इजाजत दें…।” नौकर ने जयदेव के क्रोध से सहमते हुए कहा। 
“हाँ…कहो…। ” क्रोध से आँखें तरेरते हुए जयदेव ने कहा। 
“मैंने कभी काजल बेटी को इतना दुखी नहीं देखा… जितना अब देख रहा हूँ… वैसे भी मैंने काजल बेटी को अपने इन्हीं हाथों से पाला है… इसलिये मैं काजल बेटी को दुखी नहीं देख सकता… कलेजा भर आता है… और वैसे भी तीन दिन हो गये … काजल ने खाने को छुआ भी नहीं…।” कहते हुए नौकर की आँखें भर आयीं। 
“क्या काजल को मैंने दुखी किया है…? इस लड़की ने मेरी इज्जत को नीलाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी…।” क्रोधित स्वर में जयदेव ने कहा। 
“मानता हूँ…मालिक… इसमें आपका कोई दोष नहीं…लेकिन…।” जानबूझकर नौकर ने अपनी बात बीच में ही रोक दी। 
“लेकिन क्या…?”
“आप एक बार स्वयं चलकर बिटिया से खाना खाने के लिए कह देते…शायद…।” इस बार भी नौकर ने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया। 
“मेरे इसी लाड़ प्यार की वजह से काजल इतनी जिद्दी हो गयी… अब मैं और सहन नहीं करूँगा…अब मैं उसे खत्म कर दूँगा…या अपने आपको…।” तेज आवाज में लगभग चीखने के अंदाज में जयदेव ने कहा। 
“मालिक…।” नौकर सहम गया- “ऐसा नहीं कहते…।”
“फिर मैं क्या करूँ…काजल की जिद के सामने घुटने टेक दूँ…?”
“मैं यह भी नहीं कहता मालिक…लेकिन मुझे याद है…मरते वक्त मालकिन ने आपको क्या कहा था?”
“क्या मैं  उस कहे पर अपनी इज्जत को दाँव पर लगा दूँ… आखिर सभी फैसले माँ-बाप पर ही क्यों लागू होते हैं? बच्चों का भी कुछ फर्ज होता है…माँ-बाप के लिए…या नहीं…?”
“होता है मालिक… लेकिन काजल बेटी अभी नादान है…।”
यह सुनते ही जयदेव ने सामने की दीवार पर लगी अपनी पत्नी की तस्वीर को देखा। 
“ठीक है… मैं काजल से बात करता हूँ… ।” कुछ सोचते हुए उसने कहा और फिर सोफ़े से उठकर काजल के कमरे की ओर कदम बढ़ा दिये। कमरे में प्रवेश करने के साथ ही काजल की मायूसी देखकर जयदेव सहम गया। लेकिन चेहरे पर जबरदस्ती की सख्ती ओढ़ ली। 
“यह सब क्या है काजल…?”
“…।” पापा की आवाज की ओर देखा। दरवाजे पर पापा को देखकर काजल ज्यों-की-त्यों लेटी रही, कोई जवाब नहीं दिया। 
“आखिर तुम क्या साबित करना चाहती हो…?” कड़क आवाज में जयदेव ने पूछा। 
“मैं क्या साबित कर सकती हूँ…पापा…साबित तो आप कर रहे हैं…।” काजल ने धीमी आवाज में जवाब दिया।
“फिर तुमने तीन दिन से खाना क्यों नहीं खाया…?”
“देखता चाहती हूँ कि मुझमें संघर्ष करने की कितनी शक्ति है…है भी…या नहीं …?”
“किससे संघर्ष की बात करती हो तुम… मुझसे…?”
“जी नहीं…अपने आपसे…क्योंकि नारी को स्वयं से ही संघर्ष करना पड़ता है…।”
“मैं कुछ समझा नहीं…।” जयदेव ने आश्चर्य से पूछा। 
“इसमें समझने के लिए कुछ भी नहीं है पापा… आपने मुझे कमरे में बंद कर दिया… मैंने विरोध स्वरूप खाना बंद कर दिया…।”
“मैं तुम्हारा पापा हूँ…क्या पापा से विरोध उचित है…?”
“…।”   काजल ने कोई जवाब नहीं दिया। 
“दुनिया के सभी माँ-बाप अपनी औलाद के अच्छे भविष्य की कामना करते हैं… सभी माँ-बाप की तरह मैंने भी तुम्हारे सुनहरे भविष्य के सपने बुने हैं… और मैं नहीं चाहता कि मेरे सपने टूट जाएँ… क्योंकि तुम्हारी माँ भी मैं हूँ… और बाप भी मैं हूँ…।” अपने व्यवहार के विपरीत थोड़ी नरम आवाज में जयदेव ने कहा। 
“मैंने भी अपने लिये सपने देखे हैं पापा…लेकिन मेरे सपने आपको अच्छे नहीं लगे…और ठीक भी है…क्योंकि इस पुरुष पोषित समाज में लड़की को इतना अधिकार है ही नहीं कि वह अपने लिये स्वयं राह चुने…।”
“ऐसा नहीं है बेटी…मैं उन कट्टर बापों की श्रेणी का नहीं हूँ…मैं केवल यह कहना चाहता हूँ कि उस अपराधी चरित्र वाले लड़के कबीर के पास तुम्हारा भविष्य सुनहरा नहीं है… वहाँ भूख है… और भूख सभी अपराधों की जननी होती है…सारी मर्यादायें भूख की चौखट पर आकर दम तोड़ देती हैं…भगवान की कृपया से तुमने कभी भूख नहीं देखी…लेकिन मैंने भूख के विकराल रूप को देखा है…उसे सहा है…इसलिये मैं जानता हूँ कि भूख क्या होती है…और इसीलिये अपने जीते जी…मैं तुम्हें उस भूख के नरक में नहीं धकेल सकता…।” कहने के साथ-साथ जयदेव के चेहरे पर आवेश आ गया। 
“लेकिन पापा…।”
“नहीं… काजल नहीं…मैं जानता हूँ कि प्यार का बुखार चार दिन रहता है…उसके बाद दुनिया की हकीकत कुछ और होती है…इसलिये मैंने बहुत सोच-समझकर अपने दोस्त रघुबर दयाल के लड़के करन से तुम्हारी शादी तय कर दी है…।” यह सुनते ही काजल को लगा, जैसे किसी साँप ने सामने की ओर से फुँफकार मार दी। काजल ने चौंकते हुए भयभीत नज़रो से पापा की ओर देखा। 
“पापा…।” दबी आवाज में चीख पड़ी काजल। 
“यह मेरा आखिरी फैसला है… इसे तुम मेरा अधिकार कहो…या अपनी तकदीर…तुम जानो…लेकिन होगा यही…।” दम्भ भरी आवाज में जयदेव ने कहा। 
लेकिन काजल का दिल मानो लहूलुहान हो गया। 
“मेरा भी आखिरी फैसला सुन लो पापा…मैं शादी करूँगी तो कबीर से…अन्यथा नहीं…।” काजल ने सख्त आवाज में प्रतिरोध किया। 
“मैं भी देखता हूँ … यह कैसे होगा…।” जयदेव का चेहरा क्रोध से तमतमाने लगा।
“अगर मेरी इच्छा पूरी न हुई… तब मुझे मौत को गले लगाना स्वीकार होगा…।” काजल ने सख्त आवाज में अपना इरादा जताया। 
“मैं इसकी परवाह नहीं करता…अपनी इज्जत के लिये मुझे सब कुछ मंजूर है…मौत तुम्हारी हो…या उस अपराधी कबीर की…मैं उसे भी ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा…न रहेगा बाँस…और न बजेगी बाँसुरी…।” दहाड़ा जयदेव। 
“आप उसे कुछ भी नहीं कहेंगे…।” लगभग चीख पड़ी काजल, लेकिन तभी शब्दों में कुछ नरमी आयी-“अगर आपने कबीर को कुछ कहा…तो सबसे पहले अदालत में गवाह की जगह पर आप…मुझे देखेंगे…।” काजल ने धीमी आवाज में सख्त चेतावनी सुनकर जयदेव चौंक गया। 

पुस्तक लिंक: अमेज़न

लेखक परिचय

लेखक परिचय: सुरेश चौधरी

लेखक सुरेश चौधरी कैराना शामली के रहने वाले हैं। वह 2005 से लेखन कार्य में सक्रिय हैं। 

अब तक उनके चार उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। दंगा और रेत का घर उनके आने वाले उपन्यास हैं।

विस्तृत परिचय: सुरेश चौधरी

नोट: ‘किताब परिचय’ एक बुक जर्नल की एक पहल है जिसके अंतर्गत हम नव प्रकाशित रोचक पुस्तकों से आपका परिचय करवाने का प्रयास करते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपकी पुस्तक को भी इस पहल के अंतर्गत फीचर किया जाए तो आप निम्न ईमेल आई डी के माध्यम से हमसे सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं:

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