किताब परिचय
रोशन आनंद, भारत का एक नामचीन अपराध कथा लेखक था, जिसे उलझी हुई कहानियाँ खोजने और लिखने का शौक था। ये शौक कई बार उसे मौत के मुहाने पर लाकर भी खड़ा कर देता था। दिल्ली के थाना क्षेत्र के अधीन घटे ओपन एंड शट केस में ज्यों ही उसने अपनी दखल बनाई, सिलसिलेवार तरीके से हत्याओं का एक दौर-सा चल पड़ा, जिसका रहस्य अंक ‘8’ से सम्बंधित था…
प्रकृति ने अपराध करने का ठेका किसी खास श्रेणी को नहीं दिया और न ही इसे श्रेणीबद्ध किया कि अमुक श्रेणी का इंसान अपराध नहीं कर सकते। लेकिन हम श्रेणियाँ बना ही लेते हैं…….
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“मोबाइल चोरी हो गया है?”
“नहीं।” – रोशन आनंद ने इनकार में सर हिलाया।
“फिर यहाँ किसलिए आये हो भाई ?” – पुलिसिये ने पुनः अपना चश्मा अपनी आँखों पर चढ़ा लिया।
“मर्डर के सिलसिले में?”
“मर्डर के सिलसिले में?” – पुलिसिये ने वही दोहराया, जो रोशन आनंद ने कहा। उसकी आँखें आश्चर्य से फैल गयीं।
“हाँ।” – रोशन आनन्द ने सहज रूप से उत्तर दिया।
“तुम यहाँ किसी कत्ल की रिपोर्ट लिखवाने आये हो,” – उस पुलिसिये की आवाज घिघियाती हुई आयी –“या किसी कत्ल के केस में सरेंडर करने?”
इस बार रोशन आनंद खीजकर बोला –“तुम पुलिस डिपार्टमेंट में काम करते हो या सर्कस में?”
पुलिसिया हड़बड़ाते हुए बोला –“पुलिस…..पुलिस डिपार्टमेंट में काम करता हूँ। तुम कौन हो?”
“बड़ी देर में यह सवाल पूछना ध्यान आया?”
“सॉरी, तुम कौन हो और यहाँ क्या करने आये हो?”
“अब सही लाइन पकड़ी है तुमने” – रोशन आनंद ने उसके रोजनामचे के पन्ने पलटते हुए कहा।
“किससे मिलना है? क्या काम है? फटाफट बताओ?” – पुलिसिये ने कहा।
रोशन आनंद ने सहज तरीके से कुर्सी पर पहलू बदलते हुए कहा –“अक्षय नागर के मर्डर केस के सिलसिले में इन्वेस्टीगेटिंग अफसर से बात करनी है?”
“अखबार या टीवी से हो?”
इस बार बात रोशन आनंद की बर्दाश्त से बाहर हो गयी तो वह बोला –“आप इस थाने के थानेदार हैं, जो इतने सवाल कर रहे हैं? आपके पास जो काम है वो काम करिए और मुझे बताईए, कौन सब-इंस्पेक्टर अक्षय नागर की हत्या का केस इन्वेस्टिगेट कर रहा है?”
उस मोटे पुलिसिये के स्वभाव में तुरंत बदलाव आया। उसने कहा –“इतने दिनों में एक ही तो कत्ल का केस थाने में आया है। उसकी तफ्तीश थाने के सब इंस्पेक्टर कुलदीप नागर कर रहे हैं।”
“ये भी नागर ही है?” – रोशन आनंद ने बड़बड़ाते हुए कहा।
पुलिसिये ने शायद सुन लिया –“हाँ, ये भी नागर है।”
“कौन से कमरे में बैठते हैं?”
“क्यों, क्या बात हो गयी?” – पुलिसिये ने इस बार धौंस दिखाते हुए पूछा।
रोशन आनंद ने अपना कार्ड जेब से निकाला और उस पुलिसिये के हाथ में पकड़ाता हुआ बोला –“मेरे बाप, ये मेरा कार्ड कुलदीप नागर के हाथ में देकर आ, अगर वो मिलने से मना कर दे तो वापिस आकर बोल दियो।”
पुलिसिये ने कार्ड को उलटा-पलटा, फिर शायद लेखक का नाम देख नाक-मुँह सिकोड़ा और बोला –“मैं उसका नौकर नहीं हूँ। तुम यहाँ से बाहर निकलो और तीसरे फ्लोर पर किसी से भी उसका नाम पूछना वो तुम्हें उसके पास पहुँचा देगा।”
रोशन आनंद तीसरे फ्लोर पर टहल रहे एक कांस्टेबल से पूछकर कुलदीप नागर के पास पहुँचा। अपना परिचय देते हुए रोशन आनंद ने विजिटिंग कार्ड सरकाया।
कुलदीप नागर छह फुट लंबे कद में, हृष्ट-पुष्ट शरीर लिया हुआ, बिल्कुल फिट एंड फाइन, 30 वर्षीय युवा पुलिसिया था। उसके ऊपर वर्दी उसी तरह जँच रही थी जैसे किसी आदर्श डील-डौल वाले पुलिसिये पर जँचती होने की कल्पना की जा सकती है।
“बैठिए।” – कुलदीप नागर ने विजिटिंग कार्ड देखते हुए उसे अपने सामने वाली कुर्सी पर बैठने के लिए इशारा करते हुए कहा –“लेखकों को हमसे क्या काम आन पड़ा? अमूमन प्रेस रिपोर्टर कभी-कभार झाँक जाते हैं, लेकिन लेखक तो कभी नहीं आये।”
रोशन आनंद ने कहा –“हाहाहा, सही कहा आपने। लेखकों का आप लोगों से क्या काम! लेकिन कई बार लेखन के दृष्टिकोण से रिसर्च करने के लिए भी पुलिस वालों से मेल-मुलाक़ात करनी पड़ती है।”
“आप कौन-सा रिसर्च कर रहे हैं?”
“एक मर्डर का केस है, आपके थाने से संबंधित, उसी के संबंध में बात करना चाहता था।”
“मर्डर का केस? वो तो यहाँ बहुतायत में होते हैं, लेकिन अधिकतर का कोई अंत नहीं हो पाता और वे अनसुलझे केसों की श्रेणी में चले जाते हैं।”
“मैं समझा नहीं?”
“अधिकतर मर्डर के केस में जो हमें लाश मिलती है, वो अरावली हिल्स के उस जंगल में मिलती है, जहाँ के बाद हम किसी सस्पेक्ट को गिरफ्तार नहीं कर पाते। अमूमन लूट के लिए होने वाली ये हत्यायें हमारा सिरदर्द बन जाती हैं। अभी भी ऐसे कई केस अनसुलझे हमारे थाने का सम्मान बढ़ा रहे हैं।”
रोशन आनंद ने मुस्कुराते हुए कहा –“हाँ, मुझे उन केसेज की जानकारी है, लेकिन मैं उनके लिए नहीं, बल्कि कल तुगलकाबाद गाँव में हुई गोविंदपुरी थाने के सब इंस्पेक्टर अक्षय नागर की हत्या के सिलसिले में आया हूँ।”
कुलदीप नागर ने घूरकर रोशन आनंद को देखते हुए कहा –“देखिये न, मैं भी कैसा मेजबान हूँ, न चाय पूछी न कॉफ़ी। क्या लेंगे आप?”
“जो सुविधाजनक रूप से हासिल हो जाये, वह ले लूँगा।” – रोशन आनंद ने जवाब दिया।
सब इंस्पेक्टर कुलदीप नागर ने आवाज लगाई –“जीते…..जीते…..”
एक दुबले-पतले कद काठी का कॉन्स्टेबल अंदर आया –“जी साहब।”
“दो चाय या कॉफी, जो मिल जाये, भागकर ले आ।”
कॉन्स्टेबल चला गया, तो कुलदीप नागर रोशन आनंद से संबोधित हुआ –“तो बताइए, क्या जानना चाहते हैं, आप उस कत्ल के बारे में?”
“सब कुछ जानना चाहता हूँ, सब-इंस्पेक्टर साहब।”
“सब कुछ तो बहुत बड़ा दायरा है, मुझे पता चले कि आप जानना क्या चाहते हैं, फिर अपनी ड्यूटी के मुताबिक मुझे जो सही लगेगा वो मैं बता दूँगा।” – वह रुककर फिर से बोला –“वैसे आप किस हक़ से ये सभी जानकारी लेना चाहते हैं और इस केस में आपकी दिलचस्पी क्या है?”
“मेरी इस केस में दिलचस्पी इस केस के इकलौते गिरफ्तार सस्पेक्ट राहुल शर्मा के कारण आयी है। मैं उसका वकील तो नहीं, पर पुलिस के सहयोग से जानकारी मिल जाए तो धन्य होऊँगा।”
“ओह, तो ये बात है। वैसे आप उस लड़के के क्या लगते हैं?” – कुलदीप नागर ने सवाल पूछा।
“कुछ नहीं। गोविंदपुरी थाने में एक रिसर्च के काम से गया था, वहाँ राहुल शर्मा से मुलाक़ात हो गयी। मुझे लड़का बेगुनाह लगा तो मदद करने के लिए हाथ आगे बढ़ा दिया।”
“वाह। ये तो नेक काम किया आपने। लगता है दिल्ली शहर के हातिमताई बनने के बारे में सोच रहे हैं।”
“सोचता तो बहुत हूँ, सब-इंस्पेक्टर साहब, पर जितना अपने वश में होता है, उतना करने की कोशिश रहती है।”
“ग्रेट।” – कुलदीप नागर ने तारीफ करते हुए कहा –“वैसे उस लड़के ने ऐसा क्या बताया कि आपको लगता है कि वो बेगुनाह है।”
“उस लड़के ने अपनी कहानी सुनाई मुझे और मुझे उसकी कहानी पर विश्वास भी है। वहीं पुलिस की थ्योरी में कई सारे झोल हैं।”
तभी वह कॉन्स्टेबल चाय लेकर उनके बीच पहुँचा, जिसका नाम कुलदीप नागर ने जीते लिया था। उसने टेबल पर दो कागज वाले कप रखे और उनमें छोटे पॉलीथिन पाउच में लाये हुए चाय को उड़ेलना शुरू किया। दोनों कप भर गए, लेकिन पाउच में अभी भी एक कप चाय बची हुई थी। उसने एक कप रोशन आनंद के सामने और एक कुलदीप नागर के सामने रखा और कमरे से बाहर निकल गया।
कुलदीप नागर ने रोशन आनंद के सामने रखे चाय के कप को देखते हुए कहा –“चाय तो नीचे किचन में भी बनती है, पर मुझे वह पसंद नहीं आती, इसलिए मैं चाय बाहर से ही मंगवाता हूँ। चाय पीजिए, आपको पसंद आएगी।”
रोशन आनंद ने चाय सुड़की जो सच में अच्छी थी।
“अब बताइये पुलिस की थ्योरी में क्या झोल है?” – कुलदीप नागर ने भी अपना कप उठाते हुए कहा।
“पहले आप अपनी थ्योरी बताइये?”
“वो तो आप गोविंदपुरी थाने के एस एच ओ हर्षित अग्रवाल से सुन ही चुके हैं।”
“मैं फिर भी, इस केस के इन्वेस्टीगेटिंग ऑफिसर से केस की थ्योरी सुनना पसंद करूँगा।”
कुलदीप नागर ने एक क्षण सोचा, फिर बोला –“ठीक है। मैं आपको सामान्य थ्योरी नहीं बताता, बल्कि मुकम्मल इन्वेस्टीगेशन प्रोसेस को आपके सामने रखता हूँ। 7 अप्रैल को रात में साढ़े ग्यारह बजे 100 नंबर पर एक गुमनाम कॉल रिसीव हुई, जिसके अनुसार तुगलकाबाद गाँव के नागर हवेली नामक मकान में एक कत्ल हुआ था। उस क्षेत्र से सबसे करीब स्थित पीसीआर वैन वहाँ पहुँची, जिसने इस बात की पुष्टि की कि वहाँ एक कत्ल की वारदात हुई थी। फिर पीसीआर से हमारे थाने में संपर्क किया गया और मुझे मौके पर इन्वेस्टीगेटिंग ऑफिसर के रूप में चार्ज लेने के लिए भेजा गया। हम मौके पर पहुँचे, तब तक पीसीआर वालों ने उस घर को सील कर दिया था, ताकि कोई अंदर प्रवेश न कर सके। वहाँ मौजूद 3 वन सीटर सोफों के बीच एक ग्लास का सेन्टर टेबल था और लाश सेंटर टेबल और एक सोफे के बीच फर्श पर पेट के बल पड़ी हुई थी। लाश पर कपड़ों के नाम पर मात्र अंडरवियर था। वह खून के तालाब में डूबा हुआ शव था। सेंटर टेबल पर एक रिवाल्वर और हेल्मेट रखा हुआ था। हम रिवाल्वर के करीब पहुँचे, तो पाया कि उस टेबल पर खून से गणित की संख्या शून्य जैसा बड़ा सा आकार बना हुआ था और रिवाल्वर उसी शून्य के आकार के अंदर रखा हुआ था। तब तक फोरेंसिक टीम और फोटोग्राफर भी वहाँ पहुँच चुके थे। उनके पहुँचते ही मैं बाहर आ गया और पीसीआर टीम से बात करने लगा। उनसे पता लगा कि जब वे अंदर घुसे थे, तो बाउंड्री पर लगा लोहे का दरवाजा और बिल्डिंग का मुख्य दरवाजा दोनों ही खुले हुए थे। प्रथम सूचना कैसे मिली, तो इसके जवाब में पता चला कि बत्रा हॉस्पिटल के रिसेप्शन काउंटर से कॉल किया गया था। पता चला कि अक्षय नागर उस घर में अकेला ही रहता था। शादीशुदा नहीं था, लेकिन उसके भैया-भाभी कालका जी में रहते थे। मैंने अड़ोसियों-पड़ोसियों से पूछताछ करना शुरू किया, तो जानकारी मिली कि किसी को भी गोली चलने की आवाज नहीं सुनाई दी थी। साथ यह भी पता चला कि उस रात उस क्षेत्र में एक शादी थी, जिसमें गन-फायर किए गए थे। शायद जब अक्षय नागर को शूट किया गया, उसी वक़्त शादी में भी गन-फायर हुआ, जिसके कारण उस फायर की आवाज सुनाई नहीं दी, जिससे अक्षय नागर की हत्या हुई। फॉरेंसिक टीम ने जब अपना काम खत्म किया तो, मुझे एक अजीब बात बताई। उन्होंने कहा कि जिसे हम शून्य समझ रहे थे, बेसिकली वो गणित की संख्या आठ थी, जिसके एक शून्याकार क्षेत्र में रिवाल्वर था तो दूसरे शून्याकार क्षेत्र को वहाँ रखे हेल्मेट ने ढँका हुआ था। फोरेंसिक टीम जब वहाँ से निकली तो मैं अंदर घुसा। फॉरेंसिक टीम ने पेट के बल पड़ी हुई लाश को सीधा कर दिया था। उसको गोली सीने में मारी गयी थी। बारूद के कण घाव के आस-पास नहीं थे, इसलिए यह कहा जा सकता था कि गोली थोड़े डिस्टेंस से चलाई गई थी। अक्षय नागर का मोबाइल फ़ोन हमें सेंटर टेबल के नीचे मिला, जिस पर खून के धब्बे थे। हमारे हिसाब से वह अक्षय नागर के ही खून के धब्बे थे। लाश की शिनाख्त उसके पर्स में मौजूद आईडी कार्ड से और बाद में एक रिश्तेदार द्वारा पहचाने जाने पर हुई, जिसके अनुसार हत्प्राण अक्षय नागर नामक सब-इंस्पेक्टर था, जो गोविंदपुरी थाने में कार्यरत था। तुरंत ही गोविंदपुरी थाने इस बाबत वायरलेस से खबर भेजी गई, तो पता चला कि राहुल शर्मा नाम का एक लड़का उस रात अक्षय नागर के घर पहुँचने वाला था। तुरंत ही राहुल शर्मा को हिरासत में लेने को कहा गया। आगे गोविंदपुरी पुलिस ने हमें बताया कि उस लड़के ने अपना गुनाह कबूल कर लिया था।”
रोशन आनंद यह सब पहले ही सुन चुका था, इसलिए बिना वक़्त बर्बाद किये उसने पूछा –“क्या आपको यकीन है कि उस लड़के ने ही अक्षय नागर की हत्या की है?”
कुलदीप नागर ने पुनः सोचते हुए जवाब दिया –“कह नहीं सकता। अभी तो मैं उस लड़के से मिला भी नहीं हूँ।”
“आप कब उस लड़के से बात करने वाले हैं?”
“आज ही, कुछ देर में उसे यहाँ लाने वाले हैं।”
“आज ही आप उसे कोर्ट में पेश करेंगे न?”
“कोशिश तो पूरी है।”
“सब-इंस्पेक्टर साहब, जिस प्रकार का ट्रीटमेंट उसे गोविंदपुरी थाने में दिया गया और उस ट्रीटमेंट के आधार पर ही उसका इकबालिया बयान हासिल किया गया, उस पर मैं यही कह सकता हूँ कि गोविंदपुरी थाने के स्टेटमेंट को सच न मानते हुए चलें तो बेहतर रहेगा।”
“क्यों, ऐसा क्यों कह रहे हैं आप?” – कुलदीप नागर ने चाय खत्म करते हुए कहा। उसने रोशन आनंद के सामने रखे चाय के खाली कप को अपने कप के साथ उठाया और अपने डेस्क के नीचे रखे डस्टबिन में डाल दिया।
“क्योंकि उसका बयान थर्ड डिग्री द्वारा हासिल किया गया है।” – रोशन आनंद ने कुलदीप नागर की ओर गंभीर दृष्टि से देखते हुए कहा –“अगर निष्पक्ष जाँच की जाए तो साफ-साफ पता चल सकता है कि वह लड़का निर्दोष है।”
“आप मुझसे ऐसी ही आशा रखें। मैं निष्पक्ष जाँच करूँगा। मैं उससे जोर-जबरदस्ती से नहीं बल्कि सच्चा बयान लूँगा और लगा कि लड़का सही कह रहा है तो उसे रिलीज़ भी कर दूँगा।”
“आपकी दयानतदारी रहेगी नागर साहब।”
“आपको इस थ्योरी में क्या लूप-होल या झोल नज़र आया?”
“क्या फिंगरप्रिंट्स और बैलेस्टिक की रिपोर्ट आ गयी है?”
“हाँ, आ गयी है।”
“क्या राहुल शर्मा के फिंगरप्रिंट्स सर्विस रिवाल्वर पर पाए गए हैं?”
“लेखक महोदय, अभी तो राहुल शर्मा की उंगलियों के निशान लिए भी नहीं गए हैं।”
“ओह, वैसे कोई फिंगरप्रिंट है रिवाल्वर पर?”
“नहीं।” – कुलदीप नागर ने मायूस होते हुए कहा।
“बैलेस्टिक की रिपोर्ट क्या कहती है?”
“बैलेस्टिक की रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है कि अक्षय नागर की हत्या उसके सर्विस रिवाल्वर से ही की गई है।”
“हत्या का कोई संभावित वक़्त?”
“पोस्टमार्टम रिपोर्ट से ही इस बात का खुलासा हो सकता है।”
“हम्म…..नागर साहब, राहुल शर्मा को हत्यारा साबित करने के लिए जो मोटिव हर्षित अग्रवाल ने मुझे बताया, वह साफ-साफ बेबुनियाद लगा। ऐसा इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि जब मैंने उनसे यह पूछा कि क्या वह लड़की एफआईआर कराने थाने पहुँची थी, जिसने राहुल शर्मा पर छेड़ने का इल्जाम लगाया था, जबकि राहुल शर्मा के अनुसार वह उस लड़की के करीब भी नहीं फटका था, वहीं हर्षित अग्रवाल का कहना था कि ऐसी कोई लड़की वहाँ नहीं आयी थी और न ही ऐसी कोई एफआईआर दर्ज हुई है। बाद में मेरे पूछने पर यह भी पता चला कि उसका नाम एवं पता तक अक्षय नागर की डेली डायरी में दर्ज नहीं थे। जबकि राहुल का कहना था कि अक्षय नागर ने भी लड़की से ये सभी सवाल पूछे थे और उसने सारे जवाब दिए भी थे। यह एक पॉइंट है, जो मुझे बहुत स्ट्रेंज लग रहा है।”
“मैं आपकी बात समझ गया। वैसे जानकार बताते हैं कि अक्षय नागर का किरदार खुद में ही अजीबोगरीब था। उसे औरतखोर मर्दों में गिना जा सकता है। पुलिसवाला था, इसलिए लोग खौफ खाते थे, वरना उसके दुश्मनों की संख्या में रोजाना ही इजाफा होता रहता था। पुलिस की नौकरी वह मात्र एडवेंचर के लिए किया करता था। अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि कई बार एसीपी के दफ्तर में उसे डांट भी पड़ चुकी थी। यहाँ तक कि सस्पेंशन की भी मिली थी, लेकिन उसे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था।”
रोशन आनंद बोला –“हम्म, मैं इसके किरदार को और टटोलने की कोशिश करूँगा। वैसे पोस्टमार्टम की रिपोर्ट कब तक आ जायेगी?”
“कल तक आ जानी चाहिए।”
“ठीक है, मैं आज निकलता हूँ, लेकिन कल मिलूँगा आपसे।”
“जरूर, मैं आपका इंतजार करूँगा।”
रोशन आनंद उठने को हुआ, लेकिन फिर बैठ गया –“माफी चाहता हूँ, एक सवाल जेहन में बार-बार खटक रहा है, पूछ लूँ?”
“पूछिये।” – कुलदीप नागर ने गौर से रोशन आनंद को देखा।
“आपने अपनी थ्योरी बयान करते वक़्त कहा कि अक्षय नागर की लाश की शिनाख्त उसके पर्स में मौजूद आईडी कार्ड और एक करीबी रिश्तेदार के पहचान पर हुई?”
“हाँ।”
“जब उस घर में अक्षय नागर अकेला था, तो उक्त करीबी रिश्तेदार रात के उस वक़्त लाश की पहचान के लिए कैसे नमूदार हुआ?”
“वह वहाँ उस वक़्त किसी काम से पहुँचा था।”
“अच्छा, वैसे था कौन वह करीबी रिश्तेदार?”
कुलदीप नागर ने अपनी नज़रें नीचे झुका ली –“उसका बड़ा भाई था।”
“नाम?”
“कुलदीप नागर, सब-इंस्पेक्टर, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया पुलिस स्टेशन, जो आजकल अपने भाई के ही मर्डर की तफ्तीश कर रहा है।”
खड़े हो रहे रोशन आनंद के पैरों से जमीन खिसक गई और वह धम्म से वापिस कुर्सी पर बैठ गया।
रोशन आनंद ने लड़खड़ाते हुए शब्दों में कहा –“आप…..आप…..अक्षय नागर के बड़े भाई हैं?”
“हाँ, मैं ही वो बदनसीब भाई हूँ, जो समझता है कि उसके भाई के साथ जो खुदाई इंसाफ हुआ, वो ठीक था, लेकिन कानून की सेवा करते हुए मेरी वर्दी मेरी भावनाओं को आड़े नहीं आने देती, इसलिए मैं अपने भाई के कातिल को तलाश करके रहूँगा।”
“मैं आपकी भावनाएँ समझ सकता हूँ, लेकिन आप यह क्यों मानते हैं कि आपके भाई के साथ जो हुआ, वो खुदाई इंसाफ के रूप में ठीक हुआ?”
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लेखक परिचय
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