खूनी हवेली – सुरेन्द्र मोहन पाठक

रेटिंग : २.५/५
उपन्यास ११ अप्रैल से १२ अप्रैल के बीच पढ़ा

संस्करण विवरण:
फॉर्मेट : ईबुक
प्रकाशक : न्यूज़ हंट

पहला वाक्य:
रविकुमार अपनी तकदीर को अपनी अखबार की फटीचर नौकरी को कोसता हुआ राणा फार्म के रास्ते पर आगे बढ़ रहा था।

महिपालपुर एक छोटा सा गाँव था जहाँ रोजमर्रा की ज़िन्दगी में ज्यादा कुछ रोमांचक होने की संभावना कम ही होती थी। लोग बाग़ भी एक दूसरे की ज़िन्दगी में ताँक झाँक कर वक्त काटते थे।
ऐसे में महिपालपुर में मुम्बई से आई लड़की सुभद्रा मानके अपने आप में चर्चा का विषय थी। लेकिन जब उसकी लाश शाह पीर की मजार के पीछे पाई गयी तो गाँव में हलचल मचना लाजमी था।
एक साल पहले महिपाल पुर में चोरी हुई थी और ठाकुर विक्रम सिंह की पत्नी रूपा की भी दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी।
एक साल बाद ये दूसरी घटना हुई है। कौन है जिसकी एक बाहरी लड़की से दुश्मनी रही होगी?
क्या सी आई डी के इंस्पेक्टर देशमुख जिन्हें इस मौत की तफ्तीश के लिए बुलाया गया है इस रहस्यमयी मौत की गुत्थी को सुलझा पायेंगे? और क्या इससे कुछ पुराने राज भी उजागर होंगे?

खूनी हवेली सुरेन्द्र मोहन पाठक का एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास का घटनाक्रम एक छोटे से गाँव में घटित होता है। कहानी इस तरह से बनी है कि इस खून की तहकीकात करते हुए इंस्पेक्टर को ऐसा महसूस होता है कि खून का कारण एक साल पहले हुई घटना से है। ये एक साल पहले हुई घटना पाठकों को उपन्यासों के पात्रों की आपसी बातचीत के माध्यम से पता चलती रहती है। इससे उपन्यास को एक नुस्कान ये होता है कि जिन घटनाओं में कुछ रोमांच डाला जा सकता था वो नहीं डल पाता। हाँ, अंत तक आते आते उपन्यास में तेज गति आ जाती है जिसने  मुझे  उत्साहित किया। 
उपन्यास में संपादकीय गलतियाँ भी बहुत हैं जो उपन्यास पढ़ने का मजा किरकिरा कर देती हैं। डेलीहंट को एक बार इसे प्रूफरीड कर देना चाहिए था। ये उनका साहित्य के प्रति उदासहीन रवैया ही दिखाता है। उदाहरण के लिए:


मानके का नीलम के सम्बन्ध नकाब के जवाहरात उसके पास बरामद न होने से साबित हो जाता है।
आगे एक पर्दा था उसे हटाकर उसने विशाल ने स्टूडियो के भीतर कदम रखा।

अंत में केवल इतना ही कहूँगा कि ये उपन्यास मुझे औसत से थोड़ा बढ़िया लगा। इसे एक बार पढ़ा जा सकता है। उपन्यास और बढ़िया बन सकता था। अंग्रेजी उपन्यासों में प्रोलॉग(उपक्षेप) होता है जिसमे लेखक ऐसी घटना को  दिखा देता है जो कि उपन्यास के घटनाक्रम  घटने  से  पहले हो चुकी है लेकिन वो घटना उपन्यास के कथानक को प्रभावित करती है। मेरे हिसाब से इस उपन्यास में भी एक प्रोलॉग होना चाहिए था। खैर,ये मेरी व्यक्तिगत राय है।
अगर आप उपन्यास पढ़ना चाहते हैं तो आप इसे इधर मँगवा सकते हैं:
डेली हंट
(डेली हंट  से  खरीदे गये उपन्यास  को  केवल  आप  उसके  एप्प  के माध्यम  से ही पढ़ सकते हैं। )
अगर  आपने उपन्यास पढ़ा है तो अपनी राय जरूर दीजिएगा। 


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About विकास नैनवाल 'अंजान'

विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर उन्हें लिखना पसंद है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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3 Comments on “खूनी हवेली – सुरेन्द्र मोहन पाठक”

  1. ये नॉवेल अभी पढ़ना शुरू किया है और आपके रिव्यू से मेरी एक्सपेक्टेशन सेट हो गई है।
    धन्यवाद।
    आपका ब्लॉग पढ़ना मुझे पसंद है।

    1. बिना उम्मीद के पढ़िएगा। तभी लुत्फ़ ले पायेंगे। टिप्पणी का शुक्रिया।

    2. आप उपन्यास खत्म करने के बाद अपनी राय से मुझे जरूर अवगत करवाईयेगा।

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