पुस्तक टिप्पणी: खौफनाक किला – एस सी बेदी

पुस्तक टिप्पणी: खौफनाक किला - एस सी बेदी

संस्करण विवरण :
फॉर्मेट: पेपरबैक | पृष्ठ संख्या: 64 | प्रकाशक: हिन्द पॉकेट बुक्स | शृंखला: राजन-इकबाल

पुस्तक लिंक: अमेज़न

समीक्षा: खौफनाक किला - एस सी बेदी | हिंद पॉकेट बुक्स

पहला वाक्य:
“राजन! कभी तुमने हाथी देखा है?”

कहानी

जब राजन इकबाल को बुलाया गया तो उन्हें मालूम था कि जरूर कोई जरूरी काम होगा।

और वो गलत भी नहीं थे।

वाईक लायड नाम के कुख्यात अपराधी ने भारत के महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रोफेसर रमाकांत देसाई का अपहरण कर लिया था। उनका अपहरण करके वो उन्हें रंगून ले जा चुका था।  रमाकांत देसाईं ने एक ऐसा आविष्कार किया था जो कि जिस किसी के भी हाथ में आता वो ही दुनिया पे राज कर सकता था। ऐसे में लायड को पता था कि वैज्ञानिक की नीलामी लगाईं जाए तो कई देश उसे ऊँचे दामों में खरीदने के लिए तैयार हो सकते थे।

और ऐसा हुआ भी।

रंगून में खतरनाक जसूसों का मेला सा लग गया। उन सबका एक ही मकसद था। लोयड से प्रोफेसर को खरीदकर अपने देश तक पहुँचाना।

ऐसे में भारत से राजन-इकबाल को भेजा गया ताकि वो प्रोफेसर को लायड के चंगुल से छुड़ा लें।

क्या वो ऐसा करने में कामयाब हो पाये?

अपने मिशन के चलते उन्हें किन किन खतरों से रूबरू होना पड़ा?

टिप्पणी

बचपन में जब बच्चे कॉमिक्स पढ़ते हैं तो उसके पश्चात उनका प्रगमन बाल उपन्यासों की तरफ होता है। लेकिन मेरे मामले में ऐसा नहीं हुआ था। चूँकि हमारे यहाँ उपन्यास पढ़ने को बुरी लत मानी जाती है तो चौथी पाँचवी के बाद मैंने कॉमिक्स से बाल उपन्यासों की तरफ कदम नहीं रखा।

मुझे कहानी पढ़ने का शौक तो था लेकिन उपन्यासों तक मेरी पहुँच नहीं थी। जब मैं ग्यारहवीं में था तब तक मैंने अनीता देसाईं का उपन्यास ‘विलेज बाय द सी‘ ही पढ़ा था क्योंकि वो कोर्स में था। हिंदी के कोर्स में कोई उपन्यास नहीं था इसलिए हिंदी का कुछ नहीं पढ़ा था। बारहवीं में गया तो हैरी पॉटर वगेरह ही पढ़ना नसीब हुआ। हिंदी का तब भी कुछ हाथ में नहीं आया। कॉलेज में भी अंग्रेजी के ही उपन्यासों की तरफ ध्यान था। हाँ, जब नौकरी लगी तो उपन्यास खरीदने शुरू किये  और हिंदी साहित्य को पढ़ना शुरू किया। फिर पॉकेट बुक्स की तरफ भी गया। फिर एक आध साल पहले पता चला कि लोग बाग़ पॉकेट बुक्स में आने से  पहले बाल उपन्यास पढ़ते थे और एस सी बेदी इस श्रेणी में मास्टर थे और उनकी राजन-इकबाल शृंखला बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध थी।

फिर जब अमेज़न में इस शृंखला का  उपन्यास देखा तो खरीदे बिना नहीं रह सका। जो बचपन में नहीं किया था वो अब करना था। और मुझे अच्छा लगा कि मैंने इस लघु-उपन्यास को खरीदा।

हिंद पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित ये लघु उपन्यास मुझे बहुत पसंद आया। वैसे ये उपन्यास छोटा है लेकिन रोमांच से भरपूर है। इसमें जासूस हैं, जासूसी कोड हैं, गोलिया चलती हैं और ऐसे किरदार भी  हैं जो संजीदा से संजीदा परिस्थिति में मजाक करना नहीं भूलते हैं। राजन जहाँ संजीदा है वहीं इकबाल मजाकिया है। उसके जोक छोटी छोटी कविताओं के बने होते हैं जिन्हें पढ़कर मज़ा आया। दोनों एक दूसरे को कॉम्प्लीमेंट करते हैं।  बस कमी खली तो यही कि उपन्यास काफी छोटा था।

अगर आप छोटे बच्चों के रोमांचक उपन्यास ढूँढ रहे हैं तो आपको ये जरूर खरीदना चाहिए। आप अपने बच्चों को इसे उपहार स्वरुप भी दे सकते हैं। हिंदी में फिलहाल शायद ही कोई  भी बच्चों के लिए रोमांचक उपन्यास लिख रहा है। उनके पास या तो अंग्रेजी विकल्प होता है या हिंदी में पढ़ना हो तो अंग्रेजी उपन्यास का हिंदी अनुवाद। ऐसे में ये उपन्यास एक अच्छा विकल्प हैं। उपन्यास ज्यादा बड़ा नहीं है और रविवार की छुट्टी में आसानी से खत्म किया जा सकता है।

अमेज़न में इसी शृंखला का एक और उपन्यास मौजूद है। मैंने पहले इसे खरीदा था ताकि देख सकूँ की ये मुझे पसंद आता है या नहीं। अब चूँकि ये मेरी उम्मीदों में खरा उतरा है तो दूसरा उपन्यास भी मैं खरीदूँगा।

बाकी उम्मीद है इस शृंखला के उपन्यासों को बाज़ार में दुबारा उपलब्ध कराया जाएगा।

अगर आपने उपन्यास पढ़ा है तो अपनी राय जरूर बताइयेगा। अगर आपने नहीं पढ़ा तो आप निम्न लिंक में जाकर इसे मँगवा सकते हैं:

पुस्तक लिंक: अमेज़न


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Author

  • विकास नैनवाल

    विकास नैनवाल को अलग अलग तरह के विषयों पर लिखना पसंद है। साहित्य में गहरी रूचि है। एक बुक जर्नल नाम से एक वेब पत्रिका और दुईबात नाम से वह अपनी व्यक्तिगत वेबसाईट का संचालन भी करते हैं।

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